खुशबू साहू,पीएचडी रिसर्च स्कॉलर 
डॉ. प्रवीन कुमार शर्मा ,ऐसोसिऐट प्रोफेसर, सब्जी विज्ञान विभाग
डॉ.मनमोहन सिंह बिसेन, कृषि कीटविज्ञान विभाग
कृषि महाविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

परिचय
सामान्यतः प्याज भारत में एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है। भारत में उगाई जाने वाली फसलों में प्याज का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, यू.ए.ई. कनाडा, जापान, लेबनान एवं कुवैत में निर्यात किया जाता है। प्याज में बहुत से औषधीय गुण पाये जाते हैं। इसका उपयोग विभिन्न तरीके जैसे सलाद, सूप, सब्जी, अचार तथा मसाले के रूप में किया जाता है। आजकल विदेशों में इसका उपयोग सुखाकर भी किया जा रहा है. विदेशी बाजार में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

खरीफ प्याज के लाभ
उत्तर भारत में इसको अधिकतर रबी के मौसम में ही उगाया जाता है, जिससे इस समय इसकी अधिकता एवं भंडारण की समुचित अभाव के कारण किसान भाइयों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। अक्सर यह देखा जाता है कि नवंबर के बाद रबी की फसल का संग्रहित भंडार समाप्त हो जाता है।

खरीफ प्याज का उत्पादन कम होने के कारण दिसंबर और जनवरी में प्याज की आपूर्ति में कमी आ जाती है, इससे इन दो महीनों में प्याज की कीमतों में वृद्धि आ जाती है। खरीफ के मौसम में प्याज उत्पादन लेने से बाजार में इसकी आपूर्ति लगातार बनाए रखने में सहायक होती है तथा अधिक लाभ भी कमाया जाता है।

उपयोग एवं गुण

1. आयुर्वेदीय औषधि

2. भोजन स्वादिष्ट बनाने में

3. सलाद बनाने में

4. मसाले के रूप में

5. आँख की ज्योति बढ़ाने में

6. मवेशियों एवं मुर्गियों के भोजन में

7. कीटनाशक के रूप में

8. प्याज में विटामिन-सी, लोहा और चूना अधिक पाया जाता है।

जलवायु
प्याज के लिए समशीतोष्ण जलवायु अच्छी समझी जाती है। पौधों की आरंभिक वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, लेकिन अच्छे व बड़े का निर्माण के लिए पर्याप्त धूप वाले बड़े दिन उपयुक्त रहते हैं।

भूमि
प्याज को विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता हैं। जीवांशयुक्त दोमट भूमि और जलौढ़ मृदाएं इसकी कास्त के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नहीं उगाना चाहिए, इसे उगाने के लिए पी.एच. मान 6.5-7.5 अनुकूलतम होता हैं।खेत में जल निकास का भी उचित प्रबंधन होना आवश्यक है।

भूमि की तैयारी
खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाएं जिससे नमी सुरक्षित रहें तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए।अगर भूमि में गंधक की कमी हो तो 400 किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से खेत की अंतिम तैयारी के समय कम से कम 15 दिन पूर्व मिलाएं।

उन्नत किस्मों

एग्रीफाउंड डार्क रेड
यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म देश के विभिन्न प्याज उगाने वाले भागों में खरीफ मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति के शल्क कंद गहरे लाल रंग के गोलाकार होते हैं, शल्के अच्छी प्रकार से चिपकी होती हैं तथा मध्यम तीखापन होता है। फसल रोपाई में 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा कुल विलय ठोस 12 से 15% तक होता है।

भीमारेड
इस प्रजाति का प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, राजगुरूनगर, पुने द्वारा सन् 2009 में विकसित किया गया कन्द आकर्षित लाल रंग के, गोलाकार होते है। पौध रोपण के 100-120 दिनों में कन्द तैयार हो जाता है। भण्डारण क्षमता साधारण होती है.कुल विलेय ठोस 10-11ः होता है, औसत उत्पादन 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता ह।ै यह खरीफ मौसम के लिए जोन 6,7 एवं 8 के लिए अनुमोदित की गई है।

भीमासुपर
इस प्रजाति को प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, राजगुरूनगर, पुने द्वारा सन् 2012 में विकसित किया गया है कन्द गोल और पतली गर्दन के होते हैं, यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 किवंटल तक उपज देती है।भण्डारण क्षमता साधारण होती है.कुल विलेय ठोस 10-11% होता है।

एग्रीफाउंड लाइट रेड
इस किस्म के पौधे 120 दिन के अंतराल में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है। यह किस्म रबी के मौसम में उगाई जाती है, जिसमे निकलने वाले कंदो का रंग हल्का लाल तथा आकार गोलाकार होता है। प्याज की यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 375 क्विंटल की पैदावार दे देती है।

लाइन 883
यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा 2015 मे विकसित की गई है, यह किस्म देश के विभिन्न प्याज उगाने वाले भागों में खरीफ मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है इस प्रजाति के शल्क कंद गहरे लाल रंग के गोलाकार होते हैं, शल्के अच्छी प्रकार से चिपकी होती हैं तथा मध्यम तीखापन होता है फसल रोपाई में 80 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है ।पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

एन-53
भारत के सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ प्याज (वर्षात की प्याज) उगाने हेतु अनुसंशित किस्म हैं।

खरीफ फसल हेतु किस्में 
 भीमा डार्क रेड, भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता, भीमा सफेद, पूसा रेड, पूसा रतनार, एग्रीफाउंड लाइट रेड, एग्रीफाउंड रोज, पूसा व्हाइट राउंड, पूसा व्हाइट फ्लैट इत्यादि प्रमुख किस्में हैं।

बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर प्याज लगाने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।पौधे एवं कन्द तैयार करने के लिए बीज को क्यारियों में बोयें, जो 3*1 मीटर आकर की हो। वर्षाकाल में उचित जल निकास हेतु क्यारियों की ऊँचाई 10-15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। नर्सरी में अच्छी तरह खरपतवार निकालने तथा दवा डालने के लिए बीजों को 5-7 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोना अच्छा रहता है। क्यारियों की मिट्टी को बुवाई से पहले अच्छी तरह भुरभुरी कर लेनी चाहिए।

प्याज की बुआई तीन प्रकार से की जाती है-

(1) सीधे बीज डालकरः इसे बलुआही मिट्टी में उपयोग करते हैं। इस विधि में मिट्टी को अच्छे ढंग से तैयार कर बीज खेत में छोड़ देते हैं। इस विधि में बीज की मात्रा 7-8 किलो प्रति हें. लगाते हैं।

(2) गांठों से प्याज लगानाः छोटे प्याज के गांठों को अप्रैल-मई में लगायी जाती है। प्याज की 12-14 क्विंटल प्रति हें. गाँठ लगते हैं।

(3) बीज से पौध तैयार कर खेत में लगानाः यह प्रचलित विधि है जिसके द्वारा प्याज की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

क्यारियों की मिट्टी को बुवाई से पहले अच्छी तरह भुरभुरी कर लेनी चाहिए। पौधों के आद्र गलन बीमारी से बचाने के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा विरिडी (4 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित करके बोना चाहिए। बोने के बाद बीजों को बारीक खाद एवं भुरभुरी मिट्टी व घास से ढक देवें। उसके बाद झारे से पानी देवें, फिर अंकुरण के बाद घास फूस को हटा देवें।

पौध लगभग 7-8 सप्ताह में रोपाई योग्य हो जाती है। खरीफ फसल के लिए रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई के अन्तिम सप्ताह से लेकर अगस्त तक है। रोपाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं। कन्दों की बुवाई 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेड़ों पर 10 सेंटीमीटर की दूरी पर दोनों तरफ करते हैं। बुवाई के लिए 5 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर व्यास वाले आकर के कन्द ही चुनना चाहिए। एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए 10 क्विंटल कन्द पर्याप्त होते हैं।

खाद एवं उवर्रक
प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वो की आवश्यकता होती है प्याज के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 क्विंटल प्रति हेक्टर खेत की तैयारी के समय भूमि में मिलावें। इसके अलावा 100 किलो नत्रजन, 50 किलो फास्फोरस एवं 100 किलो पोटाश प्रति हेक्टर की दर से आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय देवें। नत्रजन की शेष मात्रा रोपाई के एक से डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में देवें।

सिंचाई
खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए एवं उसके तीन-चार दिन बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें ताकि मिट्टी नम रहें। इस बात का ध्यान रखा जाऐ कि शल्ककन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती हैं क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाऐगें एवं फसल जल्दी आ जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-12 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए। फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
प्याज की खेती में खरपतवार नियंत्रण की अधिक आवश्यकता होती है, फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जडे भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग किया जाना उचित होता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर अथवा ऑक्सीफ्लोरोफेन 600-1000 मिली/हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाये गये हैं।

कंदों की खुदाई
प्याज के पौधे रोपाई के 4 से 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगे तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है। सुखाने के बाद जड़ और पत्तियों को अलग कर लिया जाता है। इसके बाद इन्हे छायादार जगह पर अच्छे से सुखा लिया जाता है।

उपज
एक हेक्टेयर के खेत से प्याज की तकरीबन 250 से 400 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है।

रोग एवं व्याधि

प्याज की आंगमारीः पत्ते पर भूरे धब्बे बाद में पत्ते सूख जाते हैं। इसके लिए 0.15% डायथेन जेड-78 का छिड़काव करें।

मृदुरोमिल फफूंदीः पत्ते पहले पीले, हरे और लम्बे हो जाते हैं तथा उन पत्तों पर गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं। बाद में ये पत्ते मुड़ने और सूखने लगते हैं। इसकी रोक थाम के लिए 0.35% ताम्बा जनित फफूंदी नाशक दवा का छिड़काव करें।

गले का गलनः इसके प्रकोप होने पर शल्क गलकर गिरने लगते हैं। इसकी रोकथाम के लिए फसल को कीड़े और नमी से बचावें।

प्याज का थ्रिप्सः इसके पिल्लू कीड़े पत्तों और जड़ों को छेद कर रस चूसते हैं। फलस्वरूप पत्तियों पर उजली धारियाँ दिखाई पड़ने लगते हैं और सारा फसल सफेद दिखने लगते हैं।

रोकथाम के उपाय
प्रोफेनोफोस 50 ई.सी. @ 45 मिली या लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% सा.एस. / 20 मिली या स्पिनोसेड @ 10 मिली या फ्रिपोनिल या 5 एस. सी. या ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% sp @ 10 ग्राम प्रति 15 लीटर की दर से छिड़काव करें।