सोनल उपाध्याय, नंदन मेहता, आशुलाता कौशल एवं तरुण प्रधान
अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़

अलसी (लिनम यूसीटेटीसिमम) लिनिएसी परिवार का फूलदार पौधा है जिसे मूलतः खाद्य एवं रेशे के लिए उगाया जाता है। इसके बीज से तेल एवं तने से रेशा निकाला जाता है, जिसके वजह से इसे दोहरे उद्देश्य की फसल माना जाता है। अलसी को वर्त्तमान में एक अत्यधिक गुडवत्ता वाला खाद्य पदार्थ मन जा रहा है इसके बीज मे मौजूद ओमेगा-3 वसा की मात्रा किसी भी अन्य शाकाहारी स्त्रोत से अधिक है जिसके वजह से इसे स्वास्थ संबंधी क्षेत्र मे भी बहुत अच्छा माना गया है। ओमेगा-3 के अलावा इसमे लिगनान भी प्रचूर मात्रा मे पाया जाता है। अलसी के रेशे को ‘लिनेन’ के नाम से जाना जाता है जिसका प्रयोग कपड़े, चादर एवं रस्सी बनाने मे किया जाता है। अलसी पादप जगत में एक शक्तिशाली पौधा है, इस तथ्य के कुछ प्रमाण है जैसे कि यह हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह की संभावना को बहुत कम करता है। अलसी एक आवश्यक एवं संर्पूण आहार है, जिसमें 20% आवश्यक अमिनो एसिड युक्त अच्छे प्रोटीन होते हैं। ओमेगा-3 फैट्टी एसिड, जो कि एक अच्छी वसा के रुप में हृदय की स्वास्थय के लिए महत्वर्पूण है। रिसर्च के अनुसार आोमेगा -3 रक्तचाप को कम अथवा नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। अलसी हमारे शरीर में अच्छे कोलेस्ट्राल की मात्रा को बढ़ाता है और ट्राइग्लीसराइट्स व खराब कोलेस्ट्राल (एल. डी. एल.) की मात्रा को कम करती है। लिगनेन प्रोटीन जो कि पादप ऐस्ट्रोजेन व एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर है। फाइबर भी प्रचूर मात्रा में पाये जाते है। कब्ज में यदि अलसी का सेवन किया जाय तो ईसबगोल की अपेक्षा ज्यादा स्वास्थयप्रद है। इसके अतिरिक्त इसमें 30-40 प्रतिशत तेल, विटामिन बी, सेलेनियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक, पोटेशियम, लोहा, लाइकोपीन आदि प्रचूर मात्रा में पाई जाती है, इसके अतिरिक्त इसमें ओमेगा-3, एल्फा-लिनोलेनिक एसिड पाई जाती है जो पृथ्वी पर सबसे बड़ा वानस्पतिक स्त्रोत है।

छत्तीसगढ भारत मे अलसी उत्पादन करने वाला एक महत्वपूर्ण राज्य है जिसमे अलसी का क्षेत्र लगभग 64.08 हजार हेक्टेयर एवं उत्पादन 30.36 हजार मैट्रीक टन है। छत्तीसगढ मे अलसी उत्पादन रबी फसल के रूप में किया जाता है उतेरा पद्दति से अलसी का उत्पादन करने वाला क्षेत्र भी छत्तीसगढ़ में बड़ा है छत्तीसगढ़ में अलसी का उत्पादन करने वाले जिलों में रायपुर, दुर्ग, राजनांदगॉव, बिलासपुर, धमतरी, कांकेर एवं रायगढ प्रमुख है। इंदिरा गॉधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर अलसी की उत्पादकता एवं जैव विविधता को संरक्षित करने के सतत प्रयास करती रही है। यहॉ लगभग 2025 अलसी जर्मप्लाज्म किस्मों को प्रतिवर्ष लगाया एवं पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित किया जाता है। इन 2025 जर्मप्लाज्म में अलसी के विभिन्न गुणों के लिए विविधता है । पौधे की लंबाई, बीज का रंग एवं आकार, फूल का रंग, तेल की मात्रा आदि प्रत्येक गुण के पौधों को लगाया जाता है । अतः यहॉं अलसी की एक विशाल जैव विविधता को संरक्षित एवं अलसी की गुणवत्ता सुधारने में प्रयोग किया जा रहा है । इससे आने वाले समय में राज्य में अलसी का क्षेत्रफल एवं उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी । साथ ही यहां के कृषकों को अधिक गुणवत्ता वाली अलसी प्रदान की जा सकेगी।

अलसी को उतेरा अथवा पूर्ण रूप से वर्षा आधारित स्थिति में भी बहोत ही आसानी से लगाया जा सकता है। इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा समय समय पर अलसी की कई उन्नत किस्मों का विकास किया गया है। इनमें वर्षा आधारित कृषि हेतु कार्तिका, छत्तीसगढ़ अलसी ( आर एल सी 137) वर्षा अलसी (आर एल सी 148), आर एल सी 161 एवं आर एल सी 164 हाल ही में विक्सित की गयी किस्में हैं। इन किस्मों की उत्पादकता 900 से 1200 किलो प्रति हेक्टेयर तक है। उतेरा पद्धति में लगाने के लिए भी विशेष किस्में इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गयी हैं। इनमें से उतेरा अलसी 1 एवं उतेरा अलसी 2 प्रमुख हैं।

इन किस्मों की सम्पूर्ण जानकारी कुछ इस प्रकार है-

क्र.

नाम

अवधि

उपज

तेल (प्रतिशत)

1.

इन्दिरा अलसी 32

100-106

1000-1200 किलोग्राम/हे.

39%

2.

छत्तीसगढ़ अलसी-1 (आर एल सी. 133)

100-107

800-900 किलोग्राम/हे.(वर्षा आधारित)

36.4%

3.

आर एल सी. 148

110-114

1033.5 किलोग्राम/हे.

35.7%

4.

आर एल सी 161

118-125

1262

32.1%

5.

एल सी 164

117-124

1161 किलोग्राम/हे.

32.6%

6.

उतेरा अलसी

115-118

570 किलोग्राम/हे.

34.14%

7.

उतेरा अलसी-2)

118-120

519 किलोग्राम/हे.

34.8%


जिस प्रकार अलसी के प्रयोगों के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ रही है। इससे यह आवश्यक हो चूका है की इस फसल का क्षेत्रफल एवं उत्पादन बढ़ाया जाये इससे उपभोक्ता के साथ साथ किसानो का भी फायदा होना संभव है। इसी प्रयास में अलसी की नयी उन्नत किस्मों का विकास एवं प्रचार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और आने वाले समय में अलसी लोगों एवं किसानों के लिए और अधिक महत्त्वपूर्ण साबित होगी।