डॉ.आर. एस. राजपूत, विजय कुमार, कमलेश सिंह, पी.आर. बोबडे, डोमन टेकाम एवं पी. सी. कंवर
कृषि विज्ञान केन्द्र कोरिया, छत्तीसगढ़

मधुमक्खियों का मानव जाति से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह कीट मानव जाति के कल्याण में हमेशा तत्पर रहता है। यह कीट किसानों का सच्चा मित्र है, अन्य जीवों की तरह मधुमक्खियों को भी अन्य प्राणियों के समान मधुमक्खी क्लोनियों को भी विभिन्न रोगों तथा शत्रुओं से बहुत क्षति होती है। मधुमक्खी रोगों से उनके झुण्ड या वयस्क मधुमक्खियां संक्रमित हो सकते हैं। इसी प्रकार, मधुमक्खियों के कुछ शत्रु उनके झुण्डों पर आक्रमण करते हैं जबकि अन्य वयस्क मधुमक्खियों को संक्रमित करते हैं। मधुमक्खियों के इन शत्रुओं से न केवल मधुमक्खियों की क्लोनियों की संख्या में कमी आती है बल्कि इन क्लोनियों की उत्पादकता व लाभप्रदता भी कम हो जाती है। मधुमक्खी के दुश्मनों के बारे में जानकारी हासिल करना आवश्यक है। ताकि हम अपने मित्र कीट को संकट से बचाने का प्रयास कर सके। तो आइए जाने, मधुमक्खी पालन के प्रमुख समस्याएँ और समाधान दुश्मन कीट, बीमारियाँ तथा विषैली दवाओं से बचाव।

शरदऋतु में मधुवाटिका का प्रबंधन
शरद ऋतु में विशेष रूप से अधिक ठंड पड़ती है जिससे तापमान कभी-कभी 10 या 5° सेन्टीग्रेट से निचे तक चला जाता है। ऐसे में मौन वंशो को सर्दी से बचाना जरुरी हो जाता है।
  • सर्दी से बचाने के लिए मौनपालको को टाट की बोरी का दो तह बनाकर आंतरिक ढक्कन के निचे बिछा देना चाहिए। यह कार्य अक्टूबर में करना चाहिये। इससे मौन गृह का तापमान एक समान गर्म बना रहता है।
  • पोलीथिन से प्रवेश द्वार को छोड़कर पूरे बक्से को ढक देना चाहिए। या घास फूस या पुवाल का छापर टाट बना कर बक्सों को ढक देना चाहिए ।
  • इस समय मौन गृहों को ऐसे स्थान पर रखना चाहिये। जहाँ जमींन सुखी हो तथा दिन भर धुप रहती हो परिणामस्वरूप मधुमक्खियाँ अधिक समय तक कार्य करेगी अक्टूबर में यह देख लेना चाहिये।
  • रानी अच्छी हो तथा 1 साल से अधिक पुरानी तो नही है यदि ऐसा है तो उस वंश को नई रानी दे देना चाहिये। जिससे शरद ऋतु में श्रमिको की आवश्यक बनी रहे जिससे मौन वंश कमजोर न हो ऐसे क्षेत्र जहाँ शीतलहर चलती हो तो इसके प्रारम्भ होने से पूर्व ही यह निश्चित कर लेना चाहिये। की मौन गृह में आवश्यक मात्रा में शहद और पराग है या नही ।
  • यदि शहद कम है तो मौन वंशों को 1:1 के अनुपात में चीनी और पानी का घोल बनाकर उबालकर ठंडा होने के पश्चात मौन गृहों के अंदर रख देना चाहिये। जिससे मौनो को भोजन की कमी न हो ।
  • यदि मौन गृह पुराने हो गये हो या टूट गये हो तो उनकी मरम्मत अक्टूबर नवम्बर तक अवश्य करा लेना चाहिए। जिससे इनको सर्दियों से बचाया जा सके।
  • इस समय मौन वंसो को फुल वाले स्थान पर रखना चाहिये। जिससे कम समय में अधिक से अधिक मकरंद और पराग एकत्र किया जा सके ज्यादा ठंढ होने पर मौन गृहों को नही खोलना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने पर ठण्ड लगने से शिशु मक्खियों के मरने का डर रहता है। साथ ही श्रमिक मधुमक्खियाँ डंक मरने लगती है पर्वतीय क्षेत्रो में अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर गेहूं के भूंसे या धान के पुवाल से अच्छी तरह मौन गृह को ढक देना चाहिए।

बसंत ऋतु में मौन प्रबंधन
  • बसंत ऋतु मधुमक्खियों और मौन पालको के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इस समय सभी स्थानों में प्रयाप्त मात्रा में पराग और मकरंद उपलब्ध रहते है जिससे मौनों की संख्या दुगनी बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप शहद का उत्पादन भी बढ़ जाता है। इस समय देख रेख की आवश्यकता उतनी ही पड़ती है जितनी अन्य मौसमो में होती है।
  • शरद ऋतु समाप्त होने पर धीरे धीरे मौन गृह की पैकिंग (टाट, पट्टी और पुरल के छापर इत्यादि) हटा देना चाहिए।
  • मौन गृहों को खाली कर उनकी अच्छी तरह से सफाई कर लेना चाहिए।
  • पेंदी पर लगे मौन को भलीभांति खुरच कर हट देना चाहिए संम्भव हो तो 500 ग्राम का प्रयोग दरारों में करना चाहिए जिससे कि माईट को मारा जा सके।
  • मौन गृहों पर बहार से सफेद पेंट लगा देना चाहिए। जिससे बहार से आने वाली गर्मी में मौन गृहों का तापमान कम रह सके ।
  • बसंत ऋतु प्रारम्भ में मौन वंशो को कृत्रिम भोजन देने से उनकी संख्या और क्षमता बढती है। जिससे अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सके।
  • रानी यदि पुरानी हो गयी हो तो उसे मारकर अंडे वाला फ्रेम दे देना चाहिए। गृह में मौन की संख्या बढ़ गयी हों तो मोम लगा हुआ अतिरिक्त फ्रेम देना चाहिए। जिससे की मधुमक्खियाँ छत्ते बना सके
  • छत्तों में शहद भर गया हो तो मधु निष्कासन यंत्र से शहद को निकल लेना चाहिए। जिससे मधुमक्खियां अधिक क्षमता के साथ कार्य कर सके
  • नरो की संख्या बढ़ गयी हो तो नर प्रपंच लगा कर इनकी संख्या को नियंत्रित कर देना चाहिए।

ग्रीष्म ऋतु में मौन प्रबंधन
ग्रीष्म ऋतु में मौनो की देख भाल ज्यादा जरुरी होता है जिन क्षेत्रो में तापमान 40° सेंटीग्रेट से उपर तक पहुचना है। वहां पर मौन गृहों को किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए। लेकिन सुबह की सूर्य की रौशनी मौन गृहों पर पडनी आवश्यक है जिससे मधुमक्खियाँ सुबह से ही सक्रीय होकर अपना कार्य करना प्रारम्भ कर सके ।
  • इस समय मधुमक्खियों को साफ और बहते हुए पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए पानी को उचित व्यवस्था मधुवातिका के आस पास होना चाहिये ।
  • मौनो को लू से बचने के लिए छ्प्पर का प्रयोग करना चाहिये जिससे गर्म हवा सीधे मौन गृहों के अंदर न घुस सके अतिरिक्त फ्रेम को बाहर निकल कर उचित भण्डारण करना चाहिये।
  • जिससे मोमी पतंगा के प्रकोप से बचाया जा सके मौन वाटिका में यदि छायादार स्थान न हो तो बक्से के उपर छप्पर या पुआल डालकर उसे सुबह शाम भिगोते रहना चाहिये। जिससे मौन गृह का तापमान कम बना रहे ।
  • कृत्रिम भोजन के रूप में 1:1 के अनुपात में चीनी और पानी के उबल कर ठंडा होने अपर मौन गृह के अंदर कटोरी या फीडर में रखना चाहिये।
  • मौन गृह के स्टैंड की कटोरियों में प्रतिदिन साफ और ताजा पानी डालना चाहिए। यदि मौनो की संख्या ज्यादा बढ़ने लगे तो अतिरिक्त फ्रेम डालना चाहिए।

वर्षा ऋतु में मौन प्रबंधन
वर्षा ऋतु में तेज वर्षा, हवा और शत्रुओं जैसे चींटियाँ, मोमी पतंगा, पक्षियों का प्रकोप होता है मोमि पतंगों के प्रकोप को रोकने के लिए छतो को हटा दे ।
फ्लोर बोड को साफ करे तथा गंधक पाउडर छिडके चीटो को रोकथाम के लिए स्टैंड को पानी भरा बर्तन में रखे तथा पानी में दो तीन बूंदें काले तेल की डाले मोमी पतंगों से प्रभावित छत्ते, पुराने काले छत्ते एवं फफूंद लगे छत्तों को निकल कर अलग कर देना चाहिए।

मधुमक्खी परिवारों का विभाजन एवं जोड़ना

विभाजन
अच्छे मौसम में मधुमक्खियों की संख्या बढती है तो मधुमक्खी परिवारों का विभाजन करना चाहिये। ऐसा न किये जाने पर मक्खियाँ घर छोड़कर भाग सकती है। विभाजन के लिए मूल परिवार के पास दूसरा खाली बक्सा रखे तथा मूल मधुमक्खी परिवार से 50 प्रतिशत ब्रुड, शहद व पराग वाले फ्रेम रखे रानी वाला फ्रेम भी नये बक्से में रखे मूल बक्से में यदि रानी कोष्ठ हो तो अच्छा है अन्यथा कमेरी मक्खियाँ स्वयं रानी कोष्ठक बना लेगी तथा 16 दिन बाद रानी बन जाएगी। दोनों बक्सों को रोज एक फीट एक दुसरे से दूर करते जाये और नया बक्सा तैयार हो जायेगा।

जोड़ना
जब मधुमाखी परिवार कमजोर हो और रानी रहित हो तो ऐसे परिवार को दुसरे परिवार में जोड़ दिया जाता है। इसके लिए एक अखबार में छोटे छोटे छेद बनाकर रानी वाले परिवार के शिशु खण्ड के उपर रख लेते है। तथा मिलाने वाले परिवार के फ्रेम एक सुपर में लगाकर इसे रानी वाले परिवार के उपर रख दिया जाता है। अखबार के उपर थोडा शहद छिडक दिया जाता है जिससे 10-12 घंटों में दोनों परिवारों की गंध आपस में मिल जाती है। बाद में सुपर और अखबार को हटाकर फ्रेमो को शिशु खण्ड में रखा जाता है।

मधु मक्खी को पकड़ना
मधुमक्खियों का कोई भी छत्ता बिना कार्य नहीं कर सकता। कंघी और मधुमक्खियों को उनके प्राकृतिक घोंसले से निकाल दिया जाता है और लकड़ी के छत्ते में रखा जाता है। यह अभ्यास आम तौर पर सुबह या देर शाम को किया जाता है। मौसम आमतौर पर स्पष्ट होता है और इस अवधि के दौरान सूरज हल्का होता है। एक और तरीका है कि अलग-अलग स्थानों पर प्याज़ पित्ती रखें। धब्बे ऐसे स्थान होने चाहिए, जहाँ मधुमक्खियों के झुंड होने की संभावना हो। एक बार एक झुंड बैठ जाता है, डिकॉय हाइव लिया जाता है और कॉलोनी को जंगम हाइव फ्रेम में स्थानांतरित कर दिया जाता है। चूंकि श्रमिक रानी के बिना छत्ते में नहीं रहते हैं, इसलिए रानी की उपस्थिति आवश्यक है। आम तौर पर, जब एक कॉलोनी की खरीद की जाती है तो उसमें एक युवा रानी मधुमक्खी और मज़दूर मधुमक्खियों का झुंड होना चाहिए।

रानी का पालन-पोषण
हालांकि रानी मधुमक्खियां 3 साल तक अंडे दे सकती हैं, औसतन वे एक साल या अधिकतम दो साल तक निषेचित अंडे दे सकती हैं। इस अवधि के बाद वे असुरक्षित अंडे देना शुरू करते हैं। इससे कॉलोनी प्रभावित होती है। आम तौर पर किसान एक और रानी मधुमक्खी रखकर कॉलोनियों को पुनर्जीवित करते हैं। इस प्रक्रिया को आवश्यक कहा जाता है। एपिकल्चर में, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे हर एक और डेढ़ साल के बाद अपने पित्ती की अनुमति दें।

झुंड की रोकथाम
मधुमक्खी कॉलोनी की ताकत उसके कार्यकर्ता मधुमक्खियों में निहित है। स्वीमिंग एक प्राकृतिक प्रजनन प्रक्रिया है जो आमतौर पर अनौपचारिक है। इसका कारण यह है कि कार्य बल के बड़े हिस्से कॉलोनी को छोड़ देते हैं, जिससे यह कमजोर हो जाता है। झुंड के मौसम के दौरान, रानी को हटा दिया जाता है और पिंजरे में रखा जाता है और रानी कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है। स्वीमिंग की अवधि को कम करने और दूर जाने में लगभग 10 दिन लगते हैं। इसके बाद रानी को पर्यावरण में छोड़ा जाता है।

मधु मक्खी का खेती में प्रवास
मधुमक्खी पालनकर्ताओं द्वारा प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में और फूलों की कमी के कारण कॉलोनी प्रवास किया जाता है। सेंट्रल बी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ने मधुमक्खी कॉलोनी प्रवास के लिए एक टाइम-टेबल विकसित किया है।



कीट और रोकथाम

मधुमक्खियों के प्रमुख दुश्मन
मोम पतंगा (बैक्समोथ), बरें (वास्य), पंक्षी, जानवर, चूहा, चींटी, मकड़ा, सूडोस्कोर्पियन आदि मधुमक्खियों के दुश्मन होते हैं।

दुश्मनों से मधुमक्खियों को नुकसान
मोम पतंगा अवसर पाते ही बक्सा के अन्दर घुस जाता है एवं छत्ते में या मौन गृह की दीवारों और छत व आधार भाग पर अण्डे देती है। मोम पतंगे के शिशु प्रारम्भ में मधुमक्खी गृह के अन्दर शहद, पुष्परस और संचित पराग को खाकर क्षति पहुँचाते हैं। इसके बाद शिशु छत्तों में छिद्र करके मोम को खाते हुए सुरंग बनाते है एवं मधुमक्खियों के शिशुओं को भी खा जाते हैं।
    पन्द्रह दिनों में इस शत्रुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण छत्ता शत्रु कीट के शिशुओं और मल पदार्थों से भर जाता है तथा मधुमक्खियों को बाध्य होकर अपना घर छोड़ना पड़ता है। इस शत्रु कीट का आक्रमण सालों भर होता है, किन्तु बरसात के मौसम में सबसे अधिक होता है।

रोकथाम के उपाय
  • बक्सा की दीवारों में सभी अनावश्यक छिद्र और दरारों को बन्द कर देना चाहिए।
  • बक्सा में कभी भी खाली पुराना छत्ता नहीं छोड़ना चाहिए।
  • छत्ते के टुकड़े या बुरादा को आधार भाग पर जमा नहीं होने देना चाहिए, बक्सा के निचे के भाग को को समय-समय पर धूप में सुखाना चाहिए।
  • मोम पतंगा से बचाव के लिए गंधक के धूएँ से मधुपेटी को धूमित करना चाहिए और समय-समय पर भुरकाव भी करना चाहिए।
  • प्रभावित छत्तों से मोम पतंगों के शिशुओं को समय-समय पर धूप दिखाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • अतिरिक्त छत्तों और मोम पदार्थों को हमेशा बन्द करके रखना चाहिए नही तो मोमी पतंगा के आक्रमण की सम्भावना बनी रहती है, इन छत्तों को 10 से 15 दिनों के अन्तर पर गंधक के धुएँ से धुमित करना चाहिए।
  • मौन गृहों का बराबर निरीक्षण करना चाहिए, यदि मोमी पतंगा का अण्डा दिखलायी पड़े तो उसे नष्ट कर देना चाहिए, यदि मोमी पतंगा का शिशु दिखलायी पड़े तो छत्तों को सूर्य की गर्मी में रखें ताकि पिल्लू नष्ट हो जाये।
  • मधुमक्खी परिवार को हमेशा शक्तिशाली बनाकर रखना चाहिए, शक्तिशाली परिवार मोम पतंगा या कीटों को मारने में सक्षम होते हैं।
  • फिनाइल की एक गोली को चूर्ण बनाकर पतले कपड़े में बांधकर बक्से के अन्दर रखा जा सकता है।
  • माइट के प्रबंधन के लिए थाइमोल या लेक्टिक अम्ल (15 प्रतिशत के 0 मी.ली.) से मधुमक्खियों के छतों को उपचारित करे या आक्जेलिक अम्ल के 32.0 ग्राम को शक़्कर के शरबत (1:1) में घोले एवं इसके 20-30 मिली. का प्रयोग

बिढ़ना या बरें
यह मधुमक्खियों का अत्याधिक हानिकारक शत्रु है। इसकी अनेक प्रजातियां पायी जाती है। पीले रंग का बरें अधिक क्षति पहुँचाती है, यह मधुमक्खियों को पकड़कर खा जाती है। इसका अधिक प्रकोप होने पर मधुमक्खियाँ बक्सा छोड़कर भाग जाती है।

रोकथाम
आस-पास में बने बरें की छत्तों को समूल नष्ट कर देना चाहिए, मौन गृहों के प्रवेश द्वार छोटा रखना चाहिए ताकि बरे अन्दर प्रवेश नहीं कर सकें।

मकड़ी माइट
मधुमक्खियों में माइट के आक्रमण का भय बराबर बना रहता है एवं वह भय आमतौर पर बरसात के महीनों में सबसे अधिक होता है, माईट से प्रभावित मधुमक्खियों के बच्चों के पंख नहीं होते और वे ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाते हैं।

रोकथाम
इससे बचाव के लिए गंधक धूल 200 मिलीग्राम प्रति फ्रेम का भूरकाव करना चाहिए।

पंक्षी या चिड़ियाँ
भक्षी चिड़ियाँ (काला कौवा, कोबा, कांबा, कठफोडवा) मौनगृहों के आसपास रहकर मधुमक्खियों को पकड़कर खा जाते है। जब आकाश में बादल छाये हुए रहते है, उस समय भक्षी चिड़ियों का प्रकोप अधिक हो जाता है।

रोकथाम
तेज आवाज पैदा करके या पत्थर मार कर चिड़ियों को भगाया जा सकता है, इसके लिए मौन के देखभाल बराबर करते रहना चाहिए।

चिटियाँ और दीमक
आधार स्तम्भ के सहारे चीटियाँ (लाल और काली चीटियाँ) बक्सा की दरारें और अन्य छिद्रों के द्वारा प्रवेश कर मधु को खाती हैं, वह शिशुओं को भी क्षति करती है। दीमक मधुमक्खी गृहों, लकड़ी के स्तम्भों, मिट्टी के घर आदि को नुकसान करता है। कभी-कभी ये दीमक मौनगृह के अन्दर प्रवेश कर शिशुओं और वयस्कों को हानि पहुँचाते हैं, जिसके कारण मधुमक्खियों को घर छोड़ना पड़ता है।

रोकथाम
मौन गृहों का देखभाल बराबर करनी चाहिए, मधुमक्खी के बक्सों को लोहे के स्टैंड पर रखकर पैरों के नीचे चींटी निरोधक प्यालियों में पानी भरकर रखना चाहिए, रात के समय चींटी और दीमक के प्रवेश द्वार को कीटनाशी (क्लोरपारीफास तरल) से उपचारित करना चाहिए।

जानवर
मौनगृहों की जानवरों से भी रक्षा करना आवश्यक है, जैसे- भालू, बन्दर, लोमड़ी और चूहा आदि।

उपाय
मधुमक्खी पालन गृह में चौकीदार का प्रबन्ध होना चाहिए, पालनगृह के चारों ओर घेरा लगाना चाहिए।




प्रमुख रोग और समाधान

सैकब्रूड
यह विषाणु जनित रोग है। इसका प्रकोप शिशुओं (मग्गोट) में विकास की विभिन्न अवस्थाओं के समय होता है। इस रोग के लक्षण सिर में उभार एवं सिकुड़न के रूप में दिखाई देती है ।

नोसिमा रोग
इस रोग से ग्रसित मधुमक्खियों के उदर फूल जाते है। इसके प्रबंधन हेतु साफ़ पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। उपकरणों को पोटेशियम परमेंगनेट आदि से धोकर सुखाने के बाद में उपयोग में लेना चाहिए।

मधुमक्खियों में समन्वित रोग प्रबंधन
  • किसान समय-समय पर मधुमक्खियों के छत्तो (कोंब) को धुप में 15से 20 मिनट तक जरूर रखें।
  • समय-समय पर मधुमक्खियों के डिब्बों की साफ़ सफाई करे। डिब्बों के किनारो की सफाई के लिए बुन्सन बर्नर का प्रयोग अवश्य करें।
  • मधुमक्खियों के खाली छतों को गंधक (सल्फर) के चूर्ण से 230 ग्राम प्रति घन मीटर से उपचारित करें। निर्जमीकृत करने के लिए किसान फॉर्मिक अम्ल (85 प्रतिशत) के 0 मिली का प्रयोग प्रति मौन ग्रह करना चाहिए
  • किसान मधुमक्खियों के डिब्बों को स्टैंड पर जमींन से 40 से 60 से.मी. की ऊंचाई पर रखे। किसान स्टैंड के पाओ को पानी से भरी हुई कटोरियों के अंदर रखना चाहिए।
  • सल्फर (5 प्रतिशत) का प्रयोग 0.5 ग्राम/ फ्रेम केवल फ्रेम के ऊपरी सतह पर सावधानी से करे, जिस से मधुमक्खियों के संपर्क में नहीं आ पाए, क्योंकि मधुमक्खियों के लिए यह हानिकारक होता है। यह दवाई रुई के फोहे की साहयता से ही लगाए।
  • किसान भाई यह ध्यान रखे की मधुमक्खियों में रोग नियंत्रण की विधियों को बदलते रहना चाहिए जैसे आक्जेलिक अम्ल के प्रयोग के बाद फार्मिक अम्ल (66 प्रतिशत ) का प्रयोग करे।
  • किसान भाई जहाँ तक संभव हो सके कॉलोनियों में “जालीदार तलपट्टों” का ही प्रयोग करे, इन के प्रयोग से वारोआ माइट के प्रकोप में 25 प्रतिशत की कमी देखी गई है। दिसंबर से अप्रैल माह तक कॉलोनियों में सुपर लगाना चाहिए।
  • किसान भाई दो एपियरी के मध्य कम से कम 0 किलोमीटर की दुरी रखे। कॉलोनियों की पंक्तियों के बीच की दुरी 10 फ़ीट एवं कॉलोनियों के बीच की दुरी कम से कम 3.0 फ़ीट रखे।
  • संक्रमित कॉलोनी से छत्ते न बदलें न ही संक्रमित कॉलोनी वाले उपकरणों का प्रयोग नई कॉलोनी में काम में ले।
  • सैकब्रूड के नियंत्रण के लिए प्रभावित छत्तों पर ध्रुमक (धुएं) के रूप में 0 प्रतिशत थाइमोल घोल के 3.0 का प्रति मौन गृह मं प्रयोग करना चाहिए।
  • पेचिस रोग के लिये टेट्रासायक्लीन का एक कैप्सुल एक लीटर चीनी की चासनी में मिलाकर भोजन के रूप में देना चाहिए।
  • बीमारी से समाप्त मौन वंश के मौन गृह और दूषित एवं अन्य उपकरणों मे डुबोकर पुनः पोटाशियम परमैगनेट के घोल में डुबोकर साफ कर लेना चाहिए।
  • सैक ब्रुड की रोकथाम के लिए फार्मलीन 150 मिलीलीटर प्रति 25 घन सेंटीमीटर का धुआँ बक्से के अन्दर करना चाहिए।

कीटनाशी दवाओं का मधुमक्खियों पर प्रभाव
कीटनाशक दवाओं का प्रभाव मधुमक्खियों पर तब होता है, जब वे फूलों पर बैठकर पराग या पुष्परस इकट्ठा करते हैं। जब मधुमक्खियाँ कीटनाशक दवा का प्रयोग की हुई फसलों के फूलों से पराग या पुष्परस इकट्ठा करके अपने छत्ते में वापस जाती है, तो ये मर जाती है।
    कुछ मधुमक्खियाँ पराग इकट्ठा करते समय भी मर जाती है। इसके अलावे प्रदूषित पानी पीने से भी कुछ मधुमक्खियाँ मर जाती है। कीटनाशक दवाएँ परागणों के साथ ही मधुमक्खियों के द्वारा छत्ते में लायी जाती है, जिससे छत्ते में रहने वाली प्रौढ़ और शिशु मधुमक्खियाँ विष के प्रभाव से मर जाती हैं।

रोकथाम के उपाय
  • कुछ कीटनाशक खतरनाक होते हैं, इनका प्रयोग फसलों में फूल आने पर नहीं करना चाहिए, जैसे- डायमैथएट, आदि।
  • कुछ कीटनाशक वैसे होते है, जिनका प्रयोग फूल आने के बाद भी किया जा सकता है, जैसे- मिथाइल डिमेटोन, निकोटिन सल्फेट आदि।
  • वानस्पतिक कीटनाशक जैसे – नीम बीज, हरा मिर्च और गोमूत्र, ऐसे कीटनाशी का फसलों में प्रयोग किया जा सकता है।
  • दवा का प्रयोग आमतौर पर दोपहर के बाद और शाम में करना चाहिए।
  • कीटनाशक के छिड़काव करने के बजाय दानेदार दवा का प्रयोग लाभदायक होता है।
  • धूल का भूरकाव छिड़काव की अपेक्षा अधिक हानिकारक होता है।

मधुमक्खियों का दुश्मनों से बचाव
दुश्मनों से बचाव के लिए प्रतिदिन मौन गृहों की देखभाल करते रहना चाहिए, मधुमक्खियों को बिषैली दवाओं से बचाव के लिए दवाओं के छिड़काव के पहले मधुपेटियों के द्वार को बन्द कर देना चाहिए और दवाओं का छिड़काव शाम के समय करना चाहिए।