रुपारानी दिवाकर (पादप रोग विज्ञान विभाग)
मधु कुमारी (कीट विज्ञान विभाग)
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र कटघोरा, कोरबा (छ.ग.)

भारत जैसे देश जंहा की अधिकांश आबादी शाकाहारी है मशरुम का महत्व पोषण की दृष्टि से बहुत अधिक हो गया है। साथ ही पिछले कुछ वर्षो में किसानो का रुझान भी मशरुम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है। मशरुम की खेती बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है, बस कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। बाजार में मशरूम का अच्छा दाम मिल जाता है। व्यावसायिक रूप से तीन प्रकार की मशरुम उगाई जाती है। बटन मशरुम, ओएस्टर/ढींगरी मशरुम एवं धानपुआल मशरुम तीनो प्रकार की मशरुम को किसी भी हवादार कमरे या शेड में आसानी से उगाया जा सकता है। भारत में ओएस्टर मशरुम की खेती मौसम के अनुसार अलग अलग भागो में की जाती है।

ओएस्टर मशरुम उगाने का सही समय
दक्षिण भारत तथा तटवर्ती क्षेत्रों में सर्दी का मौसम विशेष उपयुक्तहै। उत्तर भारत में ओएस्टर मशरुम उगाने का उपयुक्त समय अक्टुबर से मध्य अप्रैल के महीने है। ओएस्टर मशरूम की फसल के लिए 20 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा 70-80 प्रतिशत आद्रता बहुत उपयुक्त होती है। ओएस्टर की 12 से अधिक प्रजातियां भारत के अलग अलग भागों में उगाई जाती है। जिसमे से प्लयूरोटस ऑस्ट्रिएटस, प्लयूरोटस फ्लोरिडा, प्लयूरोटस सजोरकाजु, प्लयूरोटस फ्लेबलेटस तथा प्लयूरोटस सिट्रोनोपिलेटस आदि प्रमुख प्रजातियां है।

ओएस्टर मशरुम उत्पादन की विधि

1) माध्यम बनाना
ओएस्टर मशरुम का उत्पादन गेंहू की भूसी, धान का पैरा या किसी भी प्रकार के फसल अवशेष पर आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए यह जरुरी है कि भूसा या पुआल पुराना या सढा गला नहीं होना चाहिए सर्वप्रथम इन्हे लगभग 2-3 सेमी छोटे टुकड़ो में काट लेते है। इसके पश्चात् इन्हे जीवाणु रहित किया जाता है। जिसके लिए निम्नलिखित कोई भी विधि द्वारा कृषि अवशेषों को उपचारित किया जा सकता है।

क) गर्म पानी उपचार विधिः
इस विधि में भूसे/कृषि अवशेषों को गर्म जल में लगभग 30-45 मिनट उपचारित किया जाता है उपचारित भूसे/ कृषि अवशेषों को ठंडा करने बाद बीज मिलाया जाता है।

ख) रासायनिक विधिः
इस विधि में भूसे/कृषि अवशेषों को विशेष प्रकार के कृषि रसायन या दवाइयों से जीवाणु रहित किया जाता है। इस विधि में एक 100 लीटर ड्रम या टब में 90 लीटर पानी में लगभग 20-25 किलो सूखे भूसे को गिला कर दिया जाता है। तत्पश्चात एक प्लास्टिक की बाल्टी में 10 लीटर पानी तथा 7.5 ग्राम बाविस्टिन तथा फॉर्मेलिन (125 मिली) का घोल बनाकर भूसे वाले ड्रम के ऊपर उढ़ेल दिया जाता है तथा ड्रम को पॉलीथिन शीट या ढक्कन से अच्छी तरह बंद कर दिया जाता है। लगभग 12-14 घंटे बाद उपचारित भूसे को ड्रम से बाहर किसी पॉलीथिन की शीट या सीमेंट की पक्की ढालू जमीन पर रख दिया जाता है, जिससे अतिरिक्त पानी निथर जाये तथा फॉर्मेलिन की गंध भी खतम हो जाये।

2) स्पानिंग / बीजाई करना
तैयार किये गए माध्यम या खाद में स्पान/बीज मिलाने की प्रक्रिया को स्पानिंग ध्बीजाई कहते है। बीजाई करने से दो दिन पहले कमरे या शेड को २ प्रतिशत फॉर्मेलिन से उपचारित कर लेना चाहिए । बीजाई का तरीका मशरुम उगाने के तरीके पर निर्भर करता है ।


मशरुम की खाद में बीजाई कई प्रकार से की जाती है ये निम्न हैः

1. सम्पूर्ण बीजाई
खाद को पॉलीथीन के थैली में भरने से पहले उपयुक्त मात्रा में बीज को मिलाते हैं ।

2. परतदार बीजाई
ट्रे-थैली या शेल्फ में खाद की संपूर्ण सतह पर बीज एक समान फैला दिया जाता है । इस छिडकाव के ऊपर खाद की एक पतली परत डाल दी जाती है इसे एक परत बीजाई कहते हैं ।
    द्वि परत बीजाई में ट्रे या थैली को पहले आधा भरते हैं और इसकी सतह पर बीज को मिलाया जाता है । अब ट्रे या थैली को पूरा भरकर पहले की तरह बीज बिखेरकर खाद की सतह से (3-4 सेमी. मोटी) ढक देते हैं ।

3. स्पॉट बीजाई
इसमें थैली की क्षमता के अनुसार खाद भरकर उसे समतल कर देते हैं । कतार में 4-5 इंच की दुरी पर 1-2 इंच गहरा गड्ढा बना लिया जाता है जिसमे लगभग 5 ग्राम (एक चाय चम्मच) बीज को सुराखों में डालकर खाद से ढक दिया जाता है।
    संपूर्ण बीजाई और स्पॉट बीजाई की अपेक्षा पूरी तरह परतदार बीजाई में अधिक पैदावार मिलती है । बीजाई और ऊष्मायन के लिए विभिन्न प्रकार के बर्तनों का उपयोग किया जाता है । मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की ट्रे, बांस की डलियाँ, बोरे और पॉलीथीन थैलियाँ साधारणतः उपयोग में लाये जाते हैं। इसमें पॉलीथीन की थैली या संघनित पॉली थैलियाँ सबसे अच्छी पायी गयी है क्योंकि इन थैलियों का सरलता से भंडारण किया जा सकता है, फार्मेलिन से जीवाणुविहीन किया जा सकता है और दुबारा उपयोग में लाया जा सकता है। बीज को तैयार किये गये माध्यम के 3-15 प्रतिशत क्रियाधार के सूखे भार के अनुपात से मिला देते हैं लेकिन उपयुक्त मिश्रण में 10 प्रतिशत का अनुपात सबसे अच्छा पाया गया है । साथ ही साथ यह भी देखा गयाहैं कि निवेश द्रव्य की मात्रा बढाने से पैदावार भी अधिक मिलती हैं ।
    तत्पश्चात बीजाई किये गए पॉलीथिन की थैलियों में चारो तरफ से पैंदे में छेद कर दिया जाता है ताकि बैग का तापमान 30 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक न होने पाए।

4) फसल प्रबंधन
बीजाई के पश्चात् थैलियों को एक उत्पादन कक्ष में बीज फैलने के लिए रख दिया जाता हैं । बैगो को हफ्ते में एक बार अवश्य देख लेना चाहिए की बीज फैल रहा है या नहीं बीजाई की गई खाद की थैलियों को अँधेरे कमरे (उत्पादन कक्ष) में 10 से 15 दिन (विभिन्न प्लुरोटस प्रजातियों के लिए अलग-अलग) तक रखते हैं तब तक कवक जाल माध्यम की निचली सतह पर भेदकर पहुंच जाती हैं। कवकजाल की वृद्धि के कारण माध्यम सफेद दिखायी देता है। बीज के फैलाव के समय कमरे का तापक्रम 25-28 डिग्री सेन्टीग्रेड, आपेक्षित आर्द्रता 75-80 प्रतिशत और अंधेरा होना चाहिये । इस समय सबसे कम वातायन रहना चाहिये जिससे तापक्रम में बदलाव न आये ।जब माध्यम पर मशरुम का कवकजाल पूरी तरह फैल जाये तब पॉलीथीन थैलियों को या तो निकाल दिया जाता है या उसे तेज चाकू की सहायता से लम्बाई में काट देते है, जिससे फलनकाय का विकास उचित प्रकार से हो सके । किसी भी दशा में थैलियों को 16-18 दिन बाद ही खोलना चाहिये। कवकजाल के पूरी तरह फैलने के बाद थैलियों या माध्यम के ब्लॉक्स को छिद्रदार बांस के फ्रेम या लोहे की अलमारी पर 10-15 इंच की दूरी पर रखते हैं । फसल उगाने का कक्ष पूर्णतः वातायित होना चाहिये । कमरे की खिडकियां व दरवाजे प्रतिदिन 2 घंटे खुले रहना चाहिये, जिससे कार्बन डाय ऑक्साइड बाहर निकल जाये तथा ऑक्सीजन की उचित मात्रा कमरे में विद्यमान रहे । फलनकाय बनते समय तापक्रम 2र्5ं-2 सेन्टीग्रेड, आर्द्रता 80-90 प्रतिशत एवं हल्का वातायन रहना चाहिये । नमी बनाये रखने के लिए माध्यम पर पानी का छिडकाव किया जाता है । ज्यादा पानी देने से माध्यम में पानी जमा हो जायेगा जिसके कारण से माध्यम सडने लगेगा और मशरुम के बनने में बाधा आयेगा । पानी का छिडकाव हमेशा मशरुम तोडने के बाद करना चाहिये। यदि कमरे के अंदर का तापमान 30 सेन्टीग्रेड से अधिक हो जाता है तो समय-समय पर कमरें में पानी का हल्का छिडकाव करने से तापक्रम में कमी आती है और मशरुम जल्दी निकलती है । रात के समय कमरे में ठण्डी हवा अंदर आने के लिए खिडकी और दरवाजे खोल दिये जाते हैं। थैली खोलने के 3-4 दिन बाद मशरुम के पिन हेड बनने लगेंगे । अगले 2-3 दिन में परिपक्व मशरुम तोडने लायक हो जाती है । यदि माध्यम पर मशरुम का कवकजाल पूरी तरह नहीं फैला है तो फलनकाय देरी से बनते हैं। ढींगरी के फलनकाय बनने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, अंतः प्रतिदिन 4 से 5 घंटे टयूबलाइट अथवा बल्ब का प्रकाश देना चाहिये । फसल चक्र 50-70 दिन तक चलता है। अंतिम भाग से मशरुम तोडने के पश्चात माध्यम के मध्य भाग में लंबी दरारें बनायी जाती हैं जिससे और अधिक मशरुम बन सके । जब तक माध्यम सफेद रहता है तब तक उपयुक्त वातावरण में मशरुम बनती रहती हैं । जब यह रंगहीन और नरम हो जाता है तब थैलियों को कमरे से बाहर निकाल लिया जाता है ।



4) तुड़ाई
जब मशरुम का किनारा ऊपर की तरफ मुडने लगता है तब प्लूरोटस के फलनकाय को तोड़ लिया जाता है। मशरुम तोड़ने के बाद डंठल के साथ लगे हुए भूसे को चाकू से काटकर हटा देना चाहिए क्योंकि इस टूटे भाग पर प्रायः जीवाणु संक्रमण हो जाता है और भूसा सडने लगता है । पहली फसल के 8-10 दिन बाद दूसरी फसल आतीहै पहली फसल कुल उत्पादन का लगभग आधा या उससे ज्यादा होती है इस तरह तीन फसलों तक उत्पादन ज्यादा होती है उसके बाद बैगों को किसी गहरे गड्ढे में दाल देना चाहिए जिससे उसकी खाद बनायीं जा सके तथा बाद में इसे खेतों में प्रयोग कर सकें जितनी भी व्यावसायिक प्रजातियां हैं उनमे से एक किलो सूखे भूसे से लगभग औसतन 600-800 ग्राम पैदावार मिलती है।

5) सावधानियां
  • मशरुम की खेती के लिए हमेसा किसी विश्वसनीय एवं उच्च स्तरीय प्रयोगशाला से संवर्धन एवं स्पान प्राप्त करना चाहिए।
  • कमरे को समय समय पर जीवाणु रहित करते रहना चाहिए।
  • सप्ताह में एक बार पोलिथीन के मशरूम बैग की निगरानी जरूर कर लें ताकि मालूम हो सके कि कोई हानिकारक फंगस या बेक्टीरिया तो नहीं पनप रहे. ऐसे पोलिथीन बैग में हरा, काला या नीले रंग की फंगस पैदा हो सकती अगर फंगस हो गई है तो संक्रमित बैग को तुरन्त उत्पादन कक्ष से हटाकर फैंक दें।
  • ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन करते समय उचित मात्रा में (4-6 घंटे) प्रकाश की व्यवस्था करनी चाहिए जिसके लिए लाइट का प्रबंधन भी कर सकते है।
  • गर्मी में उत्पादन करते समय दीवारों को पानी से समय-समय पर तर करते रहना चाहिए।
  • कक्ष में हवा का आवागमन होना जरूरी है इसके लिए खिड़की लगानी चाहिए, हवा का उचित आवागमन नहीं होने से कार्बनडाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और मशरूम का डंठल बड़ा लेकिन छतरी पतली पनपने लगती है।
  • भूसे को सही तरीके से उपचारित करना चाहिए अन्यथा हानिकारक फंगस और जीवाणुओं से मशरूम खराब हो जाती है।
  •  भूसे को पोलिथीन बैग में दबाकर भरना चाहिए नहीं तो खाली जगह पर हानिकारक फंगस या बैक्टीरिया पनप जाते है और पूरा बैग खराब हो जाता है।