ईश्वर साहू, एवं सेवन दास खुंटे
फल विज्ञान विभाग राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर (म.प्र.)
फल विज्ञान विभाग इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

स्ट्रॉबेरी एक बहुत ही नाजुक फल है. जो की स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है. दिखने में दिल के आकर का होता है और इसका रंग चटक लाल होता है. ये एक मात्र ऐसा फल है. जिसके बीज बाहर की और होते है विश्व का लगभग 60 प्रतिशत उत्पादन केवल यूरोप में उगाया जाता है। स्ट्रॉबेरी विशेष रूप से शीतोष्ण जलवायु में उगाई जाती है संसार में मुख्यतः फांस, इटली, पोलैंड, स्पेन में उगाई जाती है । यूरोपीय देशों के अतिरिक्त रूस, जापान , टर्की जर्मनी, युगोस्लाविया इंग्लैण्ड आदि भी स्ट्रॉबेरी के उत्पादक देश है भारत देश में हिमाचल प्रदेश जम्मू कश्मीर, शिमला, सोलन, पालमपुर, उत्तराखंड, सराहनपुर, मेरठ , गाजियाबाद इलाहाबाद, लुधियाना, पटियाला (पंजाब) हिसार, करनाल ( हरियाणा ) तमिलनाडु एवं कर्नाटक के पहाड़ी क्षेत्रों में एवं महाबलेश्वर एवं पुणे ( महाराष्ट्र ) एवं छत्तीसगढ़ आदि क्षेत्रों में स्ट्रॉबेरी की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है ।
    स्ट्रॉबेरी में कई सारे विटामिन, लवण एवं एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते है, इनमें विटामिन-सी 59 मि.ग्रा., विटामिन-ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस 21 मि.ग्रा., पोटेशियम 164 मि.ग्रा., अम्ल 0.90 से 1.85 प्रतिशत, साथ ही साइट्रिक अम्ल व मैलिक अम्ल मुख्य रूप से पायी जाती है। स्ट्रॉबेरी अपनी एक अलग खुशबू के लिए पहचानी जाती हैं। फल में महक मुख्यतः एथिल हेक्सानोएट, एथिल, हेक्सानोएट, एथिल ब्यूटानोएट, ट्रॉस-2-हेक्सानोल 2, 5 डाईमथिल -4- मेथॉक्सी फ्यूरोनॉन और लिनालूल के कारण होती है। स्ट्रॉबेरी का प्रयोग कई खाद्य पदार्थो में किया जाता है, इससे केक, सलाद, जैम, योगर्ट, मिल्क शेक, स्मूदी, जैली, मीठा पेय, आइसक्रीम आदि बनाये जाते हैं।

स्ट्रॉबेरी का औषधीय उपयोग

  • स्ट्रॉबेरी में उपस्थित एक्टीऑक्सीडेंट, फलेवोनायड के गुण हमारे शरीर में बिमारियों को फैलने से रोकते है।
  • स्ट्रॉबेरी पाचन क्रिया को बढ़ाता है और कब्ज, एसिडिटी जैसे समस्याको दूर करता है।
  • स्ट्रॉबेरी में ग्लूकोज की काफी मात्रा होती है। जिससे डायबिटिज का खतरा कम हो जाता है।
  • हमारे शरीर में बेड कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ने नहीं देता जिससे दिल से संबंधित बीमारी नहीं होती।
  • ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है।
  • फल में मैजुद मैग्निशियम और विटामिन हमारी हड्डियों को मजबूत करता है।
  • स्ट्रॉबेरी में पाये जाने वाले एंजाइम आंख की रोशनी को बढ़ाते है और मोतियाबीन के खतरे को दूर करता है।

उत्पत्ति एवं विवरण
स्ट्रॉबेरी फेगेरिया जाति का एक पौधा है जो दो जंगली जातियों फेगेरिया चिलियोनसिस तथा फेगेरिया वर्जीनियाना के प्राकृतिक संकरण से उत्पन्न हुई है । कुछ लोगों की परिकल्पना है कि इस फल का नाम स्ट्रॉबेरी इसलिए पड़ा क्योंकि इसके फलों को घास-फुस पर रखकर बेचा जाता था जो कि अभी भी आयरलैण्ड में प्रचलित है।
    भारत में 19वीं शताब्दी के छठे दशक में स्ट्रॉबेरी के कुछ पौधे राष्ट्रीय पादप अनुवांशिकी ब्यूरो के फागली शिमला स्थित केन्द्र में लाए गए वहां से धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई। अब इसकी खेती विभिन्न प्रकार के जलवायु में सफलतापूर्वक की जा रही है।

किस्में
स्ट्रॉबेरी की मुख्य किस्में, नाबीला, कामारोजा, स्वीट्, चार्ली, पजारो, चान्डलर, सेल्वा, बेलरूबी, टीवोगा, फर्न, दीलपसंद पूसा अर्ली डवार्फ, रेड कॉस्ट आदि है।

प्रादप प्रवर्धन
स्ट्रॉबेरी का प्रवर्धन मुख्यतः भूस्तारी द्वारा किया जाता है, इसके मुख्य तने से बहुत भूस्तारी निकलते है। भूस्तारी पर गाठें एवं सुसुप्त कलिकायें होती है। गाठें भूमि के संपर्क में आने पर जड़े उत्पन्न करती है। जिससे नया पौधा तैयार हो जाता है।



रोपण की विधियों

1. एक पंक्ति विधि - इस विधि को हल्की भूमि में अपनाते हैं । इसमें पक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 से . मी . व पाच से पौध की दूरी 25 से 30 से भी रखते हैं रोमण उठी क्यारियों में करते है ।

2. चताई विधि - इस विधि में पंक्ति की दूरी 60 से.मी. तथा पौधे की दूरी 45 से.मी. रखते है। इसमें मातृ पौधे को पंक्ति में भूस्तारी बढ़ने दिया जाता है, जो बाद में चटाई के रूप में फैल जाते है।

3. क्यारी विधि - इस विधि में पानी की उचित सुविधा की स्थिति में क्यांरियों की 10 से 15 से.मी. उठी बनाई जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में रोपण का कार्य जुलाई-अगस्त तथा मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर के अंत या नवम्बर के प्रथम सप्ताह में करना चाहिए। इसमें बाग को 3.5 से 4 मीटर समतल क्यारियों में लगाया जाता है। पौधे 30 से 40 से.मी. तथा पौधे 15 से 20 से.मी. की दूरी पर लगाये जाते हैं।

मल्चींग व टनल
क्यारियों के उपर 400 गेज मोटी पॉलीथीन का मल्च का प्रयोग लाभकारी रहता है यह मृदा में नमी बनाये रखता है, तथा खरपतवार नियंत्रण में सहायक होता है। पॉली हाउस नहीं होने पर स्ट्रॉबेरी को पाले से बचाने के लिए प्लास्टिक लो टनल का उपयोग करें जिसमें पारदर्शी प्लास्टिक चादर, जो 100-200 माइक्रोन की हो उसका उपयोग करना चाहिए।

खाद एवं सिंचाई
स्ट्रॉबेरी को अधिक खाद की आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु भूमि की तैयारी के समय 50 टन गोबर की 80 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
    पौधे लगाने के बाद तुरंत सिंचाई की जानी चाहिए। समय-समय पर नमी का ध्यान रखे। चूंकि स्ट्रॉबेरी की जड़े उथली होती है इसलिए इसे बार-बार पानी की आवश्यकता पड़ती है। स्ट्रॉबेरी में फल आने से पहले सूक्ष्म फव्वारे से सिंचाई कर सकते है। फल आने के बाद टपक सिंचाइ्र विधि से ही सिंचाई करें।

स्ट्रॉबेरी में लगने वाले कीट एवं रोग
कीटों में पतंगे, कछुआ, रोयेदार कीट, लाल स्पाइडर माइट एवं स्ट्रॉबेरी जड़ विविल्स आदि इसको नुकसान पहुंचा सकते है। इनके नियंत्रण के लिए नीम की खली पौंधो की जड़ों में डाले। तथा कुछ रसायन जैसे एंडोसल्फान 0.5 प्रतिशत एवं एल्डीकार्ब (10 जी.) 5 कि.ग्रा. के हिसाब से छिड़काव करें।
    स्ट्रॉबेरी का सबसे हानिकारक रोग फल गलन सड़न रोग है जो बोटराइटिस साइनेरिया फफूंद द्वारा फैलाया जाता है। इसके नियंत्रण के लिए पलवार (मल्चिंग) जैसे - घास, पॉलीथीन आदि का प्रयोग करें, फुलों के खुलने पर कार्बेडाजिम (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें। इसके अलावा स्ट्रॉबेरी में पत्तियों का धब्बा, उकठा रेड स्टील जड़ सड़न तथा विषाणु रोग होते है इन रोगों के नियंत्रण के लिए रिडोमिल (0.1 प्रतिशत) से भूमि को भिगोए एवं पौधे को लगाने से पहले बोर्डो मिश्रण (1 प्रतिशत) या कॉपर आक्सीक्लोराइड (1 प्रतिशत) से 15-20 मिनट तक उपचारित करें। विषाणु नियंत्रण हेतु रोगी पौधो को उखाड़ कर नष्ट करें।

फल की तुड़ाई एवं उपज
स्ट्रॉबेरी के तुड़ाई के बाद इसे पकाना नहीं होता है, इसलिए फल पूरी तरह लाल रंग की हो जाए तब परिपक्व माना जाता है और तुड़ाई कर ली जाती है। अगर बाजार दूरी पर है तो थोड़ा सख्त ही तोड़ना चाहिए। तुड़ाई अलग-अलग दिनों में करनी चाहिए स्ट्रॉबेरी फल की डण्ठल के साथ तोड़ा जाता है।
    स्ट्रॉबेरी की उपज इसकी किस्म, जलवायु एवं देखभाल पर निर्भर करती है परन्तु सामान्यतः पौधे से औसतन 250-500 ग्राम फल मिलता।



स्ट्रॉबेरी की डिब्बाबंदी/पैकिंग
स्ट्रॉबेरी को रखने के लिए कम गहराई वाली टोकरी या सीधे फलों की पैंकिंग डिब्बे में करनी चाहिए। इस डिब्बे को पन्नेट कहते हैं इन डिब्बों में फलों को आसानी से लंबी दूरी तक ले जाया जा सकता है। डिब्बो को हवादार जगह पर रखना चाहिए जहां तापमान 5 डिग्री हो एक दिन बाद तापमान 0 डिग्री होना चाहिए।