खुशबू साहू, पीएचडी रिसर्च स्कॉलर, सब्जी विज्ञान विभाग,
डॉ. विजय कुमार, प्रोफेसर, सब्जी विज्ञान विभाग,
डॉ. मनमोहन सिंह बिसेन,कृषि कीटविज्ञान विभाग,
कृषि महाविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
परिचय
शकरकंद का वनस्पति नाम इपोमोएआ वतातास है। यह एक बारामासी बेल है, जिसके लोंब या दिल के आकर वाले पत्ते होते है। यह मिठा होता है तथा इसमें स्टार्च की अधिक मात्रा पाई जाती है। शकरकंद में वीटा कैरोटिन बड़ी मात्रा में पाई जाती है तथा इसे एंटीऑक्सीडेंट एवं अल्कोहल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। शकरकंद को मीठा आलू भी कहा जाता हैं. जिसकी गिनती कंद वर्गीय फसलों की श्रेणी में होती हैं। इसका पौधा जमीन के अंदर और बहार दोनों जगह विकास करता हैं. जमीन के बाहर इसका पौधा बेल के रूप में फैलकर विकास करता है। शकरकंद का सबसे ज्यादा उत्पादन चीन में किया जाता हैं। जिसका इस्तेमाल खाने में कई तरह से किया जाता हैं। शकरकंद का इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जाता हैं। इसके अलावा बड़ी मात्रा में लोग इन्हें भुनकर और उबालकर भी खाते हैं। भुनकर खाने पर इसका स्वाद काफी लजीज होता हैं। यह तीन रंग बैंगनी, सफेद और भूरा हो सकता है। छत्तीसगढ़ बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा इसके प्रमुख उत्पादक राज्य है।
शकरकंद के फायदे
- शकरकंद हमारे शरीर में 90% विटामिन ए की पूर्ति करने में सक्षम है।
- आयरन से भरपूर, शकरकंद हमारे शरीर में एनर्जी की कमी महसूस नहीं होने देता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करता है।
- दातों, त्वचा, नसों और हड्डियों की सेहत का ख्याल रखने के लिए विटामिन डी चाहिए होता है जो कि शकरकंद में भरपूर मात्रा में मिलता है।
- कैलोरी और स्टार्च की सामान्य मात्रा रखने वाला शकरकंद हमें कोलेस्ट्रॉल और सिचुएटेड फैट से दूर रखता है।
- विटामिन फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरा हुआ शकरकंद हमारे शरीर की काफी अच्छे से देखभाल कर लेता है
- किडनी के स्वास्थ्य का और तंदुरुस्त नर्वस सिस्टम की सक्रियता का ख्याल रखना भी पोटेशियम युक्त शकरकंद की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
जलवायु
शकरकंद की खेती के लिए तापमान 21 से लेकर 28 डिग्री सेल्सियस तक तापमान रहता है। वहां शकरकंदी की खेती उत्तम रहती है. जिन क्षेत्रों में 70 से 150 सेंटीमीटर सालाना बारिश होती है वहां शकरकंद की खेती आसानी से की जा सकती है।
उपयुक्त मिट्टी
शकरकंद की खेती के लिए उत्तम जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती हैं, लेकिन व्यावसायिक तौर पर अच्छा उत्पादन लेने के लिए इसे बलुई दोमट मिट्टी में उगाना अच्छा माना जाता हैं। जलभराव, कठोर और पथरीली भूमि में शकरकंद की खेती नही करनी चाहिए,क्योंकि इस तरह की भूमि में इसके कंद अच्छे से विकास नही करते। शकरकंद के कंदों की मिठास और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसे हल्की अम्लीय भूमि में उगाना चाहिए , भूमि के लिए उचित पी.एच. मान 5.8 से 6.8 के बीच होनी चाहिए ।
उन्नत किस्में
इंदिरा मधुर
यह आईजीकेवी, रायपुर में विकसित की गई है। अर्ध-फैलाने वाले बेल है, छोटा इंटरनोड, परिपक्व हरी पत्ती का रंग और कंद अण्डाकार आकार में लंबा और नारंगी रंग का, नरम गूदे के साथ और बीटा कैरोटीन से भरपूर उत्कृष्ट परीक्षण के साथ पकाने में आसान। प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 21.62 टन है।
छत्तीसगढ़ शकरकंद प्रिया
यह आईजीकेवी, रायपुर विकसित की गई है। पौधा सीधा, झाड़ीदार, शाखाओं वाला, पत्ता हल्का हरा होता है। कंद का आकार फ्यूसिफॉर्म और इनके गूदे का रंग पिल्ला होता है । प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 25.0 टन है।
इंदिरा नंदनी
यह आईजीकेवी, रायपुर में विकसित की गई है। फैलाने वाले बेल है, लघु इंटर नोड, चौड़ी पत्ती का प्रकार, त्रिकोणीय पत्ती की आउट लाइन, परिपक्व गहरे हरे रंग की पत्ती का रंग, आकार में कंद अण्डाकार गोलाकार, इनके गूदे का रंग क्रीम प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 25.53 टन है।
श्री रेथना
यह सीटीसीआरआई, तिरुवनंतपुरम में विकसित की गई है। । फैलाने वाले बेल है,मध्यवर्ती इंटर नोड, अपरिपक्व बैंगनी पत्ती का रंग, परिपक्व हरी पत्ती का रंग, आकार में गोल कंद, बैंगनी त्वचा और नारंगी गूदे का रंग। प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 20-25 टन है।
गौरी
यह 1998 में विकसित की गई थी, 110 से 120 दिन में तैयार होने वाली इस किस्म के कंद का रंग बैंगनी लाल होता है। इनके गूदे का रंग बीटा केरोटिन के कारण पिला होता है। इसे खरीफ तथा रबी फसल के मौसम में उगाया जाता है।
अन्य किस्में - पूसा सफेद, पूसा रेड, पूसा सुहावनी, एच-268, एस-30, वर्षा और कोनकन, अशवनी, राजेन्द्र शकरकंद-35, 43 और 51, करन, भुवन संकर, सीओ-1, 2 और 3 और जवाहर शकरकंद-145 और संकर किस्मों में एच-41 और 42 इत्यादि है।
शकरकंद खेत की तैयारी एवं समय -
खेत की तैयारी
प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करे, और उसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से। जुताई करके मिटटी को भुरभुरा और हवादार बना लेनी चाहिए। अच्छी पैदावार के लिए खेत में प्रति हेक्टेयर 170 से 200 क्विंटल गली सड़ी गोबर खाद आखरी जुताई से पहले डालकर मिट्टी में अच्छी प्रकार से मिला लें।
समय
शकरकंद की खेती वर्षा ऋतु में जून से अगस्त तथा रबी के मौसम में अक्टूबर से जनवरी में की जाती है। उत्तर भारत में, शकरकन्द की खेती रबी, खरीफ व जायद तीनों मौसम में होती हैं। इसकी खेती लता तथा कन्द दोनों माध्यम से की जाती है।खरीफ ऋतु में इसकी खेती अधिक होती है। खरीफ में 15 जुलाई से 30 अगस्त तक शकरकंद की लताओं को लगा देना चाहिए। सिंचाई की सुविधा के साथ रबी (अक्टूबर से जनवरी) के मौसम में भी इसकी खेती की जाती है।
जायद ऋतुओं में, इसकी लताओं को लगाने का समय फरवरी से मई तक का होता है, इस मौसम में खेती का मुख्य उद्देश्य लताओं को जिंदा रखना होता है, ताकि खरीफ की खेती में उनका प्रयोग हो सके। लताओं के अतिरिक्त शकरकन्द के कन्द को लगाकर भी सुनहरी शकरकन्द की खेती की जा सकती है।
नर्सरी तैयार करना
एक हैक्टर खेत के लिए लगभग 84,000 लताओं के टुकड़ों (कटिंग) की आवश्यकता होती है। एक टुकड़े की लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखें तथा एक साथ 2 से 3 टुकड़े ही कटिंग लगानी चाहिए , हमेसा लता के मध्य व ऊपरी भाग से ले। कन्द का प्रयोग कर रहे हो तो इसके लिए दो नर्सरी तैयार करनी पड़ती है।
प्राथमिक नर्सरी
मुख्य खेत
में फसल लगाने के दो महीने पहले ही प्राथमिक नर्सरी को तैयार कर लेना चाहिए । एक हैक्टर क्षेत्र के लिए प्राथमिक नर्सरी 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है, जिससे एक हैक्टर खेत की नर्सरी तैयार हो जाती है। स्वस्थ कन्द को 60’60 सेंटीमीटर मेड़ से मेड़ की दूरी और 20’20 सेंटीमीटर कन्द से कन्द की दूरी पर लगा दें। इस तरह 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के लिए लगभग 100 किलोग्राम पर्याप्त है।
में फसल लगाने के दो महीने पहले ही प्राथमिक नर्सरी को तैयार कर लेना चाहिए । एक हैक्टर क्षेत्र के लिए प्राथमिक नर्सरी 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है, जिससे एक हैक्टर खेत की नर्सरी तैयार हो जाती है। स्वस्थ कन्द को 60’60 सेंटीमीटर मेड़ से मेड़ की दूरी और 20’20 सेंटीमीटर कन्द से कन्द की दूरी पर लगा दें। इस तरह 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के लिए लगभग 100 किलोग्राम पर्याप्त है।
कंद की बुआई के समय
1.5- 2 किग्रा यूरिया प्रति नाली छिड़काव करें। आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर पानी की उपलब्धता बनाये रखनी पड़ती है। 40 से 50 दिनों में लता तैयार हो जाएंगे जिसे 20-25 सेमी के टुकड़ों में काटकर खेत में लगाया जा सकता है।
द्वितीय नर्सरी द्वितीय नर्सरी 500 वर्गमीटर क्षेत्रफल में बनायें। मेड़ों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। 15 व 30 दिन बाद 5 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव अवश्य करें नमी बनाए रखें। इस प्रकार से 45 दिनों में दूसरी नर्सरी तैयार हो जाती है। इससे 20 से 25 सेंटीमीटर लम्बी लताएं शीर्ष व मध्यम भाग की कटिंग कर ली जाती है जो यह मुख्य खेत में लगाने के लिए उपयुक्त है।
लताओं को लगाने से पूर्व की तैयारी
नर्सरी से लताओं को काटने के बाद उसको दो दिनों तक छाया में रखें। जड़ों के अच्छे विकास के बाद लताओं को बोरेक्स दवा 0.05 प्रतिशत प्रतिशत के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर उसे उपचारित करें उसके बाद मुख्य खेत में लगाएं।
विधि
- शकरकंद लगाने की तीन विधियाँ है। टीला विधि, मेड़ विधि तथा नाली विधि और समतल विधि।
- इन तीनों विधियों का अपना महत्व है, टीला विधि का प्रयोग जल जमाव वाले क्षेत्रों में तथा मेड़ व नाली विधि ढलाव वाले भूमि के लिए उपयुक्त है।
- समतल विधि हर जगह के लिए है, एक माह बाद जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है।
लता रोपण
- लताओं को लगाते समय मध्य भाग तक मिट्टी से दबा देना चाहिए, जिससे जड़ का विकास तीव्र गति से हो।
- लताओं की कटिंग हमेशा 3 गांठ से ऊपर होनी चाहिए, इनके बने कन्द गुणवत्तापूर्ण होते हैं।दुरी कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें।
खरपतवार नियंत्रण एवं कन्द की खुदाई
खरपतवार नियंत्रण
अगर खेत में कुछ खरपतवार उगे तो मिट्टी चढ़ाते समय निकाल देना चाहिए। उसके बाद इसकी समस्या नहीं आती है।
- शकरकंद की खेती में कार्बनिक खाद्य प्रचुर मात्रा में दें, ईससे मिटटी की उत्पादकता सही व स्थिर बनी रहती है।
- केन्द्रीय कन्द अनुसंधान संस्थान के मुताबिक प्रथम जुताई के समय 5 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिला देनी चाहिए।
- रासायनिक उर्वरकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन व 25 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करनी चाहिए।
- नाइट्रोजन की आधी मात्रा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा शुरू में तथा शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा 15 दिन में दूसरा हिस्सा 45 दिन टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें।
- अम्लीय भूमि में चूने का प्रयोग कंद विकास के लिए अच्छा रहता है। इनके अलावा मैगनीशियम सल्फेट, जिंकसल्फेट और बोरॉन 25ः15ः10 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करने पर कन्द फटने की समस्या नहीं आती हैं व एक समान व आकार के कंदों का विकास होता है।
कीट और रोग नियंत्रण
- शकरकंद का घुन:-यह शकरकन्द का सबसे खतरनाक कीट है। यह खेतों से लेकर घरों में रखे गये कन्दों को भारी नुकसान पहुंचाता है।
- प्रौढ कीट लताओं व कन्दों में महीन सुराख बना देते हैं तथा सूडी प्रौढ़ कीट द्वारा बनाये गये सुराख में ही अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। प्रभावित कन्द का स्वाद कड़वा तथा बदरंग हो जाता है।
- सुरक्षा हेतु लता का चुनाव पहली बार बोई गई खेत या स्वस्थ फसल में ही करें। परिपक्व लताओं का ही चुनाव करें तथा ध्यान रहे कि जिस खेत से लताएं प्रयोग कर रहे हैं उनमें संक्रमण न हो।
- लगाने से पहले फेनथियान या फॅनीट्रोथियान या मोनोक्रोटोफास 0.05 प्रतिशत के घोल से उपचारित करें रोपण के 2 महीने बाद दोबारा मेड़ बनायें।
- नर कीट को इकट्ठा करके मार दे, फसल कटने के बाद जो अवशेष को जला देना चाहिए या खेत से दूर फेक देे।
कन्द की खुदाई
कन्द की खुदाई किस्म पर निर्भर करती है। जब कन्द तैयार हो जाए तो सबसे पहले लताएं काट ले तथा उसके बाद बिना कन्द को क्षति पहुंचाये खुदाई करें।
पैदावार
शकरकंद को तैयार होने में लगभग 120 दिन लगते है शकरकंद पैदावार किस्मों के अनुसार अलग-अलग होती है। 1 एकड़ जमीन पर इस स्वादिष्ट फल की औसतन पैदावार 100 क्विंटल हो जाती है।
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