डॉ. धर्मप्रकाश श्रीवास्तव, एस.एम.एस. (पशु-चिकित्सा विज्ञान)
केवीके, पीजी कालेज, गाजीपुर (उ.प्र.)

बारिश एवं ठण्ड के दौरान पशुओं में प्रसव की स्थितियां अधिक हो जाती हैं। गर्भकाल के दौरान पोषक तत्वों की कमी एवं प्रसव के पश्चात् कुछ ऐसे स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे पशु अत्याधिक कमजोर हो जाते हैं। कुछ पशुओं की शारीरिक कमजोरी इस स्तर तक दिखाई पड़ती हैं कि वे बैठने के पश्चात् खड़ी अथवा चल-फिर नहीं वसती हैं। ऐसे ही एक स्थिति प्रसव उपरान्त उत्पन्न होती हैं जिसे हम दूध का ज्वर (मिल्क फिवर) कहते हैं। यह एक संक्रमण अथवा चोट इत्यादि से उत्पन्न नहीं होता बल्कि या उपापचय क्रिया में अनियमितता फलस्वरूप प्रदर्शित होती हैं।

कारक
यह मुख्यतः कैल्शियम नामक पोषक तत्व की शरीर में कमी होने के कारण उत्पन्न होता हैं। चूंकि प्रसव के दौरान नवजात को शरीर से बाहर निकलने हेतु लगने वाले बल में मांस पेशियों को कैल्शियम स्त्राव अधिक होता हैं। खीस में सामान्य दूध की अपेक्षा 11-12 गुना अधिक मात्रा में कैल्शियम का स्त्राव होता हैं। अतः शरीर में कैल्शियम की लगातार कमी होने लगती हैं। यह स्थिति प्रसव उपरान्त 48 घण्टों के पश्चात् दिखाई पड़ती हैं।

लक्षण
  • गर्दन को मोड़़कर, पेट को ऊपर रखकर बैठ जाना।
  • शरीर छूने पर ठंडा होना।
  • पशु शांत प्रतित होता हैं।
  • खड़े न हो पाना अथवा पैरों में बल नहीं लगना।
  • मुंह एवं नाक सूखे हो जाते हैं।
  • बैठे रहने के कारण पेट फूलने लगता हैं।
  • श्वसन दर एवं हृदय गति धीमी रहती हैं।
  • प्रतिक्रिया की दर कम हो जाती हैं।
  • आंखों की पुतली का बड़ा दिखना।

पहचान
  • पशु मालिक से पुछताछ के माध्यम से जैसे- प्रसव का समय, खानपान, शारीरिक कमजोरी, पूर्व प्रसव का अनुभव इत्यादि।
  • उपरोक्त लक्षणों द्वारा।
  • समरूप स्थितियों से भिन्नित कर जैसे- किटोसिस, अपचन, अस्थि भंग, डाऊनर काऊ सिन्ड्रोम, लकवा इत्यादि।

इलाज
  • तत्काल नजदीकी चिकित्सालय में सम्पर्क करके कैल्शियम तरल चिकित्सा करवाएं।
  • चिकित्सालयों में कैल्शियम नसों के माध्यम से दी जाती हैं ताकि तत्काल प्रभाव से पशु की स्थिति में सुधार आए।
  • कैल्शियम के अलावा ग्लूकोज तथा सेलाइन की दवा दी जायें ताकि शरीर को ऊर्जा प्राप्त हो।
  • अगर पेट फूला हो तो गैस बाहर निकलवाकर गैस रोधी दवाईयों का प्रयोग करें।
  • जब पशु खाने के लिए शुरू करें तब सामान्य चारे के साथ दाना एवं पाउडर प्रदान करें जिससे उसे कैल्शियम प्राप्त हों।
  • बाजार में उपलब्ध कैल्शियम घोल को पिलाएं ताकि शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाए।
  • अन्य इलाज लक्षणों के आधार पर करें।