श्री प्रदीप कुमार साहू, सुश्री ऑचल नाग, (यंग प्रोफेशन-II)
सुश्री मनीषा ध्रुव, श्री मनीष कुमार वर्मा (वैज्ञानिक सस्य विज्ञान)
 श्री उत्तम कुमार दीवान (वैज्ञानिक कृषि मौसम विज्ञान)
कृषि विज्ञान केन्द्र नारायणपुर (छ.ग.)

गाजर एक महत्वपूर्ण जड़ वाली स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी हैं। इसकी खेती पूरे देश में की जाती हैं। इसकी जड़े, सब्जी, सलाद, अचार, मुरब्बा और हलवा आदि में प्रयोग होती हैं। अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती हैं। इसकी मुलायम पत्तियों का सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता हैं। इसमें औषधीय गुण पाये जाते हैं। इससे भूख बढ़ती हैं तथा यह गुर्दे के लिए लाभदायक हैं। इसमें विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में पायी जाती हैं।

जलवायु संबंधी आवश्यकताएं
गाजर ठण्डे मौसम की फसल हैं। गाजर के रंग और आकार पर तापक्रम का बहुत असर पड़ता हैं। अच्छे आकार व आकर्षक रंग के लिए तापमान 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त रहता हैं।

भूमि का चुनाव एवं तैयारी
गाजर की अच्छी पैदावार हेतु बलुई दोमट से दोमट भूमि, जिसका पी.एच. 6.5 के लगभग हो, उपयुक्त होती हैं। भूमि में जल निकास अच्छा होना अति आवश्यक हैं। खेत को बुवाई से पहले समतल करें व 2 से 3 गहरी जुताई करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाएंगे ताकि ढे़ले टूट जाएं। गोबर की खाद को भी खेत तैयार करते समय अच्छी तरह मिला दें।

उन्न्तशील किस्में
अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती हैं। गाजर के जड़ के बीच का कठोर भाग कम और गूदा अच्छा होना चाहिए। गाजर की किस्मों को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जा सकता हैं, जो इस प्रकार हैं, जैसे-

यूरोपियन किस्मेंः- इसकी जड़े सिलैंडरीकल, मध्यम लम्बी, पुंछनुमा सिरेवाली और गहरे संतरी रंग की होती हैं। इनकी औसत उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं। इन किस्मों को ठण्डे तापमान की आवश्यकता होती हैं। यह किस्में गर्मी सहन नहीं कर पाती हैं। इसकी प्रमुख किस्में नैन्टस, पूसा यमदागिनी, चैन्टने आदि हैं।

एशियाई किस्मेंः- यह किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती हैं, जो इस प्रकार हैं, जैसे- गाजर नं-29, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, चयन नं-223, पूसा रूधिर, पूसा आंसिता और पूसा यमदग्नि प्रमुख हैं। इनकी अगेती बुवाई अगस्त से सितम्बर में की जाती हैं। हालांकि इसकी बुवाई अक्टूबर तक की जा सकती हैं।

बुवाई का समय व बीज दर
एशियन किस्मों की बुवाई अगस्त से सितम्बर और यूरोपियन किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर तक करनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता हैं।

बुवाई की विधि
अच्छी पैदावार व जड़ों की गुणवत्ता के लिए बिजाई हल्की डोलियों पर करनी चाहिए। डोलियों के बीच का फासला 30 से 45 से.मी. व पौधों का परस्पर फासला 6 से 8 से.मी. होना चाहिए। डोलियों की चोटी पर 2 से 3 से.मी. गहरी नाली बनाकर बीज बोना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक
सामान्यतयः जमीन में लगभग 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर जुताई करते समय डालें। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर के खेत में डालें। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन लगभग 3 से 4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ा से दें।

सिंचाई प्रबंधन
गाजर में 5 से 6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती हैं। अगर खेत में बुवाई करते समय नमी कम हो तो पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। ध्यान रहे पानी की डोलियांे से ऊपर न जाए बल्कि 3/4 भाग तक ही रहें, बाद की सिंचाईयां मौसम व भूमि की नमी के अनुसार 15 से 20 दिन के अन्तर पर करें।

खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण हेतु 2 से 3 बार हाथ से निराई-गुड़ाई बुवाई के लगभग 4 सप्ताह बाद करके मिट्टी चढ़ा दें। यदि खेत में अधिक खरपतवार उगते हैं या रासायनिक खरपतवार नियंत्रण करना चाहते हैं, तो पेंडीमेथिलीन 30 ई.सी. 3 किलोग्राम को 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से 48 घंटे के अंदर समानांतर छिड़काव करें जिससे शुरू के 30 दिन तक खरपतवार नहीं उगेंगे।

पौध संरक्षण
गाजर में मुख्यतः एक बीमारी अल्टरनेरिया ब्लाइट जिसमें पत्तियों पर अनेक पीले भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनमें कभी-कभी धारियां भी साफ दिखाई देती हैं इसका अधिक प्रकोप होने पर पौधा झुलसा हुआ दिखाई देने लगता हैं।

नियंत्रण
इसके प्रभावी नियंत्रण हेतु फसल पर 10 से 12 दिन के अंतराल पर 0.2 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। इसके प्रयोग से फसल पर कीड़ों का प्रकोप बहुत कम होता हैं।

जड़ों की खुदाई
जड़ों की खुदाई करने की अवस्था किस्म पर निर्भर करती हैं। जड़ों की मुलायम अवस्था में खुदाई करनी चाहिए। प्रायः एशियन किस्मों की खुदाई 100 से 130 दिनों में तथा यूरोपियन किस्मों की खुदाई 60 से 70 दिनों में करनी चाहिए।

पैदावार
उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से गाजर की पैदावार और गुणवत्ता किस्म, बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, आदि पर निर्भर करती हैं। इसकी अगेती फसल अगस्त में बुवाई से औसतन लगभग 20 से 25, मध्यम फसल सितम्बर से अक्टूबर में बुवाई से 30 से 40 और देर वाली फसल नवम्बर में बुवाई से 28 से 32 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता हैं।

भंडारण
सामान्य दशा में गाजर को 3 से 4 दिन से अधिक भंडारित नहीं किया जा सकता हैं, परन्तु छिद्रित पॉलीथीन में रखकर इसे कम से कम लगभग 2 सप्ताह तक भंडारित किया जा सकता हैं, जबकि छिद्रित पॉलीथीन में पैक की हुई गाजर शीतगृह में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तापक्रम व 90 से 95 प्रतिशत आद्रता पर लम्बे समय (2 से 3 माह) तक आसानी से संरक्षित की जा सकती हैं।

बीज उत्पादन तकनीक
एशियन गाजर का बीज उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया जा सकता हैं। इसके लिए गाजर के बीज की बुवाई अगस्त से सितम्बर माह में करते हैं और अन्य शस्य क्रियाएं व्यावसायिक (उपरोक्त तकनीक) गाजर उत्पादन की तरह ही करते हैं। नवम्बर से दिसम्बर माह में डण्ठल (पत्तों) सहित इसकी जड़ों की खुदाई करते हैं और खुदाई के तुरन्त बाद जड़ व डण्ठल दोनों के 2 से 3 इंच भाग को छोड़कर अन्य हिस्से को काटकर अलग कर देते हैं, तत्पश्चात् इन्हें पूर्णतः तैयार खेत में 30 से 30 से.मी. के अन्तराल पर 60 से.मी. दूर की पंक्तियों में रोपाई कर देते हैं।
    रोपाई से पूर्व रोग व फटने की समस्या से ग्रसित, शाखायुक्त तथा ऐसे पौधे जिनमें असमय फूल दिखाई देने लगे को छांटकर अलग कर देना चाहिए। जड़ों की रोपाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। चूंकि गाजर एक पर-परागित फसल हैं, इसलिए गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन हेतु इसकी दो किस्मों के बीच कम से कम 800 से 1000 मीटर की दूरी रखना अत्यन्त आवश्यक हैं। अच्छे बीज उत्पादन हेतु प्रजनक या आधारीय या प्रमाणीकृत बीज को ही प्रयोग करना चाहिए तथा किस्म की पहचान, प्रमाणीकरण, आदि की जानकारी पूर्व में ही सुनिश्चित कर लेनी चाहिए।
    खेत को हमेशा खरपतवारों, कीटों तथा बीमारियों से मुक्त रखना चाहिए। गाजर के बीज मई माह के अन्त तक तैयार हो जाते हैं। पुष्पक्रम की कटाई सही अवस्था पर कर लेनी चाहिए अन्यथा देरी होन पर बीज झड़ने लगते हैं। मड़ाई के पूर्व और कटाई के तुरन्त बाद पुष्पकर्मों को 1 से 2 सप्ताह तक सुखा लेना चाहिए। अच्छी फसल से औसतन लगभग 1 से 2 टन प्रति हेक्टेयर बीज आसानी से प्राप्त किया जा सकता हैं।