द्विवेदी प्रसाद, सहायक प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
पं. शिवकुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)

जलवायु
बाजरा की खेती विस्तृत रूप से विभिन्न क्षेत्रों में की जाती हैं। यह फसल विभिन्न तापमानों, प्रकाश अवधियों एवं मृदा नमी स्तरों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। गर्म मौसम 40-75 सें.मी. वार्षिक वर्षा फसल के लिए उपयुक्त होती हैं। अच्छी बढ़वार के लिए नमीयुक्त मौसम अच्छा रहता हैं। इस फसल में सूखा सहने की क्षमता होती हैं लेकिन सिंचाई का प्रबंध होने पर उपज में भारी वृद्धि होती हैं। फसल की अच्छी बढ़वार हेतु 20-30 डिग्री से. तापमान उपयुक्त रहता हैं। यह फसल खरीफ ऋतु में बोई जाती हैं लेकिन सिंचाई की व्यवस्था होने पर ग्रीष्म ऋतु में भी उगाई जाती हैं। पाला बाजरा के लिए हानिकारक होता हैं।

मृदा
अच्छे जल निकास वाली हल्की से भारी मृदाएं जिनका पीएच मान 6.5 से 7.5 हो, बाजरा के लिए उपयुक्त होती हैं। अम्लीय मृदाएं बाजरा के लिए अनुपयुक्त होती हैं। अच्छे जमाव एवं पौध संख्या के लिए समतल तथा खरपतवार रहित, अच्छे से तैयार खेत होना चाहिए। इसके लिए एक जुताई तथा दो बार हैरो चलाना चाहिए। यह फसल जल भराव के लिए संवेदनशील होती हैं अतः खेत में जल निकास का उचित प्रबंध आवश्यक हैं।

उन्नत किस्में

हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त किस्मेंः
जी.एफ.बी-1, फोडर कम्बू-8, माल बान्द्रो, जी-2, पूसा मोती, राज बाजरा चरी-2, यू.पी.एफ.बी-1, टाइप-55, एस-530, ए-1/30, एफ.बी.सी-16 (केवल पंजाब हेतु), राजको, पीएच बी-12, एम.एच-30, बी.जे.-105, आनन्द एस-11, के-674, के-6787, एल-74 आदि।

आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु के लिए उपयुक्त किस्मेंः
ए.पी.एफ.बी-1, बी-247, सी.ओ-1, सी.ओ-2, सी.ओ-3, नाद कुम्बू, चुम्बू आदि।

बुवाई
ग्रीष्म ऋतु में चारे के लिए बाजरे की बुवाई का उपयुक्त समय मार्च से अप्रैल के प्रथम पखवाड़े तक रहता हैं। खरीफ की बुवाई वर्षा शुरू होने पर करनी चाहिए। जुलाई का प्रथम पखवाड़ा इसके बोने का उत्तम समय होता हैं। इस फसल को जल्दी या देर से बोने पर भी चारे की अच्छी पैदावार हो जाती हैं।
    चारे हेतु बाजरा छिटकवां विधि से बोते हैं। इसके लिए लगभग 20-25 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की आवश्यकता होती हैं। इस विधि से बोने पर बीज का जमाव संतोषजनक नहीं होता हैं तथा उपज में भारी कमी आती हैं। बोने का सही तरीका सीडड्रिल होता हैं, इसमें बीज को 20-25 सें.मी. पर कतारों में बोते हैं। इस विधि से 8-10 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता हैं। बाजरे का बीज छोटा होने के कारण इसकी बुवाई 2.0 से 2.5 सें.मी. गहराई पर करनी चाहिए तथा बोने से पहले बीज को थिरम से 3.0 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करना चाहिए।

पोषक तत्व प्रबंधन
बाजरा के चारे की अधिक पैदावार लेने हेतु पोषक तत्वों का उचित प्रबंधन अनिवार्य हैं। इसके लिए लगभग 10 टन/हे. गोबर की सड़ी हुई खाद बोने से पहले खेत में मिला दें। इससे भूमि की भौतिक दशा में सुधार के साथ-साथ गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती हैं। बोने से पहले 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फाॅस्फोरस अम्ल तथा 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरकों द्वारा देना चाहिए। बोने के एक माह बाद 30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन को खड़ी फसल में पंक्तियों के बीच में बिखेरना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से बोने के 30-35 दिन बाद वर्षा होने पर देना चाहिए। यदि लम्बे समय तक वर्षा न हो तो यूरिया के 2 प्रतिशत घोल का छिड़काव बोने के 30-35 दिन बाद किया जा सकता हैं। ऐसे में खड़ी फसल में उर्वरक बिखेरकर देना लाभदायक नहीं होता हैं।

जल प्रबंधन
ग्रीष्म ऋतु में बोई गई फसल के लिए 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं। वर्षा ऋतु में साधारणतया सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं लेकिन लम्बे समय तक वर्षा न होने पर 1-2 सिंचाई करने से उपज अच्छी होती हैं।

खरपतवार प्रबंधन
वर्षा ऋतु में बाजरा की फसल में खरपतवारों का अधिक प्रकोप होता हैं। खरपतवारों द्वारा फसल की 3-5 सप्ताह की अवस्था तक अधिक हानि होती हैं। इसलिए खरपतवारों का समय से नियंत्रण करना अनिवार्य हैं। 3-4 सप्ताह की अवस्था में एक बार निराई-गुड़ाई बहुत प्रभावी रहती हैं। फसल जमाव से पहले एट्राजीन की 0.5 कि.ग्रा. मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से लगभग सभी प्रकार के खरपतवार नियंत्रित हो जाते हैं। यदि फसल में लोबिया आदि का अन्तःसस्यन किया गया हो तो बोने के बाद जमाव के पहले 1 कि.ग्रा./हे. की दर से एलाक्लोर का प्रयोग करना चाहिए।

कीट एवं रोग प्रबंधन
बाजरा की फसल पर विभिन्न प्रकार के कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप होता हैं। अर्गट, चूर्णिल आसिता तथा स्मट बीमारियां मुख्य रूप से फसल को प्रभावित करती हैं। इसके नियंत्रण हेतु प्रतिराधी प्रजातियां- जैसे ’एन.एच.बी-5’, ’पी.एच.बी-10’ या ’पी.एच.बी-14’ किस्में बोनी चाहिए। बीमार पौधों को सावधानी से उखाड़कर भूमि में दबा देना चाहिए अथवा जला देना चाहिए। बोने से पहले बीज को एपरान-35 एस.डी. या रिडोमील एम.जेड-72, 3.0 ग्रा./कि.ग्रा. बीज शोधित करें अथवा रिडोमिल 1000 पी.पी.एम. का छिड़काव करने से इन बीमारियों का बेहतर नियंत्रण संभव हैं। अर्गट नियंत्रण के लिए 2000 पी.पी.एम. जायराम का छिड़काव करना चाहिए। बाजरा की फसल में तना मक्खी का विशेष प्रकोप होता हैं। इसके नियंत्रण के लिए 125 मि.ली. कार्बोफ्युरान प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

कटाई
एक कटाई वाली किस्मों को बोने के लगभग 60-75 दिन बाद जब 50 प्रतिशत फसल में फूल आ जांए, चारे के लिए काटना चाहिए। बहु-कटाई वाली प्रजातियों को बोने के 40-45 दिन पर प्रथम कटाई करनी चाहिए, बाद की कटाइयां 30 दिन के अन्तराल पर की जा सकती हैं। सूखी कड़वी हेतु फसल को पकने के बाद कटाई करना चाहिए तथा दाने निकालने के पश्चात् कड़वी को अच्छे से सुखाकर भंडारण करना चाहिए।

उपज
उन्नत विधियों से बाजरे की खेती से बहु-कटाई वाली किस्मों से लगभग 300 क्विंटल/हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता हैं। एकल कटाई वाली किस्मों से 200-250 क्विंटल हरा चारा/हेक्टेयर प्राप्त होता हैं। इसी प्रकार दाने के लिए बोई गई फसल से लगभग 60-70 क्विंटल शुष्क कड़वी प्रति हेक्टेयर से प्राप्त की जा सकती हैं।