वन्दना यादव, निशा जांगडे़ एंव मुक्तिलता तिर्की
सब्जी विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

भारत में सब्जी की उत्पादकता अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। भारत में उत्पादकता कम होने का मुख्य कारण यह है कि किसानों को उन्नत बीज समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते है। किसानों को आनुवांशिक शुद्धता, उच्च अंकुरण क्षमता तथा रोगाणु मुक्त बीज पर्याप्त मात्रा में उचित समय और उचित कीमत पर उपलब्ध कराना आवश्यक है। बीज हेतु फसलोंत्पादन की विधि लगभग उसी प्रकार है जिसे प्रकार सब्जी उत्पादन हेतु होती है। तुड़ाई की अवस्था,विधि तथा बीज निष्कर्षण की विधियॉ भिन्न है।

टमाटर
टमाटर स्व-परागित फसल है लेकिन इसमें 30-40 प्रतिशत तक परपरागण पाया जाता है। इस कारण बीज तैयार करते समय दो किस्मों के बीच की दुरी 50-100 मीटर रखते है। फल के पूरी तरह से पक जाने के पश्चात उसे तोड़ते है। फल तोड़ने के बाद 2 तरीके से बीज को अलग करते है।

किण्वन विधि
टमाटर से बीज निकालने के लिए मसले हुए पके फलों को 1-2 दिन के लिए बरतन में पानी डालकर रख देते है। टमाटर का गूदा और छिलका तैरने लगता हैं एवं बीज नीचे बैठ जाता हैं। इन्हें छानकर अलग कर लिया जाता है।

अम्लोपचार विधि
इसका उपयोग व्यापारिक स्तर पर किया जाता है। इसमें 100 मिली हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का उपयोग 15 किग्रा. टमाटर से बीज अलग करने में किया जाता है। मसले हुए टमाटर को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ अच्छी तरह मिलाकर 30 मिनट तक रख देते है। इससे बीज और गूदा अलग हो जाता है। इसके बाद बीज को अच्छी तरह धोकर सुखा लेते है। औसतन 100-150 किग्रा./हेक्टेयर टमाटर का बीज प्राप्त किया जा सकता है।

बैंगन
बैंगन में स्व-परागण होता है, लेकिन कुछ प्रतिशत तक कीट परागण भी होता है। इसलिए बैंगन की खेती में बीज तैयार करते समय दो किस्मों के बीच की दुरी 50-100 मीटर रखते है। फुल आने के पहले, फुल आने के समय और फुल के परिपक्व होने के समय पौधों की जॉच करते रहे। बीज के लिए छोड़े गए फल जब पक कर पीले पड़ जाते है तब उन्हें तोड़ लेते हैै। इसके बाद फलों को काटकर, बिना धातु वाले पात्रों में पानी भरकर 2-3 दिनों तक सड़ने देते हैं उसके बाद बीजों को धोकर, छानकर सुखा लेते हैं। बैंगन में भी टमाटर की भॉति अम्ल के प्रयोग से बीज निकाले जा सकते हैं। औसतन 200-300 किग्रा./हेक्टेयर बैंगन का बीज प्राप्त किया जा सकता है।

मिर्च
यह स्व-परागित फसल है, पर-परागण की संभावना के कारण दो किस्मों के बीच की दुरी 400 मीटर रखते है। बीज के लिए छोड़े गए फल के पकने के बाद उसे तोड़कर सुखा लेते है। सुखाने के लिए फलों को धूप में फैला देते है। धूप की तीव्रता के अनुसार इसमें 10-15 दिन में भी सुखा सकते है। सूखे फलों को हाथ से तोड़कर बीज निकाल लेते है। बीज निकालने के लिए अब एक बीज निकालने की मशीन भी आ गई है। औसतन लगभग 200-300 किग्रा/हेक्टेयर मिर्च के बीज प्राप्त किए जा सकते है।

मटर
यह स्व-परागित फसल है। बीजों में शुद्धता बनाए रखने के लिए दो किस्मों के बीच की दुरी 10 मीटर रखते है। लेकिन इसमें मटर के पौधों पर लगभग 90 प्रतिशत फलियॉ परिपक्व होकर सूखने लगे तब पौधों को उखाड़कर एकत्र कर लेते है। लगभग एक हफ्ते बाद मड़ाई तथा ओसाई करके फली से बीजों को अलग कर लेते हैं। पकी तथा सूखी फलियों को तोड़कर तथा मड़ाई करके भी बीज निकाले जा सकते है। एक हेक्टेयर क्षेत्र से औसतन 1500 किलों मटर के बीज प्राप्त किए जा सकते है।

लोबिया
लोबिया में स्व-परागण होता है। बीज तैयार करते समय दो किस्मों के बीच की दुरी 5 मीटर रखते है। आने के समय और फलियों में बीज भरने के समय अवांछित पौधों को निकाल दें। पकी तथा सूखी फलियों को तोड़कर तथा मड़ाई करके बीज निकाले जाते है। औसतन लगभग 100 किग्रा/हेक्टेयर लोबिया के बीज प्राप्त किए जा सकते है।

भिण्डी
यह स्व-परागित फसल है पर इसमें काफी हद तक परपरागण भी होता है। बीजों में शुद्धता बनाए रखने के लिए दो किस्मों के बीच की दुरी 400 मीटर रखते है। पीत शिरा मोजैक विषाणु भिण्डी की आम समस्या है। इससे प्रभावित पौधों तथा अन्य अवांछनीय पौधों को निकालते रहना अति आवश्यक है। भिण्डी की फलियॉ जब पौधों पर पक जाती हैं तब उन्हें तोड़ लेते है। बीज निकालने में इस बात का ध्यान रखना चाहिए बीज में नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत से कम न हो। एक हेक्टेयर की भिण्डी की फसल से लगभग 1000-1200 किलो बीज प्राप्त किया जा सकता है।

गोभीवर्गीय सब्जियॉ
यह मूलतः ठण्डी जलवायु वाली फसलें हैं और फूलने तथा बीज बनने के लिए इन्हें बहुत कम तापमान की आवश्यकता होती है जिसके कारण इनका बीजोत्पादन मुख्यतः पहाड़ी इलाकों तक ही सीमित हैं । फूलगोभी की अगेती तथा मध्य वर्ग की किस्में मैदानी क्षेत्रों में बीज उत्पादित कर सकती है। गोभीवर्गीय सब्जियों में बीज उत्पादन निम्न विधियों से किया जा सकता हैं।

बीज से बीज
इस विधि में अच्छी फूलगोभी वाले पौधे खेत में ही रहने दिए जाते है जहॉ वे फूलते हैं और बीज बनाते हैं। अगेती फूलगोभी में इस विधि से बेहतर मात्रा तथा गुणवत्ता वाले बीज उत्पादित होते है।

सुगठित गोभी के फूल या शीर्ष का रोपण
इस विधि में चयनित फूलगोभी को सावधानीपूर्वक उखाड़कर पुनः एक निश्चित स्थान पर सुगठित रूप से बीजोत्पादन हेतु रोपण करते हैं। रोपण के समय 60x60 से.मी. अथवा 75x75 से.मी. की दूरी बनाए रखते हैं। पौधे फूलते हैं और उनमें बीज बनते हैं। जब फलियॉ पीली पड़ जाती हैं तो फसल की कटाई करके मड़ाई व ओसाई द्वारा बीज निकाल लेते हैं। एक हेक्टेयर से लगभग 200 से 300 किलोग्राम बीज प्राप्त लिये जा सकते है।

करेला
इसमें परागण मुख्यतः कीट द्वारा होता है। बीजों में शुद्धता बनाए रखने के लिए दो किस्मों के बीच की दुरी 1000 मीटर रखते है। खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक तथा 1/5 भाग में मादा पैतृक की बुवाई अलग- अलग खंडो में करना उचित रहता है। दोनों खंडो के बीच की दुरी 5 मीटर रखते है। रोगग्रस्त पौधों तथा अन्य अवांछनीय पौधों को निकालते रहना अति आवश्यक है। इनकी तुड़ाई तब करते हैं जब फल पूरी तरह परिपक्व होकर चमकीले लाल रंग के हो जाते हैं और शुष्क होने लगते हैं। पके फलों को एकत्रित कर लम्बवत् काट के बीज निकाल लेते हैं। इन बीजों को पानी से धोकर एवं सुखाकर भण्डारित कर लिया जाता है। इसमें 7 प्रतिशत नमी का रहना आवश्यक है। एक हेक्टेयर से लगभग 100 से 300 किलोग्राम बीज प्राप्त लिये जा सकते है।

लौकी
इसमें परागण मुख्यतः कीट द्वारा होता है। दो किस्मों के बीच की दुरी 1000 मीटर रखते है। नर एवं मादा पैतृक की बुवाई अलग- अलग खंडो में 5 मीटर की दुरी पर करना चाहिए। कुल क्षेत्र के एक चौथाई भाग में नर पैतृक एवं तीन चौथाई भाग में मादा पैतृक की बुवाई करते है। रोगग्रस्त पौधों तथा अन्य अवांछनीय पौधों को निकालते रहना अति आवश्यक है। जब फल पूरी तरह परिपक्व होकर भुरे रंग के हो जाते हैं तब इनकी तुड़ाई तक करते हैं। बीज निकालने के 7-10 दिन पहले फलों को छायादार स्थान पर रखते है। पके फलों को एकत्रित कर काट के बीज निकाल लेते हैं। मशीन  द्वारा भी बीज निकाला जा सकता है। एक हेक्टेयर फसल में 300 से 500 किलोग्राम लौकी का बीज प्राप्त किया जा सकता है।

तरोई
इसमें परागण मुख्यतः कीट  द्वारा होता है। बीजों में शुद्धता बनाए रखने के लिए दो किस्मों के बीच की दुरी 1000 मीटर रखते है। नर एवं मादा प्रजनकों को 1ः3 खेत में बुवाई करना चाहिए। खेत में प्रथम एवं अंतिम पंक्ति में नर प्रजनकों की बुवाई करें जिससे परागण के समय बीज की आनुवांशिक शुद्धता बनी रहे। फुल आने के पहले, फुल आने के समय और फल के परिपक्व होने के समय पौधों की जॉच करते रहे। अवांछनीय पौधों को निकालते रहना इस समय अति आवश्यक है। फल जब भुरे रंग के होकर पूरी तरह सुख जाते हैं, तब इनकी तुड़ाई तक करते हैं। परिपक्व फल के हिलाने पर जब उसमे से आवाज आती है उस समय बीज निकाल लेना चाहिए। एक हेक्टेयर फसल में 100 से 200 किलोग्राम बीज प्राप्त किया जा सकता है।

प्याज
बीजोत्पादन के लिए प्याज एक द्विवर्षीय फसल है। पहले साल में कन्द उत्पादित होते हैं और दूसरे साल में बींज बीज फसल की कटाई के समय उच्च तापमान और निम्न आर्द्रता होनी चाहिए। प्याज पर-परागित फसल है जिसमें 93 प्रतिशत तक पर-परागण होात है अतः बीजोत्पादन के लिए निर्धारित पृथक्करण दूरी बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। इसमें मुख्यतः मधुमक्खी द्वारा परागण होता हैं।

प्याज में शुद्ध बीजोत्पादन के लिए मुख्यतः कन्द से बीज बनाने की विधि प्रयोग में लाई जाती है। बीज से बीज विधि तब प्रयोग करते हैं जब कन्द की भण्डारण क्षमता बहुत कम होती है। परिपक्व कन्दों को निकालकर ऊपर वाले भाग का 1/2 इंच छोड़कर शेष काट देते हैं। इन कन्दों को भण्डारित करने के पहले अच्छे कन्दों का चयन कर लेते हैं। कन्दों की त्वचा के उपचार में 3-4 हफ्ते का समय लग सकता हैं। कन्दों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। उचित मौसम में कन्दों का रोपण कर देते हैं जिससे नया पौधा तैयार होकर फूलता -फलता है।

जब शीर्ष में सबसे पहले बने बीज काले पड़ जाए तब बीज हेतु शीर्षों की तुडाई की जा सकती है। शीर्षों को दो से तीन तुड़ाई करनी पड़ सकती है। शीर्ष को छोटे से डंठल समेत काटकर सुखा लेते हैं फिर उनमें से बीज अलग कर देते हैं। प्याज में 450 से 800 किलो/हेक्टेयर बीज की उपज प्राप्त की जा सकती है।