डॉ. अभय बिसेन, सहायक प्राध्यापक (उद्यानिकी) 
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कटघोरा, कोरबा (छ.ग.)

पत्तागोभी का शरदकालीन सब्जियों में प्रमुख स्थान हैं यह एक उपयोगी पत्तेदार सब्जी हैं। इसका प्रयोग सब्जी, सलाद, अचार आदि के रूप में किया जाता हैं। यह रबी मौसम की एक महत्वपूर्ण सब्जी हैं। इसका सेवन पाचन शक्ति में वृद्धि तथा मधुमेह रोगियों को लाभ पहुंचाता हैं। यह पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती हैं। इसके पत्तों में प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ, विटामिन-’ए’, ’बी1’, ’बी2’ तथा ’सी’ पर्याप्त मात्रा में होते हैं।

जलवायु
पत्तागोभी ठंडी एवं नम जलवायु की फसल हैं इसमें फूलगोभी की तुलना में अधिक पाला एवं निम्न तापक्रम सहने की विशेष क्षमता होती हैं बंद गोभी के बीज का अंकुरण के लिए 27-29 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता हैं।

उन्न्त किस्में

गोल्डन एकरः- इस किस्म के पौधे छोटे, शीर्ष गोल, ठोस तथा मध्यम आकार के होते हैं। शीर्ष के चारों ओर तरफ कुछ प्याले के आकार की पत्तियां होती हैं प्रत्येक शीर्ष का औसत भार 700-1000 ग्राम होता हैं जो रोपण के 60-75 दिन पश्चात् तैयार हो जाते हैं तथा इससे 200-240 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज प्राप्त होती हैं।

प्राइड ऑफ इंडियाः- इस किस्म का शीर्ष मध्यम गोल तथा ठोस होते हैं। शीर्ष का औसत वनज 1-1.5 किलोग्राम तथा यह रोपण के 70 से 80 दिन पश्चात् तैयार हो जाता हैं। इससे 200 से 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती हैं।

कोपनहेगन मार्केटः- इस किस्म का शीर्ष बड़ा और ठोस होता हैं शीर्ष के चारों तरफ हल्के रंग की कुछ पत्तियां होती हैं। इसका तना छोटा होता हैं तथा इसके शीर्ष का औसत वजन 2.5 से 3.0 किलोग्राम होता हैं।

पूसा मुक्ताः- इस किस्म का शीर्ष का गोल तथा ऊपर से थोड़ा चपटा होता हैं इसके शीर्ष का औसत वजन 1.5 से 2.0 किलोग्राम होता हैं। यह किस्म 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं। यह किस्म काला विगलन की समस्या से रहित हैं।

पूसा सिंथेटिकः- इस किस्म के शीर्ष का फैलाव और आकार मध्यम होता हैं। यह किस्म 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती हैं।

पूसा ड्रम हेडः- इस किस्म का शीर्ष बड़ा, ठोस एवं ड्रम के आकार का होता हैं। इस किस्म के शीर्ष का औसत वजन 3 से 5 किलोग्राम तथा औसत उपज 495 से 540 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं। यह ब्लैक लेग बीमारी से कम प्रभावित होती हैं।

सितंबर अर्लीः- इस किस्म के पौधे सख्त, अच्छी बढ़वार वाले तथा शीर्ष चपटे व लम्बोत्तर एवं सख्त होते हैं प्रत्येक शीर्ष का औसत वजन 4 से 6 किलोग्राम तक होता हैं। इसके शीर्ष रोपण के 105 से 110 दिन बाद तैयार हो जाते हैं। यह किस्म में 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती हैं।

अर्ली ड्रम हेडः- इसके किस्म के पौधे छोटे व सीधे तने वाले तथा सीमित फैलाव के होते हैं इस किस्म के शीर्ष चपटे और थोड़ा बड़े 2 से 3 किलोग्राम के होते हैं इस किस्म से 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत उपज प्राप्त होती हैं।

लेट लार्ज ड्रम हेडः- यह किस्म देर से तैयार होती हैं इस किस्म के पौधे छोटे एवं सीमित फैलाव के होते हैं। इस किस्म का शीर्ष चपटे, एक समान बड़े ड्रम के आकार के सख्त होते हैं जो रोपण के 100 से 105 दिन पश्चात् तैयार हो जाते हैं।

भूमि एवं उसकी तैयारी
बंद गोभी की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं किन्तु अगेती फसल लेने के लिए रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती हैं जबकि पछेती और अधिक उपज लेने के लिए भारी भूमि जैसे दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं। जिस भूमि का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 हो वह भूमि इसकी खेेती के लिए उपयुक्त होती हैं। पौधरोपण से पूर्व मिट्टी पलट हल से खेत की जुताई करे देशी हल से 2-3 जुताई कर पाटा लगा कर मिट्टी भुरभुरी कर देते हैं और बाद में छोटी क्यारियां बनाकर पौध रोपण करते हैं।

बीज की मात्रा
पत्तागोभी की बीज की मात्रा उसके बुवाई के समय पर निर्भर करती हैं। अगेती किस्मों के लिए 500 ग्राम और पछेती किस्मों के लिए 300 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता हैं।

बुवाई का समय एवं रोपण
बीज की बुवाई का समय मैदानी क्षेत्रों में अगेती फसल के लिए अगस्त-सितंबर में तथा पछेती फसल के लिए सितंबर-अक्टूबर में होता हैं पत्तागोभी की पौध बुवाई के 4 से 6 सप्ताह पश्चात् प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो जाती हैं। अगेती किस्मों में पौधों की पंक्ति से पंक्ति तथा पौधों से पौधों की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पछेती किस्मों में पंक्ति से पंक्ति दूरी 60 से 70 सेंटीमीटर तथा पौधों से पौधों की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर रखते हैं।

खाद एवं उर्वरक
पत्तागोभी भूमि से पोषक तत्वों को अधिक लेती हैं इसकी अधिक पैदावार के लिए भूमि का काफी उपजाऊ होना अनिवार्य हैं इसके लिए प्रति हे. भूमि में 250-300 क्विंटल गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद और 1 क्विंटल नीम की सड़ी पत्तियां या नीम की खली या नीम दाना पिसा हुआ चाहिए 7 रासायनिक खाद की दशा में 150 कि.ग्रा., नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 60 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती हैं। नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए शेष नत्रजन को दो बार बराबर भागों में बांटकर रोपण के 25 से 30 दिन एवं 50 से 60 दिन पश्चात् हल्की गुड़ाई करके टॉप ड्रेसिंग के रूप में पौधों को देना चाहिए।

सिंचाई
पत्तागोभी की फसल को लगातार नमी की आवश्यकता होती हैं, रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करे इसके बाद 7 से 10 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहें इस बात का ध्यान रखें कि फसल जब तैयार हो जाए तब अधिक गहरी सिंचाई न करें अन्यथा शीर्ष फटने का भय रहता हैं।

खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारो को नष्ट करने के लिए दो सिंचाइयों के मध्य हल्की निराई-गुड़ाई एवं आवश्यक अंतः क्रिया करते रहना चाहिए। गहरी निराई-गुड़ाई करने से पौधों की जड़ कटने का भय रहता हैं खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरोलीन 1 कि.ग्रा. सक्रिय अंश प्रति हेक्टेयर का प्रयोग रोपण के 1 दिन पूर्व करना चाहिए।



कीट रोग एवं उनकी रोकथाम

कैबेज मैगटः- यह जड़ों पर आक्रमण करता हैं जिसके कारण पौधे सूख जाते हैं। इसके लिए खेत में नीम की खाद का उपयोग करें।

डायमंड बैकमोथः- यह मोथ भूरे या कत्थई रंग के होते हैं जो 1 से.मी. लम्बे होते हैं इसके अंडे 0.5 मि.मी. व्यास के होते हैं इसकी सूंडी एक से.मी. लम्बी होती हैं जो पौधों की पत्तियों के किनारे को खाती हैं।

ग्रीन कैबेजवर्म/कैबेज लूपरः- ये दोनों पत्तियों को खाते हैं जिसके कारण पत्तियों की आकृति बिगड़ जाती हैं। इसकी रोकथाम (2-3) के लिए नीम काढ़ा को गोमूत्र के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर 5000 मि.ली. मिश्रण को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें या मैलाथियान, प्रोफेनोफोस या डाईक्लोरोवोस रसायन की 1-1.5 मि.ली. मात्रा प्रति ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

चैंपाः- यह कीट पत्तियों और पौधों के अन्य कोमल भागों का रस चूसता हैं जिसके कारण पत्तियां पिली पड़ जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा को गोमूत्र का मिश्रण तैयार कर 500 मि.ली. मिश्रण को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें या रसायनों जैसे डाईमेथोएट 30 ई.सी. की 2 मि.ली. मात्रा प्रति ली. पानी या सायंटैनिलिप्रोल 10 OD की 240 मि.ली. मात्रा प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

पत्तागोभी की तितलीः- यह कीट पोधे की पत्तियों को काटकर छेद कर देता हैं तथा नर्म तनों व खाने वाले भागों की पूर्ण रूप से नष्ट कर देता हैं इस कीट की रोकथाम के लिए स्पाइनोसेड 45 एस.सी. की 3 मि.ली. मात्रा को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर या मेलाथियान 50 ई.सी. की 1.5 मि.ली. मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर 15 से 18 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए।

ब्लैक लैग/काली मेखलाः- यह रोग फोमा लिंगम नामक फफूंदी के कारण होता हैं। यह रोग नमी वाले क्षेत्रों में लगता हैं यह बीज जनित रोग हैं रोग का आक्रमण तने के आधार एवं जड़ पर होता हैं जिससे तना आधार से मुरझाने लगता हैं और मर जाता हैं। बीज बुवाई से पूर्व 30 मिनट तक 50 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए। बीज में रोग का फैलाव रोकने के लिए बीज के लिए खड़ी फसल में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत् का छिड़काव करना चाहिए।

पत्तागोभी का पीला रोगः- यह कवक जनित रोग हैं इसमें कवक जड़ों में प्रवेश कर पूरे पौधे में फैल जाते हैं। पौधरोपण के 2 से 3 सप्ताह बाद ही रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखने लगते हैं इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तथा पत्तियों और तनों में ऐठन आ जाती हें इसकी रोकथाम के लिए सवंमित भागों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए एवं बीजों को काब्रेडाजिम 50 WP कवकनाशी की 1-2 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करके ही बुवाई करना चाहिए।

काली पर्ण चित्ति रोग (अल्टरनरिया लीफ रोग):- यह रोग अल्टरनरिया नामक फफूंद की कुछ जातियों द्वारा होता हैं इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर छोटे-छोटे चित्तिया बन जाती हैं जो मिलकर गोलाकार विक्षत बनाती हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए रोगी फसल अवशेष को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए। बीजों को 30 मिनट तक 49 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले गर्म पानी से उपचारित करें।

कटाई
जब शीर्ष पूरे आकार के एवं ठोस हो जाएं तब इसकी कटाई करनी चाहिए। मैदानी क्षेत्र में इसकी कटाई मध्य दिसंबर से अप्रेल तक की जाती हैं। इसकी अगेती किस्में रोपाई के 60 से 80 दिन पश्चात् जब की पछेती किस्में 100 से 120 दिन पश्चात् तैयार हो जाती हैं।

उपज
इसकी उपज किस्म, भूमि और फसल की देखभाल पर निर्भर करती हैं अगेती और पछेती फसल से क्रमशः 200-250 क्विंटल और 300-350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल जाती हैं।