स्वप्नील चौधरी, गणेश उपाध्याय, भारत पटेल एवं नरेश
फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग विभाग, 
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा

धान-गेहूं फसल चक्र में धान की कटाई तथा गेहूं की बुआई के मध्य बहुत ही कम समय होता है जो की लगभग 20 से 25 दिन ही होता है। इस समय सीमा में धान के अवशेष पराली का निपटारा करने हेतु किसानों के पास एक ही विकल्प बचता है कि वे उन्हे जला दें। इन अवशेषों को जलाने भूमि, पानी तथा पर्यावरण गंभीर रूप से दूषित होते है। इन विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व, मिट्टी का तापमान, पी.एच., नमी, मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस तथा जैविक तत्व भी प्रभावित होते है।
    देश के अधिकतर हिस्सों में आज के समय धान की कटाई कम्बाईन हार्वेस्टर से की जाती है जो धान के अवशेषों को खेत में बिखेरते हुए चलती है। इन बिखरे हुए अवशेषों से निजाद पाने हेतु किसान उन्हे खेत में ही आग लगा देते हैं। इन फसल अवशेषों के उचित प्रबंधन हेतु यथास्थान/खेत में (In-situ) तथा गैरस्थानिक/खेत के बाहर (Ex-situ) प्रबंधन जैसे दोनों ही विकल्प मौजूद है। विभिन्न शोधों से यह ज्ञात होता है कि यदि फसल अवशेषों का उचित प्रबंध कर उसे खाद के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए तो जहाँ एक ओर इससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा वहीं दूसरी ओर महंगे रसायनिक उर्वरकों के खर्च में भी कटौती होगी। साथ ही अवशेष के खाद के रूप में प्रयोग से पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी। ये दोनों ही विकल्प पराली प्रबंधन के दृष्टिकोण के अत्यंत महत्वपूर्ण है परंतु धान की कटाई तथा गेहूं की बुआई के मध्य समय सीमा कम होने के कारण किसानों को एसी मशीनों की आवश्यकता है जो की धान के इन अवशेषों के उचित प्रबंधन के साथ-साथ गेहूं की बुआई भी करे। इस कार्य हेतु मुख्य रूप से तीन मशीनें क्रमशः ज़ीरो टिल ड्रिल, हैप्पी सीडर तथा सुपर सीडर उपलब्ध है। इनका उपयोग कर किसान लागत में कमी तथा समय की बचत कर सकते है। यह अवशेष समय के साथ मिट्टी में ही अपघटित होकर उर्वरक की कमी को भी पूरा करेंगे। इन मशीनों को चलाने से पूर्व इस बात का ध्यान रखा जाता है की खेत में पराली की मात्रा अत्यधिक ना हो।

1. जीरो टिल ड्रिल
पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित किये बिना धान-गेहूं फसल चक्र में उत्पादकता बढ़ाने हेतु कई संसाधन संरक्षक तकनीकों का विकास किया गया है। इस दिशा में किसानों के बीच जीरो टिलेज तकनीक के लोकप्रिय होने के अनेक साक्ष्य मौजूद है। जीरो टिलेज के द्वारा जुताई का कार्य मशीन को एक बार चलने में ही हो जाता है। यह मशीन धान की कटाई के उपरांत गेहूं की बुआई हेतु अत्यंत उपयोगी है। परंपरागत बुआई की विधि से धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई काफी कठिन और महँगी पड़ती है। बीज बुआई हेतु इस भूमि को तैयार करने में लगभग 4 से 5 बार विभिन्न तरह के यंत्र चलाने पड़ते है। इस कारण आगामी फसल की बुआई में देरी हो जाती है जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। इस समस्या से निजात पाने हेतु जीरो टिल ड्रिल का निर्माण किया गया है। यदि खेत में मौजूद पराली की मात्र कम है तो इस मशीन की मदद से किसान धान की कटाई के तुरंत बाद बगैर जुताई किये गेहूं की बुआई कर सकते है। इस मशीन में एक बीज बक्सा, बीज एवं खाद दर सुनिश्चित करने वाली इकाई, बीज वितरक ट्यूब, फाले, बीज एवं खाद दर नियंत्रक लीवर तथा पावर ट्रांसमिशन इकाई होती है। बीज दर को काम या ज्यादा करने हेतु फ्लूटेड रोलर को आगे-पीछे हटाया जा सकता है। यह सभी तरह के बीज की बुआई हेतु उपयोगी है।

2. हैप्पी सीडर
इस मशीन का उपयोग कर किसान पराली युक्त खेत में सीधे गेहूं की बुआई कर सकते है। इसमें एक शाफ़्ट के ऊपर फ्लेल टाइप ब्लेड लगे होते है तथा इनके ठीक पीछे गेहूं की बुआई हेतु फाले लगे होते है। ब्लेड का काम फालों के सामने आने वाली पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर खेत में फैलाना है। यह ब्लेड मिट्टी की सतह को स्पर्श नहीं करते है। भारत तथा अन्य देशों में कई किसानों ने इस मशीन का प्रयोग फसल अवशेष प्रबंधन हेतु शुरू कर दिया है। हालांकि, इस तकनीक का बड़े पैमाने पर उपयोग न होने के पीछे प्रमुख कारण किसानो को इसके परिचालन तथा रखरखाव का ज्ञान न होना है। इस मशीन के उपयोग के पूर्व खेत की स्थिति के अनुरूप कुछ एडजस्टमेंट जरुरी होते है। इन एडजस्टमेंट में फसल तथा खेत की स्थिति के अनुरूप बुआई के दौरान बीज की गहराई, खाद तथा बीज दर आदि आते है।



3. सुपर सीडर
सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो किसानों के लिए बहुद्देशीय मशीन के तौर पर काम आ सकती है। इस मशीन की खासियत है कि इससे धान व कपास के खेतों में गेहूं की सीधी बिजाई की जा सकती है। इससे न केवल फसल अवशेष प्रबंधन होता है, बल्कि किसानों को आर्थिक लाभ भी होता है। इसमें एक शाफ़्ट के ऊपर रोटावेटर की तरह ब्लेड लगे होते है तथा इनके ठीक पीछे गेहूं की बुआई हेतु फाले लगे होते है। मशीन में मौजूद ब्लेड जुताई के साथ-साथ पारली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला देती है। सुपर सीडर का वजन लगभग 850 से 1000 किलोग्राम होता है तथा यह 12 से 18 इंच के खड़े धान के अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर 2 से 3 इंच तक की गहराई में गेहूं की बिजाई कर देती है। इस मशीन को चलाने के लिए मशीन के साइज़ के अनुसार 50 या इस से अधिक हार्सपावर के ट्रैक्टर की आवस्यकता पड़ती है तथा एक एकड़ जमीन की जुताई व बिजाई 1 से 2 घंटे में कर सकती है। इस मशीन की कीमत 2 से 2.5 लाख रुपये तक है। इस मशीन को चलाने में ज्यादा ईंधन तथा अधिक हार्स पावर के ट्रैक्टर की आवश्यकता पड़ती है परंतु इसे एक बार चलाने से ही खेत की हल्की जुताई, पराली को मिट्टी में मिलना तथा गेहूं की बुआई हो जाती है।



इन मशीनों के उपयोग के दौरान सावधानियां एवं लाभ
  • इन मशीनों से धान की कटाई के तुरंत बाद उसके अवशेषों को बगैर जलाये गेहूं की बुआई कर सकते है जिससे न सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बच जाता है।
  • इन मशीनों से गेहूं की बुआई हेतु सबसे अनुकूल परिस्थिति तब होती है जब भूमि में नमी परंपरागत विधि से बुआई हेतु उपलब्ध नमी से 3-4 % अधिक हो। भूमि में नमी की मात्रा कम होने की वजह से गेहूं या अन्य फसलों का अंकुरण अत्यधिक प्रभावित होता है।
  • ज़ीरो टिल ड्रिल तथा हैप्पी सीडर से बुआई करने से अवशेष की एक परत ऊपरी सतह पर बन जाती है जो मिट्टी में नमी को बनाये रखती है जिससे संभवतः एक सिंचाई की बचत होती है।
  • ये मशीनें अधिक नमी वाली भूमि पर भी ठीक से नहीं चल पाती तथा इस परिस्थिति में बीज एवं खाद वितरक पाइप में मिट्टी फसने की समस्या हो सकती है।
  • इन मशीनों से गेहूं की अगेती बुआई (अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से १५ नवंबर तक) संभव है जिससे खेत में खरपतवार कम उगते है, फसल को सही मात्रा में खाद-पानी मिलता है एवं पछेती बुआई की तुलना में पैदावार भी अधिक मिलती है।
  • इन मशीनों से बुआई के ठीक बाद यदि बारिश भी हो जाती है तो बीज के ऊपर की मिट्टी सख्त नहीं होती जिससे बीज का अंकुरण प्रभावित नहीं होता।
  • बुआई के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
  • धान की कटाई के तुरंत बाद गेहू की बुआई कर सकते है जिससे धान तथा गेहू की लम्बी अवधि की किस्मे उगाई जा सकती है।
  • मिट्टी में खरपतवार कम उगते है तथा गुणवत्ता बनी रहती है।
  • पर्यावरण के लिए अनुकूलित तकनीक है जिससे फसल अवशेषों के जलने से होने वाले वायु प्रदुषण को कम किया जा सकता है।

मशीनों की मरम्मत एवं रखरखाव
किसी भी मशीन को ठीक से चलने हेतु समय समय पर उसकी मरम्मत करना अत्यंत आवश्यक होता है। जिस कार्य हेतु निम्न बिंदुओं पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए:

1) बीज बक्सा: वातावरण में मौजूद नमी के कारण इसमें बहुत जल्दी जंग लग जाता है अतः इसे अच्छे से साफ करना चाहिए। ऐसा नहीं करने से जंग बक्से को ख़राब कर देगा और अगले मौसम में बुआई हेतु मशीन उपयोगी नहीं होगी। बीज बक्से को साफ करने हेतु निम्न बिंदुओं का पालन करें:
  • मशीन को जमीन से इतना ऊपर उठायें कि उसका पहिया आसानी से घूम सके।
  • बक्से में यदि बीज और खाद हो तो उसे निकल दें।
  • पहिये को तब तक घुमाएं जब तक बीज एवं खाद दर सुनिश्चित करने वाली इकाई से सारे बीज एवं खाद बाहर न निकल जाएं।
  • बक्से को साफ कपड़े से साफ करें।
  • मशीन में मौजूद रोलर तथा बक्से को जंग से बचने के लिए डीज़ल या केरोसिन से धो लें।
  • जहाँ जरुरत हो वह स्नेहक का प्रयोग करें।

2) पावर ट्रांसमिशन सिस्टम: पावर ट्रांसमिशन सिस्टम को साफ करने के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखें:
  • मशीन का पहिया ठीक से घूमना चाहिए और यदि जाम है तो उसमे ग्रीस लगाना चाहिए।
  • यदि मशीन के पहिये का आकर गोल न हो तो उसे बदल देना चाहिए।
  • सभी स्प्रोकेट एक लाइन में होना चाहिए तथा शाफ़्ट पर ठीक ढंग से टाइट होने चाहिए।
  • टूटे हुए पूर्जे तथा बुश को बदल देना चाहिए।

3) बीज एवं खाद दर सुनिश्चित करने वाली इकाई: सामान्यतः फ्लूटेड रोलर का उपयोग होता है। इसकी मरम्मत एवं रखरखाव हेतु निम्न बिंदुओं का ध्यान रखें:
  • सभी फ्लूटेड रोलर के पिन को निकाल कर रोलर को बाहर निकाल दें तथा यदि कोई रोलर टूट गया हो तो उसे बदल दें।
  • रोलर को लगाते समय ध्यान रहे कि सभी रोलर सामान दूरी पर हों और यदि दूरी असमान हो तो वाशर का उपयोग करे।

4) बीज वितरक पाइप: यह सामान्यतः प्लास्टिक के बने होते है जिसका एक छोर बीज/खाद कप से जुड़ा होता है तथा दूसरा छोर बूट से।
  • पाइप को बीज/खाद कप से क्लैंप के द्वारा अच्छी तरह से जोड़ा जाना चाहिए ताकि खेत में मशीन को चलते समय बाहर न निकल जाए।
  • पाइप को मुड़ने या टूटने से बचाना चाहिए।
  • पुराने/मुड़े हुए पाइप को बदल देना चाहिए।

5) फाले: फाले मुख्या फ्रेम पर नट/बोल्ट के माध्यम से अच्छी तरह जुड़े होना चाहिए। यह बहुत ही आसानी से घिस या मुड़ जाते है अतः इनकी मरम्मत समय समय पर करनी चाहिए। जब भी कोई फाला ख़राब हो जाए उसे बदल देना चाहिए।

6) फ्लेल: यह केवल हैप्पी सीडर में रोटर पर फाले के ठीक आगे लगी होती है। इसका काम फाले के सामने मौजूद फसल अवशेषों को काट कर बीज एवं खाद डालने के कार्य को आसान बनाना है। हमे समय समय पर यह सुनिश्चित करना चाहिए की सभी फ्लेल नट/बोल्ट की सहायता अच्छी तरह जुड़े हो तथा इनकी धार भी अच्छी हो।

7) रोटरी यूनिट: यह केवल सुपर सीडर में होती है जिसका काम खेत की जुताई करना तथा धान के लूस पड़े व खड़े फानों को काटकर मिट्टी में मिलाने का होता है। यह यूनिट सामान्तया रोटावेटर के जैसी ही होती है। हमे समय समय पर यह सुनिश्चित करना चाहिए की रोटरी यूनिट पर लगे सारे ब्लेड नट/बोल्ट की सहायता अच्छी तरह जुड़े हो तथा इनकी धार भी अच्छी हो।

अन्य निर्देश
  • मशीन से सभी पूर्जे अच्छी तरह से पेन्ट किये जाने चाहिए।
  • जब मशीन का उपयोग न हो रहा हो तब उसे पानी तथा धूल से बचाना चाहिए।
  • मशीन के परेशानी मुक्त उपयोग हेतु उसके घूमने वाले पूर्जो पर समय समय पर ग्रीस/स्नेहक लगाना चाहिए।
  • परिचालक की ट्रेनिंग भी अनिवार्य है।