मछली पालन एक तरह की जलीय खेती हैं जो मुख्यतः तालाब में की जाती हैं। इस जलीय खेती में तालाब खेत हैं, मछली का जीरा बीज हैं एवं मछली फसल हैं। जिस तरह खेत में अच्छी फसल उगाने के लिए अच्छे बीज, सही मिट्टी, उचित मात्रा में जल, खाद एवं देख-रेख की जरूरत पड़ती हैं, ठीक उसी तरह मछली की अच्छी फसल के लिए भी तालाब की मिट्टी का अच्छा होना जरूरी हैं। साथ ही साथ अच्छा जीरा, खाद, पूरक आहार एवं देख-रेख की जरूरत पड़ती हैं। तालाब में मछली के बीज (जीरा) का संचय किया जाता हैं जिसमें उचित वातावरण एवं भोजन की व्यवस्था कर 8-10 माह तक पाला जाता हैं तथा फिर बेचा या खाया जाता हैं। मछली पालन में कृषि और पशुपालन दोनों का ही समायोजन हैं। तालाब में मछलियों का आहार उत्पादन कृषि की तरह हैं तथा मछलियों को उचित वातावरण प्रदान करना पशुपालन की तरह हैं।

मछली पालन की आवश्यकताएं
मछली पालन के लिए तालाब का होना अति आवश्यक हैं, इसके अलावा अन्य आवश्यकताएं हैं- मत्स्य बीज (जीरा), पानी, थोड़ी सी पूंजी, मेहनत, जानकारी और बाजार की सुविधा।

तालाब निर्माण
मछली पालन के लिए तालाब निर्माण के लिए स्थल का चुनाव एवं तालाब बनाने के तौर-तरीकों पर ध्यान देने की अत्यन्त आवश्यकता होती हैं।

तालाब निर्माण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें-
  • तालाब घर के आस-पास हो तो अच्छा हैं।
  • तालाब के लिए उबड़-खाबड़ या पथरीली जमीन न चुने।
  • तालाब के लिए समतल जमीन चुने। ऊंची जमीन पर तालाब का पानी जल्दी सूखेगा।
  • बहुत नीची जगह भी न चुने इसमें बरसात का पानी भर जायेगा और मछलियां तालाब से बाहर निकल भी सकती हैं।
  • तालाब यदि घर के नजदीक हो तो उसकी देखभाल अच्छी तरह हो सकती हैं।
  • खुली जगह का चयन करें। तालाब के चारों ओर घने एवं बड़े पेड़ न हो ताकि तालाब को भरपूर धूप मिले।
  • आस-पास यदि पानी का साधन हो तो अच्छा हैं जिससे जरूरत पड़ने पर तालाब में पानी भरा जा सके। यदि ऐसा नहीं हैं तथा तालाब वर्षा पर निर्भर हैं तो पानी बहकर आने का क्षेत्रफल तालाब के क्षेत्रफल का 10 गुना होना चाहिए।
  • चिकनी मिट्टी वाली जमीन को तालाब निर्माण के लिए उपयुक्त माना जाता हैं।
  • तालाब निर्माण के दौरान पानी के निकास एवं प्रवेश मार्ग की व्यवस्था का ध्यान रखना चाहिए।
  • तालाब बनाने में लगभग 25-35 प्रतिशत जमीन तालाब के बाँध में खर्च हो जाता हैं अर्थात् यदि आप 0.5 एकड़ का तालाब बनवाना चाहते हैं तो लगभग 0.75 एकड़ जमीन होनी चाहिए।

तालाब की लम्बाई, चौड़ाई कितनी हो ?
तालाब की लम्बाई उसकी चौड़ाई से ढ़ाई से तीन गुणी होनी चाहिए अर्थात् तालाब के लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3ः1 उत्तम हैं।

तालाब की गहराई कितनी रखें ?
तालाब का वातावरण, तालाब की गहराई पर निर्भर करता हैं। गहराई इतनी होनी चाहिए कि सूर्य की रोशनी तल तक पहुंच सकें। अधिक गहरा तालाब, ऑक्सीजन के अभाव में विषैली गैस उत्पन्न करता हैं। जहां आस-पास से पानी आने की व्यवस्था हो वहां तालाब की गहराई 374 फीट रखनी चाहिए परन्तु जहां बरसात के पानी पर निर्भर रहना पड़ता हैं वहां तालाब की गहराई 10-11 फीट किया जा सकता हैं।

तालाब का बाँध कैसा हो ?
बाँध की ऊंचाई मूल भूमि से एक मीटर रखें। तालाब के बाँध की ऊंचाई तालाब के पानी से जितनी कम होगी, पानी का हवा से सम्पर्क उतना ही अच्छा होगा और हवा से पानी में आॅक्सीजन का मिश्रण अच्छा होगा जिससे पानी में आॅक्सीजन की उपलब्धता अच्छी रहेगी। बाँध की ऊपरी सतह की चौड़ाई कम से कम 2 मीटर हो, बाँध का ढ़लान तालाब की तरफ कम हो ताकि चढ़ने उतरने में सुविधा हो और मिट्टी कट कर तालाब में भी न जाये, बाँध का ढ़लान तालाब के बाहर की तरफ ज्यादा रख सकते हैं।

तालाब में पानी आने की व्यवस्था कैसी हो ?
  • पानी के प्रवेश पाइप में छिद्रयुक्त ढ़क्कन लगायें ताकि पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़े।
  • तालाब के आस-पास से पानी आने के लिए एक प्रवेश नाली (मिट्टी, बाँस या सीमेंट) की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रवेश द्वार तालाब के पिछले भाग में बनाना चाहिए।
  • नाली की गोलाई का व्यास 15 से.मी. से 30 से.मी. हो।
  • नाली के मुँह पर जाती लगी होनी चाहिए ताकि पानी के साथ कूड़ा-कचरा प्रवेश न कर सके एवं तालाब से मछली बाहर न जा सके और न ही बाहर की मछली तालाब में न आ सके।
  • नाली को एक निश्चित ऊंचाई पर लगाना चाहिए।
  • यदि तालाब वर्षा के पानी पर ही निर्भर हो और वह कर आने वाला पानी अपने साथ बहुत मिट्टी लाता हो तो तालाब में पानी के प्रवेश द्वार के पास एक छोटा गड्ढ़ा बना दें ताकि पानी कुछ देर तक उसमें रूक सके एवं उसमें घुलित मिट्टी गड्ढ़े में बैठ जाए जिससे तालाब में अनावश्यक मिट्टी नहीं जमा होगी। छोटे गड्ढ़े में जमीन मिट्टी की बीच-बीच में सफाई भी कराते रहना चाहिए।

तालाब से पानी निकालने की व्यवस्था कैसी हो ?
जरूरत पड़ने पर तालाब से पानी को बाहर निकालने के लिए भी तालाब के तल में नाली लगा होना चाहिए। इस नाली में जाली के अलावा इसे पूर्ण रूप से बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि जरूरत के अनुसार प्रयोग किया जा सके एवं पानी की अनावश्यक निकासी को रोका जा सकें।

तालाब का अधिप्रवाह कैसा हो ?
तालाब का अधिप्रवाह तालाब की लम्बाई की दिशा में हो जिससे तालाब में आने वाला अधिक पानी निकल सके और उसके बाँध को नुकसान न हों।



पुराने तालाब का जीर्णोद्धार
  • यदि आपके पास पुराना तालाब हैं तो उसे भी ठीक कराकर मछली पालन योग्य बना सकते हैं।
  • तालाब की साफ-सफाई करवाएं, बड़े पत्थर, अनावश्यक पौधा, पेड़-पौधों की जड़ इत्यादि की सफाई कर दें।
  • अगर आवश्यक हो तो तालाब को गहरा भी करवायें।
  • प्रवेश नाली एवं निकास नाली की व्यवस्था ठीक (दुरूस्त) करायें।

आधा एकड़ (0.2 हे.) एवं निकास नाली की व्यवस्था का निर्माण कैसे करें ?
  • व्यवसायिक मछली पालन के लिए बड़ा तालाब की अच्छा होता हैं। आधा एकड़ (0.2 हे.) से छोटा तालाब नहीं बनवाना चाहिए।
  • आधा एकड़ का तालाब बनाने के लिए 76 डीसमील जमीन की जरूरत पड़ेगी। 26 डिसमिल जमीन बाँध बनाने में चला जायेगा।
  • जमीन को नाप कर निशान लगा लें।
  • ऊपरी परत क 8 इंच मिट्टी को अलग कर रख दें।
  • फिर तालाब खुदाई करें एवं खुदाई से निकाली गई ऊपरी सतह की मिट्टी को अलग रखे एवं बाकी मिट्टी से बाँध बनवाते रहे।
  • बाँध को पहले बताए गए तरीके से बनाएं, यानि थोड़ा तिरछा और ढ़लवाँ बनाएं, ऊपर 2 मी. चौड़ा और नीचे 4.5 मी. चौड़ा।
  • बाँध को थोड़ा-थोड़ा करके बनाएं, एक दिन में एक बीत्ता (लगभग 9 इंच) मिट्टी चारों तरफ के बाँध में डालें, फिर पानी छिड़के एवं पीट-पीट कर मिट्टी को बैठाये। इसी विधि से पूरा बाँध बनाएं। इस तरह से बाँध मजबूत बनेगा एवं पानी के प्रवाह के दबाव से टूटेगा भी नहीं।
  • तालाब की खुदाई पूरी हो जाए तो प्रवेश नाली एवं निकास नाली की व्यवस्था कर दें।
  • जब तालाब पूरी तरह बन जाए तो उसमें ऊपरी सतह की अलग रखी हुई मिट्टी को समान रूप से फैला दें।
  • तालाब निर्माण का कार्य मई महीने तक पूरा हो जाना चाहिए ताकि बरसात में पानी भर जाय और मछली पालन हो सकें।

तालाब की तैयारी
तालाब में मछली का बीज संचय करने के पूर्व तालाब की तैयारी कर लेनी चाहिए ताकि उसमें मछली का प्राकृतिक भोजन उपलब्ध रहे। प्लैकटन हैं जिसकी प्रचुर मात्रा में उपलब्धता होनी चाहिए।

पानी भरने के पूर्व तालाब की तैयारी
  • तालाब के मिट्टी की जांच करवा लें।
  • तालाब की सतह की सफाई करवा लें, पेड़-पौधों की जड़, बड़े पत्थर इत्यादि को हटवा दें।
  • तालाब की मिट्टी को हल चला कर ढ़ीली कर दें।
  • फिर चूना डालकर इसे मिट्टी के साथ बराबर मिला लें और पुनः हल चलवा दें। आधा एकड़ के लिए 20 किलो चूना, (40 किलो/एकड़) डालें। चूना की मात्रा मिट्टी के पी.एच. एवं उर्वरा शक्ति पर निर्भर करेगा।
  • अब उसमें पानी भर दें या बरसात के पानी को भरने के लिए छोड़ दें।

खाद का प्रयोग
  • तालाब की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए खाद का प्रयोग करना जरूरी हैं।
  • खाद के प्रयोग से मछली के प्राकृतिक भोजन की उपज अच्छी होती हैं।
  • नये तालाब की मिट्टी भूरभूरी होती हैं इसके प्रयोग से मिट्टी की संरचना में सुधार आता हैं।
  • इसके प्रयोग से तालाब के पानी का रिसाव भी कम होता हैं।

विभिन्न प्रकार के खाद का प्रयोग
तालाब में मुख्यतः दो प्रकार की खादों का उपयोग किया जाता हैं-

1. कार्बनिक खाद- जैविक पदार्थों के सड़ने-गलने से यह खाद प्राप्त होता हैं उदाहरण- मवेशियों का खाद, सड़े-गले पत्ते-पत्तियों का कम्पोस्ट।
2. अकार्बनिक खाद- इसमें नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस, पोटाश युक्त खाद आते हैं।

खाद का प्रयोग कैसे करें?
तालाब में खाद का प्रयोग, मिट्टी में उपस्थित जैविक कार्बन की उपस्थिति के आधार पर की जाती हैं। प्रारम्भिक तैयारी (जीरा संचयन के 15 दिनों पूर्व) कार्बनिक खाद तालाब में दी जाने वाली खाद की कुल मात्रा का 20 प्रतिशत भाग होना चाहिए। यदि सदाबहार तालाब में विष के रूप में महुआ की खल्ली इस्तेमाल की गई हो तो खाद की मात्रा आधी कर देनी चाहिए। बाकी बचे 80 प्रतिशत खाद को दस भागों में बाँट कर प्रतिमाह देनी चाहिए जबकि रासायनिक खाद को 10 बराबर भागों में बाँट कर तालाब के चारों ओर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। खाद की बड़ी मात्रा डालने के बदले छोटी-छोटी मात्रा में (15-15 दिनों के अन्तराल पर) प्रयोग करना उचित होता हैं। रासायनिक खाद का प्रयोग कार्बनिक खाद के प्रयोग के 4-5 दिनों बाद करना चाहिए। तालाब में जैविक खाद के रूप में किसी भी मवेशी के खाद का प्रयोग किया जा सकता हैं जैसे- मुर्गी, सूकर, गाय, बैल इत्यादि। चूंकि कुछ खादों की उर्वरा शक्ति अधिक होती हैं इसलिए उनकी कम मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही खाद का प्रयोग सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए। साधारणतः तालाब में भैस के गोबर के प्रयोग की मनाही की जाती हैं क्योंकि उसमें एक प्रकार का रंग होता हैं जो पानी के रंग को काला कर देता हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा होती हैं और पानी में आॅक्सीजन के उत्पादन में कमी आ जाती हैं। साधारणतः गाँवों में मवेशी का गोबर प्रचूर मात्रा में उपलब्ध होता हैं इसलिए तालाब में गोबर के उपयोग की सलाह दी जाती हैं। कुछ किसानों का अनुभव हैं कि तालाब की तैयारी के समय गोबर के साथ-साथ यदि तालाब में पुआल भी उपयोग किया जाय तो प्लैक्टन का उत्पादन अच्छा होता हैं।

गोबर का प्रयोग
जीरा संचय से 15 दिन पहले तालाब में गोबर डाले, आधा एकड़ के तालाब में शुरू में 500 किलो गोबर डाले, (1000 किलो/एकड़) और फिर प्रति माह 400 किलो/एकड़ डालते जाएं। गोबर को तालाब के किसी एक कोने में डलवा दें जहां से यह धीरे-धीरे बह कर पानी में घुलता जायेगा।

डी.ए.पी. का प्रयोग
मिट्टी की जांच के परिणाम के अनुसार अगर फाॅस्फेट की कमी हो तो मछली संचय के प्रथम माह ने डी.ए.पी. 8 किलो/एकड़ डालें। फिर प्रति माह 12 किलो/एकड़ डालते जाएं। रासायनिक खाद का प्रयोग हमेशा पानी में घोलकर पूरे तालाब में छीट कर करना चाहिए ताकि पानी में अच्छी तरह घुल सकें। तालाब में पानी के अन्दर लकड़ी का मचान बनाकर उस पर रासायनिक खाद रख देने से भी यह धीरे-धीरे पानी में घुलता रहेगा और उसका अच्छी उपयोग हो सकेगा।

खाद का प्रयोग कब करें ?
  • मछली संचय के 15 दिन पूर्व गोबर का प्रयोग करें।
  • हर महीने।
  • पानी का रंग जब मटमैला हो जाए।
  • अगर पर्याप्त प्राकृतिक भोजन की उपज न हो, जो पानी के रंग से भी पता चल जाएगा, (अगर हरा-भूरा हैं तो ठीक हैं) तो खाद का प्रयोग करें।

खाद का प्रयोग कब न करें ?
  • अगर पानी का रंग अत्यधिक हरा हो गया हो या सतह पर काई का जमाव हो जाए तो खाद का प्रयोग बंद कर दें।
  • पानी से बदबू आने पर।
  • मछलियों में बीमारी के लक्षण दिखने पर।
  • ठंड के मौसम में जब पानी का तापमान बहुत कम हों।
  • पानी में ऑक्सीजन की कमी होने पर।

चूना का प्रयोग क्यों ?
  • चूना पानी की क्षारीयता को बढ़ाता हैं और मिट्टी में कैल्शियम की उपलब्धता बढ़ाता हैं।
  • पानी को साफ करता हैं।
  • ऑक्सीजन की कमी के कारण दूसरे विषैले गैसों को नियंत्रित करता हैं।
  • गोबर को सड़ाने में मदद करता हैं।
  • मछलियों को बीमारी से बचाता हैं।
  • पानी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता हैं और प्राकृतिक भोजन के निर्माण में मदद करता हैं।

चूना की मात्रा एवं प्रयोग विधि
  • आधा एकड़ के तालाब के लिए संचय के पहले 20 किलो चूना (40 किलो/एकड़) एवं संचय के बाद प्रति माह 5 किलो चूना (10 किलो/एकड़) डालें।
  • तालाब में मोटा कीचड़ जमा होने से अधिक मात्रा में चूने का प्रयोग करना चाहिए, ज बतल बलुई/पतला कीचड़युक्त हो तो कम मात्रा में चूना की आवश्यकता होगी।

प्रयोग विधि
संचय से पूर्व सूखे तालाब की मिट्टी में मिलाकर अथवा अगर पानी हैं तो समान रूप से पूरे तालाब में डलवा दें। यदि तालाब में काफी कीचड़ जमा हो तो उसमें कली चूना डाल कर अच्छी तरह मिला दें। चूना मिलाने के लिए यदि तालाब में चूना छिड़काव के बाद गाय-बैल को जाने दिया जाय तो उसके पैर से रौंदने के कारण चूना अच्छी तरह मिट्टी में मिल जायेगा।

तालाब में मत्स्य बीज का संचय

कौन सी मछली पाले और क्यों ?
  • जो मछली खाने में स्वादिष्ट हो।
  • जिसका जीरा (मत्स्य बीज) आसानी से उपलब्ध हो।
  • जिसकी मांग बाजार में हो।
  • जिसकी बढ़त तालाब में अच्छी हो।
  • तालाब के लिए उपयुक्त मछली हैं- रोहु, कतला, मृगल, काॅमन कार्प (पहाड़ी)। बाजार में इनकी मांग भी अच्छी हैं एवं खाने में भी ये स्वादिष्ट होते हैं।
  • इसके साथ-साथ सिल्वर कार्प भी पाल सकते हैं। तालाब में प्राकृतिक रूप से घास उपलब्ध हैं तो ग्रास कार्प भी पालें।


मछलियों के बीज की मात्रा
  • मछलियों के बीज की मात्रा उसकी लम्बाई पर निर्भर करता हैं।
  • अगर 1 इंच जीरा डाल रहे हैं तो आधा एकड़ के लिए 5000 जीरा डालें (10000 प्रति एकड़ की दर से)।
  • अगर 2.5 इंच का जीरा डाल रहे हैं तो आधा एकड़ में 2000 जीरा डालें (4000 प्रति एकड़ की दर से)
  • किसानों का यह मानना हैं और उपयुक्त भी लगता हैं कि तालाब में यदि अधिक मात्रा में जीरा डाल दिया जाय और कुछ महीनों में ही यदि इसे निकाल कर बेचना शुरू कर दिया जाय तो मत्स्य पालक को जल्दी आमदनी मिलनी शुरू हो जाती हैं। यह पद्धति काफी प्रचलित हो रही हैं लेकिन इसका ध्यान रखें कि मछलियाँ बहुत छोटी नहीं रह जायें।

मछलियों की जाति का संचयन अनुपात
चूंकि तालाब में मछलियों के स्थान एवं भोजन निश्चित हैं इसलिए पाली जाने वाली मछलियों का अनुपात भी निश्चित होना चाहिए। तालाब में सभी छः प्रकार की मछलियों का पालन करना चाहिए ताकि तालाब के सभी जगहो का समुचित उपयोग हो सके। साथ ही साथ सभी प्रकार के भोज्य पदार्थ का उपयोग हो सके। तालाब में कम से कम तीन प्रकार की मछलियों का संचय अवश्य करना चाहिए। देखा गया हैं कि सिल्वर कार्प का अनुपात अधिक होने पर कतला की बढ़ता पर प्रभाव पड़ता हैं इसलिए इसकी मात्रा कतला से कम रखनी चाहिए। यदि तालाब में ग्रास कार्प के लिए उपयुक्त घास नहीं हो तो ग्रास कार्प का संचय कम करना चाहिए। सुविधानुसार यदि 3, 4, 5 या 6 प्रकार की मछलियों का संचयन करना हो तो निम्न तालिका का प्रयोग कर सकते हैं-
  • कतलाः रोहुः मृगल- 40ः30ः30
  • कतलाः रोहुः मृगलः काॅमन कार्प- 30ः30ः15ः25
  • कतलाः रोहुः मृगलः काॅमन कार्पः ग्रास कार्प- 30ः15ः25ः20ः10
  • कतलाः सिल्वर कार्पः रोहुः मृगलः काॅमन कार्प- 10ः25ः15ः20ः20ः10

बीज संचयन में सावधानियाँ
  • जीरा ऑक्सीजन पैक वाली पाॅलीथीन में लायें, इससे परिवहन के दौरान हुई मृत्यु दर कम होती हैं।
  • संचयन प्रातः काल या सूर्यास्त के समय करना चाहिए, जब पानी ठंडा हो।
  • प्लास्टिक के थैली में भरे जीरे को सीधे पानी में न डालें, इसे थोड़ी देर तालाब के पानी में रखें ताकि थैली तथा तालाब के पानी का तापमान समान हो जाए।
  • जीरो को स्वतः थैली से तालाब में जाने दें।
  • एक गमछा को पानी में डुबाते हुए पकड़े एवं इसके ऊपर से मछलियों को छोड़ें। यदि पोटाशियम पर मैंगनेट के घोल में जीरा को उपचारित कर दिया जाय तो इनकी जीविता दर भी अच्छी दर भी अच्छी होती हैं।