तोशिमा कुशराम
इं. गां. कृ. वि.वि., रायपुर (छ.ग.)

आलू भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। आलू के उत्पादन में विश्वभर में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। खेतों तथा भंडरगृह में लगने वाले रोग एवं कीट आलू को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। गंभीर संक्रमण की स्थिति में आलू की फसल को रोग एवं कीटों द्वारा 40-70 प्रतिशत तक नुकसान होता है। आलू की खेती के दौरान इस पर कई प्रकार के रोग एवं कीटों का आक्रमण होता है। यदि आलू की ज्यादा पैदावार चाहिए तो उसके लिए इन रोग एवं कीटों का प्रबंधन बहुत ही आवश्यक है।

प्रमुख कीट

आलू कंद शलभ

लक्षण एवं नुकसान
आलू कंद शलभ की तितली सबसे पहले पत्तियों तथा मिट्टी से बाहर निकले हुए आलू कंदों पर अंडे दे देती हैं। इन अंडो से निकला हुआ लार्वा आलू की पत्तियों एवं तनों को खाते हुए उसमें सुरंग बना देते हैं। देशी भंडारगृह में रखे आलुओं की आंखों को भेदकर उसमें सुराख बना देते हैं। बाद में इन क्षतिग्रस्त आलुओं में फफूंद लग जाती हैं जिससे ये सड़ जाते हैं। यह कीट भंडारण एवं खेतों में आलू की फसल को 60-70 प्रतिशत तक हानि पहुंचाता है।सोलेनिसियस परिवार की कुछ पौध जैसे बैंगन, टमाटर, आलू, तंबाकू तथा धतूरा इसके प्रमुख परपोषी पौधे हैं।

रोकथाम के उपाय
खेत एवं भंडारगृहों में आलू कंद शलभ के नियंत्रण के लिए एकीकृत प्रबंधन तरीकों को अपनाना जरूरी है। इस कीड़े के प्रभावी नियंत्रण हेतु निम्नलिखित उपाय हैं।
  • खेतों में आलू की बुआई 10 सेंटीमीटर गहराई तक करने से यह कीट काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
  • खेतों में बुआई के लिए स्वस्थ रोग एवं कीट रहित बीज आलू का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • खेतों में समय से कन्दों पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए ताकि कोई भी कन्द जमीन से बाहर न रहें।
  • भंडारगृह में आलू के ढेर के नीचे एवं ऊपर सूखी हुई लेंटाना या सफेदा की 2.5 सेंटीमीटर मोटी तह बिछाने पर इन कीटों से बचा जा सकता है।
  • बीज के लिए भंडारित आलुओं पर फेनवेलरेट 2 प्रतिशत या मैलथियन 5 प्रतिशत या क्विनोल्फोस 1.5 प्रतिशत धूल 125 ग्राम प्रतिक्विंटल आलू की दर से प्रयोग करें। खाने वाले आलू पर इस रसायन का प्रयोग न करें।
  • खाने हेतु आलू के ऊपर बेसिलस थूरिंनजियंसिसया ग्रेनुलोसिस वायरस के चूर्ण का 300 ग्राम प्रति क्विंटल की दर से छिड़काव करें।
  • खेतों में कन्द शलभ को पकड़ने हेतु यौन गंध आधारित जल ट्रेप (20 ट्रेपप्रति हेक्टयर) का प्रयोग प्रभावशाली रहता है।
  • भंडारगृह में कन्द शलभ को रोकने हेतु परजीवी अथवा सूक्ष्म शाकाणु, फफूंद, चींटियों, छिपकलियों आदि स्वाभाविक शत्रुओं की बढ़वार होने देना चाहिए।

माहुं या चेंपा
माहुं कीट एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। ये रस चूसने वाले कीट की श्रेणी में आते हैं। माइजस परसिकी व एफिस गौसिपी नामक मांहू आलू की फसल पर प्रत्यक्ष रूप से तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते परंतु ये विषाणुओं को फैलाते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन में ये कीट प्रमुख बाधक हैं।

लक्षण एवं नुकसान
माहुं, पत्ती मोड़क (PLRY) व वाई वायरस (PVY) के मुख्य वाहकों के रूप में कार्य करते हैं तथा इन वायरस रोगों से फसल को भारी नुकसान होता है। फसल पर माहुं के मानिटरिंग से इसके द्वारा बीज फसल में बढ़ने वाले वायरस आपतन को कम किया जा सकता हैं। फसल या खेतों में माहुं के प्रभाव को आँकने के लिए उनकी गिनती 100 यौगिक पत्तियों पर प्रति सप्ताह की जाती हैं। यदि इनकी संख्या 20 माहुं प्रति 100 पत्ती हो जाए तो इस पर रसायन का छिडकाव जरूरी हो जाता है।

रोकथाम के उपाय

कृषि एवं यांत्रिक उपाय
  • हमारे देश के गंगा के मैदानी इलाकों में ही लगभग 90 बीज: आलू की खेती की जाती है। इन क्षेत्रों में बीज आलू की फसल माहुं रहित अवधि में करनी चाहिए।
  • बीज आलू की फसल तथा अन्य सब्जियों की फसल के बीच कम 50 मीटर की दूरी रखें।
  • खेतों में या आसपास उगे माहुं ग्रसित पौधों, विशेषकर पीले रंग के फूल वाले पौधो को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • जैसे ही प्रति 100 पत्तियों पर माहुं की संख्या 20 से ज्यादा होने लगे तो फसल के डंठलों को काट दें।

कीट नाशकों का उपयोग

मैदानी क्षेत्रों में
मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर बुवाई के समय नालियों में फोरेट 10G की 10 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर की दर से उपचार करके माहुं जैसे रोग वाहकों को 45 दिनों तक फसल पर आने से रोका जा सकता है। इसके बाद आवश्यकता पड़ने पर फसल पर किसी उपयुक्त कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल., 3 ml/10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

पहाड़ी क्षेत्रों में
पहाड़ी इलाकों में आलू की खेती वर्षा पर निर्भर करती है अतः दानेदार कीटनाशक से उपचार, नमी की कमी या ज्यादा बारिश के कारण प्रभावशाली नहीं रहता। इसलिए फसल पर मांहू के आगमन पर पैनी नजर रखें तथा डंठलों की कटाई तक उपरोक्त सिफारिश किए गए कीटनाशकों का 10-15 दिनों पर आवश्यकतानुसार 1-2 छिड़काव करें।

सफेद मक्खी
सफेद मक्खी एक बहुभक्षी कीट है। बेमिसिया प्रजाति की सफेद मक्खियाँ आलू फसल को नुकसान पहुंचाती है। ये छोटे नरम शरीर वाले सफेद कीड़े हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन हेतु सफेद मक्खी की रोकथाम आवश्यक है।

लक्षण एवं नुकसान
ये कीट मुख्य रूप से आलू में जेमिनी वाइरस और एपिकल लीफ कर्ल वाइरस के लिए वाहक का काम करते हैं। पत्तियों से रस चूसने के कारण पौधे अशक्त हो जाते हैं। संक्रमित पत्तियों के ऊपर हनी ड्यू के स्राव के कारण यह सुख कर चिपचिपा हो जाता है। वाइरस के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं एवं पौधे पीले पड़ जाते हैं।

रोकथाम के उपाय
  • आलू की फसल पर सफेद मक्खियों की संख्या को मॉनिटर करने एवं इन्हे पकड़ने हेतु पीली चिपचिपी ट्रेप का प्रयोग करें।
  • घास और वैकल्पिक परपोषी पौधों को निकाल दें।
  • आवश्यकता के अनुसार 10 दिनों के अंतराल पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 2ml/ 10लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कर्तक कीट
कर्तक कीट आलू का एक प्रमुख कीट है। ये मैदानी तथा पहाड़ी, दोनों इलाकों में सक्रिय रहते हैं। सूखे के मौसम में जब पौधों के तने नए और कोमल होते हैं, इसका प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है। यह एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। भारत में आलू की फसल को यह कीट 35-40 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाता है।

लक्षण एवं नुकसान
फसल को केवल ईल्ली के कारण ही नुकसान पहुंचता है। ये ईल्ली रात के समय आलू की नई शाखाओं या जमीन के नीचे दबे हुए कंदों को खाते हैं। फसल की प्रारम्भिक अवस्था में ईल्ली अपना भोजन नए पौधे की डंठलो, तने और शाखाओं से ग्रहण करता है। बाद में यह कन्दों को छेदकर खाते हुए नुकसान पहुंचाते हैं जिससे कुल पैदावार तो घटती ही है, साथ ही साथ बाजार में भी इनका दाम कम मिलता है।

रोकथाम के उपाय
  • मैदानों में गर्मियों में जुताई करके अवयस्क अवस्था में ही कर्तक कीट वृद्धि को कम किया जा सकता है। जुताई के कारण जमीन से बाहर आए हुए इन कीडों को इसके प्रकृतिक शत्रु कौआ, मैना आदि खा लेते हैं।
  • कर्तक कीट का प्रकोप देखते ही पत्तियों पर कीटनाशक कलोरपाइरीफोस 20 ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें।
  • जैविक नियंत्रण हेतु इसके कुछ मुख्य परजीवी ब्रोस्कस पंकटेटस, लियोग्रिलस बायमेकूलेटस, ओपलोपस हिप्सीपैली इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है।

सफेद सूँडी
सफेद सूँडी आलू की फसल में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इसके कारण प्रभावित आलू की फसल को 10 से 80 प्रतिशत तक नुकसान होता है। देर से खोदी गई फसल पर नुकसान अधिक होता है।

लक्षण एवं नुकसान
आलू की फसल को नुकसान पहुंचाने वाली सफेद सूँडी की प्रमुख प्रजातियाँ ब्राहमीना कोरेसिया तथा ब्राहमीना लोंगीपेनिस हैं। ये सूँडी प्रारम्भ में मिट्टी के जैविक पदार्थों को खाती है परंतु बाद में ये पौधों की जड़ो को खाकर अपना पेट भरते हैं। इसका लार्वा आलू कंदों में सुराख बनाते हुए अपना भोजन करते हैं। इससे बाजार में आलू की कम कीमत मिलती है।

रोकथाम के उपाय

कृषि एवं यांत्रिक उपाय
  • परपोषी वृक्षों व उसकी शाखाओं को अच्छी तरह हिलाकर भृंगो को इकट्ठा कर किसी कीटनाशी का इस्तेमाल करके इन्हें मारा जा सकता है।
  • मानसून आने से पहले अप्रैल- मई के महीने में खेत दो से तीन बार जुताई करें और मिट्टी को खुला छोड़ें ताकि बाहर निकली सूँडी और प्यूपा को इनके स्वाभाविक दुश्मन जैसे कौवा, मैना आदि खा लें।
  • रात में वयस्क कीटों को प्रकाश ट्रेप की सहायता से पकड़कर नष्ट कर दें।
  • खेतों में सदैव गोबर कि अच्छी तरह से सड़ी गली खाद ही डालें।

रसायनिक नियंत्रण
  • वयस्क सुंडियों को मारने के लिए परपोषी पौधों पर कीटनाशकों जैसे कलोरपाइरीफोस 20 ईसी को 2.5 ml/ लीटर पानी में घोल कर मॉनसून के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए।
  • बुवाई या मिट्टी चढ़ाते समय पौधों के नजदीक देहिक कीटनाशी जैसे फोरेट 10 G या कार्बोफ्यूरान 3 G की 2.5 से 3.0 किलोग्राम वास्तविक मात्रा का प्रति हेक्टर की दर से उपचार करें।

प्रमुख रोंग

अगेती अंगमारी या अर्ली ब्लाइट
यह रोंग फफूंद की वजह से होता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण नीचे की पत्तियों पर हल्के भरे रंग के छोटे- छोटे पूरी तरह बिखरे हुए धब्बों से होता हैं। जो अनुकूल मौंसम पाकर पत्तियों पर फैलने लगते है। जिससे पत्तियॉ नष्ट हो जाती है । इस बिमारी के लक्षण आलू मे भी दिखते हैं भूरे रंग के धब्बें जो बाद मे फैंल जाते हैं जिससे आलू खाने योग्य नही रहता है।

प्रबंधन
  • बुवाई से पूर्व खेत की सफाई कर पौंधों के अवशेषो को एकत्र कर जला देना चाहिए।
  • आलू के कंदो को एगेलाल के 0.1 प्रतिशत घोल में 2 मिंनट तक डुबाकर उपचारित करके बोना चाहिए।
  • फाइटोलान, ब्लिटाक्स- 50 का 0.3 प्रतिशत 12 से 15 दिन के अन्तराल में 3 बार छिड़काव करना चाहिए।
  • रोग प्रतिरोधक जाति जैसे कुफरी जीवन, कुफरी सिंदूरी आदि।

पछेती अंगमारी रोंग
यह रोंग फफूंद की वजह से होता है। रोग के लक्षण सबसे पहले निचे की पत्तियों पर हल्कें हरे रंग के धब्बें दिखाई देतें है। जो जल्द ही भूरे रंग के हो जाते हैं। यह धब्बें अनियमित आकार के बनते हैं। जो अनुकूल मौसम पाकर बड़ी तीव्रता से फैलते हैं औंर पत्तियों को नष्ट कर देतें है। रोग की विशेष पहचान पत्तियों के किनारें और चोटी भाग का भूरा होकर झुलस जाना हैं। इस रोग के लक्षण कंदो पर भी दिखाई पड़ता है। जिससे उनका विगलन होने लगता हैं।

प्रबंधन
  • प्रमाणीत बीज का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
  • रोग प्रतिरोधी जातीयों का चयन किया जाना चाहिए जैसे कुफरी अंलकार, कुफरी खासी गोरी, कुफरी ज्योती, आदि।
  • बुवाई के पूर्व खोद के लिकाले गए रोगी कंदो को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • बोर्डो मिश्रण 4ः4ः50, कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव 12-15 दिन के अन्तराल मे तीन बार किया जाना चाहिए।

भूरा विगलन रोग एवं जीवाणु म्लानी रोग
यह जिवाणु जनित रोग हैं। रोग ग्रसित पौधे सामान्य पौधो से बौने होते है। जो कुछ ही समय मे हरे के हरे ही मुरझा जाते है। प्रभावित पौधों की जड़ो को काटकर कॉच के गिलास मे साफ पानी में रखने से जीवाणु रिसाव स्पष्ट देखा जा सकता हैं। अगर इन पौधो मे कंद बनता है तो काटने पर एक भूरा धेरा देखा जा सकता हैं।

प्रबंधन
  • प्रमाणीत बीज का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
  • बुवाई के पूर्व खोद के लिकाले गए रोगी कंदो को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • कंद लगाते समय 4-5 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से ब्लीचिंग पाउडर उर्वरक के साथ कुंड मे मिलायें।
  • रोग दिखई देने पर अमोनियम सल्फेट के रूप मे देना चाहिए जो रोग जनक पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

समान्य स्कैब या स्कैब रोग
रोंग फफूंद की वजह से होता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण पौधो कंदो पर पर दिखाई पड़ता हैं। कंदो मे हल्के भूरे रंग के दिखई फोड़े के समान स्केब पड़ते है जो की कुछ उभरे और कुछ गहरे स्केब दिखई पड़ते है जिसके कारण कंद खने योग्य नही रह जाते।

प्रबंधन
  • प्रमाणीत बीज का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
  • बुवाई के पूर्व खोद के लिकाले गए रोगी कंदो को जलाकर नश्ट कर देना चाहिए।
  • बीज को आरगेनोमरक्यूरीयल जैसे इमेशान या एगालाल धोल के 0.25 प्रतिशत धोल मे 5 मिनट तक उपचारीत करें।