प्रदीप कुमार साहू (यंग प्रोफेशनल), डाॅ. दिबयेंदु दास, श्री मनीष कुमार वर्मा, श्री उत्तम कुमार दिवान, सुश्री ऑचल नाग, श्री सुरज गोलदार,
कृषि विज्ञान केन्द्र, नारायणपुर (छ.ग.)
पिन. नं. – 494661

औषधीय पौधों की खेती अर्थात् मेडिसिनल प्लांट की खेती आमदनी का अच्छा स्त्रोत बन सकता है। मेडिसिनल प्लांट की खेती के क्षेत्र में किसान भाई 20 हजार रूपये खर्च करके तीन बार महीने में लगभग डेढ़ से 2 लाख रूपये आमदनी कमा सकते हैं। औषधीय पौधे की खेती से काफी मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।
    कम अवधि में उत्पादन देने वाली औषधीय खेती दो प्रकार से किया जा सकता है। आँवला, नीम, चंदन, यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण पौधे हैं। जबकि कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय पौधों में ईसबगोल, चंदसूर, तुलसी, कालमेघ, एलोवेरा, हल्दी, सदाबहार सर्पगंधा, अश्वगंधा, आदि पौधे हैं। इन सभी पौधे का आयुर्वेदिक औषधी एवं दवाएँ बनाने में उपयोग किया जाता है। इन सभी पौधे की खेती, एक वर्ष के अनुसार कर सकते हैं।

1. ईसबगोल 
ईसबगोल की खेती करने के लिए बहुत ही कम समय में अधिक उत्पादन और आय अर्जित किया जा सकता है। इसकी खेती तीन से चार महीने में तैयार हो जाती है और इससे लगभग दो से ढाई लाख रूपये शुद्ध लाभ लिया जा सकता है। आम तौर पर इसकी फसल तीन से चार महीने में तैयार हो जाती है। एक हे. में लगभग 12-15 क्विंटल उपज प्राप्त होती है। ईसबगोल के बीज में उपयोग किया जाता है। इसकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 40 हजार रूपये प्रति क्विंटल से ज्यादा भाव में बिकती है।

2. लेमनग्रास की खेती
गर्म जलवायु वाले देशों सिंगापुर, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, चाइना, ताइवान, भारत, श्रीलंका में उगाये जाने वाला हर्बल पौधा है। इसकी पत्तियों का उपयोग लेमन टी बनाने में होता है। इससे निकलने वाले तेल का उपयोग कई प्रकार से सौंदर्य प्रसाधन एवं खाद्य में नींबू की खुशबु (फ्लेवर) लाने के लिए होता है।
    भारत में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए (।प्ब्त्च् वद औषधीय एवं सुगंधित) के जरिये बढ़ावा मिल रहा है, एवं इसके द्वारा उन्नतशील जातियां, विकास संभव हो पाया है। किसानों को प्रशिक्षण एवं इनके प्रसंस्करण हेतु उचित मार्गदर्शन एवं बाजार की जानकारी सुगमतापूर्वक संभव हेतु प्रयास जारी है। इसकी खेती के लिए पहाड़ी क्षेत्र उपयुक्त होते हैं। लेमनग्रास का पौधा एक वर्ष में तीन बार उपज मिलता है। हर कटाई के बाद सिंचाई करने से उत्पादन में वृद्धि होती है। लेमनग्रास की खेती करने के लिए सर्वप्रथम अप्रैल-मई माह में इसकी नर्सरी तैयार की जाती है। प्रति हे. 10 किलो बीज उपयुक्त होता है।


    जुलाई-अगस्त में पौधे खेत में लगाने के योग्य हो जाते हैं। इसके पौधों की क्यारी में 45 से 60 सेमी. की दूरी पर लगाए जाते हैं। प्रति एकड़ में लगभग 2000 पौधे लगाए जा सकते हैं। इस फसल को बहुत ही कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। वर्षा होने पर इसकी सिंचाई आवश्यकतानुसार की जा सकती है। लेमनग्रास की पहली कटाई 120 दिनों के बाद प्रारंभ हो जाती है। इसके बाद दूसरी और तीसरी कटाई 50 से 70 दिनों के अंतराल में होती है। लेमनग्रास के छोटे-छोटे टुकड़े कर आसवन विधि से तेल निकाला जाता है। प्रति एकड़ में लगभग 100 किलोग्राम तेल उत्पादन होता है। जिसकी बाजार कीमत 700रू. किलो से लेकर 900 रूपये किलोग्राम तक होती है।

3. तुलसी की खेती
तुलसी का पौधा प्राचीन समय से ही घर में लगाया जाता रहा है। तुलसी को पौधा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। तुलसी के पौधे औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। तुलसी की खेती व्यावसायिक रूप से होने लगी है। तुलसी के बीज एवं पत्ते को बाजार पर विक्रय किया जाता है। तुलसी कम पानी और कम लागत पर अधिक उत्पादन प्रदान करती है। तुलसी के बीज को बेचने के लिए मंदसौर, नीमच की मंडी बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ, औषधीय पौधों की बिक्री आसानी से हो जाती है।



4. एलोवेरा की खेती
ग्वारपाठा, धृतकुमारी या एलोवेरा जिसका औषधीय एवं सुगंधित महत्व है। एलोवेरा में बहुत ही औषधीय गुण पाये जाते हैं। जो विभिन्न प्रकार की बीमारी में उपचार मंे महत्वपूर्ण है। यूनानी पद्धति में प्रयोग किया जाता है। जैसे-पेट के कीड़े, पेट दर्द, वातविकार, चर्म रोग, जलने पर, नेत्र रोग, चेहरे की चमक बढ़ाने, त्वचा रोग, कील मुंहासे आदि पर लाभदायी है। औद्योगिक रूप से इसका उपयोग, साबुन, सौंदर्य प्रसाधन, क्रीम, शैम्पू, जैल आदि तथा सामान्य शक्तिवर्धक टाॅनिक के रूप में उपयोगी है। इसके औषधीय गुण के कारण घर एवं बगीचा में लगाया जाता है। पहले इस पौधे का उत्पादन व्यावसायिक रूप से नहीं किया जाता था। परंतु अब इनकी बढ़ती मांग के अनुसार किसान भाई व्यवसायिक रूप से खेती करने लगे हैं। इसकी खेती करके किसान भाई समुचित लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

    एलोवेरा के पौधे की सामान्य ऊँचाई 60-90 सेमी. होती है। इसके पत्तों की लंबाई 30-45 सेमी. तथा चौड़ाई 2.5 से 7.5 सेमी. और मोटाई 1.25 सेमी. के लगभग होती है। एलोवेरा में जड़ के ऊपर से तना निकलता है, उसके ऊपर पत्ते निकलते हैं। शुरूवात में पत्ते सफेद रंग के होते हैं। एलोवेरा के पत्ते आगे से नुकीले एवं किनारों पर कटीले होते हैं। पौधों के बीचों-बीच एक दण्ड लाल पुष्प लगते हैं। हमारे देश में अलग-अलग प्रजातियाँ पाई जाती है। जिसका उपयोग कई प्रकार के रोगों के उपचार में किया जाता है।

भारत में औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती कानट्रेक्ट फार्मिंग के आधार पर भी किया जाता है। अगर किसान भाई किसी दवाई कंपनी या औद्योगिक कंपनी के साथ साझा किया है तो उत्पाद की बिक्री में आसानी हो जाती है। भारत के विभिन्न दवाई, हर्बल, एवं आयुर्वेदिक औषधीय एवं सुगंधित उत्पाद तैयार करने वाली कंपनी है। साथ ही साथ इनके मार्केटिंग के जरिए किसान को भटकना नहीं पड़ता है।
    भारत में औषधीय एवं सुगंधित पौधा संस्थान (CIMAP) के द्वारा इन औषधीय फसलों पर रिसर्च के साथ-साथ किसानों को उन्नत उत्पादन तकनीकी, प्रशिक्षण, मार्गदर्शिका भी प्रदान करती है। इनके साथ ही उत्पाद को प्रसंस्करण के लिए तकनीक एवं सहायता प्रदान करती है।