डाॅ. जी. के. दास (विभागाध्यक्ष कृषि मौसम विज्ञान विभाग)
सुजीत सुमेर (एम.एस.सी. कृषि मौसम विज्ञान विभाग अन्तिम वर्ष)
श्रीमती दीपिका उनजन (सहायक प्राध्यापक कृषि मौसम विज्ञान विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

ग्रीष्मकालीन जुताई अच्छे फसल उत्पादन लेने के लिए अत्यधिक आवश्यक है। ऐसे में अगर खाली खेतो की गर्मियों में जुताई कर दी जाये तो यह मृदा उर्वरकता सुधार के साथ-साथ खेतो में फसलों को नुकसान पहुचाने वाले कीड़े मकोड़ो को भी नष्ट कर देती है। गहरी जुताई और मिट्टी पलटने से खरपतवार नियंत्रण कर पौधे के पोषक-तत्वों के बीच प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, जिससे फसल उत्पादकता में वृद्धि होती है। गर्मी की जुताई रबी की फसल कटाई के तुरंत बाद आरम्भ कर देनी चाहिए क्योकि फसल कटने के बाद भूमि में नमी रहने के कारण जुताई आसानी से हो जाती है। प्रातः काल का समय जुताई के लिए सबसे अच्छा रहता हैं क्योंकि कीटों के प्राकृतिक शत्रु परभक्षी पक्षियों की सक्रियता इस समय अधिक रहती हैं।

ग्रीष्मकालीन जुताई क्या है ?
ग्रीष्मकालीन जुताई का अर्थ है कि गर्मियों के दौरान भू-परिष्करण यंत्र के जैसे जुताई करने वाले यंत्रों की मदद से जुताई करना। इसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी की उपरी परत की पपड़ी को गहरी जुताई के साथ खोलना है, जबकि साथ ही साथ एक ही समय में मिट्टी को पीड़को से बचाने के लिए सूर्य के प्रकाश की ओर मिट्टी को पलटना है।

कैंसे करे ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई
गर्मी की जुताई 20 से 25 सेटीमीटर तक किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से ढलान के विपरित करना चाहिये। लेकिन कई किसान ढलान के साथ-साथ ही जुताई करते है जिससे वर्षा जल के साथ मृदा अपरदन होने की संभावना बढ जाती है अतः खेतों में हल चलाते समय ध्यान रखना चाहिये -
  • यदि खेत का ढलान पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर अर्थात ढलान के विपरित या ढलान को काटते हुये करनी चाहिये।
  • यदि खेत का ढलान उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो तो जुताई पूर्व से पश्चिम की ओर करनी चाहिये।

ग्रीष्मकालीन जुताई का समय 
मार्च से मई के दौरान ;मानसून के पहलेद्ध एंव रबी फसल कटाई पश्चात
  • दो से तीन बार 15 से 20 दिन के अंतराल में जुताई तत्पश्चात तीसरी जुताई मिट्टी को भुरभुरी और बीजशैंया हेतु उपयुक्त बनाने के लिए प्रथम मानसून वर्षा के पश्चात करें।

ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई में उपयोग होने वाले उपकरण
  1. एम.बी.प्लाऊ
  2. डिस्क प्लाऊ
  3. सब स्वाइलर
  4. कल्टीवेटर
1. एम.बी.प्लाऊ
यह एक ट्रेक्टर चलित कृषि उपकरण है। इसके बार प्वांइट, प्लाऊ को मिट्टी की सख्त सतह को तोडने में सक्षम बनाते है। साथ ही यह फसल अवशेषों को मिट्टी के अंदर दबा देते है। इसका प्रयोग हरी खाद की फसल को मिट्टी में दबाकर सड़ाने के लिये भी किया जाता है। यह ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई के लिये सबसे उपयुक्त और सस्ता उपकरण है।

2. डिस्क प्लाऊ
यह भी एक ट्रेक्टर चलित उपकरण है। प्लाऊ की डिस्क उच्च कोटि के स्पाती लोहे द्वारा या सामान्य लोहे के द्वारा निर्मित होते है तथा इनकी धार सख्त व पैनी होती है। इसका प्रयोग बंजर भूमि व अपर्युक्त भूमि में कृषि हेतु भूमि के प्रारंभिक भू पर्रिष्करण प्रक्रिया के लिये विशेषतः सख्त एवं शुष्क बंजर पथरीली एवं उबड़-खाबड़ भूमि पर किया जाता है। यह सूखी कड़ी घांस तथा जडों से भरी हुई जमीन के लिये उपर्युक्त होता है।

3. सब स्वाइलर
यह भी एक ट्रेक्टर चलित उपकरण है। बार-बार खेतों की एक ही गहराइयों तक जुताइ करने तथा खेतों में भारी मशीनरी जैंसे- ट्रेक्टर, थ्रेसर, कंबाइन, थ्रेसर, इत्यादि के आवागमन से एक निश्चित गहराई पर कठोर परत का निर्माण हो जाता है । इस परत के नीचे पानी व हवा का आवागमन रूक जाता है। जिससे खेत में जल भराव जैसी समस्या आने लगती है। इसका असर फसल उत्पादन पर सीधा होता है। अतःसब स्वाइलर हल एक अत्यंत उपयोगी हल है जो 80 सेंटीमीटर की गहराईयों तक खेत की जुताई कर पाने में सक्षम है।

4. कल्टीवेटर
यह कम पावर के ट्रेक्टर से भी चलने वाला उपकरण है। इस उपकरण से कम डीजल व कम खर्चे में भी जुताई कर सकते है। कल्टीवेटर का उपयोग हल्की मृदाओं में ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई के साथ-साथ खेत में खाद मिलाने, विस्तृत पंक्ति की फसलों में निराई गुुडाई करने तथा भारी मृदाओं में अन्य हलों से जुताई करने के पश्चात खेत को तैयार करने केे उपयोग में किया जाता है।

लाभ
  • मृदा अपरदन को रोकता है
  • Infiltration अर्थात् मृदा जलसंचय व्यवस्था को सुलभ करता है
  • मृदा जल पारगम्यता को बढ़ाता है।
  • मृदा के नमी संरक्षण को बढ़ावा देता है। जिसमें पौधों की जड़ें आसानी से नमी पाकर बढ़ जाते हैं।
  • जब हम दो या तीन बार जुताई करते है तो मृदा का गरम होना व ठंडा होना प्रक्रिया मृदा संरचना को बेहतर बनाता है।
  • सतह से जलबहाव को रोकता है जो भौम जलसारणी भराव को पुर्नस्थापित करता है।
  • मृदा वायुसंचार को बढ़ाता है जो लाभदायक सूक्ष्मजीवों को बढ़ने में मद्द करते है, अतः जब हम खेत में खाद डालते है तो यही सूक्ष्मजीव बेहतर तरीके से मृदा में इसे अपघटित कर, भूमि को उपजाऊ बनाते है। जो पौधों को पर्याप्त उर्वरक उपलब्ध करातें हैें।
  • पौध अवशेष में उपस्थित पीड़क इस गहरी जुताई में तथा पर्याप्त सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पीड़क के प्रभाव को फैलने से रोकते हैं और पूर्णतः नष्ट कर देते है।
  • वर्षा जल भराव की क्षमता को बढ़ाता है, जिसमें वायवीय नाइट्रेट जल के साथ संयोग होकर मिट्टी के अन्दर समाहित हो जाते है और मृदा उर्वरता को बढ़ाते हैं।
  • वायु संचार में बढ़ोत्तरी करता है, शाकनाशी कीटनाशी एवं हानिकारक एलेलोपैथी रसायन के मृदा में हानिकारक अवशेष के प्रभाव को कम करते है।

सावधानियां
  • मिट्टी के ढेेले बडे़ बडे़ रहें तथा मिट्टी भुरभरी ना होने पाये। अन्यथा गर्मियों में तेज हवाओं द्वारा मृदा अपरदन की समस्या बढ़ जायेगी।
  • ज्यादा रेतीले इलाकों मंे गर्मी की जुताई करने की आवश्यकता नहीं है।
  • बरानी क्षेत्रों में जुताई करते समय ज्यादा से ज्यादा फसल अवशेषों को जमीन पर आवरण की तरह पड़ा रहने दें।

ग्रीष्मकालीन जुताई का निष्कर्ष
  • फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए रबी की फसल की कटाई के तुरन्त बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना बहुत ही लाभदायक रहता है। ग्रीष्मकालीन जुताई रबी मौसम की फसलें कटने के बाद शुरू होती हैं जो बरसात शुरू होने पर समाप्त होती है। अर्थात् अप्रैल से जून माह तक ग्रीष्मकालीन जुताई की जाती है जिससे ऊर्जा की खपत कम होती है। जहां तक हो सके किसान भाईयों को गर्मी की जुताई रबी की फसल कटने के तुरन्त बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर देनी चाहिए क्योंकि खेत की मिट्टी में नमी संरक्षित होने के कारण बैलों व ट्रैक्टर को कम मेहनत करनी पड़ती है।
  • ग्रीष्मकालीन जुताई सौर उर्जा का भूमि पर लाभदायक संचरण का एक बहुत अच्छा उदहारण है । जिससे प्राकृतिक ऊर्जा का उपयोग कर फसल के परिसंचरण तंत्र को उत्कृष्ट बनाया जा सकता है ।