पुनम कश्यप, यंग प्रोफेशनल-II, कृषि विज्ञान केन्द्र, दंतेवाड़ा (छ.ग.)

प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

मुदुरोमिल आसिता

लक्षण
जब सरसों के पौधे 15 से 20 दिन के होते हैं तब पत्तों की निचली सतह पर हल्के बैंगनी से भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं बहुत अधिक नमी में इस रोग का कवक तने तथा ’स्टेग हैड’ पर भी दिखाई देता हैं। यह रोग फूलों वाली शाखाओं पर अधिकतर सफेद रतुआ के साथ ही आता हैं।

उपचार
फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) या रिडोमिल एम.जेड.-72 डब्लू.पी. फफूंदनाशी के 0.2ः घोल का छिड़काव सरसों की खेती पर दो बार 15 दिन के अन्तर पर करें।

सफेद रेतुआ

लक्षण
जब तापमान 10-18 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता हैं तब पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के फफोले बनते हैं। रोग की उग्रता बढ़ने के साथ-साथ ये आपस में मिलकर अनियमित आकार के दिखाई देते हैं। पत्ती को ऊपर से देखने पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। रोग की अधिकता में कभी-कभी रोग फूल एवं फली पर केकड़े के समान फूला हुआ भी दिखाई देता हैं।

उपचार
समय पर बुवाई (1-20 अक्टूबर) करें। बीज उपचार मेटालेक्जिल (एप्राॅन 35 एस.डी.) 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें। रिडोमिल एम.जेड.-72 डब्लू.पी. अथवा मेनकोजेब 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 2 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल से 45 एवं 55 दिन की फसल पर करें।

काले धब्बों या झुलसा का रोग

लक्षण
सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं, जो बाद में तेजी से बढ़ कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं एवं इन धब्बों में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं। रोग की अधिकता में बहुत से धवे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं तथा फलस्वरूप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं, तने और फलों पर भी गोल गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

उपचार
इस रोग की रोकथाम हेतु आईप्रोडियाॅन (रोवराॅल), मेन्कोजेब (डाइथेन एम-45) फफूंदनाशी 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव सरसों की खेती पर दो बार 15 दिन के अन्तर पर करें।

तना सड़न या पोलियों रोग

लक्षण
सरसों के तनों पर लम्बे व भूरे जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तह बन जाती हैं, यह सफेद फफूंद पत्तियों, टहनियों और फलियों पर भी नजर आ सकते हैं। उग्र आक्रमण यदि फूल निकलने या फलियाँ बनने के समय पर हो तो तने टूट जाते हैं एवं पौधे मुरझा कर सूख जाते हैं फसल की कटाई के उपरान्त ये फफूंद के पिण्ड भूमि में गिर जाते हैं या बचे हुए दूठों (अवशेषों) में पर्याप्त मात्रा में रहते हैं, जो खेत की तैयारी के समय भूमि में मिल जाते हैं।

उपचार
कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) फफूंदनाशक का छिड़काव दो बार फूल आने के समय 20 दिन के अन्तराल (बुवाई के 50वें व 70वें दिन पर) करने से रोग का बचाव किया जा सकता हैं।

अन्य उपाय
  • फसल कटने के उपरान्त गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें, ताकि जमीन में जो फफूंद हैं नष्ट हो जाएं।
  • खेत में पानी खड़ा न रहने दें, अन्यथा नमी रहने से विशेषकर तना गलन रोग का प्रकोप अधिक हो जाता हैं।

कीट और उनका प्रबंधन

माहू

लक्षण
सरसों में माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के 1.5-3.0 मिमी. लम्बे चुभने एवं चूसने मुखांग वाले छोटे कीट होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों से रस चूसकर उसे कमजोर एवं छतिग्रस्त तो करते ही हैं साथ-साथ रस चूसते समय पत्तियों पर मधुस्त्राव भी करते हैं। इस मधुस्त्राव पर काले कवक का प्रकोप हो जाता हैं तथा प्रकाश संश्लेष्ण की क्रिया बाधित हो जाती हैं। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर-जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता हैं।

नियंत्रण
दिसंबर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह में जहां कीट के समूह दिखाई दें तो उन टहनियों के प्रभावित हिस्सों को कीट सहित तोड़कर नष्ट कर दें। जब खेत में कीटों का आक्रमण 20ः पौधों पर हो जाए या औसतन 13-14 कीट प्रति पौधा हो जाए तो निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करें। छिड़काव संध्या के समय करें, जब फसल पर मधुमक्खियां कम होती हैं।

आरामक्खी (पेन्टेड बग) कीट

लक्षण
यह चित्तकबरा कीट प्रांरभिक अवस्था की फसल के छोटे-छोटे पौधों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, प्रौढ़ व शिशु दोनों ही पौधों से रस चूसते हैं जिससे पौधे मर जाते हैं। यह कीट बुवाई के समय अक्टूबर माह एवं कटाई के समय मार्च माह में ज्यादा हानि पहुंचाते हैं।

नियंत्रण
खेत की गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए। कीट प्रकोप होने पर बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद यदि सम्भव हो तो पहली सिंचाई कर देना चाहिए जिससे कि मिट्टी के अन्दर दरारों में रहने वाले कीट मर जायें। छोटी फसल में यदि प्रकोप हो तो क्यूनालफाॅस 1.5 प्रतिशत धूल 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव सुबह के समय करें। अत्याधिक प्रकोप के समय मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।