कैसे करें दवा का सेवन
लक्ष्मी तरु की सूखी पत्तियों को प्रति 10 किग्रा शरीर के वजन पर दो पत्तियों छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एक गिलास में हल्की आंच उबालें, प्लेट से पात्र को ढाकड़ कर रात भर रखे, दूसरे दिन प्रातः काल काढे को गर्म करें और छानें उसके बचे द्रव्य को गुनगुना ले,गरारा करें और पिए, पीने के आधे घंटे बाद भोजन करें । छानने से बचे हुए पदार्थ में 200 मिलीलीटर पानी मिलाएं और उस मिश्रण को उबालें । उबालने का काम 10 मिनट तक धीमी आंच में करें ढककर कुछ घंटों के लिए रख दें, मिश्रण को पुनरू गर्म करें । छाने ओर इस छने हुए द्रव्य को रात्रि भोजन से आधे घंटे पहले पिए, यह सभी कार्य स्टील के बर्तन से करने है।
यह तेल वनस्पति घी व खाद्य तेल बनाने में काम आता है। तेल कोलेस्ट्रोल से मुक्त होता है। इससे जैविक ईंधन, साबुन, डिटर्जेन्ट, वार्निश, कॉस्मेटिक तथा दवाईयाँ बनाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त एक पेड़ से १५ से ३० किलो बीज तथा ढाई से पाँच किलोग्राम तक तेल व २.५ से ५ कि.ग्रा. खली प्राप्त होती है। बीज की खली (ओईल केक) में ८ प्रतिशत नाईट्रोजन, १.१ प्रतिशत फास्फोरस तथा १.२ प्रतिशत पोटाश पाया जाता है ।
लक्ष्मी तरु के बीज का खोल लकड़ी के बोर्ड बनाने, ईधन की तरह जलाने तथा कोयला बनाने में काम आता है। फल के रस में ११ प्रतिशत शक्कर होती है इसलिये इससे स्वादिष्ट पेय बनाया जा सकता है। इसके फल-फूल तथा पत्तियों से सस्ता वर्मी कम्पोस्ट बनता है। इस पौधे की लकड़ी फर्नीचर, खिलौने, माचिस आदि वस्तुएँ बनाने तथा लकड़ी की लुगदी बनाने के काम में आती है।
लक्ष्मी तरु की बहुगुणी विशेषताओं के कारण इस पौधे की अधिक से अधिक खेती पर बल दिया जाना चाहिए। इससे भारतीय ग्राम्य सामाज को आर्थिक रूप से सबल बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही देश भी खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर हो सकेगा।
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श्रेष्ठ देसी गौ पंचगव्य अनुसंधान संस्थान, रायपुर 7000550868
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