अंजली पटेल एवं रोहित कुमार मिश्रा (सस्य विज्ञान विभाग), शुभम पाण्डेय (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़.
सुनिल गुप्ता (पुष्प विज्ञान विभाग)
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर, (म.प्र.)


करौंदा का वृक्ष, सदाबहार झाड़ीनुमा होता है, जो कि कैरिका वंश का पौधा है। यह वृक्ष झाड़ीनुमा व कांटेदार होने के कारण घेराव कार्य हेतु भी प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष का वितरण भारत के साथ- साथ नेपाल व अफगानिस्तान में भी है। करौंदा के पौधे की ऊंचाई 6-7 फीट तक का होता है। फूल सफेद रंग के होते हैं, जिसमें जूही के फूलों के समान गंध आती है। कच्चे फलों काटने पर दूध निकलता है व पकते समय इसके फल लालिमा लिए अण्डाकार बैंगनी व लाल रंग के होते हैं। इनके फलों में प्रायः चार बीज पाये जाते हैं।

पोषक मूल्य:-

प्रोटीन

1.1-2.25 प्रतिशत

विटामिन सी

1.6-17.9 (मिग्रा./100 ग्रा.)

आयरन खनिज

39.1 (मिग्रा./100 ग्रा.)

कैल्शियम

21 (मिग्रा./100 ग्रा.)

फास्फोरस

38 (मिग्रा./100 ग्रा.)


जलवायु व भूमि
पूरे भारत में करौंदा शुष्क, उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में आसानी से लगाया जा सकता है। यह बहुत ही सहिष्णु झाड़ी है। पड़ती भूमि के लिए करौंदा बहुत ही उपयुक्त पौधा है।

पादप प्रवर्धन एवं रोपाई
करौंदा का प्रवर्धन प्रायः बीज द्वारा किया जाता है। इनके पौधों में प्रसुप्ता नहीं पायी जाती है इसलिए पूर्ण पके हुए फलों से ताजा बीज अगस्त- सितंबर में निकालकर क्यारियों व पॉलिथीन की थैलियों में बुआई कर देते हैं। ये पौधे एक वर्ष में खेत में लगाने लायक हो जाते हैं। पौधे वर्षा ऋतु में तना कटिंग व गूंटी द्वारा भी तैयार किए जा सकते हैं। तैयार पौधों को बाड़ के लिए लगाने हेतु 1.5 मीटर व केवल फलों के उद्देश्य से लगाने हेतु 3 मीटर की दूरी रखते हैं। भूमि में 2*2*2 फीट का गहरा गढ्डा खोदकर उसको 10-15 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद से भर देना चाहिए। पौधे लगाने के तुरंत बाद पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी होती है।

करौंदा की किस्में:-
इनकी मुख्यतः दो प्रजाति होती है-
  • भारतीय प्रजाति - इसका वैज्ञानिक नाम कैरिसा कैरेंड्स है। इसकी उपज 6-7 किग्रा. प्रति झाड़ी होती है।
  • अफ्रीकन प्रजाति- इसका वैज्ञानिक नाम कैरिसा ग्रैंडिफ्लोरा है। इसकी उपज 3-4 किग्रा. प्रति झाड़ी होती है।पंत मनोहर, पंत सुदर्शन, पंत स्वर्ण, कोंकण बोल्ड प्रमुख करौंदा किस्में हैं।

खाद एवं उर्वरक
करौंदा के लिए विशेष पोषक तत्व की आवश्यकता नहीं होती है, पर अच्छी वृद्धि व विकास हेतु पौधे लगाते समय 20-25 ग्राम यूरिया प्रति पौधा गढ्ड़े में लगाने से पूर्व मिलाना लाभदायक होती है एवं प्रत्येक वर्ष 10-15 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद व 100 ग्राम यूरिया व 300 ग्राम सिंगल सूपर फास्फेट देना होता है।

सिंचाई
करौंदे में सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल पर गर्मी के महीने में करते हैं व सर्दी के समय सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, किन्तु पौधों को पाले से बचाने के लिए हल्की सिंचाई अवश्य किया सकता है।


तुड़ाई एवं उपज
करौंदे के बीज द्वारा तैयार किए गए पौधों में फलन प्रायः 4 से 5 वर्षों के बाद व गूंटी द्वारा तैयार पौधों में रोपाई के 2- 3 वर्ष बाद आना शुरु होती है। ये 100-110 दिन के बाद परिपक्व होते हैं। जुलाई से सितम्बर के बीच फल पक जाते हैं। सब्जी एवं चटनी के लिए कम विकसित एवं कच्चे फलों की तुड़ाई की जाती है। जेली बनाने हेतु अधपके फलों की तुड़ाई की जाती है। बाड़ में लगाए गए पौधो से लगभग 2-3 किग्रा. तथा फल के उद्देश्य से लगाए गए पौधों से 6-8 किग्रा. प्रति पौधों की उपज मिलती है।

करौंदा का विशिष्ट महत्व
  • इसके फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है।
  • यह भूखवर्धक का कार्य करता है।
  • दस्त समस्या का समाधान करता है।
  • इसकी पत्तियों के रस के सेवन से सूखी खांसी में आराम मिलता है।
  • मसूड़ों से खून निकलने की समस्या करौंदा के फल खाने से ठीक हो जाती है।
  • आयरन (लौह तत्व) की अधिकता के कारण एनिमिया (रक्त अल्पता) में भी फायदा मिलता है।
  • गर्मियों में लू लगने और डायरिया होने पर इसके फलों का जूस पीने पर तुरंत आराम मिलता है।
  • सॉंप के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर रोगी को पिलाने से लाभ मिलता है।
  • करौंदा का प्रयोग मूंगा व चांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है।