डाॅ. विनम्रता जैन
सह-प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
पं. शिवकुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र राजनांदगांव (छ.ग.)
नेपियर घास एक बहू उद्देश्य चारे की फसल है। इसके पौधे गन्ने की तरह लंबाई में बढ़ते हैं एवं पौधे से 40-50 तक कल्ले निकलते हैं। इसे हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है। शंकर नेपियर घास अधिक पौष्टिक एवं उत्पादक होती है। नेपियर घास के चारे में 2.5 से 6 प्रतिशत तक ऑक्सलेट पाया जाता है जिसके कारण इसको अकेले अधिक दिनों तक खिलाने से पशुओं के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है तथा पशुओं के गुर्दे क्षतिग्रस्त हो जाते है। इसके बचाव के लिए पशुओं को नेपियर के साथ रिजेका, बरसीम या अन्य चारे अथवा दाने एवं खली देनी चाहिए बहुवर्षीय फसल होने के कारण इसकी खेती सर्दी गर्मी व वर्षा ऋतु में कभी भी की जा सकती है। इसलिए जब अन्य हरे चारे उपलब्ध नहीं होते उस समय नेपियर का महत्व अधिक बढ़ जाता है इसके चार से हे (Hay) भी तैयार की जा सकती हैं।।
जलवायु एवं भूमि
गर्म व नम जलवायु वाले स्थान जहां तापमान अधिक रहता है (24 से 28) डिग्री सेल्सियस वर्षा अधिक होती है। 1000 मी.मी तथा वायुमंडल में आद्रता अधिक रहती हो। ऐसे क्षेत्र नेपियर की खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। अधिक ठंडी जलवायु में फसल की वृद्धि नहीं हो पाती हैं । पाला नेपियर के लिए हानिकारक होता है।
यह घास कई प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है। मटियार दोमट मिट्टी जिसमें प्रचुर मात्रा में जीवांश पदार्थ उपस्थित हो इसके लिए सर्वोत्तम होते हैं। मृदा का पी.एच मान 6.5-8 होना चाहिए।
उन्नत किस्में
पूसा जायंट नेपियर, बाजरा हाइब्रिड-21, पूसा नेपियर-2, ए.पी.बी.एन.-1, सी.ओ.-3, सी.ओ.-4, आर.बी.एन.-13, सम्पूर्ण (डी.एच.एन.-6) पी.बी.एन.-233, एन.बी.-6, एन.बी.-17, एन.बी.-25, एम.बी.-8-95, पी.एन.बी.-87, पी.एन.बी.-72, आई.जी.एफ.आर.आई.-293, आई.जी.एफ.आर.आई.-6,7,9 आदि।
खेत की तैयारी
नेपियर घास लगाने से पूर्व खेत की अच्छी तरह तैयारी करनी चाहिए। एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से या डिस्क प्लाऊ से तथा 2-3 जुताइयाँ हैरो या देशी हल से करके पाटे द्वारा भूमि को समतल कर लेना चाहिए अंतिम जुताई से पूर्व सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट को खेत में बिखेर कर मिला देना चाहिए।
बीज की मात्रा नेपियर घास की बुवाई वानस्पतिक भागो द्वारा की जाती है बुवाई हेतु भूमिगत तना जिन्हें राइजोम कहते हैं उसको उपयोग में लिया जाता है। तने के टुकड़े तथा जड़ोंध (Root Slip) द्वारा भी इसे उगाया जा सकता है। राइजोम की मात्रा या भार उनके लगने की दूरी पर निर्भर करता है। यदि की दूरी की दूरी 2 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं तो 3 प्रति हेक्टेयर 16500 से 17000 राइजोम या तने के टुकड़ो की आवश्यकता पड़ती है। जिनका वजन 12 से 13 क्विंटल होता है यदि की दूरी की दूरी 1 मीटर तथा पौधों से पौधों की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं तो 32000 से 33000 किलो राइजोम की आवश्यकता होती है जिनका वजन 24 से 25 क्विंटल होता है।
पौधों से
पौधों की दूरी |
कतार से
कतार की दूरी |
टुकड़े |
वजन |
30 सें.मी |
2 मीटर (200 सें.मी) |
16500-17000 |
12-13 क्विंटल |
30 सें.मी |
1 मीटर (100 सें.मी) |
32000-33000 |
24-25 क्विंटल |
30 सें.मी |
90 सें.मी |
40000 |
30-32 क्विंटल |
30 सें.मी |
75 सें.मी |
45000 |
35-36 क्विंटल |
रोपाई का समय व विधि
जहां सिंचाई की सुविधा नहीं हो वहां बुवाई जुलाई-अगस्त में करें। नेपियर घास को लगाने का सर्वोत्तम समय मार्च माह माना जाता है। अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी में पौधे ठीक तरह से स्थापित नहीं हो पाते हैं। जड युक्त टुकड़ों राइजोम द्वारा रोपाई करने हेतु पूरे पौधों को जमीन से खोदकर बाहर निकाल दिया जाता है फिर 15 से 20 सेंटीमीटर लंबे नए राइजोम को जड़ सहित अलग कर लिया जाता है यदि टुकड़े बड़े हो तो उसकी पत्तियां काट देनी चाहिए जिससे पानी की क्षति का कम होगी।
बुवाई हमेशा कतारों में मेड पर करनी चाहिए उपयुक्त दूरी पर कतार बना कर दो से तीन गांठ वाले टुकड़ों को भूमि में 45 डिग्री के कोण पर इस प्रकार लगाएं कि टुकड़ो की एक गांठ जमीन के अंदर वह दूसरी जमीन के ऊपर रहे। टुकड़ों का झुकाव उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए ताकि फसल पर वर्षा का हानिकारक प्रभाव ना पड़े नेपियर की बुवाई ठीक उसी प्रकार की जाती है।
खाद व उर्वरक
खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट को खेत में डालकर अंतिम जुताई करनी चाहिए। बुवाई के समय 50 से 60 किलो नाइट्रोजन, 80 से 100 किलोग्राम फास्फोरस एवं 25 से 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए ताकि फसल की वृद्धि शीघ्र हो एवं अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके। बुवाई से पूर्व मिट्टी की जांच करवाकर सिफारिश के अनुसार उर्वरक देना अधिक लाभदायक होता है।
सिंचाई प्रबंधन
नेपियर घास की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि खेत में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए। सर्दियों में पाले से बचाव के लिए तथा गर्मियों में सूखे से बचाव के लिए प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। हल्की भूमि में भारी भूमि की अपेक्षा अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में 10 से 12 दिन तथा सर्दियों में 20 से 25 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती लेकिन जल निकास की सुविधा जरूर होनी चाहिए।
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबंधन
बुवाई के 15 दिन बाद गुड़ाई करनी चाहिए प्रत्येक कटाई के बाद कतारों के बीच में गुड़ाई करनी चाहिए इससे वायु संचार बढ़ता है तथा भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है जिससे फसल की बढ़वार अधिक होती है। फसल लगाने के 2 से 3 माह तक खरपतवार अधिक होते हैं अतः निराई-गुड़ाई कर इन्हें नियंत्रित करना चाहिए। वर्ष में दो बार (वर्षा प्रारंभ होने से पूर्व एवं सर्दियों के अंत में) कतारों के बीच जुताई करनी चाहिए। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु एट्राजीन 3 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है।
कीट एवं रोग प्रबंधन
चूंकि नेपियर घास एक चारे की फसल है अतः इसकी बार-बार कटाई किए जाने के कारण कीट एवं बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है यदि भूमि में दीमक की समस्या हो तो सिंचाई के पानी के साथ क्लोरोपाइरीफॉस 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए यदि वर्षा ऋतु में फड़का की समस्या हो तो विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार मिथाइल पैराथियान का उपयोग किया जा सकता है लेकिन छिड़काव के 1 माह तक चारा पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।
कटाई व उपज
नेपियर घास की पहली कटाई बुवाई के 70 से 80 दिन बाद करनी चाहिए इसके बाद 35 से 40 दिन के अंतराल पर कटाई करते रहना चाहिए। कटाई जमीन से 10 सेंटीमीटर की ऊंचाई से करनी चाहिए इस प्रकार कटाई करने से हर कटाई पर एक से डेढ़ मीटर लंबाई की फसल मिलती रहती है। अधिक समय तक कटाई नहीं करने पर इसके तने सख्त हो जाते हैं और उसमें रेशे की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण पशु इसे कम खाना पसंद करते हैं। साथ ही चारे की पाचनशीलता कम हो जाने के कारण पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है। सर्दियों में नवंबर से फरवरी पौधों की वृद्धि रुक जाती है और चारे का उत्पादन नहीं मिल पाता है। वर्ष भर में नेपियर से पांच से छह कटाई ली जा सकती है जिससे 150 से 200 टन तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है जिसमें 15 से 20% शुष्क पदार्थ होता है और इसके चारे में 17 से 12% प्रोटीन व इसकी पाचनशीलता 50 से 70% होती है।
1 Comments
Apne jile ki shikshan sansthan me hare chare k prti jagruk chlaya ha rha hme to pta hi n tha bahut achcha lagta AP is comment ko pdte hain to please contact me 6263585566
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