राकेश पुनिया, पवित्रा कुमारी व मनोज कुमार
पौध रोग विभाग, चौधरी चरण सिंह 
हरियाणा कृषि विश्विद्यालय, हिसार

सरसों रबी में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सरसों वर्गीय फसलों के तहत तोरिया, राया, तारा मीरा, भूरी व पीली सरसों आती हैं। हरियाणा में सरसों मुख्य रूप से रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़,हिसार, सिरसा, भिवानी व मेवात जिलों में बोई जाती है। किसान सरसों उगाकर कम खर्च में अधिक लाभ कमा रहे हैं। किसान सरसों की बिमारी की समय रहते अच्छी तरह पहचान कर उनका आसानी से रोकथाम कर सकते हैं। इस समय फसल पर कई प्रकार की  बीमारियों की आने की संभावना होती है जिसके चलते किसानों को सावधानी बरतने की जरूरत है। अगेती व पछेती सरसों की फसल में कई प्रकार की बीमारियों का प्रकोप हो सकता है, जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर फसल से अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं। किसान फसल की बीमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले छिडक़ाव सदैव सायं काल को 3 बजे के बाद करें ताकि मधुमक्खियों को कोई नुकसान न हो, जो उपज बढ़ा ने में सहायक होती हैं।

ये हैं सरसों की मुख्य बीमारी और उनके लक्षण

सफेद रतुआ
सरसों की इस बिमारी में पत्तियों पर सफेद और क्रीम रंग के छोटे धब्बे से प्रकट होते हैं। इस से तने व फूल बेढंग आकार के हो जाते हैं जिसे स्टैग हैड कहते हैं। यह बिमारी ज्यादा पछेती फसल में अधिक होती है।



तना गलन
तना गलन रोग में तनों पर लम्बे आकार के भूरे जल शक्ति धब्बे बनते हैं जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तरह बन जाती है। ये लक्षण पत्तियों व टहनियों पर भी नजर आ सकते हैं तथा फूल आने या फलियां बनने पर इस रोग का अधिक आक्रमण दिखाई देता है जिससे तने टूट जाते हैं और तनों के भीतर काले रंग के पिण्ड बनते हैं।


फुलिया या डाउनी मिल्डू
इस बीमारी में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है व इन धब्बों पर चूर्ण सा बन जाता हैं।


अल्टरनेरिया ब्लाइट
सरसों की फसल की यह मुख्य बीमारी है। इस बिमारी में पौधे के पत्तों व फलियों पर गोल व भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। कुछ दिन बाद इन धब्बों का रंग काला हो जाता है और पत्ते पर गोल छल्ले दिखाए देने लगते हैं।


ऐसे करें बिमारियों की रोकथाम
सरसों की अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ बीमारी के लक्षण नजर आते ही 600 ग्राम मैंकोजेब (डाइथेन या इंडोफिल एम 45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर 3 से 4 बार छिडक़ाव करें। इसी प्रकार तना गलन रोग के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर साल होता है वहां बिजाई के 45 से 50 दिन तथा 65 से 70 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दो बार छिडक़ाव करें।