ब्रजेश कुमार नामदेव, कीट वैज्ञानिक (फसल सुरक्षा)
राहुल माझी, कार्यक्रम सहायक
कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर होशंगाबाद 461990

गन्ना एक दीर्घकालीन नगदी फसल है जो मुख्यत: एक वर्ष या 18 महीनो तक खेत में रहती जिसके कारण उसमें बहुत से हानिकारक कीटो एवं रोग का प्रकोप होता है इसके अलावा यदि इनका सही समय पर प्रबंधन न किया जाये तो किसान भाइयों को गन्ना की उपजए गुणवत्ता के साथ साथ आर्थिक हानि होती है इन्ही बातो को ध्यान में रखते हुए किसान भाइयो को गन्ना के प्रमुख हानिकारक कीट एवं रोगों के पहचान एवं उनके प्रबंधन हेतु जानकारी इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत की जा रही है।



पायरीला
  • पायरीला के शिशु एवं वयस्क दोनों ही गन्ने की पत्तियों की निचली सतह से लगातार रस चूसते रहते जिससे पती पर पीलापन लिए हुए सफेद धब्बे बन जाते है।
  • ऐसे अनेक धब्बे पड़ जाने से पत्ती पूरी पीली दिखाई पड़ती है और धीरे.धीरे पीली पडकर मुरझा जाती है और अंततः सूख जाती है।
  • पायरीला कीट के द्वारा लगातार रस चूसने के दौरान इनके मुखांग से मीठा व चिपचिपा पदार्थ निकलता रहता है जिसे मधु सात कहते है। यह मधु सात प्रभावित पत्तियों से नीचे की पत्तियों की ऊपरी सतह पर गिरता है जिसके ऊपर एक प्रकार का कवक तेजी से विकसित होने लगता है। इसके फलस्वरूप पतियों पर काले कवक की एक परत सी जम जाती है और पत्तियां काली हो जाती है। जिसके कारण पौधों के प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है और गन्ने के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • गन्ने की विकसित फसल में इसके आक्रमण से उसके रस गुण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ऐसे गन्ने से शर्करा प्राप्ति कम होती है और इसके रस गुण भी निम्न गुणवत्ता का बनता है।


प्रबंधन
  • नत्रजनीय उर्वरको का कम प्रयोग करना चाहिए।
  • पत्तियों पर आम तौर से पायरीला के अंड समूह विद्यमान होते है जिन्हें पौधे से अलग कर देना चाहिए पायरीला प्रबंधन में एक अच्छी बात यह है की इसका प्राकृतिक रूप से परजीवियों तथा परभक्षियों द्वारा जैविक नियंत्रण होता रहता है।
  • टेट्रास्टीकस पायरिलीए पायरीला के अण्डों का प्रभावशाली परजीवी है। इसके साथ साथ पायरीला के शिशु एवं प्रौढ़ का बहुत ही प्रभावशाली परभक्षी कीट एपिरिकानिया मेलानोलयूका के द्वारा नियंत्रण स्वयमेव होता रहता है।
  • जिन खेतों में इस अंड परजीवी एवं शिशु एवं प्रौढ़ परभक्षी की संख्या अधिक हो उनमें से इन्हें निकाल कर उन खेतों में छोड़े हैं जिनमें इनकी संख्या कम है।

टॉप बोरर (चोटी बेधक)
  • चोटी वेधक के प्रौढ़ कीट सफ़ेद रंग के शलभ ;मोथद्ध होते है। मादा कीट के पीछे नारंगी रंग की रोयदार सरंचना होती है।
  • मादा कीट गन्ने की पत्तियों की निचली सतह पर 200 से 250 अंडे देकर भूरे रंग के पदार्थ से ढक देती है जो एक अंड समूह के रूप में पाए जाते है। अन्डो से निकलकर इल्लियाँ पत्तियों की मध्य नाडी में प्रवेश कर अन्दर ही अन्दर पौधो की गोफ तक चली जाती है।
  • गन्ना में पोरिओ के बनने से पहले चोटी बेधक के प्रकोप से ग्रसित पौधों की गोफ की पत्तियों में छर्रे लगे जैसे छिद्र पाए जाते है तथा मध्य गोफ में सड़न हो जाती है।
  • जुलाई से सितंबर के महीनों में जब गन्ने में पोरियों का निर्माण हो रहा होता है या निर्माण हो जाता है उस समय इस कीट से ग्रसित गोफ सड़ने के साथ.साथ ऊपरी परियों की आँखे फुटाव कर जाती है जिसके कारण एक झुण्ड सा बन जाता है जिसे बन्ची टॉप कहते है को आसानी से पहचाना जा सकता है।
  • वर्ष में इसकी 6 पीदिया पीढ़ियाँ मार्च से अक्टूबर तक चलती है और इसकी तीसरी पीढ़ी द्वारा अधिक नुकसान होता है।


प्रबंधन
  • एकीकृत एवं मृदा परिक्षण के आधार पर पोषक तत्व प्रबंधन करना चाहिए ।
  • सिंचित फसल में कीट के शलभ आकर्षित होते हैं अतः हल्की सिंचाई करनी चाहिएए जलभराव की स्थिति में इस कीट द्वारा अधिक क्षति पहुचाई जाती है।
  • नत्रजनीय उर्वरकों की अधिक मात्रा में उपयोग भी इस कीट को आकर्षित करती है।
  • फसल के प्रारंभिक अवस्थाओं में पतियों पर पाए जाने वाले अंड समूह को एकत्रित कर नष्ट करने तथा प्रभावित गन्ने को काट कर नष्ट कर इस कीट का प्रभावशाली नियंत्रण संभव है।
  • चोटी बेधक के अंड परजीवी ट्राईकोग्रमा जापोनिकम की 50000 संख्या चार से पांच ट्राईको कार्ड प्रति हेक्टेअर की दर से जुलाई के प्रथम सप्ताह से अगस्त माह तक 30 दिनों के अंतराल पर खेत में छोड़ने से कीट के अंड परजीवी द्वारा समाप्त कर दिए जाते है जिनमें इल्लियाँ नहीं निकलती और फसल की सुरक्षा हो जाती है।
  • फसल में 10% से अधिक नुकसान होने की दशा में क्लोरेट्रानिलिप्रोल की 150 मिलीलीटर मात्रा 400 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ों पर मई के प्रथम सप्ताह में ड्रेचिंग करना चाहिए ।

सफेद ग्रब (लट)/सफेद बीटल्स

पहचान
  • इसके प्रौढ़ कीट भरे रंग के होते है इल्ली अवस्था जिसको ग्रब कहते है सफ़ेद रंग की होती है इसलिए इसको सफेद ग्रब के नाम से जाना जाना जाता है।
  • ग्रब का शरीर झुर्रीदारए सिर काले रंग तथा मुखांग काटने एवं चबाने वाले होते है उसके वक्ष में 3 जोडी टागे स्पष्ट रुप में दिखाई देती है।
  • इस कीट का ग्रब या लट हमेशा अर्धचंद्राकार या अंग्रेजी के अक्षर सी के समान प्रतीत होता है।
  • मानसून के प्रथम वर्षा की रात इसके नर एवं मादा जमीन में निकलर रात्रि में झाड़ियोंए वृक्षों की टहनी पर एकत्रित हो जाते है इनकी पत्तियों को खाते है तथा इसी दौरान मैथुन क्रिया करते है।
  • सूर्योदय से पूर्व आम पास के खेतों में झाड़ियोंए वृक्षों से उतर जाते है और इस कीट की मादा भूमि तल से 5.10 सेंटीमीटर की गहराई पर अंडे देती है जिनमें से 7 में 10 दिन में ग्रब निकलते हैं और तुरंत ही पौधो की जड़ो को खाकर नुकसान पहुचाना शुरू कर देते है।
  • जुलाई-सितंबर के दौरान इसका अधिकतम प्रकोप होता है। ग्रब की अवस्था में 8 से 10 सप्ताह तक रहती है पूर्ण विकसित ग्रब अब प्यूपा या शंखी अवस्था में जाने के लिए भूमि के नीचे की ओर जाना शुरू कर देते है और सितंबर अक्टूबर में प्यूपा या शंखी अवस्था में होते है।
  • सफेद ग्रब भूमि के नीचे गन्ना की छोटी-छोटी मुलायम जड़ो को खाकर जीवित रहते हैं और गन्ना के भूमिगत भाग को क्षतिग्रस्त कर देते हैं।
  • सूंड़ी द्वारा जड़ को काट देने से पूरा पौधा पीला पड़ कर सूखने लगता है ऐसे सूंड़ी लगे पौधे उखाड़ने पर आसानी से मिट्टी के बाहर आ जाते हैं ग्रब द्वारा जड़ों को खाने के कारण गन्ने की पत्तियां पीली पड़ कर सूखने लगती है। खेत में जगह-जगह सूखे पौधे नजर आने लगते हैं। इस कीट की दूसरी व तीसरी स्थिति की सूंडि़यां पौधों की बड़ी जड़ों को काटती हैं खेत में कच्चा खाद डालने से इसका प्रकोप अधिक होता है।
  • अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में सफेद ग्रब जड़ तंत्र को नष्ट कर देते है जिसके फलस्वरूप गन्ना के पौधों को भूमि में भोजन मिलना बंद हो जाता है और कालांतर में यह सूख जाते है।


प्रबंधन
  • बसंत कालीन गन्ना के रुपाई जल्दी ही कर देनी चाहिए जिममे जून.जुलाई तक गन्ना के पौधों के जड़तंत्र अच्छा विकसित हो सके जो ग्रब आक्रमण को सहन कर सकते है।
  • गर्मी की प्रथम वर्षा के बाद गन्ना के अंतों के आसपास पाए जाने वाले पेड़ो पर इमिडाक्लोप्रिड कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए जिससे रात में पेडों पर पर आने वाले व्यस्क कीट मर जाते हैं जिसके फलस्वरूप इनकी नई पीढ़ी आने में रोक लगती है इस कार्यक्रम को अभियान के रूप में एक साथ करना चाहिए।
  • गने की खड़ी फसल में क्लोथियानिडीन 50% दानेदार कीटनाशी की 100 ग्राम मात्रा 500 लीटर पानी में घोल बनाकर जुलाई माह में गन्ना पौधों की जड़ों में ड्रेचिंग करने में अच्छे परिणाम मिलते है द्य
  • मई के आखिर में जैसे ही पहली बरसात हो जाए और कीड़े निकलना शुरू हो जाएंए तो प्रकाश प्रपंच लगा देना चाहिए।
  • सुबह-सुबह खेत की गहरी जुताई कर के छोड़ दें ताकि पक्षी कीड़ों को खा सकें।
  • खेत की जुताई ऐसे यंत्रों से न करें जिन में जुताई के साथसाथ पाटा लगता हो या पाटा लगाने वाले यंत्र में 4.5 इंच की कीलें लगी होनी चाहिए ताकि कीलें सूंडि़यों को काट सकें।
  • अधिक प्रतिरोधक प्रजातियाँ उपजाएं।
  • अगली रोपाई करने से पूर्व जुताई कर शेष बचे कीटों को सामने लायें।
  • सही उर्वरकों के संतुलन के द्वारा मिट्टी की उर्वरकता स्तर को बनाये रखें।
  • अंतिम फसल के बादए गहरी जुताई करेंए फसल के अवशेषों और ठूंठों को हटा कर जला दें।

फॉल आर्मीवर्म

पहचान
  • इस कीट की मादा मोथ (शलभ) होती है जिस पर सफेद 50-150 समह में सामान्यतर: पत्तो पर अंडे देती है तथा अंड समूह हल्के बालो से ढका रहता हैअंड समूह से 3.5 दिनों बाद इल्लियाँ निकलकर गोभ में चली जाती है।
  • फॉल आर्मीवर्म की इल्ली हल्के भूरे रंग से काले रंग की तीन पीले रंग की धारियां लिए होती है।
  • इसके माथे पर सफेद रंग का उल्टा 'Y ' निशान बना होता है।

क्षति के लक्षण
  • कीट की इल्लियाँ पत्तियों को खुरच-खुरच कर खाती है और पत्तो पर छोटे-छोटे बिद्र बन जाते है।
  • यह कीट मुख्यतः मक्का की फसल में पाया जाता है परन्तु मक्का की अनुपस्थिति में यह गन्नाए धान आदि फसलों को नुकसान पहुंचाता है।

प्रबंधन
  • कीटग्रस्त खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी खुदाई की जानी चाहिए जिससे इस कीट की शंखी अवस्था को नष्ट किया जा सके ।
  • पौधों पर नीम के तेल का छिड़डकाव करें जिससे इल्लियाँ पत्तों को न खा सकें।
  • कीटनाशक के प्रयोग हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एम.एल. (1.0 ली. मात्रा/1000 लीटर पानी प्रति है का घोल बनाकर गोभ की तरफ फुब्बारा रखते हुए छिड़काव करना चाहिए ।


लाल सड़न रोग

रोग के लक्षण
  • लाल सड़न एक फफूंद जनित रोग है जिसके प्रारंभिक लक्षणों में गन्ने की पूर्ण विकसित तीसरी से चौथी पत्ती की मध्यशिरा के नीचे की ओर रुद्राक्ष या मोती जैंसे धब्बो के साथ गर्मियों में सूखती जाती है।
  • पत्तियां किनारों से सूखना प्रारंभ होकर पूरे शीर्ष तक सूखती जाती है ये लक्षण मुख्यतरू जुलाई अगस्त में दिखाई देते है।
  • रोग ग्रसित गन्ने को चीरकर देखा जाये टो बीच का भाग लाल दिखाई देता है जिसमे सफ़ेद रंग के धब्बे प्रतीत होते है।
  • लम्बवत चीरे हुए गन्ने से एल्कोहल जैंसी गंध आती है।


रोग प्रबंधन
  • गर्मी के महीनो में गन्ने के खेतो का नियमित रूप से निरिक्षण करके लाल सड़न संक्रमित पौधो की लक्षणों (मध्य शिरा के नीचे रुद्राक्ष/मोती जैंसे धब्बे) के आधार पर पहचान करनी चाहिए द्य संकमित पौधो को निकाल के जलाकर नष्ट करे एवं गड्डे में 5 से 10 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डालकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।
  • जून जुलाई में लाल सड़न संक्रमित खेतो में टेबुकोनोजोल + ट्राईफ्लोक्सीस्त्रोबिन 75 WDG या मेटिरम 55%  + पाइराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG (500) पी.पी.एम.) का छिड़काव करे।
  • संक्रमित खेत से सिचाई के पानी के रिसाव को रोकने के लिए उचित मेड बनाये।
  • लाल सड़न संक्रमित खेत को प्राथमिकता के आधार पर काटने की व्यवस्था करनी चाहिये तथा रोग के संरोपण द्रव्य (इनोकुलम) के अग्रिम प्रसार को रोकने के लिए खेत की गहरी जुताई करके 10 किलो प्रति एकड़ ब्लीचिंग पाउडर 25 किलो रेत या मिट्टी में मिलाकर डालना चाहिए।
  • लाल सड़न संक्रमित फसल (10% से अधिक संक्रमण) की पेड़ी फसल न रखें तथा गन्ने के बाद एक वर्ष तक अन्य फसल चक्र अपनाएं।
  • चूंकि लाल सड़न मुख्यतर रोगग्रस्त बीज के माध्यम से फैलता है इसलिए बीज विश्वसनीय स्रोत से खरीदाना चाहिए।
  • चौड़ी पंक्ति बिजाई विधि को अपनाएं व जल प्रवाह के साथ लाल सड़न रोगजन कों के प्रारंभिक प्रसार को रोकने हेतु मानसून शुरु होने से पहले मिटटी चढ़ाने का कार्य अनिवार्य रूप से करें द्य

कंडुवा रोग

रोग के लक्षण
  • कंडुवा गन्ने की पैड़ी फसल का एक प्रमुख रोग है जो अस्टीलागो सिटामिनीआ नामक फफूंद से उत्पन होता है।
  • रोग का प्राथमिक संचरण संक्रमित बीज से होता है।
  • रोग ग्रस्त पौधों की गोब से चाबुक समान सरंचना निकलती है जो सिल्वर रंग की झिल्ली द्वारा ढकी होती है जिसमे फफूंद के काले बीजाणु भरे होते हैं।
  • रोगग्रस्त पौधों में कल्लों का फुटाव हो जाता है जो पतले व बौने रह जाते है।

रोग का प्रबंधन
  • कंडुवा संक्रमित पौधों/चाबुक को पॉलीथीन बैग में सावधानी से इकट्ठा करके जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • साफ मौसम में प्रोपिकोनाजोल 25 ई सी / 0.1% का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव कर सकते है।
  • रोगग्रस्त फ़सल की अगली पैड़ी न रखें।
  • रोगग्रस्त खेतों में फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए।
  • कंडुवा मुख्यत: रोगग्रस्त बीज के माध्यम से फैलता है इसलिए बीज विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदाना चाहिए तथा एम.एच.ए.ए.टी. प्रक्रिया के बाद बीज उत्पादन की त्रिस्तरीय बीज नर्सरी कार्यक्रम को अपनाना चाहिए।
सन्दर्भ-  भा.कृ.अनु. प.  गन्ना प्रजनन संस्थान कोयम्बत्तूर