डॉ. पी.मूवेंथन,डॉ. रेवेन्द्र कुमार साहू एवं मनोज कुमार साहू
आईसीएआर- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटिक स्ट्रेस मैनेजमेंट (ICAR-NIBSM),
बरोंडा, रायपुर, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में चने की खेती, रबी के मौसम में की जाती हैं। छत्तीसगढ़ में चने की पैदावार ज्यादातर दुर्ग, बेमेतरा, मुंगेली, राजनांदगांव, कर्वधा तथा बिलासपुर इत्यादि जिलों में ली जाती हैं। जैव प्रौधोगिकी विभाग भारत सरकार द्वारा संचालित, बायोटेक किसान हब परियोजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के इन तीन जिलों- राजनांदगांव, महासमंुद तथा कोरबा के पांच-पांच गांवों के दस-दस किसानों को एक एकड़ के प्रति 30-35 किलोग्राम चने कि बीज प्रदान किया गया हैं।

भूमि का चयन व तैयारी
आमतौर पर चने की खेती हल्की से भारी भूमि पर की जाती हैं किन्तु अधिक जल धारण क्षमता एवं उचित निकास वाली भूमियाँ सर्वोत्तम रहती हैं। छत्तीसगढ़ की डोरसा, कन्हार भूमि चने की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
    ट्रेक्टरचलित यंत्र या बैल चलित यंत्र से जुताई कर चने की बुवाई की जा सकती हैं। बुवाई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी के ढेलों को तोड़ ले, पाटा चलाने से खेत में नमी बनी रहती हैं।

उन्नत जातियाँ
RVG-201, RVG-202

बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर के लिए लगभग 75 से 80 किलो बीज उपयुक्त होती हैं। बुवाई के पूर्व 3 ग्राम थायरम प्रतिकिलो बीज के हिसाब से या ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रतिकिलो बीज के हिसाब से बीजोपचार करें, इससे बीज व भूमिजनित फफुंदयुक्त बिमारियों से सुरक्षा प्रदान होती हैं।

राइजोबियम कल्चर का उपयोग
  • सर्वप्रथम बीजोपचार के बाद बीज को राइजोबियम एवं पी.एस.बी. कल्चर 5 ग्राम प्रतिकिलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।
  • एक एकड़ के लिए आवश्यक बीज ले तथा पानी के हल्के छींटे देकर बीज को नम करें, फिर कल्चर को बीज पर छिड़ककर अच्छी तरह मिलायें।
  • बीज को छाया में सुखायें, तथा शीघ्र ही बोयें।
  • उपचारित बीज को 25 से 30 से.मी. दूर कतारों में बुवाई करें, पौध से पौध की दूरी 10 से.मी. ही रखें।

बुवाई का समय
उतेरा 15 अक्टूबर से 30 अक्टूबर, समय से बुवाई 15 अक्टूबरसे 15 नवम्बर, विलंब से बुवाई 10 दिसम्बर तक।

उर्वरक
20 किलो नत्रजन 40 किलो स्फूर तथा 20 किलो पोटाश तथा 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर कि दर से बुवाई के समय पूरी मात्रा देवें। असिंचित फसल मेें 2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव फूल आने के समय करें।

सिंचाई
पहली सिंचाई बुवाई के 35 -40 दिन बाद व दूूसरी 60-65 दिन बाद करें, अथवा सीपेज (रिसाव) पद्धति से हल्की सिंचाई करें।

निंदाईगुड़ाई
  • नींदा का प्रकोप दिखें तो 25-30 दिन के अंदर निंदाई अवश्य करें।
  • कतारों के बीच में नींदा नियंत्रण के लिए मानवचलित व्हील-हो, सायकल व्हील-हो हैण्ड-हो को चलायें।
  • नींदा नियंत्रण हेतु नींदानाशक दवाओं का प्रयोेग करें।



पौध संरक्षण: रोगप्रबंधन-

(1) उकठारोग (विल्ट)
लक्षण- इस रोग के लक्षण फसल की किसी भी अवस्था में देंखे जा सकते हैं, विशेषकर पौध तथा विकसित अवस्था में।
प्रबंधन-
  • बीज को केप्टान (3 ग्राम प्रतिकिलो बीज) या बेनलेट तथा थायरम (1ः1) 2 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से उपचारित कर देना चाहिएं।
  • कम से कम 3 वर्ष का फसल चक्र अपनाना चाहिए।
  • बुवाई कुछ देरी से करनी चाहिए। (अक्टुबर के दूसरे-तीसरे सप्ताह से)
  • रोगरोधी किस्में जैसे- जे.जी.-74, जे.जी.-315, विजय जी.जी.-1, जे.जी.-16, जे.जी-11, इंदिरा चना-1, जे.एस.सी. इत्यादि को उगाना चाहिए।

(2) स्तंभसंधि विगलन (कॉलर रॉट)
लक्षण
  • रोग का प्रकोप होने पर पौधे हल्के पीले पड़कर नष्ट हो जाते हैं।
  • वयस्क पौधें में संक्रमण होने पर, तने का भाग भूरा होकर सड़ने लगता हैं।

प्रबंधन
  • ट्राइकोडर्मा से पूर्व उपचारित गोबर की खाद का उपयोग बुवाई पूर्व लगातार 3 वर्ष तक करने से रोग का प्रकोप कम होने लगता हैं।
  • बुवाई से पहले बीज का थायरम (3 ग्राम) या कार्बेनडाजिम (1 ग्राम बाविस्टीन) फँफूदनाशक दवाओं के साथ राइजोबियम (10 ग्राम) तथा ट्राइकोडर्मा जैविक नियंत्रणकर्ता से 5-10 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर उपचारित कर बोना चाहिए।

(3) जड़ सड़न (रूट रॉट)
लक्षण
  • संक्रमित पौधे के ऊपरी भाग की पत्तियां तथा उनके पणवृन्त मुरझाने लगते है, तथा कुछ समय बाद पीले पड़कर सूख जाते है।
  • संक्रमित पौधे के निचली पत्तियां और शाखाएं सूखकर भूरे रंग की हो जाती हैं।
  • सूखे हुए पौधो को उखाड़ने पर उसकी मुख्य जड़ जमीन में ही रह जाती हैं।
  • जमीन में रह गई जड़ को निकालकर देखने से उस परपार्श्व व पतली जड़े दिखाई देती हैं।

प्रबंधन
  • रोगरोधी किस्में जैसे-गौरव, जी.एन.जी-146 तथा 469, सी 235, बी.जी. 261, पी.बी.जी.-1, आई.सी.जी. 32 (काबुली) तथा जी.एल 769 (देशी) उगाना चाहिए।
  • एक ही खेत में लगातार चने की फसल नहीं लेनी चाहिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए।
  • खड़ी फसल में अत्यधिक सूखे की स्थिति नहीं आनी चाहिए।

कीट प्रबंधन
चने की इल्ली
इस कीट को चने की फलीछेदक, चने की सुण्डी आदि नामों से जाना जाता हैं। अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही इस कीट की इल्ली, पत्तियों, फूलों तथा फलियों को खाना प्रारंभ कर देती हैं।

नियंत्रण
  • न्यूक्लियर पॉली हेडरोसिस वायरस;छच्टद्ध, 250 एल.ई के घोलको 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर, सुबह अथवा शाम छिड़काव करें।
  • खेत में 3-5 मीटर की दूरी पर बांस की लगभग 1 मीटर ऊंची टी आकार की खुंटिया गड़ा देने से मैना तथा अन्य पक्षी बैठकर इल्लियों कोे खाती हैं।
  • ट्राइकोग्रेमा किलो निस युक्त 50,000 अंडो को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करें।

रासायनिक नियंत्रण
यदि फसल पर फल्लीछेदक इल्ली, प्रति वर्ग मीटर एक इल्ली हो तो पॉलीट्रिन 44 ई.सी. स्पार्क 36 ई.सी या प्रोपनोफॉस 50 ई.सी स्पार्क का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

कटाई एवं उत्पादन
  • पौध के पत्तियां एवं तना पीला पड़ने पर कटाई करें।
  •  असिंचित अवस्था में 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सिंचित अवस्था में 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।