त्रिषला साहू, सुमन साहू और शंभू सिंह पैकरा
(पीएचडी और एम.टेक)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,रायपुर (छ.ग.)

तिखुर मध्य भारत का औषधीय पौधा है, जो मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के पूर्वी दक्षिणवर्ती मिश्रित वनों में पायी जाती है। तिखुर के पौधे की पत्तियाँ अक्टूबर-नवम्बर माह में सूखने लगती है। इस समय इन पौधों को अपने उपयोग के लिए खोदकर संग्रहित कर लेते है क्योंकि बेहतर स्वास्थ्य एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से तिखुर किसी खजाने से कम नही हैं।

तिखुर क्या हैं
तिखुर एक प्रकार का ठंडी तासीर वाला औषधीय पौधा हैं और दुनियाभर में इसकी कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह अदरक एवं हल्दी परिवार का पौधा है। जिसकी जड़ से स्टार्च के रूप में तिखुर निकाला जाता है। इसमें बरसात के मौसम में शंकु के आकार के पीले या गुलाबीरंग के फूल निकलते है जब पत्ते सूखने लगते है, तब पौधों को उखाड़कर कंद के रूप में तिखुर प्राप्त किया जाता हैै।

तिखुर की पौष्टिकता
तिखुर पाउडर के तत्वों की रासायनिक संरचना संतृप्त फैटी एसिड, वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, फाईबर, सोडियम, कैल्शियम, आयरन और विटामिन सी पाया जाता है।

कृषि तकनीक
भूमि व जलवायु
तिखुर की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। तिखुर की खेती के लिए 25 डिग्री सेन्टीग्रेड 40 डिग्री सेन्टीग्रेड का तापमान उपयुक्त होता है।

खेत की तैयारी
तिखुर की खेती के लिए कम से कम 2 बार हल द्वारा अच्छी जुताई कर लेनी चाहिए। तत्पश्चात् 10-15 टब गोबर की खाद खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिला देना चाहिए तथा पुनः जुताई से मिला देना चाहिए तथा पुनः जुताई कर देना चाहिए।

रोपणविधि
सर्वप्रथम लगभग 30 से.मी. की दूरी पर नालियाँ बना लेना चाहिए। जून माह के अंतिम सप्ताह या जुलाई के प्रारम्भ में कंदो को जीवित क्लिकायुक्त टुकड़ो में का टलेना चाहिए। इसके पश्चात् कंदो को नलियो के बीच चढी हुई मिट्टी में रोपित कर देना चाहिए। पौधों की कतार में 20-30 से.मी. की दूरी पर लगाना चाहिए। रोपित करते समय गड्डों की लम्बाई लगभग 5-10 से.मी. से अधिक नही होनी चाहिए।

सिंचाई
रोपण के पश्चात् तुरंत सिंचाई नही करनी चाहिए। मानसून में वर्षा न होने की स्थिति में करनी चाहिए।

कटाई व संग्रहण
तिखुर की फसल 7-8 माह में परिपक्व होकर तैयार हो जाती है। फरवरी-मार्च माह में जिस समय पौधे की संपूर्ण पत्तियाँ सूख जाये तब कंदो को भूमि से निकाल लेते है। बडे़ कंदो से छोटे-छोटे अंगुली के आकार वाले कंदो को अलग कर लिया जाता है। साथ ही प्रमुख कंदो को बीजो के रूप में रोपन के लिए सुरक्षित कर लिया जाता है।

प्रसंस्करण
तिखुर से स्टार्च प्राप्त करने के लिए कंदो का दो विधियों द्वारा प्रसंस्करण किया जाता है।

1. पारंपारिक विधि- छत्तीगढ के बस्तर में तिखुर के प्रसंस्करण के लिए पारंपरिक विधि का ही उपयोग करते है। यह विधि निम्न चरणों में पूर्ण होती हैः-
  • इस विधि में कंदो को पानी से धोकर साफ पत्थर पर धीरे-धीरे घिसा जाता है, जिससे गाढ़ा द्रव निकलता है, जिससे स्टार्च बनता है।
  • इस द्रव कोदो-तीन बार पानी में निथारने से घिसाई के दौरान आई अशुद्वियाँ व रेशे दूर हो जाते है।
  • इस पल्प या गुदे को बारीक कपड़े से छाना जाता है और साथ-साथ पानी मिलाकर छानने से पूरा स्टार्च सही रूप में मिलता है।
  • तत्पश्चात् इसे धूप में सूखा लिया जाता है, जिसके कठोर हो जाने पर इसे पीसकर आटे के रूप में प्रयुक्त करते है। जिसे तिखुर पाउडर कहते है।

2. आधुनिक विधि-यह विधि निम्न चरणों में पूर्ण होती है-
  • तिखुर कंदो को छीलकर इसे पानी से धोलिया जाताहै।
  • धोने के बाद तेज चाकू से इसके छोटे-छोटे टुकड़े का टलिए जाते है।
  • तिखुर ग्राईनिंग मशीन में पानी के साथ कटे टुकडे को डालकर उसकी लुग्दी (पल्प) तैयार कर ली जाती है।
  • पीसी हुई कोे सफेद सूती कपड़े में बाँधकर ठंडा पानी प्रवाहित कर साफ मटको में दबाया जाता है। इस क्रिया से तिखुर के सफेद स्टार्च मटके में आ जाता है। तत्पश्चात् इसे जमने के लिए छोड़ दिया जाता है।
  • सातवें दिन तिखुर को स्टील की ट्रे में रखकर धूप-छांव में सुखा लिखा जाता है। जिससे तिखुर के सूखे बड़े-बड़े क्रिस्टल प्राप्त होते है। तिखुर के इनक्रिस्टलो को पेकिंग के पश्चात् विक्रय हेतु तैयारकर लिया जाता है।

उत्पादन
तिखुर के गीले कंद प्रति एकड़ 15-18 प्राप्त होते हैं, जो सूखने के बाद 3 से 5 टन रह जाते है। सामान्य परिस्थिति में (10-15) कि.ग्रा. कच्चे कंद से 1 कि.ग्रा. तिखुर प्राप्त होता है।

बाजार मूल्य
तिखुर की खेती से लगभग 30-40 क्विंटल कंद प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते है, जिनका बाजार मूल्य 150-160 रू0 प्रतिकिलो तक होता है। इस प्रकार कृषक प्रति हेक्टेयर रू0 6,00,000/- के कंद बाजार में बेचकर लाभ कमा सकते है।

तिखुर के उपयोग
कई तरह की मिठाइयाँ जैसे हलवा, बर्फी, जलेबी आदि तैयार करने में सूप, सॉस, पुडिंग और डेसर्ट को गाढ़ा करने में, तरल पेय पदार्थ अथवा शरबत के रूप में, औषधी के रूप में।

तिखुर के स्वास्थ्यवर्धक औषधीय गुण-

1. दिल स्वस्थ रखे- तिखुर दिल के लिए काफी फायदेमंद है, क्योंकि इसमें पोटेशियम की उच्च मात्रा होती है, यह रक्तचाप को सामान्य रखता है और रक्त के प्रवाह को अच्छा रखता है।

2. वजन कम करने मे सहायक- इसमें अमीनो पेक्टिन और अमीनो नामक दो स्टार्च पाये जाते है, जो कैलोरी में कम और प्रोटीन में ज्यादा होते है। इसमें मौजूद फाइबर के कारण बार-बार भूख नही लगती, जिससे आप बार-बार खाना खाने से बच जाते है। वजन कम करने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही अच्छा आहार है।

3. त्वचा के लिए लाभकारी- इसके स्टार्च के रूप में उपयोग किया जाता है। जिससे त्वचा संबंधी समस्याएँ दूर होती है, और त्वचा पर चमक आती है।

4. बालों के लिए गुणकारी- इसका उपयोग बालों के देखभाल से संबंधित कॉस्मेटिक उत्पादों में किया जाता है। इसमें मौजूद पोषक तत्वो के कारण, यह बालों की देखभाल करता है, एवं बढने में सहायता करता है।

5. पेट की समस्या को दूर करे- तिखुर पाचन क्रिया को सुधारने में बहुत इस्तेमाल होता है। इसमें ग्लूटेन यानि लस नही होता है जिसकी वजह से पाचन तंत्र से संबंधित एलर्जी से छुटकारा मिलता है।

6. नवजात शिशुओं के लिए लाभकारी- तिखुर के पाउडर में फोलेट शिशु के लिए बेहद अच्छा होता है, क्योंकि यह नई कोशिकाओं के निर्माण में मदद् करता है। इसलिए जो महिलाएँ माँ बनने वाली होती है उन्हे तिखुर पाउडर खिलाया जाता है, क्योंकि यह भ्रु्रण के विकास में मदद् करता है। यह स्तन दूध के विकल्प के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि यह आसानी से पच जाता है।

7. रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनाएँ- इसके पाउडर में पाए जाने वाले साइटो टोक्सिक गुण, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायता करते है।

8. मूत्र मार्ग संक्रमण का इलाज करने में लाभप्रद- यह मूत्राशय में होने वाले संक्रमण एवं सूजन को रोकने में मदद करता है। इसमें मौजूद एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह एक प्रभावी घरेलू उपचार है।

9. मेटाबॉलिज्म को बेहतर करता है- इसमें विटामिन बी की उच्च मात्रा पाई जाती है। जो शरीर में हार्मोनल बैलंेस बनाए रखता है। जिससे मेटाबॉलिज्म बेहतर होने लगता है। 

10. घाव भरने मेंमदद करे- तिखुर के पाउडर को घाव पर अच्छे से लगाने से घाव जल्दी भरता है। यही नही, अगर आपके मसूड़ो से खून आता है तो इससे सुबह मंजन किया जा सकता है, जिससे आराम मिलता है।