प्रदीप कुमार साहू, सुश्री ऑचल नाग (यंग प्रोफेशनल), 
डाॅ. दिबयेंदु दास (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख) 
 श्री मनीष कुमार वर्मा (वैज्ञानिक सस्य विज्ञान),
 श्री उत्तम कुमार दिवान (वैज्ञानिक कृषि मौसम), 
श्री सुरज गोलदार
कृषि विज्ञान केन्द्र, नारायणपुर (छ.ग.)

डहेलिया अनेक रंगों तथा आकारों में पाया जाने वाला आकर्षक फूल है जो कि कम्पोजिटी कुल से संबंध रखता है। रंग बिरंगे फूलों के कारण डहलिया के पौधे बागों की शोभा बढ़ाने हेतु लगाए जाते है। इसकी उत्पत्ति स्थल मैक्सिको है। यह एक अत्यंत आकर्षक उघानी पौधा है जिसकी नाना प्रकार की संरचना वाले विभिन्न रंग रूप आकार के फूल पाये जाते हैं।
    डहलिया के पौधे दो-ढ़ाई मीटर तक ऊॅंचे होते हैं जबकि बौनी प्रजाति केवल आधा मीटर ऊँची होती है। बड़े आकार के फूल प्राप्त करने हेतु खुली धूप वाली भूमि तथा सामान्य वर्ग वाली ठण्डी जलवायु उपयुक्त होती है।

वर्गीकरण
डहलिया सोसाइटी द्वारा डहलिया को 2 भागों में विभाजित किया है, परन्तु इनमें 3 वर्ग प्रमुख होते हैं -

जायंट डैकोरेटिव- फूलों की पंखुडियां सघन व एक-दूसरे पर चढ़ी हुई प्रतीत होती है फूलों के मध्य एक पीली या भूरी घुडी होती है। फूल का आकार बड़ा होता है तथा पौधे आसानी से 40 इंच तक लम्बे हो जाते हैं।

कैक्टस - इसके फूलों की पंखुडियाॅं नुकीली, कुछ सघन व मुड़ी हुई होती हैं।

पौमपोन डहलिया - इस प्रजाति की किस्में गमलों में लगाने हेतु उत्तम होती हैं। फूल छोटे आकार के पंखुडियाॅं अंदर की ओर मुड़ी हुई होती है।

    विश्व में डहलिया की लगभग 24 हजार किस्में उपलब्ध हैं जिनमें से 2 हजार किस्मों की व्यवसायिक खेती की जाती है। प्रमुख प्रजातियाॅं हैं डियाना, ग्रिगोरी, गोल्डन लाॅकवुड, लिटिल मेरियान, लिटिल विल्लो, विल्लो सरप्राईज, मार्टिल्स यैलो, विलियन जाॅनसन इत्यादि इसके अलावा छोटे आकार वाली किस्मों में एल्पन मरथेरी, विक्टर डी, व्हाईट नेटी, रेड एजमिरियल प्रमुख है। भारतीय किस्मों में स्वाकी विघानन्द, ज्योत्सना, लार्ड बुद्धा, डी.बी.पी. पाल, स्वामी लोकेष्वरानंद प्रमुख है।

प्रवर्धन
व्यवसायिक रूप दो विधियों द्वारा प्रवर्धन किया जाता है।

कन्दों द्वारा- यह डहलिया के प्रवर्धन की सबसे आसान व प्रचलित विधि है इसमें कंदीय जडों को अलग-अलग कर क्यारियों में रोपा जाता है कंद को अलग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक कंद के साथ तने का कुछ भाग अवश्य रहे तथा प्रत्येक कंद में कम से कम एक आँख अवश्य रहे।

कलमों द्वारा- इस विधि का उपयोग व्यवसायिक उघमियों द्वारा किया जाता है। कलमों को नवीन शाखाओं से उस समय काटा जाता है जब उन पर पत्तियों के 3-4 समूह आ चुके हों, कलमों को सावधानी पूर्वक काटकर 2.5 सेमी. की दूरी पर पंक्तियों में लगाई जाती है।

सहारा देना- डहलिया की लंबी बढ़ने वाली किस्मों को सहारा देना जरूरी होता है अन्यथा उनके गिरने का भय बना रहता है। पौधों को सहारा देने के लिए बाॅंस-खपचे या कोई अन्य कठोर लकडियों की छड़ों का उपयोग किया जाता है।

कीट नियंत्रण
डहलिया के पौधों को एफिड, थ्रिप्स विशेष रूप से क्षति पहुँचाते हैं जो कि पौधें के विभिन्न भागों का रस चूसते है।

रोकथाम
रोगार (2.5 मि.ली. प्रति लिटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए।

रोग नियंत्रण
चूर्णी फफूंदी रोग एक प्रकार के फफूंद के कारण होता है जिसके कारण पत्तियों के ऊपरी सतह पर सफेद, भूरे रंग का चूर्ण दिखाई देता है।

उपचार
  • बावस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर।
  • चारकोल गरम, यह रोग गर्म और वर्षा वाले मौसम में डहलिया को अधिक क्षति पहुँचाते हैं।

रोकथाम
कैप्टान (2 ग्राम प्रति लीटर)

कटाई
फूलों की कटाई उसके उगाये जाने के उद्देश्य पर निर्भर करती है। यदि फूलों की कटाई प्रदर्शनी हेतु है तो उनकी कटाई सुबह करनी चाहिए। कटाई 45 डिग्री के कोण पर करनी चाहिए और काटे गये तनों को तुरंत पानी से भरी बाल्टी में रखनी चाहिए।