डॉ. पी. मूवेंथन, डॉ. रेवेन्द्रकुमारसाहू, प्रवीण बनवाशी एवं तोरण निषाद
आईसीएआर- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटिकस्ट्रेस मैनेजमेंट
(ICAR-NIBSM), बरोंडा, रायपुर, छत्तीसगढ़

फूलगोभी की खेती वर्षभर की जाती है इसका उपयोग सब्जियों के अलावा अचार, सूपतथा पकोड़े बनाने में किया जाता है। इसमें विटामिनबी, सी, के, कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है, जो की मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होती है।
    भा. कृ. अनु.प.- राष्ट्रीय जैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान (ICAR-NIBSM), रायपुर द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र, राजनांदगांवमेचलाये जा रहे डी.बी.टी. बायोटेक किसान हब परियोजना के माध्यम सेकिसानो के खेत में अगेती फूलगोभी का प्रदर्शन किया गया है, जिसके अंतर्गत उन्नत बीज, पॉलीमल्चिंग, ड्रिप सिचाई, आदि प्रदान किया गया तथा वैज्ञानिक उत्पादन तकनीकों का प्रशिक्षण तथा प्रदर्शन आयोजित किया गया।

मिट्टी एवं जलवायु
फूलगोभी की खेती के लिए अच्छी जलनिकास वाली बलुईदोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। भूमि का पी एच 5.5 से 6.5 होना चाहिए इसके पौधो और फूलो के अच्छे विकास के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है।

खेत की तैयारी
टपक सिंचाई प्रणाली में खेत की तैयारी के लिए एक जोताई मिट्टी पलटने वाले हल से एक जोताई करके उसमे दो बार रोटावेटर चलाकर उसमेरिजर की सहायता से 4 फीट की दूरीपर बेड बनाया जाता है। उस बेड पर प्रति हेक्टेयरगोबर की खाद 5 टन, लाल पोटाश125 कि.ग्रा.,डी ए पी 125 कि.ग्रा.,माइक्रोन्यूट्रीएन्ट 25 कि.ग्रा. को मिलाकर छिड़क दिया जाता है, तथा बेड पर लेटरलपाइप और मल्चिंग को बिछाकर मल्चिंग में एक-एक फीट की दूरी पर छेद बनाया जाता है।

उन्नत किस्मे

अगेती किस्मे– पूसादीपाली , अर्ली कुंवारी

पछेती किस्मे– स्नोबाल 16, पूसास्नोबाल- 1, पूसास्नोबाल के- 1

बीजदर- 375 ग्राम प्रति हेक्टेयर

पौधे की तैयारी
पौधे को प्रो ट्रे में तैयार करने के लिए एक हेक्टेयर के लिए 98 सेल वाले 308 प्रो ट्रे की आवश्यकता होती है। इस प्रो ट्रे में कोकोपिट को भर के उसमे हर सेल में एक बीज डालकर उसको पॉलिथिन शीट से 5 दिनों तक ढककर रखते हैं । 5 दिनों के पश्चात उसमे अंकुरण की शुरुआत होने पर उसको शेडनेट के अन्दर रखकर NPK 19:19:19 और मैगनीज के 0.5 % को हजारा के माध्यम से देते हैं। 25 दिनों के पश्चात पौधा रोपाई के लिए तैयार हो जाता है ।

रोपाई
रोपाई के लिए टपक सिंचाई प्रणालीमें एक-एक फीट की दूरी पर बनाए गए छेद में एक पौधे की रोपाई की जाती है। एक हेक्टेयर में लगभग 30000 पौधे की रोपाई की जाती है।

खाद एवं उर्वरक
टपक सिंचाई प्रणाली में निम्नलिखित प्रकार से उर्वरक दिया जाता है-

दिन

उर्वरक

मात्रा

अवस्था

कुल/ हेक्टेयर

1 से 28

19:19:19 (NPK)

7.5 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

सफ़ेद पोटाश

7.5 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

यूरिया

7.5 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

कैल्शियमनाइट्रेट

7.5 कि.ग्रा.

दो सप्ताह में एक बार

15 कि.ग्रा.

बोरान

1.250 ग्राम

दो सप्ताह में एक बार

2.5 कि.ग्रा.

29 से 42

12:61:00 (NPK)

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

20 कि.ग्रा.

यूरिया

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

20 कि.ग्रा.

सफ़ेद पोटाश

15 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

कैल्शियमनाइट्रेट

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

20 कि.ग्रा.

13:00:45 (NPK)

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

20 कि.ग्रा.

अमोनियमसल्फेड

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

20 कि.ग्रा.

मैग्नीशियमसल्फेड

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

20 कि.ग्रा.

43 से 63

16:08:24 (NPK)

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

12:61:00 (NPK)

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

13:40:13 (NPK)

7.5कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

22.5 कि.ग्रा.

13:00:45 (NPK)

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

कैल्शियमनाइट्रेट

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

अमोनियमसल्फेड

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

मैग्नीशियमसल्फेड

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.

बोरान

1.250 ग्राम

सप्ताह में एक बार

3.750कि.ग्रा.

सफ़ेद पोटाश

10 कि.ग्रा.

सप्ताह में एक बार

30 कि.ग्रा.


सिंचाई
फूलगोभी के पौधे को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। पौधो की रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई करनी चाहिए, तथा हफ्ते में दो सिंचाई करनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
मल्चिंग में फसल होने पर खरपतवार कम उगते हैं। तथा खाली जगह पर खरपतवार होने पर उसको हाथ से उखाड़कर फेंकना चाहिए।


कीट
1 कटुआ इल्ली- वयस्क शलभो को पकड़ने के लिए रात के समय प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें तथा क्लोरपायरीफ़ॉस 2 एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकरछिड़काव करें ।

2 माहू- इसके लिए पीले रंग के चिपचिपे प्रपंच का प्रयोग करें तथा डायमेथोएट 30%EC7ml को 10 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें ।

3 हीरक पृष्ठ पतंगा (डायमंडबैकमौथ)- इसके लिए 12 फेरोमोनट्रेप काप्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए या कारटापहाइड्रोक्लोराइड का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए।

रोग

1 झुलसा रोग- इस रोग से बचाव के लिए मेन्कोजेब या कॉपरऑक्सीक्लोराइड3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें ।

2 पौध गलन रोग- बीजो को रोपाई से पहले थिरम, बाविस्टिन या कैप्टान से उपचार करना चाहिए ।

3 ब्लैक रॉट रोग- कॉपरऑक्सीक्लोराइड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर जड़ो को उपचार करके लगाना चाहिए ।

4 काला धब्बा रोग- डायथेन एम-45 को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर 3 छिड़काव करना चाहिए ।

5 मृदुरोमिल- रिडोमिलएमजेड 72 एक ग्राम प्रति लीटर की दर से या डायथेनएम 45 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 से 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करें ।

फूलगोभी में दैहिक विकार या कायिक विकार

1 ब्राउनस्पॉट- यह बोरोन की कमी से होता है । इसको 1 किलो बोरेक्स को 500 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 30 दिन के बाद स्प्रे करके नियंत्रित किया जा सकता है ।

2 बटनिंग- यह नाइट्रोजन की कमी से होता है जिसमे फूल पकने से पूर्व छोटे रहकर फटने लगते हैं और पौधे का विकास असामान्य हो जाता है।

3 व्हिप टेल- मोलिब्डेनम की कमी की वजह से पत्तियों का केवल मध्य शिरा का विकास होता है इसको 100 ग्राम सोडियम मोलिब्डेड को 500 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करके ठीक किया जा सकता है।

कटाई
फूलगोभी में फूल जब पूरी तरह से ठोस और विकसित हो जाएँ तो इसकी कटाई करनी चाहिए । अगेती किस्मे रोपाई से लगभग 60-70 दिनों में कटाई के लायक हो जाती है।

उपज 
प्रति हेक्टेयर फूलगोभी की उपज 150-200 क्विंटल तक होती है, तथा इसकी कीमत 20 -30 रूपये प्रति किलोग्राम के दर से प्राप्त होता है ।