द्रोणक कुमार साहू (पी.एच.डी. स्कॉलर, कृषि अर्थशास्त्र)
सौरभ टोप्पो (पी.एच.डी. स्कॉलर, सब्जी विज्ञान विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

बैंगन एक छोटा झाड़ीनुमा पौधा होता हैं जिसके फल सब्जियों के रूप में अत्यंत लोकप्रिय एवं उपयोगी हैं। बैंगन से अनेक प्रकार की सब्जियों के साथ-साथ औषधियां बनाने में उपयोग किया जाता हैं। बैंगन का वानस्पतिक नाम सोलेनम मैंलोंजिना हैं और यह सोलेनेसी कुल का सदस्य हैं। इसे पूरे भारतवर्ष में उगाया जा सकता हैं तथा इसकी खेती वर्ष पर्यंत की जाती हैं। यह सभी प्रकार की जलवायु में आसानी से उगाई जाने वाली सब्जी फसल हैं। बैंगन की खेती हमें न केवल प्रति इकाई क्षेत्रफल अधिक उपज एवं आय प्रदान करती हैं, अपितु यह हमें अच्छे रोजगार के अवसर भी प्रदान करती हैं।
    बैंगन एक बहुपयोगी सब्जी हैं जिसमें प्रचुर मात्रा में खनिज लवण जैसे मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, पोटेशियम एवं कॉपर आदि पाये जाते हैं तथा इसका उपयोग सब्जी के साथ-साथ औषधि के रूप में भी किया जाता हैं। औषधी के रूप में मुख्यतः इसका उपयोग जैसे उदर रोग, मधुमेह, अलसर एवं हृदयरोग नियंत्रण आदि में किया जाता हैं।

बैंगन की उन्न्तशील किस्में
बैंगन की किस्मों का चयन एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया हैं क्योंकि हम यदि अच्छी किस्मों का चुनाव करेंगें तभी हमें अच्छी उपज एवं आय प्राप्त होगी। बैंगन की उन्न्ातशील किस्मों में पंत ऋतुराज, नीलम, पूसा क्रांती, पूसा सम्राट, पूसा अनुपम, अर्का नवनीत आदि मुख्य हैं। छ.ग. राज्य में मुख्यतः पंजाब सदाबहार, के.एस.-331, पी.पी.एल., पी.एच.-5, पी.एच.-6, के.एस.-224, आई.व्ही.बी.एल.-9, ए.आर.बी.एच.-542 आदि किस्मे उगाये जाते हैं।

बुवाई का समय एवं बीज दर
सामान्यतयः बैंगन की बुवाई अक्टूबर-नवंबर, जनवरी-फरवरी एवं मई-जून में की जाती हैं। बैंगन का बीज दर 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर होता हैं, पौध अंतरण कतार से कतार 90 से.मी. एवं पौध से पौध 60 से.मी. रखना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक
भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने हेतु प्रारंभिक अवस्था में हरी खाद का उपयोग करना चाहिए अथवा खेत की तैयारी करते समय फसल अवशेष एवं अन्य पत्ती वाली फसलों को अच्छे से गलन हेतु छोड़ दें। बैंगन की अच्छी उपज लेने हेतु अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर का खाद 20-25 टन, नत्रजन 90 कि.ग्रा., पोटाश 60 कि.ग्रा. एवं फास्फोरस 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुसार उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा बैंगन की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती हैं अतः इसमें जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. व कॉपर सल्फेट 12.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
प्रारंभिक अवस्था में 1-2 बार गुड़ाई एवं निंदाई करनी चाहिए। बैंगन फसल में सामान्यतः 3-4 गुड़ाई एवं निंदाई की आवश्यकता होती हैं। यदि खरपतवारों का प्रकोप अधिक होने की स्थिति में रसायनिक खरपतवारनाशी रसायन जैसे लोसो एवं फ्युक्लोरेलिन का 1-1.5 कि.ग्रा. मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए।

सिंचाई
फसल की आवश्यकता व वातावरणीय नमी तथा तापक्रम के अनुरूप 5-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई की सर्वाधिक आवश्यकता फूल एवं फल लगते समय होती हैं अतः इस समय सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

जल निकास
बैंगन की जड़ें जल भराव के प्रति अति सहिष्णु होती हैं तथा जल भराव की स्थिति में फसल में अनेक प्रकार के बैक्टीरीया एवं कवकों का आक्रमण हो जाते हैं अतः खेत में जल निकास का उत्तम व्यवस्था करनी चाहिए विशेषकर वर्षा ऋतु में इसका अधिक ध्यान रखना चाहिए।

कीट प्रबंधन
बैंगन के फसलों में कीट व्याधियों का आक्रमण अधिक होता हैं यदि इनका सही समय में नियंत्रण व रोकथाम न किया जाये तो इसके कारण किसानों को अधिक आर्थिक क्षति उठानी पड़ सकती हैं। बैंगन में अनेक प्रकार के कीट लगते हैं किन्तु कुछ कीटों के द्वारा फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता हैं जैसे कि हरा तैला, फल एवं तना छेदक, सफेद मक्खी व पत्ती खाने वाले कीड़ें आदि, जिसका नियंत्रण निम्न प्रकार से करना चाहिए-

1. हरा तैला या तैला
यह तैला कीट पत्तियों की नीचली सतह पर रहता हैं तथा हरें रंग का होता हैं जो पत्तियों का रस चुस लेते हैं जिससे पत्तियाँ किनारों से मुड़ जाती हैं। इसके कीट के वयस्क तथा शिशु दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।

नियंत्रण एवं रोकथाम
(1) इस कीट का प्रकोप अत्यधिक होने पर राख तथा केरोसिन के मिश्रण का भुरकाव 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार करना चाहिए।
(2) इसके अलावा कीटनाशी साइपरमैथेरिन रसायन का प्रयोग करना चाहिए।

2. फल एवं तना छेदक
यह बैंगन फसल के मुख्य शत्रु कीट हैं जिसकी इल्ली कोमल फल एवं तना में छेद कर प्रवेश कर जाती हैं। इसके उपस्थिति में तना झुक जाता हैं तथा फल सड़ने के साथ-साथ गिरनें लगते हैं।

नियंत्रण एवं रोकथाम
(1) सर्वप्रथम इससे प्रभावित तना एवं फल को तोड़कर जमीन में अधिक गहराई पर गड़ा देना चाहिए।
(2) फिरेमोन टेऊप का प्रयोग करना चाहिए तथा नीम बीज का प्रयोग करना चाहिए।
(3) अत्याधिक प्रभाव होने पर 0.25 प्रतिशत कार्बनिक रसायनिक कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए।

3. सफेद मक्खी व पत्ती खाने वाले कीट
बैंगन की फसल में इसे आसानी से देखा जा सकता हैं, ये कीट फल, फूल व कलिकाओं को अत्याधिक नुकसान पहुंचाते हैं। यदि इसका सही समय पर नियंत्रण न किया जाये तो उत्पादन में भारी कमी आती हैं तथा फल अच्छे दिखाई नहीं देते हैं।

नियंत्रण एवं रोकथाम
(1) इसके जैविक नियंत्रण के लिए इनके प्राकृतिक शत्रु कीट क्राइसोपर्ला के अंडों का प्रयोग करना चाहिए जो कि इन नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को नष्ट कर देता हैं।
(2) अत्याधिक प्रकोप होने की स्थिति में 0.02 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स या 0.03 प्रतिशत केलथेन या मिथाइल पैराथियान का प्रयोग करें। बैंगन में उगने वाले प्रमुख रोग एवं उनके रोकथाम बैंगन के फसल में कीटों के अलावा कुछ भंयकर रोग भी लगती हैं जो कि इसके उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव डालता हैं। बैंगन में मुख्य रूप से पद गलन (डैंपिग ऑफ), मोजैक एवं झुलसा रोग प्रमुख हैं, जिसके कारण अधिक हानि होती हैं। इन रोगों का रोकथाम निम्न तरीकों से करनी चाहिए-

1. पद गलन (डैंपिग ऑफ)
यह पौध शैय्या में होने वाला अत्यंत हानिकारक रोग हैं विशेषकर वर्षा ऋतु में सबसे ज्यादा प्रभाव होता हैं, जिससे पौध सड़कर झुक जाती हैं।

नियंत्रण
(1) इसके नियंत्रण हेतु बीजों को बुवाई से पूर्व थायरम या कैप्टान 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
(2) पौध शैय्या में जल निकास की उत्तम व्यवस्था करें तथा कैप्टान या थायरम से पौध शैय्या की डेंऊचिंग करें।

2. मोजैक
इस रोग में पत्तियों में पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पौधों की वृद्धि एवं विकास रूक जाता हैं।

नियंत्रण
(1) केवल अच्छी गुणवत्ता एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों को लगायें।
(2) रोगर 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

3. झुलसा रोग
इस रोग में पत्तियां एवं तने में गहरे-भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।

नियंत्रण
प्रभावित पौधों को जड़ से उखाड़कर जला दें तथा डायथेन जेड-78, 0.02 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर 7-10 दिनों के अंतराल पर उपयोग करें।

कब और कैसे करें फलों की तुड़ाई
बैंगन फलों में जब उत्तम रंग एवं आकार दिखाई दे तब तुड़ाई करनी चाहिए। अधिक छोटे एवं अध पके फलों का स्वाद अच्छा नहीं होता हैं अतः तुड़ाई के समय इसका ध्यान रखना चाहिए। अधिक आकर्षक रंग, आकार एवं ताजा फलों की बाजार में मांग अच्छी होती हैं। फलों को दोपहर के समय तोड़ना चाहिए तथा ताजा रखने के लिए जल छिड़काव करना चाहिए।

उपज
बैंगन फसल की उपज उसकी किस्मों, वातावरण एवं समयावधी पर निर्भर करती हैं। जिसमें अगंेती फसल सामान्यतः 200-225 क्विं. प्रति हेक्टेयर तथा लंबे समय वाली फसल से 300-350 क्विं. प्रति हेक्टेयर उत्पादन तक प्राप्त किया जा सकता हैं। बैंगन का उत्पादन किस्मों एवं भूमि की उर्वरा शक्ति के आधार पर कम या अधिक हो सकती हैं।