द्रोणक कुमार साहू, आशीष रावल (पीएच.डी. स्कॉलर, कृषि अर्थशास्त्र विभाग) एवं योगेश जैन (बी.एससी. उद्यानिकी) 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर, (छ.ग.)

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश हैं। यहाँ पर अधिकतर मिली जुली खेती की जाती है। यहाँ पर किसान, अनाज की फसलों के अलावा थोड़ा बहुत हरा चारा भी उगा लेते हैं, हमारे देश में पशुओं की संख्या दुसरे देशों की अपेक्षा बहुत अधिक है, लेकिन भारत वर्ष में खेती योग्य भूमि के लगभग 4% क्षेत्र पर ही चारा उगाया जाता है। एक तरफ तो हरे चारे की कमी है, वहीँ दूसरी तरफ पशुओं को दिए जाने वाले दानें और चुरी की कीमतें बढ़ती जा रही है। इसलिए किसानों के सामने एक अच्छा विकल्प है कि वह उन्नत सस्य विधियाँ अपनाकर हरे चारे की पैदावार प्रति हेक्टेयर बढ़ाये और पशुओं को खिलाएं जाने वाले पर खर्च कम करें।
    जिस प्रकार अन्न की उन्नत प्रजातियों से अधिक पैदावर लेने के लिए संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार दुधारू जानवरों विशेषकर संकर नस्ल की गायों को भी संतुलित मात्रा में भोजन की आवश्यकता पड़ती है। परीक्षणों द्वारा देखा गया है गर्मी के महीने में हरा चारा खिलाने से गाय और भैंस का दूध 25% तक बढ़ जाता है।
    अप्रैल तक तो बरसीम, जई, रिजके के हरा चारा मिल जाता है लेकिन मई और जून में हरे चारे की उपलब्धता कम हो जाती है। इसलिए इस मौसम में हरे चारे की उपलब्धता बहुत जरुरी है। फरवरी में आलू की खुदाई और मार्च में सरसों की कटाई के बाद खेत खाली हो जाते हैं। इसलिए फरवरी-मार्च में हरे चारे की बुवाई कर दी जाए तो मई, जून में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है। अब प्रश्न यह है कि इस मौसम में अगेती चारे की फसलों में मक्का और लोबिया प्रमुख है। इन फसलों की अधिकतम पैदवार लेने के लिए निम्नलिखित उन्नत संसय विधियाँ अपनाएं।

किस्मों का चुनाव
किसी भी फसल की अधिकतम उपज के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव अतिआवश्यक है। अधिक पैदवार देने के साथ ही ऐसी फसलों को उगाते हैं जो कीड़े और बीमारी की प्रति रोधी और क्षेत्र विशेष के लिए अनुकूल हों। मक्का की अच्छी पैदावार के लिए वैसे तो कोई भी संकर किस्म लगा सकते हैं परन्तु उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों के लिए फरवरी मार्च में बोई जाने वाली किस्मों में अफ्रीकन टाल मक्का की उत्तम किस्म है। लोबिया की किस्मों में एशियन जो जोयंट, ई.सी 4216, सीन 152 एवं उत्तरप्रदेश लोबिया 5286 अच्छी किस्में है। बीज हमेशा अच्छी संस्था से ही खरीदें।
 


बीज उपचार
लोबिया दाल वाली फसल है। इसलिए बुवाई से पहले बीज को राजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए, राजोबियम कल्चर से उपचारित किये गये बीज के पौधों की जड़ों में भूमि में नेत्रों जमा करने वाली ग्रंथियां अधिक बनती है। इससे फसल की अच्छी पैदवार मिलती है।

बुवाई
गर्मियों में बुवाई के लिए उचित नमी का होना बहुत जरुरी है। फ्लेवा के बाद एक या दो जुताई करके खेत तैयार कर लिया जाता है। फसलों की बुवाई हमेशा कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दुरी 25-30 सेंमी और बीज की गहराई 5-6 सेंमी रखनी चाहिए। खेत खाली होने के अनुसार बुबाई 15 फरवरी से मार्च के अंतिम सप्ताह तक लेनी चाहिए। यदि बीज का अंकुरण सही है तो मक्का और लोबिया को अलग-अलग बोने पर 40-59 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। यदि दोनों फसलों को मिलवाँ फसल के रूप में बोया जाता है तो 30 किग्रा, लोबिया एवं 35 किग्रा, मक्का का बीज पर्याप्त होता है।

उर्वरक
उर्वरक हमेशा मिट्टी जांच के बाद ही देना चाहिए। लोबिया को दाल वाली फसल होने के कारण अधिक नाइट्रोजन की आवश्कता नहीं पड़ती है। इसलिए इसमें 20 किग्रा, नाइट्रोजन एवं 30-35 किग्रा, फास्फोरस तत्वों की मात्रा प्रति हेक्टेयर देने की जरूरत होती है। तत्वों की पूरी मात्रा बुबाई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
    मक्का की फसल को अधिक मात्रा में नाइट्रोजन देने की आवश्यकता होती है क्योंकि मक्का घास कुल की फसल है। मक्का से अधिक चारा लेने के लिए 60-70 किग्रा, नाइट्रोजन एवं 30-35 किग्रा, फास्फोरस प्रति हेक्टेयर प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। यदि आलू की खुदाई के बाद फसल बोई है तो उर्वरक की मात्रा कम कर देते हैं। फास्फोरस की पूरी व नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय डालते हैं। नाइट्रोजन की आधिक मात्रा में 20-25 दिन बाद पहली सिंचाई से पहले डालकर सिंचाई करते हैं।

सिंचाई
गर्मी की फसल होने के कारण सिंचाई का समय पर ध्यान देना बहतु महत्वपूर्ण है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद जरुर कर देनी चाहिए ताकि जो बीज नमी की कमी के कारण जम नहीं पाया वो सिंचाई करने से जम जाता है। हमेशा पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिए। दूसरी एवं तीसरी सिंचाई 15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। इससे चारा भरपूर मात्रा में पैदा होता है।

कटाई एवं उपज
चारे के लिए दिनों फसलें 60-65 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। दलहनी एवं गैर दलहनी अर्थात घास कुल की फसलों को मिलार बोया जाना चाहिए तथा कटाई भी साथ-साथ करनी चाहिए। ऐसा करने से प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट की उचित मात्रा मिलने से पशुओं को अधिक पौष्टिक एवं स्वादिष्ट हरा चारा मिलता है तथा दूध की मात्रा भी बढ़ती है। मक्का एवं लोबिया की मिलवा खेती करने से लगभग 400 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।