छत्रपाल सिंह पुहुप, यंग प्रोफेसनल-II
कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगारभाट, कांकेर (छ.ग.)

लोबिया (दलहनी हरा चारा) के बहुआयामी उपयोग है, भारत में लोबिया की खेती हरे चारे, सब्जी तथा दाने इत्यादि के लिए की जाती है इस दलहनी फसल में प्रोटीन 17 से 18 प्रतिशत साथ ही इसमें कल्सियम एवं फास्फोरस प्रयाप्त मात्रा होने के कारण हरे चारे में इसका विशेष महत्व हैं |लोबिया खरीफ एवं जायद की मुख्य दलहनी चारा फसल है, जो अधिक पौष्टिकता एवं पाचक होने के कारण काफी लोकप्रिय है। इसे घासों के साथ मिलाकर बोने से उनकी हो सकता बढ़ जाती है। यह एक अति उत्तम आच्छादन फसल है जो खरपतवार को नष्ट कर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती है। गर्मियों में से दुधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ाने के लिए अवश्य खिलाना चाहिए। इसके चारों में औसतन 15 से 20% प्रोटीन और सूखे दाने में 20 से 25% प्रोटीन होता है। लोबिया को ज्वार, बाजरा या मक्का आदि के साथ मिलाकर या अकेले भी बोया जा सकता है। लोबिया सूखे को सहने और जल्दी पकने वाली फसल है। यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है, लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का मुख्य स्त्रोत है।

उपयुक्त भूमि एवं उसकी तैयारी
लोबिया की फसल लगभग सभी प्रकार की भूमि में अच्छे प्रबंधन के साथ उगाई जा सकती है| यद्यपि लोबिया की फसल मटियार या रेतीली दोमट भूमि में अच्छी होती है, फिर भी लाल, काली तथा लैटराइटी भूमि में भी उगाया जाता है| इसके लिए मिटटी का पीएच मान उदासीन होना चाहिए| अत्यधिक लवणीय या क्षारीय मृदा अनुपयुक्त होती है| अच्छे जल निकास और प्रचुर रूप से कार्बनिक पदार्थ वाली मिटटी इसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त होती है। खेत तैयार करने के लिए दो से तीन जूताई काफी हैं। हैरो या कल्टीवेटर से दो जुताई करने पर अंकुरण जल्दी और अच्छा होता है।

बुवाई का समय
लोबिया की बुवाई खरीफ में वर्षा शुरू होने के पश्चात जुलाई-अगस्त माह में करनी चाहिए। गर्मी वाली फसल के लिए अच्छा समय मध्य मार्च से लेकर मई का पहला सप्ताह उत्तम है, जिससे चारे की कमी वाले समय में इसका हरा चारा उपलब्ध हो सके।

उन्नत किस्में
बुंदेल लोबिया-1, बुंदेल लोबिया-2,3, यूपीसी-5286 एवं ई.सी.-4216

बीज दर एवं बुवाई विधि
लोबिया की बुवाई करने हेतु दो पंक्तियों के बीच की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बुवाई सीड ड्रिल या हल के पीछे से करनी चाहिए। लोबिया की एकल फसल लेने के लिए 35-40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयोग करना उपयुक्त होता है। मिश्रित फसल के लिए उपयुक्त बीज की आधी मात्रा का प्रयोग करते हुए 1:1 अथवा 2:2 के साथ फसल लेने के लिए 15 से 20 कि. ग्राम बीज की आवश्यकता होती है एवं पंक्तियों में ज्वार, बाजरा अथवा मक्का के साथ लोबिया की बुवाई की जाती है। अंकुरण के पश्चात पंक्तियों में पौधे से पौधे की बीच की दूरी लगभग 5 से 8 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बुवाई के समय पर्याप्त नमी होनी चाहिए। लोबिया के लिए सिफारिश किए गए राइजोबियम कल्चर से बीज का उपचार करके ही बिजाई करें।

खाद एवं उर्वरक
लोबिया दलहनी फसल होने के कारण वायुमंडल की नाइट्रोजन से अपनी आवश्यकता पूर्ण कर लेती है फिर भी शुरुआती अवस्था में नत्रजन की आवश्यकता पूरी करने के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन तथा 60 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय देना चाहिए। सल्फर की कमी वाली भूमि में (10 पी.पी.एम. से कम) 20 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सल्फर प्रयोग किया जाना चाहिए।

सिंचाई
खरीफ मौसम की फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन लंबे अंतराल तक वर्षा ना होने की दशा में 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। खरीफ फसल में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। गर्मी में बोई गई फसल के लिए 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती हैं।

खरपतवार नियंत्रण
गर्मी में बोई गई फसल में एक निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर करें। खरीफ में बोई गई फसल में 20 से 25 दिनों बाद खुरपी अथवा वीडर कम मल्चर से एक गुड़ाई करें। लोबिया में रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण हेतु इमेजथापायर 0.1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना प्रभावकारी होता है।

कीट एवं रोग नियंत्रण
मोजेक रोग से पौधों की बढ़वार रुक जाती है। इससे बचाव के लिए मेटासिस्टाक 0.01 प्रतिशत का छिड़काव करें। फूदका कीट के प्रकोप से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.025% का छिड़काव करें।

कटाई
लोबिया की हरे चारे के लिए कटाई 50% फुला आने से लेकर 50% फलिया बनने तक पूरी कर लेनी चाहिए। इसके बाद तना सख्त व मोटा हो जाता है और हरे चारे की पौष्टिकता व स्वादिष्ट दोनों ही प्रभावित होती हैं। खरीफ मौसम की फसल 50 से 60 दिन में तथा गर्मियों की फसल 70 से 75 दिन में कटाई करने के लिए तैयार हो जाती है।

उपज
गर्मियों में लोबिया की फसल लगभग 300 से 350 क्विंटल हरा चारा में अच्छे प्रबंधन द्वारा 250 से 300 क्विंटल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।