डॉ. स्वाति बिसेन
(वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केन्द्र रायपुर) 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

फसलों में बीजों द्वारा विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैलती हैं और इन रोगों का संधारण भी बीजों द्वारा होता हैं। इसमें बीज सड़न, पौध गलन, कण्डुआ, गेरूआ एवं पर्ण धब्बा आदि प्रमुख हैं। विभिन्न फसलों में यह रोग कई प्रकार के रोग कारकों जैसे- फफूंदियों, जीवाणुओं आदि द्वारा होते हैं तथा कुछ परजीवी बीजों के अंदर रहते हैं तथा कुछ बीजों के बाहर। जो परजीवी बीजों के अंदर होते हैं अन्तः बीजोढ़ कहलाते हैं तथा जो बीजों के बाहरी सतह पर चिपके रहते हैं वे बाह्य बीजोढ़ कहलाते हैं। फसल में मौसम में जब रोगकारक (पैथोजन) के बीजाणुओं से ग्रसित रोगी बीजों की खेत में बुवाई कर दी जाती हैं तो उपस्थित रोग के रोगकारक बीज के अंदर (भ्रूण) और बाहर की सतह पर अनुकूल मौसम मिलने पर सक्रिय होकर बीज में सड़न पैदा करके उगने से पहले ही नष्ट कर देते हैं और यदि किसी कारण से सवंमित बीज से पौधा उगकर जमीन से ऊपर आ जाता हैं तो रोगकारक पौधे के नवोदभिदों को सवंमित करके उसे नष्ट कर देते हैं। फसलों के बीजों में उपस्थित रोगकारकोंको ऐसी विधि से अलग करके नष्ट करना जिससे कि रोगकारक नष्ट हो जाए किन्तु अंकुरण क्षमता पर बुरा असर न पड़े बीजोपचार कहलाता हैं। बीजोपचार के प्रकार-

(क) भौतिक बीजोपचार
(ख) रसायनिक बीजोपचार
(स) सूखा बीजोपचार
(घ) गीला बीजोपचार

(क) भौतिक बीजोपचार

1. छानकर
इस विधि में बीज को बोने से पहले उसमें उपस्थित धूल, कंकड़ आदि को छलनी की सहायता से अलग करके अच्छी तरह साफकर दिया जाता हैं। इस दौरान बीजों की ऊपरी सतह पर चिपके हुए रोग कारकों (पैथोजन्स) की अधिकांश संख्या बीजों से अलग होकर नष्ट हो जाती हैं, किन्तु इस विधि द्वारा बीजों के अंदर पायें जाने वाले कारकों (पैथेजन्स) को नष्ट नहीं किया जा सकता हैं।

2. जलोपचार
इस विधि में सबसे पहले 20 प्रतिशत् नमक (2 किलोग्राम खाने वाला नमक और 10 लीटर पानी) का घोल तैयार किया जाता हैं। बीज को इस घोल में आधे घंटे के लिए डाल दिया जाता हैं हल्के, कटे घुने बीजों के दाने, घोल की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं और धूल, मिट्टी या कंकड़ बर्तन की तली में बैठ जाते हैं इसके अलावा बीजों की सतह पर चिपके हुए रोगकारक (पैथोजन्स की अलक होकर घोल की ऊपरी सतह पर एकत्रित हो जाते हैं। घोल की ऊपरी सतह पर एकत्रित हुई सामग्री (धुल, मिट्टी या कंकड़ और रोगकारक) आदि को अलग कर लिया जाता हैं। स्वस्थ एवं साफबीज को घोल से निकालकर फैलाकर सुखा लिया जाता हैं। यह उपचार बीज बोने के 24 से 8 घंटे पूर्व किया जाता हैं ताकि बीज अच्छी तरह से सूख जायें।

3. सूर्योपचार
इस विधि के अंतर्गत भी 20 प्रतिशत् नमक का घोल तैयार किया जाता हैं और इसमें बीज हो 10-12 घंटे तक घोल में डुबोकर रखा जाता हैं फिर इसे धूप में सुखाया जाता हैं। रोग कारकों से प्रभावित बीज को करीब 12 घंटे तक घोल में रखने से रोगकारक सक्रिय हो जाते हैं और अचानक तेज धूप मिलने से उनकी अधिकांश संख्या नष्ट हो जाती हैं।

4. गर्म जल द्वारा बीजोपचार
इस विधि का प्रयोग अधिकत्तर जीवाणु एवं विषाणुओं की रोकथाम के लिए किया जाता है। इस विधि में बीज या बीज के रूप में प्रयोग होने वाले भागों को 53-54 डिग्री सेल्सियस तापमान में 15 मिनट तक रखा जाता है जिससे रोगजनक नष्ट हो जाते है, जबकि बीज अंकुरण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता।

5. गर्म वायु द्वारा बीजोपचार
गर्म वायु के प्रयोग द्वारा भी बीजों को उपचारित किया जा सकता है, जैसे टमाटर के बीजों को 6 घंटे तक 29-37 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सुखाया जाये तो फाइटोपथोरा इन्फेस्टेंस का असर खत्म हो जाता है। इसी प्रकार यदि टमाटर के बीजों को डिग्री सेल्सियस गर्म वायु में 30 मिनट तक रखा जाये तो मोजेक रोग का प्रकोप कम होता हैं।

6. जैविक बीजोपचार
यह कवकीय या जीवाणुवीय उत्पत्ति के होते हैं, जोकि पीथियम, राईजोक्टोनिया, फाइटोपथोर स्केलेरोशियम, मैक्रोफोमिना इत्यादि से होने वाली विभिन्न बीमारियों, जैसे- जड़ गलन, आर्द्रगलन, उकठा, बीज सड़न, अंगमारी आदि को नियंत्रित करते हैं। जैव नियंत्रण, हानिकारक कवकों के लिये या तो स्थान, पोषक पदार्थ, जल, हवा की कमी कर देते हैं या फिर रोगजनक के शरीर से चिपककर उसकी बाहरी परत को उपयोग कर लेते हैं, जिससे रोगकारक जीव नष्ट हो जाता हैं। ट्राइकोडर्मा प्रजाति, वैसिलय सबटिलिस, स्यूडोमोनास प्रजाति, ग्लोमस प्रजाति प्रमुख जैव नियंत्रण हैं, जिनकी 4-5 ग्राम मात्रा बीजोपचार के लिए पर्याप्त हैं।

7. पौध (बिचड़ा) उपचारण- 
पौध को खेतों में लगाने से पहले उसके जड़ को जैव नियंत्रक के घोल में उपचारित करते हैं, इसके लिए पौध को पौधशाला से उखाड़कर उसके जड़ को पानी से अच्छी तरह साफ कर लेते हैं फिर इसको जैव नियंत्रक घोल में आधा घंटे के लिए रख देते हैं। पौध उपचारण मुख्यतः धान, टमाटर, बैंगन, गोभी, मिर्च, शिमला मिर्च इत्यादि के लिए करते हैं।

(ख) रसायनिक बीजोपचार
इसके अंतर्गत बीजों को दो प्रकार की रसायनिक दवाएं मिलाकर उपचारित किया जाता हैं।

1. दैहिक रसायनिक दवाएं
इस समूह में बाविस्टीन, बेनलेट, बिटावैक्स आदि आते हैं। इन दवाओं के उपचार से बीजों की सतह के ऊपर और अंदर (भ्रूण) पाये जाने वाले दोनों प्रकार के रोगकारकों का नियंत्रण हो जाता हैं।

2. अदैहिक रसायनिक दवाएं
इस समूह में थायरम, डायथेन एम-45, इन दवाओं के ऊपर से बीजों की ऊपरी सतह पर पाये जाने वाले रोग कारकों का नियंत्रण किया जाता हैं।

(स) सूखा बीजोपचार
इस विधि में बताई गई बीज की मात्रा के अनुसार दवा की मात्रा (पाउडर के रूप में) मिलाई जाती हैं। बीजों में अच्छी तरह से दवा मिलाने के लिये सीड ट्रिटींग ड्रम नामक एक विशेष प्रकार का यंत्र उपयोग में लाया जाता हैं। इस यंत्र में बीजों व दवा को एक साथ भर दिया जाता हैं। भरने के बाद इस यंत्र को करीब 15-20 मिनिट तक अच्छी प्रकार मिल जाती हैं। यदि यह यंत्र न मिले सके तो फिर किसी छोटे मुंह वाले बर्तन, जिसमें दवा व बीज आसानी से जा सके या पॉलीथिन की बोरी में दवा व बीजों को भरकर उसके मुंह को अच्छी तरह से बांधकर करीब 15 से 20 मिनिट तक हिलाते रहे इससे दवा व बीज अच्छी तरह मिल जाएंगे, इसके पश्चात् यह उपचारित बीज बोने योग्य हो जाता हैं।

(घ) गीला बीजोपचार
इस विधि के अंतर्गत बताई गई दवा की मात्रा तौलकर नपे हुए पानी की मात्रा में मिलाकर घोल तैयार कर लेते हैं। दवा का घोल हमेशा मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में बनाना चाहिए जब घोल बनकर तैयार हो जायें तो उसमें आवश्यक बीजों की मात्रा को 5-30 मिनिटों तक डुबोकर उपचारित किया जाता हैं। इस विधि से विशेषकर आलू एवं गन्ना  के बीजों को अच्छी तरह से छाया में सुखाने के बाद ही बोना चाहियें।

बीजोपचार के उद्देश्य
  • बीजों में उपस्थित कवकों एवं जीवाणुओं को नष्ट करना।
  • बीजों के अंकुरण के समय मृदा मंे रहने वाले अनेक मृदोढ़ रोगजनकों से रक्षा करना।

बीजोपचार के लाभ
बीजों को उपचारित करके बोने से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
  • बीजों के खराब होने की संभावना नहीं रहती हैं।
  • बीजों पर मौजूद रोगकारक नष्ट हो जाते हैं।
  • बीजों के जमाव की क्षमता बढ़ जाती हैं।
  • बीजों द्वारा रोगों के फैलने की संभावना समाप्त हो जाती हैं।
  • भूमि में पाये जाने वाले रोगकारक बीजों को नष्ट नहीं कर पाते हैं।
  • उपचारित बीजों से बना पौधा निरोगी होता हैं।
  • उपचारित बीजों से तैयार फसल की उपज अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।
  • आमदनी के अनुपात में खर्च बहुत ही कम होता हैं।

बीजोपचार से सावधानियां
दवाइयों से बीजों का उपचार करते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए-
  • प्रत्येक उपचार को बतायें गये तरीके से ही करें।
  • दवाइयों को विश्वसनीय स्थानों से खरीदें।
  • दवाइयों के सील बंद डिब्बे ही खरीदें।
  • बीजों को बोने से अधिक से अधिक 48 घंटे पहले ही उपचारित करें।
  • उपचारित बीजों की शीघ्र बुवाई करें।
  • उपचारित बीजों को अन्य बीजों एवं खाने में अनाज से अलग रखें।