महेन्द्र कुमार साहु, अतिथि शिक्षक (कृषि अर्थशास्त्र), पं. एस.के.एस. कृषि महाविद्यालय, राजनांदगांव (छ.ग.)
राधेलाल देवांगन, एम.एससी. (उद्यानिकी), बी.टी.एम. भानुप्रतापपुर, कांकेर (छ.ग.)

लेमन ग्रास की खेती भारत में बड़ी मात्रा में की जाती है । जिसको नींबू घास, चायना ग्रास, भारतीय नींबू घास, मालाबार घास और कोचीन घास के नाम से भी जाना जाता है । भारत में इसकी खेती व्यापारी तौर से की जाती है । इसकी पत्तियों से नीबू जैसी खुशबू आती है । जिस कारण इसकी पत्तियों का इस्तेमाल चाय बनाने में किया जाता है । इसकी पत्तियों से तेल निकाला जाता है, जिसका मुख्य घटक सिट्रल होता है । जिसके कारण इसकी पत्तियों से नीब जैसी खुशबू आती है । इसकी पत्तियों में पाए जाने वाले तेल का इस्तेमाल उच्च कोटि के इत्र, सौंदर्य प्रसाधन की चीजें और साबुन बनाने में किया जाता है । इसकी पत्तियों से तेल निकालने के बाद शेष बचे भाग का इस्तेमाल कागज़ और हरे खाद को बनाने में किया जाता है । लेमन ग्रास को शुष्क जलवायु का पौधा कहा जाता है । भारत में इसकी खेती राजस्थान, केरल, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है । भारत में इसकी खेती 30,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में की जा रही है । भारत में सुगंधित तेल उद्योग में इसके तेल का प्रमुख स्थान है ।

औषधीय पौधे के लाभ 
  • औषधीय पौधों की खेती कम जगह में करने पर भी कीमत अधिक होने के कारण लाभ अधिक होता है । 
  • बाजार में औषधि की कीमत अधिक है। 
  • जिन किसानों/कृषकों के पास कम जमीन है वह औषधीय की खेती करके अन्य फसलों की खेती बराबर लाभ कमा सकते है। 
  • औषधीय पौधों में खरपतवार एवं कीटों का प्रकोप कम रहता है। 
  • औषधीय पौधों की खेती करने वालों का प्रतिशत कम होता है इसलिए बाजार की मांग की पूर्ति पूरी तरह नहीं हो पाती है। जिससे इनकी कीमत हमेशा अधिक रहती है। इसीलिए लाभ अधिक होता है। 

उपयुक्त जलवायु 
नींबू घास के सफल उत्पादन हेतु उष्ण एवं उपोष्ण और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है । वैसे लेमन ग्रास को समुद्र तल से 1200 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सुगमता से उगाया जा सकता है । (जहां पर वार्षिक वर्षा 200 से 250 सेंटीमीटर हो) इसकी खेती के लिए उपयुक्त माने गये हैं । लेमन ग्रास की फसल पर पाले का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । शुष्क क्षेत्रों में सिट्रल की मात्रा आर्द्र क्षेत्रों की तुलना में कम पाई जाती है । 

भूमि का चुनाव 
नींबू घास की खेती ऐसी किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो । इसे हल्की लेटराइटिक लाल मृदाओं में भी उगाया जा सकता है, परन्तु इनमें उर्वरकों की अधिक मात्रा का उपयोग करना पड़ता है । इसकी खेती के लिए सामान्य पी एच मान सर्वोत्तम माना गया है । 

खेती की तैयारी 
लेमन ग्रास के पौधे एक बार लगाने के बाद 5 साल तक पैदावार दे सकते है । इसके पौधों की रोपाई के शुरुआत में मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी होता है । इसके लिए खेत की पहली जुताई पलाऊ लगाकर करनी चाहिए । उसके कुछ दिन बाद खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से एक बार जुताई कर उसमें गोबर की खाद डाल दें । गोबर की खाद को फिर से जुताई के माध्यम से मिट्टी में मिला दें । खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें । खेत को समतल बनाने के बाद उसमें उचित दूरी की क्यारियां बना लें । 

प्रवर्धन तकनीक 
नींबू घास के प्रवर्धन हेतु निम्न दो विधियों का उपयोग किया जाता है, जैसे- 

बीज द्वारा 
लेमन ग्रास उगाने के लिए इस विधि का प्रयोग दक्षिण भारत में किया जाता है । इस विधि में बीजों को पहले पौधशाला में बोया जाता है । बीजों को बोने से पूर्व किसी फफूंदीनाशक से उपचारित किया जाता है फिर तैयार पौधशाला में बीजों को हाथ से समान रूप में बिखेर दिया जाता है । बाद में बीजों को मिट्टी की एक पतली परत द्वारा ढंक दिया जाता है । बीजों की बुआई अप्रैल से मई में की जाती है । 2 माह बाद पौधे रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं| एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौध तैयार करने हेतु 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है । बीजों का अंकुरण 5 से 6 दिन में हो जाता है । 

पौध रोपण
इस विधि से तैयार पौधों की रोपाई जुलाई से अगस्त में की जाती है । पंक्तियों एवं पौधों में दूरी क्रमशः 70 सेंटीमीटर, 45 से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है । भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पौधों की रोपाई मेढ़ों पर की जाती है । 

जड़ों के टुकड़ों द्वारा 
नींबू घास के पौधे के समूह को पंज की संज्ञा दी जाती है और एक पुंज में 100 से 150 तक पर्णक (सिल्प) होते हैं। इन पर्णो को अलग-अलग करके रोपा जाता है । इस विधि का प्रयोग मुख्य रूप से उत्तरी भारत में किया जाता है । पर्णक एक वर्ष पुराने पौधे से लिये जाते हैं । पर्णक के शिखर भाग को काट दिया जाता है । नीचे का मात्र 15 सेंटीमीटर भाग छोड़ा जाता है और उसके नीचे की भूरी खाल को हटा दिया जाता है, ताकि नई जड़ें निकल आएं । 
पर्णकों को फरवरी से मार्च के महीने में लगाया जाता है । पंक्तियों की आपसी दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है और पर्णकों को 60 x 60 सेंटीमीटर दूरी के अन्तराल पर लगाया जाता है । इन पर्णकों को वर्षा होने से पूर्व गौमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए । 

सिंचाई एवं जल निकास 
इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती लेकिन अधिक उत्पादन लेने के लिए पौधों की उचित टाइम पर सिंचाई करनी चाहिए । गर्मियों के मौसम में इसके पौधों की जड़ों में नमी बनाए रखने पर ज्यादा पैदावार मिलती है । इसके पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए । उसके बाद पौधे के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए उचित टाइम पर दो से तीन दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए । जब पौधा पूरी तरह से अंकुरित हो जाए तब पौधे को गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार और सर्दियों के मौसम में 20 दिन के अन्तराल में पानी देना चाहिए । इसका पौधा तीन महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाता है । पौधों की प्रत्येक कटाई के तुरंत बाद पौधों को पानी देने पर पैदावार अधिक मिलती है । जबकि बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती । 

खाद एवं उर्वरक 
नींबू घास एक बहुवर्षीय घास है । अतः इसकी बढवार व विकास में खाद एवं उर्वरकों का उचित मात्रा में एवं सही समय पर प्रयोग करना नितान्त आवश्यक है । रोपण से पूर्व मृदा जांच के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नितान्त आवश्यक है । यदि किसी कारण मृदा जांच न हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद 10 से 15 टन, नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फॉस्फोरस 50 किलोग्राम और पोटाश 50 किलोग्राम का प्रयोग अवश्य ही करें । भूमि की उर्वरा शक्ति के आधार पर प्रत्येक कटाई के उपरान्त गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का प्रयोग भी करना चाहिए । आमतौर पर प्रत्येक कटाई के उपरांत खाद एवं उर्वरकों की उपरोक्त मात्रा डालनी चाहिए । 

खरपतवार नियंत्रण 
नींबू घास की फसल के साथ खेत में अनेक प्रकार के खरपतवार उग आते हैं । जो फसल के साथ नमी, पोषक तत्वों, स्थान, धूप आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फसल की वृद्धि, विकास एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । अतः खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्न उपाय करने चाहिए, जैसे- निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए । वर्ष में 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करना पर्याप्त होता है । नींबू घास में प्रथम निराई-गुड़ाई रोपने के 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए । पंक्तिबद्ध फसल की जुताई ट्रैक्टर द्वारा चालित कल्टीवेटर या हैरो से करनी चाहिए । 3 टन प्रति हेक्टेयर सूखे पौधों की पतवार बिछाने से भी खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है । अधिक खरपतवारों की स्थिति में 1 किलोग्राम ऑक्सीफ्ल्यूरोफेन को 1000 लिटर पानी में घोलकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए । 

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम 
लेमन ग्रास के पौधों में कम ही रोग देखने को मिलते हैं । लेकिन कुछ ऐसे रोग होते हैं. जिनके लगने पर पौधा विकास करना बंद कर देता है । जिसके कारण उपज में कमी देखने को मिलती है । इन रोगों की वक्त रहते रोकथाम करने से पौधे को बचाया जा सकता है । 

दीमक 
दीमक का प्रकोप पौधों पर वैसे तो किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है । लेकिन पौधों के अंकुरण के वक्त इसका प्रकोप अधिक देखने को मिलता है । इस रोग के लगने पर पौधे मुरझाकर पीला पड़ जाता है और उसके कुछ दिन बाद पौधा पूर्ण रूप से सूखकर नष्ट हो जाता है । इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में क्लोरोपाइरीफॉस का छिडकाव करना चाहिए । 

चिलोत्रेए 
लेमन ग्रास पर चिलोत्रेए का प्रकोप किट की वजह से फैलता है । इस रोग के किट का रंग सफ़ेद होता है, जिसके शरीर पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं । इसके लगने पर पौधे की मुख्य पत्तियां सबसे पहले सूखती है । उसके बाद सम्पूर्ण पौधा सूखने लगता है । इसकी रोकथाम के लिए नीम के काढ़े को पौधों पर छिडकना चाहिए । 

सफ़ेद मक्खी 
इसके पौधों पर सफ़ेद मक्खी के प्रकोप की वजह से इसकी पैदावार प्रभावित होती है क्योंकि इसके कीट पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं । जो पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं । इनके रस चूसने की वजह से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और कुछ दिन बाद पत्तियां सूखने लगती है । इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए । 

चूहों का प्रकोप 
लेमन ग्रास का पौधा खुशबूदार होता है । इसकी पत्तियों से नींबू की जैसी खुशबू आती है । जो चूहों के अधिक आकर्षण का कारण बनती है । जिससे चूहे खेत में बिल बनाकर रहते हैं. और पौधों की पत्तियों को काटकर उन्हें खाते हैं । जिससे पैदावार को नुक्सान पहुँचता है । इनकी रोकथाम के लिए जिंक फास्फाइड या बेरियम क्लोराइड का प्रयोग खेत में करना चाहिए । 

फसल की कटाई 
लेमन ग्रास के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 5 साल तक पैदावार दे सकते हैं । इसके पौधे खेत में लगाने के लगभग 60 से 90 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं । इसके पौधों की अच्छी देखभाल कर किसान भाई साल में चार से ज्यादा कटाई आसानी से ले सकता है । लेमन ग्रास के पौधों की हर कटाई के बाद इनकी पैदावार बढती जाती हैं क्योंकि पौधों की कटाई के बाद इसके पौधों से अधिक मात्रा में नए प्ररोह निकलते हैं । जिससे उपज में वृद्धि होती है । इसके पौधों की कटाई करते वक्त हमेशा ध्यान रखे की पौधों की कटाई जमीन की सतह से 10 से 12 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए ऐसा करने से पौधे में नए प्ररोह अच्छे से निकलते हैं और पौधा अच्छे से विकास करता है । 

पैदावार 
लेमन ग्रास की अलग अलग प्रजातियों की किस्मों से हर साल एक हेक्टेयर से औसतन 100 टन के आसपास हरी घास की पैदावार मिलती है । जिनको सूखाकर आसवन विधि से साल भर में लगभग 500 किलो के आसपास तेल प्राप्त होता है । जिसका बाज़ार भाव 1200 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है । जिससे किसान भाइयों की एक साल में एक हेक्टेयर से शुद्ध आय 3 से 4 लाख तक की हो जाती है ।