डॉ. धर्म प्रकाश श्रीवास्तव 
पशुपालन वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र पी जी कॉलेज गाजीपुर
डॉ. अनूप कुमार सिंह
शोध छात्र नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टिट्यूट करनाल

प्राचीन काल से ही पशुपालन हमारे जीवन का एक अटूट हिस्सा रहा है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, कृषि एवं पशुपालन एक दुसरे के अभिन्न अंग है। गाँवों में दो प्रकार के लोग हैं खेतिहर एवं खेतिहर मजदुर। खेती बारी के अलावा बचे हुए समय का सदुपयोग करते हुए बकरीपालन का धंधा अपनाया जा सकता है। बकरियों से हमें सारी उपयोगी चीजें मिलती है जो हमारी खेती, तन्दुरूस्ती तथा उधोग धंधों के लिए जरूरी है। बकरी की सबसे बड़ी विशेसता यह है कि वह किसी भी स्थान में बिना पर्याप्त साधन के रखी जा सकती है। आमतौर पर बेकार समझी जाने वाली चीजों को खाकर भी वह दूध और मांस उत्पादित करती है। उधोग धंधों के लिए बकरियों से चमड़ा और खाल मिल जाती है। इस प्रकार राज्य के ग्रामीण अपना अतिरिक्त समय का उपयोग कर कम पूंजी से अतिरिक्त आमदनी हासिल कर सकते हैं। यही कारण है कि बकरी को ग्रामीण इलाकों के लिए ‘ए.टी.म.’ एवं गरीब की गाय भी कहा जाता है। वत्तमान खाद्य संकट के समय बकरीपालन का धंधा विकसित कर राज्य की मांसाहारी आबादी को संतुलित तथा पौष्टिक आहार उपलब्ध करा पाने में बकरीपालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। अतः देश की एवं राज्य की अर्थवयवस्था में बकरी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
    नये नये उधोग-धंधों की स्थापना एवं उसके फलस्वरूप शहरी क्षेत्रों में विस्तार के कारण राज्य में बकरियों के मांस की मांग भी बराबर बढ़ती जा रही है। बकरी मांस की मांग आपूर्ति पर निर्भर करती है इसलिए बकरीपालन का भविष्य भी उज्जवल है। बस जरूरत इस बात की है कि बकरीपालन को एक व्यवसाय के रूप में अपनाकर वैज्ञानिक एवं आधुनिक तौर तरीकों से किया जाय।

बकरीपालन के तरीके-
बकरीपालन के व्यवसाय को सफल बनाने हेतु अच्छे नस्ल की बकरियों का चुनाव भी बहुत आवष्यक है। परम्परागत तरीके से बकरीपालन करने वाले न तो बकरियों के लिए अच्छे घर बघान का इंतजाम करते हैं और न संतुलित दाना एवं चारा जुटा पाते हैं। इसलिए बकरी पालकों को व्यवसाय शुरू करने से पहले निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
  1. बकरियों के नस्ल का चुनाव
  2. रख रखाव
  3. आहारीय व्यवस्था
  4. देख भाल
  5. सामान्य रोग (स्वास्थय प्रबन्धन)

बकरी की प्रमुख नस्लें-
बकरीपालन व्यवसाय में मुनाफा के ख्याल से बकरीपालन करने वालों को उन्नत नस्ल का चुनाव करना होगा। बकरी के नस्लों को उनकी उपयोगिता एवं जलवायु क्षेत्रों के आधार पर विभिन्न प्रकारों में बाँटा गया है। बकरी को उपयोगिता के आधार पर प्रकार के नस्लों में बाँटा जा सकता है।

1. दुधारू नस्लें- बारबरी, बारी, सिरोही, सूरती, मेहसाना, सानेन, एल्पाईन एवं कुछ संकर जातियाँ।

2. मांस की नस्लें- गद्दी, ब्लैक बंगाल, गंजम एवं कच्छी।

3. दो उद्देशीय नस्ले (दूध एवं मांस दोनों के लिए)- जमुनापारी, बीटल, ओसमानाबादी।

4. ऊन की नस्लें:- चांगथांगी (पश्मीना), अंगोरा।


बकरी का रख रखाव (आवास एवं उपकरण)
गाँवों में आमतौर पर बकरियों के लिए लोग घर नहीं बनाते हैं ये बकरियाँ मुख्यतः चर कर अपना ज्यादा समय घूम फिर कर व्यतीत करती हैं। इन्हें समुचित आवास नहीं मिलता है परन्तु आजकल बकरीपालन एक व्यवसाय के रूप में अपने आप को स्थपित कर रहा है इसलिए अन्य पालतू जानवरों की तरह बकरियों को भी साफ सुथरे एवं हवा दार स्थान पर जैसे वातावरण में रहती हैं, उसका असर उनकी पैदावार पर पड़ता है। इसलिए बकरियों के लिए घर का इंतजाम जरूर करना चाहिए। बकरी का आवास बनाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिएः-
  • बकरियों के आवास को ऊँची जगह पर बनाना चाहिए, जहाँ से वर्षा जल के निकासी की सम्पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए।
  • बकरी प्रक्षेत्र में कार्यालय, भण्डार (दाना-भूसा हेतू) गृह होना चाहिए।
  • बच्चें, गर्भवती बकरियों एवं बीमार बकरियोंके आवास शुरूआत में बननी चाहिए। चारागाह एवं चारे वाले खेत सबसे बाद में होने चाहिए।
  • दो बकरी आवासों के बीच में कम से कम 8 मीटर का अन्तर रखना चाहिए ताकि हवा के प्रवाह में कोई बाधा न हो।
  • बकरी प्रक्षेत्र में पेड़ पौधे, झाड़ियाँ आदि लगाना चाहिए, जिससे अन्दर आने वाली हवा ठण्डी हो एवं उनके चारा की कभी भी पूरी सके।
  • दिशा बकरी का आवास हमारे देश की जलवायु के अनुसार पूर्व पश्चिम दिशा में होनी चाहिए ताकि जाड़ों में धूप अन्दर तक आ सके एवं गर्मी में धूप को आसानी से अन्दर जाने से रोका जा सके।
  • छत बकरियों के आवास में एक जैसी जगह जो उपर से ढ़की होनी चाहिए, अधिकांशतः छतपर की छतें बनाई जाती है परन्तु आजकल एसबेस्टस या लोहे की चदरों वाली छत गर्मी तथा ठण्ड रोकने में ज्यादा सहायक है वषर्ते की उसके उपर भुसे और तारकोल को मिलाकर लेप कर दिया जाय।
  • फर्श- बकरी आवास का फर्श सामान्यतः मिट्टी की होती है एवं वर्षा ऋतु के पहले मिट्टी को बदल देना उचित है।
  • बाड़ा- बकरियों का बाड़ा उनके छत वाले आवास से सटा हुआ सामने होना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि बाड़े का क्षेत्रफल छत वाली जगह से दुगनी होनी चाहिए।

स्थाई बकरी घर एवं बकरियों को जगह की आवश्यकता-
  • स्थाई बकरी घर पक्की ईंट/लकड़ी से बनायी जाती है। आमतौर पर दो बकरियों के लिए 4 फीट चौड़ी और 3.5 फीट लम्बी जगह काफी होती है।
  • सामान्यतः बकरी आवासों की औसतन लम्बाई 60 फीट (20 मीटर), चौड़ाई 20 फीट (6 मीटर) एवं किनारे पर ऊँचाई 2.7 मीटर रखी जाती है।
  • बकरियों को आवास में छत से ढ़की जगह एवं खुली दोनों जगहों की आवश्यकता होती है। ढ़की जगह में इन्हें धूप, ओस एवं वर्षा से बचाया जाता है एवं खुली जगह जिसे बाड़ा कहा जाता है, वहाँ आराम तथा व्यायाम किया जाता है। पूरे आवस को 1/3 ढ़की जगह तथा 2/3 हिस्सा बाड़े के रूप में रखा जाता है। बकरियों के उम्र के अनुसार निम्नलिखित जगह की जरूरत होती है-

क्र.

डम्र

ढ़की जगह की आवश्यकता(वर्ग मीमें)

बाड़े की आवश्यकता(वर्ग मी. में)

1

3 महीने तक के बच्चे

0.2 - 0.3

0.4-0.6

2

3-9 महीने तक के बच्चे

0.6 - 0.75

1.2-1.5

3

9-12 महीने तक के बच्चे

0.75 - 1.0

1.5-2.0

4

व्यस्क बकरी

1.0

2.0

5

व्यस्क बकरा

1.5 - 2.0

3.0-4.0

6

गाभीन एवं दूध देने वाली बकरियाँ

1.5-  2.0

3.0


  • स्थाई बकरी घर बनाने वालों को प्रजनन के लिए बकरा भी रखना चाहिए।
  • घर की सफाई- घर चाहे स्थायी हो या अस्थायी, प्रतिदिन सफाई आवश्यक है। बकरी घर की नालियों एवं सड़कों की सफाई भी अच्छी तरह होनी चाहिए। समय पर डेटोल, सेवलौन एवं फिनाईल से आवास को रोगाणुनाशित करना चाहिए।
  • उपकरण- बकरी व्यवसाय के सफल्ता की कुंजी बकरी को दिये जाने वाले दाने भूसे, एवं चाने की नुकसान उन्हें खिलाते वक्त कम से कम हो। बकरी के रख रखाव में ऐसे उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए जिससे दाने चारे का नुकसान कम हो तथा उसमें पेशाब अथवा मैंगनी जाने की सम्भावना नहीं हो। कुछ उपकरण जैसे षटकोणीय दाना चारा उपकरण, आयताकार दाना-चारा उपकरण आदि प्रयोग में लाना चाहिए। 3 महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए लटकने वाले खाने के उपकरण प्रयोग में लाने चाहिए।

आहारीय व्यवस्था
ग्रामीण क्षेत्रों में वर्त्तमान आहार प्रणाली के अन्तर्गत बकरियों को उपलब्ध वनस्पतियों जैसे विभिन्न प्रकार की घास, फलीदार चारे, पौधे, झाड़ियाँ, वृक्षों की पत्तियाँ आदि एवं अवशेष कृषि उत्पाद आहार के रूप में उपलब्ध है। आमतौर पर गांवों की बकरियाँ चराई पर ही निर्भर करती है। बकरियों से अच्छी पैदावार हासिल करने हेतू परम्परागत आहार के अलावा गेहूँ की भूसी, दालों का चूरा या चना और मक्का आदि चीजों केा मिलाकर दाना तैयार करना चाहिए। प्रतिदिन दाना मेें एक चुटकी नमक भी मिला देना दाहिए।

चारे के साधन
बकरी मुख्य रूप से चुनकर खाने वाला पशु है। बकरियाँ ब्राउजिंग करती है अर्थात जुलायलम तनों, कोपलें एवं झाड़ियों और वृक्षों की पत्तियों को खाती है। हमारे यहाँ वृक्षों पत्तियाँ जैसे पीपल, कठहल, सिरिस, आम, पाकर, शहतूत एवं बरगद की पत्तियाँ बकरीपालन में उपयोगी होती है।
    प्राकृतिक एवं उन्नत चारागाहों में पाई जाने वाली घासे जैसे पैरा घास, अंजन घास, रोड़स घास, धबलू घास, गिनी घास, दीनानाथ घास,सूडान घास एवं स्टाइलो घास बकरी पालन हेतू बहुउपयोगी है।


बकरियों में पोषण प्रबन्धन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैः-
  • बकरियों के खान पान का समय निश्चित कर लेना चाहिए।
  • सूखा चारा के साथ साथ हरा चारा भी देना चाहिए।
  • बच्चों को अत्याधिक मात्रा में दाना नहीं खिलाना चाहिए।
  • बकरी एक बार में जितना खाना खा सकती है उतना ही चारा देना चाहिए। अतः आहार की बरबादी से बचाने हेतु उसे थोड़ा-थोड़ा आहार कई बार देना चाहिए।
  • किसानों को आहार अवयव अधिक उपलब्धता के समय खरीद लेना चाहिए क्योक इस समय सस्ते होते हैं।
  • आहारों का भण्डारण 12 प्रतिशत नमी से कम पर करना चाहिए ताकि इसे फफूंदी के प्रकोप से बचाया जा सके।
  • बकरियों को भींगी हुई घास या वर्षा ऋतु की नई घास अच्छी तरह साफ करने के बाद ही खिलाना चाहिए।
  • बकरी को दिन में 3 बार स्वच्छ जल पिलाना चाहिए।