आदित्य शुक्ला एम.एस.सी. (एग्रोनाॅमी) पी.एच.डी. स्काॅलर,
सरदार वल्लभभाई पटेल, कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ (उ.प्र.)

सभी प्रकार की फसलों पर लगने वाले विभिन्न रोगों में बीजजनित रोगों का प्रमुख स्थान है। इन रोगों में जैसे -बीज सड़न, जड़ सड़न, पद गलन, कंडवा, झुलसा, अंगमारी, बन्ट, गन्ने का लाल सड़न इत्यादि।
    रोगों को फैलाने वाले रोगजनक कारक या तो बीज की बाहरी सतह (बाह्य बीजोढ़) या अन्दरूनी भाग (अन्तः बीजोढ़) या बीजों के साथ ही अपमिश्रण के रूप में रहते हैं। कुछ फसलों विशेषकर दाल वाली फसलों के बीजों के भंडारण के दौरान कुछ फफूंद जैसे- एस्परजिलस आदि संक्रमित कर उनहें नुकसान पहुॅचाते है जिससे बीजों का अंकुरण बुरी तरह से प्रभावित होता है। बीजोपचार करने से बीज पर या अन्दर उपस्थित रोगजनक नष्ट हो जाते हैं एवं मिट्टी में पहले से उपस्थित अन्य मृदाजनित रोगजनकों से भी रक्षा होती है। रासायनिक विधि में फफूंदनाशक दवाओं का उपयोग बीजोपचार के लिये किया जाता है।
    बीजों को बोने से पहले उन्हें फफूंद रोगों से बचाव के लिये रासायनिक फफूंदनाशकों में बीज उपचार जरूरी है। इनमें से प्रचलित रसायनों का विवरण निम्नप्रकार हैः-
  • थीरम: गेहॅू, ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, तुअर, मॅूग, उड़द, चना, मसूर, तिल, मॅूगफली, अलसी आदि के बीज उपचार के लिये किया जाता है एवं सब्जियों, फलों, पुष्प फसलों के बीजों के उपचार के लिये ढाई ग्राम दवा एक किलोग्राम बीज की दर से उपयोग किया जाता है।
  • वेपम: यह फफॅूदनाशक के साथ ही सूत्रकृमि नाशक के लिए भी उपयोगी है।
  • पेन्टाक्लोरोनाइट्रोबेन्जीन: यह बाजार में ब्रासीकोल किन्टोजोन, टेराक्लोर आदि नामों से मिलता है। इसका उपयोग स्क्लेरोशियम, राइजोक्टोनिया, जनित आदि मृदोढ़ रोगों के नियंत्रण के लिये किया जाता है।
  • केप्टान: इसका उपयोग बीज व मिट्टी के उचार के लिये किया जाता है।
  • वीटावेक्स: इसको उपयोग गेहॅू के मुक्त कंडवा रोग (लूज स्मट) से बचाव के लिये बीज उपचार हेतु किया जाता है। इसकी ढाई ग्राम मात्रा सामान्यतः एक किलोग्राम बीज के साथ मिलाने के लिये पर्याप्त होती है।
  • प्लान्टवेक्स: इसका उपयोग गेरूआ (रस्ट) और कंडवा रोगों की रोकथाम के लिये किया जाता है।
  • बिनोमिल: इसका उपयोग स्म्ट, भभूतिया, राइजोक्टोनिया, फ्यूजोरियम आदि के नियंत्रण के लिये बीज उपचार या मृदा उपचार के लिये किया जा सकता है।
  • कार्बेन्डाजिम: यह एक अन्तग्र्राही फफूंदनाशक है। यह पौधों द्वारा ग्रहण किया जाकर रोगों से आन्तरिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसका उपयोग बीज उपचार के अलावा पौधों पर छिड़काव के रूप में भी किया जाता है।
  • थियोबेन्डेजोल: यह एक अन्तग्र्राही फफॅूदनाशक है, जो पौधों द्वारा ग्रहण कर उन्हें रोगों के अधिक सहनशीलता प्रदान करता है। इसका उपयोग बीज उपचार, पौधों पर छिड़काव और मृदा उपचार तीनों तरह से किया जाता है।
  • मेटालेक्सिल (रिड़ोमिल): बीजोपचार के लिये इसकी 6 ग्राम मात्रा प्रति एक किलोग्राम बीज के लिये लगती है।

बीजोपचार की विधियाॅ
  • फफॅूदनाशक धूल द्वारा: 1 कि.ग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए 2.5 से 3.0 ग्राम फफूॅदनाशक धूल की आवश्यकता होती है।
  • फफॅूदनाशक घोल के द्वारा: बीजों का उपचार फफूॅदनाशक के घोल के रूप में भी किया जा सकता है। मूंगफली की टिक्का बीमारी के नियंत्रण के लिए बीजों को 2.5 प्रतिशत फार्मेलिन के घोल में एक घंटे के लिए डुबा दिया जाता है। भण्डारण के समय कीड़ों के नियंत्रण के लिए भी बीजों को रसायनों से उपचारित किया जाता है।

बीजोपचार की क्रियाविधि
बीजों में कल्चर के उपचार के लिए सबसे पहले 100 ग्राम गुड़ या शक्कर को 150-200 मि.ली. पानी में अच्छी तरह मिलाया जाता है। घोल तैयार होने के बाद कल्चर की आवश्यकतानुसार मात्रा डाल कर लकड़ी की सहायता से अच्छी तरह मिला लिया जाता है। इसके बाद इस मिश्रित घोल को 25 किलों ग्राम बीज के ऊपर छिड़ककर अच्छी तरह मिला लिया जाता है। इसके बाद बीजों को 15 मिनट तक छाया में सुखाया जाता है। इसके तुरंत बाद बीजों की बुवाई कर देनी चाहिए 1 पैकेट कल्चर (200 ग्राम) 30-35 कि.ग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता है।

कुछ फसलों के लिये बीजोपचार की सिफारिश नीचे दी गई है:-
  • गन्ना के रोग- रूट राॅट, विल्ट के बीजोपचार के लिये कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज ट्राइकोडर्मा अनुपूरक 4-6 ग्रा./कि.ग्रा. बीज। बीज ड्रेसिंग के लिये मेटल बीज ड्रेसर/मिट्टी के बर्तन या पाॅलीथिन बैग का उपयोग किया जाता है।
  • धान के रोग- रूट राॅट रोग अन्य कीट/जीव बैक्टीरियल शीथ ब्लाइट के बीजोपचार के लिये ट्राइकोडर्मा 5-10 ग्रा/कि.ग्रा. बीज (प्रत्यारोपण से पहले) क्लोरपाइरीफास 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू.पी. 10 ग्रा./कि.ग्रा. एवं रूट नाॅट निमेटोड नामक रोग के बीजोपचार के लिये मोनाक्रिप्टोफाॅस के 0.2 प्रतिशत घोल में 6 घण्टों तक बीज को सोखना तथा व्हाइट टिप निमेटोड रोग के लिये मोनोक्रिप्टोफाॅस के 0.2 प्रतिशत घोल में बीज को सोखना चाहिऐ। बीज ड्रेसिंग के लिये मेटल बीज ड्रेसर/मिट्टी के बर्तन या पाॅलीथिन बैग का उपयोग किया जाता है।
  • गेहॅू- इसमें दीमक लगने की बीमारी होती है बुवाई से पहले बीज का क्लोरपाइरीफास 4 मि.ली./कि.ग्रा. बीज की दर से कीटनाशक द्वारा उपचार करें। एवं बॅट/फाल्स स्मट/लूज स्मट/कवर्ड स्मट रोग के बीजोपचार के लिये थीरम 75 प्रतिशत डब्लू.पी. कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू.पी टेबुकोनाजोल 2 डी.एस. 1.5 से 1.87 a.i.  प्रति किलो बीज की दर से टी. विरिडी 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. 4 ग्राम/किलोग्राम की दर से करें। बीज की ड्रेसिंग के लिय धातु के बीज एवं ड्रेसर/मिट्टी के बर्तन या पाॅलीथिन बैग का उपयोग किया जाता है।
  • मटर, ब्रोकोली, नोल-खोल, मूली- इसमें रूट राॅट रोग पाया जाता है इस के बीजोपचार के लिये स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से, बीज ड्रेसर के रूप में। बीज की ड्रेसिंग के लिय धातु के बीज एवं ड्रेसर/मिट्टी के बर्तन या पाॅलीथिन बैग का उपयोग किया जाता है।
  • आलू- मिट्टी और कन्द जनित रोग के लिये भण्डारण से पहले 0.25 प्रतिशत की दर से MEMC 3 प्रतिशत डब्लू.एस. द्वारा या 3 प्रतिशत बोरिक एसिड द्वारा 20 मिनट के लिये बीज उपचार।
  • शिमला मिर्च- इसमें रूट नाॅट निमेटोड नामक रोग पाया जाता हैै स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 1 प्रतिशत डब्लू. पी., पैसिलोमाइसिस लिलासिरियस एवं वर्टिसिलियम क्लेमिडोस्पोरियम 1 प्रतिशत डब्लू.पी. @ 10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज ड्रेसर के रूप में बीजोपचार किया जाता हैै।