डॉ. पी. मूवेंथन, डॉ. रेवेन्द्र कुमार साहू, मनोज कुमार साहू एवं प्रवीण बनवासी
आईसीएआर- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटिक स्ट्रेस मैनेजमेंट (ICAR-NIBSM), बरोंडा, रायपुर, छत्तीसगढ़

बटेर एक ऐसा जंगली पक्षी है, जो ज्यादा दूर तक नहीं उड़ सकती और जमीन पर ही अपनी घौंसला बनती हैं। इनके स्वादिष्ट एवं पौष्टिक गुणवत्ता वाले मांस के कारण यह अधिक पसंद किया जाता है। वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत इनका शिकार करना प्रतिबंधित है, लेकिन सरकार से लायसेंस लेकर बटेर का पालन किया जा सकता है। बटेर पालन से ना केवल अच्छी कमाई की जा सकती है बल्कि बटेर की घटती संख्या को रोकने में मदद भी मिलेगी। इस व्यवसाय की खासियत है कि यह कम लागत में भी शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं, बहुत ही कम समय में बटेर बेचने लायक भी हो जाती है क्योंकि इनकी बढ़वार तेजी से होती है। अधिक अंडे उत्पादन और सरल रख-रखाव के कारण इसका पालन व्यावसाय के रूप में तेजी से बढ़ रहा है। देश में व्यावसायिक स्तर पर जापानी बटेर का पालन मांस और अंडे उत्पादन के लिए किया जा रहा है।
    कृषि विज्ञान केन्द्र, महासमुंद में राष्ट्रीय जैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, बरोंडा, रायपुर द्वारा डी.बी.टी बायोटेक- किसान परियोजना का संचालन किया जा रहा है। डी.बी.टी बायोटेक किसान परियोजना के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा चयनित गॉवो के कृषकों को बटेर पालन का प्रशिक्षण दिया गया है तथा बटेर पालन कार्यक्रम को सुचारु रूप से चलाने के लिए समय- समय पर कृषक प्रशिक्षण को जारी रखने हेतु कृषि विज्ञान केंद्र परिसर में बटेर उत्पादन सह प्रशिक्षण इकाई की स्थापना की गयी है जिसके माध्यम से कृषकों को बटेर पालन के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिससे वे कृषि कार्य के अलावा एक अतिरिक्त आय के माध्यम को अपना कर अपना आर्थिक स्थिति एवं आजीविका में सुधार कर सके।

बटेर पालन करने से लाभ
  • बटेर आकार में छोटे होते हैं तथा उन्हें आवास के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है।
  • एक मुर्गी रखने के स्थान में ही 10 बटेर के बच्चे रखे जा सकते हैं।
  • वर्ष भर के अंतराल में ही मांस के लिए बटेर की 8-10 उत्पादन ले सकते हैं।
  • बटेर 5 सप्ताह बाद ही बेचने की आयु हो जाती है तथा मादा बटेर 6 से 7 सप्ताह में ही अण्डे देना शुरू कर देती है।
  • बटेर में अंडे देने की क्षमता अधिक होती है एक मादा बटेर एक साल में लगभग 250-300 तक अंडे दे देती है।
  • मुर्गी के मांस की तुलना में बटेर का मांस बहुत स्वादिष्ट होता है, वसा की मात्रा भी कम होती है।
  • बटेर के अंडें और मांस में अमीनो एसिड, विटामिन, वसा और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होती है।
  • बटेर पालन में आहार और रख-रखाव लागत बहुत कम होती है।
  • इसके साथ ही रोग प्रतिरोधक होने के चलते इनकी मृत्यु भी कम होती है।


आवास व्यवस्था

1. डीप लीटर सिस्टम
इसमें एक वर्ग फूट के फर्श में 6 बटेरो को पाला जा सकता है।2 हफ्ते के बाद बटेरो को पिंजरों में पाला जा सकता है जिससे इसके अनावश्यक भटकने को रोककर शरीर के वजन को बढ़ने में मदद मिलती है |

2. पिंजरा सिस्टम
पिंजरा सिस्टम में निम्न तरीके से बटेर पाल सकते हैं –
जगह को बचाने के लिए, पिंजरों को 6 स्तरों तक ऊँचा और एक पंक्ति में 4 से 5 पिंजरे रखा जा सकता है ।बीट को साफ़ करने के लिए पिंजरों के नीचे लकड़ी का प्लेट रखा जा सकता है ।

उम्र

पिंजरे का आकार

पक्षियों की संख्या

पहले 2 सप्ताह

3 x 2.5 x 1.5 फीट

100

3 – 6 सप्ताह

4 x 2.5 x 1.5 फीट

50


प्रकाश व्यवस्था
व्यस्क बटेरों या अंडा देने वाली बटेरों के लिए 16 घंटे प्रकाश और 8 घंटे का अंधेरा जरुरी है। बटेरों के मांस उत्पादन वृद्धि करने के लिए बाजार भेजने से पहले 7-10 दिन तक 8 घंटे प्रकाश और 16 घंटे अंधेरा रखना जरुरी है।

आहार व्यवस्था
बटेर के चूजे को संतुलित आहार के साथ ही अच्छी शारीरिक वृद्धि के लिए 6 से 8 प्रतिशत शीरे का घोल 3-4 दिनों तक देना चाहिए और आहार में 0-3 सप्ताह तक 25 प्रतिशत और 4 से 5 सप्ताह में 20 प्रतिशत प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए। बटेर चूज़ों के आहार में मक्का -45 प्रतिशत, टूटा चावल 15 प्रतिशत, मूंगफली खल 15 प्रतिशत, सोयाबीन खल 15 प्रतिशत, मछली चूरा 10 प्रतिशत और खनिज लवण, विटामिन्स एवं कैल्शियम संतुलित मात्रा में होना चाहिए। सामान्यतः बटेर के संतुलित आहार में निम्नलिखित सामाग्रियो का मिश्रण होना चाहिए-

सामाग्री

स्टार्टर राशन

ग्रोवर राशन

लेयेर राशन

राइस पॉलिश

14

9

10

मक्का

43

35

40

मूंगफली खली

16

30

25

सूरजमुखी खली

14

12

10

मछली चुरा

10

12

10

हड्डी चुरा

1.4

0.7

0.2

चूना पत्थर

1.0

0.5

0.5

नमक

0.3

0.5

0.5

विटामिन्स और मिनरल्स

0.3

0.3

0.3


बटेर पक्षियों में प्रजनन
बटेर में प्रजनन विधि आसान एवं सरल है। सामान्य रूप से बटेर 5 से 7 सप्ताह की आयु में प्रजनन के लिए परिपक्व हो जाते हैं। मादा बटेर (लेयर) 6-7 सप्ताह की आयु में ही अंडे देना शुरू कर देती है। 8 सप्ताह की आयु में ही लगभग 50 प्रति शत तक अंडे उत्पादन की क्षमता ये पक्षी प्राप्त कर लेते हैं। व्यावसायिक बटेर पालन के लिए नर एवं मादा बटेर का अनुपात 1:4 रखना चाहिए यानि चार मादाओं में एक नर रखा जाता है।



लिंग की पहचान
बटेरों के लिए लिंग की पहचान एक दिन की आयु के आधार पर की जाती है। मगर तीन सप्ताह की आयु मे पंखों के रंग के आधार पर भी लिंग का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल भूरा एवं धूसर होने पर पक्षी के नर होने का तथा गर्दन के नीचे पंखों का रंग हल्का लाल और काले रंग के घब्बे होना, पक्षी के मादा होने का प्रमाण है। मादा बटेर का शरीर भार नर से लगभग 15-20 प्रतिशत अधिक होता है।

अंडा उत्पादन
मुर्गी की अपेक्षा बटेर अपने दैनिक अंडा उत्पादन का 70 प्रतिशत दोपहर के 3 बजे से 6 बजे के बीच करती है। शेष अंधेरे में देती है, जिसको दिन में 3-4 बार में इकट्ठा करना चाहिए। बेहतर उत्पादन के लिए अंडे से बच्चा निकालने के लिए (ब्रीडर बटेर पैरेट) नर और मादा 10 से 28 सप्ताह आयु के बीच के होने चाहिए। एक नर बटेर के साथ 2 से 3 मादा बटेरों को रखना चाहिए। बटेरों के चोंच, पैर के नाखून थोड़ा काट देना चाहिए ताकि एक दूसरे को घायल न कर सके।

हैचिंग हेतु अंडे का चुनाव
हैचिंग के लिए स्वच्छ और बिना टूटे अंडे का चुनाव करना चाहिए सेने के लिए चुने गए अंडे मध्यम आकार के तथा अंडे का वजन 10 से 11 ग्राम होना चाहिए। हैचिंग मशीन में रखने से पहले 15- 20 मिनट के लिए पोटेशियम परमैगनेट और 40 प्रतिशत फार्मेलिन के धुँआ से कीटाणुरहित करके अंडे के चौड़े भाग को ट्रे के ऊपर के तरफ रखना चाहिए।

इन्क्यूबेशन एवं हैचिंग
अंडो का हैचिंग इन्क्यूबेशन मशीन के माध्यम से तापमान और नमी नियंत्रित करके की जाती है।इस प्रक्रिया में लगभग 18 दिन का समय लग जाता है।तथा एक दिन के चूजों का वजन लगभग 8-10 ग्राम होता है. इन्क्यूबेशन के लिए तापमान और नमी की आवश्यकता निम्नलिखित होता है –

अवधि (दिनों में)

तापमान (फारेन हाईट)

नमी (%)

अंडो का पलटना

0-14

99.5

60

45 डिग्री तक एक दिन में 5-6 बार

15-18

98.5

70

पलटने की आवश्यकता नही


ब्रूडिंग एवं बच्चे की देखभाल
पहले सप्ताह में बटेर के चूजो की देखभाल बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि चूजे बहुत नाजुक होते हैं और उनका वजन केवल 7 से 8 ग्राम होता है। उचित देखभाल और प्रबंधन के अभाव में चूजो की मृत्यु हो सकती है। नवजात बटेर के आवास में 24 घंटे रोशनी की व्यवस्था होनी चाहिए। रोशनी के नही होने पर बच्चे एक साथ छिप सकते हैं और झुण्ड बनाकर दब सकते हैं। कभी-कभी चूजे पानी में डूब जाते है। इससे बचाने के लिए पानी के अन्दर कंकड़ डाल देना चाहिए और हैचिंग के बाद एक सप्ताह के दौरान पैरो के फैलाव से बचाने के लिए कूड़ा या जालीदार कागज भी फैलाया जा सकता है। स्टम्पिंग से बचाव के लिए 150 से कम चूजा एक साथ रखना चाहिए। बटेर के ब्रूडिंग के लिए विभिन्न प्रकार के ब्रूडर का प्रयोग किया जा सकता है जैसे – फ्लोर ब्रूडर, बैटरी ब्रूडर, गैस ब्रूडर आदि। ब्रूडर हाउस में गर्मी पैदा करने के लिए हीटर या बिजली के बल्ब का प्रयोग किया जा सकता है। ब्रूडर का तापमान शुरू में 37 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए और बाद में हर चार दिनों में 3 डिग्री सेल्सियस कम करना चाहिए। आम तौर पर तीन सप्ताह के लिए ब्रूडिंग किया जाता है। लेकिन जल्दी वृद्धि और परिपक्वता के लिए अतिरिक्त रौशनी की व्यवस्था की जानी चाहिए।

टीकाकरण
बटेरों में किसी प्रकार का टीकाकरण नहीं करना पड़ता है क्यों कि इनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बटेर आहार में 5 प्रतिशत सूखा हुआ केजीन (फटे दूध का सफेद भाग) मिलाने से कम मृत्युदर और अच्छी शारीरिक वृद्धि होती है और औषधि के रुप में मिनिरल और विटामिन सप्लीमेंट दिए जाते है।