निर्यात बाजार में अधिक मांग होने के कारण कीचड़ में पाये जाने वाला केकड़ा बहुत ही प्रसिद्ध हैं। व्यापारिक स्तर पर इसका विकास आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु केरल और कर्नाटक के तटीय इलाकों में तेजी से हो रहा हैं। 

कीचड़ में पाये जाने वाले केकड़ा के प्रकार 
स्काइला जीन के केकड़ा तटीय क्षेत्रों, नदी या समुद्र के मुहानों और स्थिर (अप्रवाही जलाशय) में पाये जाते हैं। 

1. बड़ी प्रजातियाँ 
  • बड़ी प्रजाति स्थानीय रूप से ’’हरे मड क्रैब’’ के नाम से जानी जाती हैं। 
  • बढ़ते के उपरांत इसका आकार अधिकतम 22 सेंटीमीटर पृष्ठ-कर्म की चौड़ाई और 2 किलोग्राम वजन का होता हैं। 
  • ये मुक्त रूप से पाये जाते हैं और सभी संलग्न को पर बहुभुजी निशान के द्वारा इसकी पहचान की जाती हैं। 
2. छोटी प्रजातियाँ 
  • छोटी प्रजाति "रेड क्लाॅ" के नाम से जानी जाती हैं। 
  • बढ़ने के उपरांत इसका आकार अधिकतम 12.7 सेंटीमीटर पृष्ठकर्म की चैड़ाई और 1.2 किलो ग्राम वजन का होता हैं। 
  • इसके ऊपर बहुभुजी निशान नहीं पाये जाते हैं और इसे बिल खोदने की आदत होती हैं। घरेलू और विदेशी दोनों बाजार में दोनों ही प्रजातियों की मांग बहुत ही अधिक हैं।  

तैयार करने की विधि 
केकड़ों की खेती दो विधि से की जा सकती हैं- 

1. ग्रो-आउट (उगाई) खेती 
  • इस विधि में छोटे केकड़ों को 5 से 6 महीने तक बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता हैं ताकि ये अपेक्षित आकार प्राप्त कर लें। 
  • केकड़ा ग्रो-आउट प्रणाली मुख्यतः तालाब आधारित होते हैं। इसमें मैंग्रोव (वायुशिफ-एक प्रकार का पौधा हैं जो पानी में पाया जाता हैं) पाये भी जा सकते हैं और नहीं भी। 
  • तालाब का आकार 0.5-2.0 हेक्टेयर तक का हो सकता हैं। इसके चारों ओर उचित बांध होते हैं और ज्वारीय पानी बदले जा सकते हैं। 
  • यदि तालाब छोटा हैं तो घेरा बंदी की जा सकती हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों के वश में जो तालाब हैं उस मामले में बहाव क्षेत्र को मजबूत करना आवश्यक होता हैं। 
  • संग्रहण के लिए 10-100 ग्राम आकार वाले जंगली केकड़ा के बच्चों का उपयोग किया जाता हैं। 
  • कल्चर की अवधि 3-6 माह तक की हो सकती हैं। 
  • संग्रहण दर सामान्यतया 1-3 केकड़ा प्रति वर्गमीटर होती हैं। साथ में पूरक भोजन (चारा) भी दिया जाता हैं। 
  • फीडिंग के लिए अन्य स्थानीय उपलब्ध मदों के अलावा ट्रैश मछली (भींगे वजन की फीडिंग दर-जैव-पदार्थ का 5 प्रतिशत प्रतिदिन होता हैं) का उपयोग किया जाता हैं। 
  • वृद्धि और सामान्य स्वास्थ्य की निगरानी के लिए तथा भोजन दर समायोजित करने के लिए नियमित रूप से नमूना (सैम्पलिंग) देखी जाती हैं। 
  • तीसरे महीने के बाद से व्यापार किये जाने वाले आकार के केकड़ों की आंशिक पैदावार प्राप्त की जा सकती हैं। इस प्रकार, ’’भंडार में कभी आने में’’ आपस में आक्रमण और स्वजाति भक्षण के अवसर में कमी आती हैं और उसके जीवित बचे रहने के अनुपात या संख्या में वृद्धि होती हैं। 

2. फैटनिंग (मोटा/कड़ा करना) 
मुलायम कवच वाले केकड़ों की देखभाल कुछ सप्ताहों के लिए तब तक की जाती हैं तब उसके ऊपर बाहृय कवच कड़ा न हो जाए। ये ’’कड़े’’ केकड़े स्थानीय लोगों के मध्य ’’कीचड़’’ (मांस) के नाम से जाने जाते हैं और मुलायम केकड़ों की तुलना में तीन से चार गुना अधिक मूल्य प्राप्त करते हैं। 

(क) तालाब में केकड़ा का बड़ा होना 
  • 0.025-0.2 हेक्टेयर के आकार तथा 1 से 1.5 मीटर गहराई वाले छोटे ज्वारीय तालाबों में केकड़ों को बड़ा किया जा सकता हैं। 
  • तालाब में मुलायम केकड़े के संग्रहण के पहले तालाब के पानी को निकालकर, धूप में सुखाकर और पर्याप्त मात्रा में चूना डालकर आधार तैयार किया जाता हैं। 
  • बिना किसी छिद्र और दरार के तालाब के बांध को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता हैं। 
  • जलमार्ग पर विशेष ध्यान दिया जाता हैं क्योंकि इन केकड़ों में इस मार्ग से होकर बाहर निकलने की प्रवृति होती हैं। पानी आने वाले मार्ग में बांध के चारों ओर की जाती हैं जो तालाब की ओर झुकी होती हैं ताकि क्रैब बाहर नहीं निकल सके। 
  • स्थानीय मछुआरों/केकड़ा व्यापारियों से मुलायम केकड़े एकत्रित किया जाता हैं और उसे मुख्यतः सुबह के समय केकड़ा के आकार के अनुसार 0.5-2 केकड़ा/वर्गमीटर की दर से तालाब में डाल दिया जाता हैं। 
  • 550 ग्राम या उससे अधिक वजन वाले केकड़ों की मांग बाजार में अधिक हैं। इसलिए इस आकार वाले समूह में आने वाले केकड़ों का भंडारण करना बेहतर हैं। ऐसी स्थिति में भंडारण घनत्व 1 केकड़ा/वर्गमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। 
  • स्थान और पानी केकड़ा की उपलब्धता के अनुसार तालाब में पुनरावृत भंडारण और कटाई के माध्यम से ’’उसे बड़ा बनाने’’ के 6-8 चक्र पूरे किये जा सकते हैं। 
  • यदि खेती की जाने वाला तालाब बड़ा हैं तो तालाब को अलग-अलग आकार वाले विभिन्न भागों में बांट लेना उत्तम होगा ताकि एक भाग में एक ही आकार के केकड़ों का भंडारण किया जा सके। यह भोजन के साथ-साथ नियंत्रण व पैदावार के दृष्टिकोण से भी बेहतर होगा। 
  • जब दो भंडारण के बीच का अंतराल ज्यादा हो, तो एक आकार के केकड़े, एक ही भाग में रखे जा सकते हैं। 
  • किसी भी भाग में लिंग अनुसार भंडारण करने से यह लाभ होता हैं कि अधिक आक्रामक नर केकड़ों के आक्रमण को कम किया जा सकता हैं। पुराने टायर, बांस की टोकरियां, टाइल्स आदि जैसे रहने के पदार्थ उपलब्ध कराना अच्छा रहता हैं। इससे आपसी लड़ाई और स्वजाति भक्षण से बचा जा सकता हैं। 

चारा 
केकड़ों को चारा के रूप में प्रतिदिन टैªष मछली, नमकीन पानी में पायी जाने वाली सीपी या उबले चिकन अपशिष्ट उन्हें उनके वजन से 5-8 प्रतिशत की दर से उपलब्ध कराया जाता हैं। यदि चारा दिन में दो बार दी जाती हैं तो अधिकतर भाग शाम को दी जानी चाहिए। 

पानी की गुणवत्ता 
नीचे दी गई सीमा के अनुसार पानी की गुणवत्ताके मानकों का ख्याल रखा जाएगा। 

लवणता

15-25

ताप

26-30

क्सीजन

3 पी.पी.एम.

पी.एच.

7.8-8.5


पैदावार और विपणन 
  • कड़ापन के लिए नियमित अंतराल पर केकड़ों की जाँच की जानी चाहिए। 
  • केकड़ों को इकट्ठा करने का काम सुबह या शाम के समय की जानी चाहिए। 
  • इकट्ठा किये गये केकड़ों से गंदगी और कीचड़ निकालने के लिए इसे अच्छे नमकीन पानी में धोना चाहिए और इसके पैर को तोड़े बिना सावधानीपूर्वक बांध दी जानी चाहिए। 
  • इकट्ठा किये गये केकड़ों को नम वातावरण में रखना चाहिए। इसे धूप से दूर रखना चाहिए क्योंकि इससे जीवन क्षमता प्रभावित होती हैं।