पुनम कश्यप, यंग प्रोफेशनल-III कृषि विज्ञान केन्द्र, दंतेवाड़ा (छ.ग.)

भण्डार गृह के प्रमुख हानिकारक कीट- 

चावल का घुन अन्य नाम- किल्ला घनेड़ा तथा सूंड वाली सुरसुरी 

पोषक अनाज- चावल, गेहूं, मक्का, धान, जौ, ज्वार। 

क्षति अवस्था- ग्रब एवं प्रौढ़। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
सभी भंडारित अनाजों को क्षति पहुंचाने के कारण भण्डार गृहों का सबसे बड़ा शत्रु माना जाता हैं। यह कीट सबसे पहले भण्डार गृहों में रखे हुये अनाजों में से चावल पर विशेष रूप से आक्रमण करता हैं। प्रौढ़ तथा ग्रब दोनों ही अनाजों को क्षति पहुंचाते हैं क्योंकि इनके अनाज को काटने एवं चबाने वाले मुखांग होते हैं। इस कीट की सूंडी को ग्रब कहते हैं जो प्रौढ़ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होता हैं। इस कीट की मादायें अनाजों के दानों के अंदर पतला सुराख बनाकर उसके अंदर अण्डे रखती हैं। अण्डे फूटने के बाद सूंडी उसी दाने को अंदर ही अंदर खाकर नष्ट कर देती हैं, जिससे अनाज न खाने और न बोने लायक रहता हैं तथा देखने पर बाहर से दाना स्वस्थ दिखाई पड़ता हैं परंतु अंदर कुछ भी नहीं रह जाता हैं सिर्फ ऊपर का छिलका शेष बचता हैं। वैसे तो यह कीट पूरे वर्ष भर कार्यान्वित रहता हैं परन्तु विशेष रूप से वर्षांत के दिनों में इसका आक्रमण ज्यादा तीव्र हो जाता हैं जो जुलाई से नवम्बर तक का समय होता हैं। गर्मी तथा जाड़े के दिनों में इनकी क्रियाशीलता स्थिर पड़ जाती हैं। बरसात के दिनों में जब इनका प्रकोप बढ़ जाता हैं तो कभी-कभी देखा जाता हैं कि भण्डार गृहों में जहां अनाज का ढ़ेर होता हैं। वहां पर जगह-जगह पर गर्म अनाज मालूम होता हैं। अधिक नमी के कारण कभी-कभी अनाजों में कवक लग जाते हैं जिसके कारण अनाज काला तथा पिण्ड के रूप में बंध सा जाता हैं एवं इस प्रकार के अनाज से एक अजीब प्रकार की महक आने लगती हैं। मनुष्य तथा पशु भी इस प्रकार के अनाज को नहीं खाते हैं। 

लाल सुरही अन्य नामः थूथनविहीन सूंडी 

पोषक अनाज- चावल, मक्का, गेहूं, चना, ज्वार, अरहर आदि। 

क्षति अवस्था- ग्रब एवं प्रौढ़। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
वैसे तो इस कीट की (सूंडी ग्रब) हानि पहुंचाती हैं परंतु प्रौढ़ कीट सबसे अधिक हानि पहुंचाते हैं क्योंकि इन प्रौढ़ कीटों के मुखांग काटने एवं चबाने वाले होते हैं जहां वातावरण इन कीटों के अनुकूल होता हैं वहां पर विशेष हानि पहुंचाते हैं। 

सुरसाली या लाल सूरी 

पोषक अनाज- मैदा, आटा, सूजी, कपास, सेम के बीज, मूंगफली एवं एकत्रित अनाज एवं मेवा आदि। 

क्षति अवस्था- ग्रब एवं प्रौढ़ दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
वैसे तो यह कीट कटे हुए दानों को ही खाता हैं। इसलिए यह गोदामों में खपड़ा विटिल व घुनों के साथ पाया जाता हैं परन्तु यह आटा आदि में ज्यादा नुकसान पहुंचाता हैं। यह बरसात के दिनों अधिक हानि पहुंचाता हैं। 

गेहूं का खपरा अन्य नामः खपरा, पई, वातरी 

पोषक अनाज- गेहूं, ज्वार, बाजरा, चावल, मक्का आदि। 

क्षति अवस्था- ग्रब क्षति अवस्था। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
अधिकांशतया देखने में आता हैं कि कई कीट भण्डार गृह में ज्यादा गहराई 300 मि.मी. से नीचे तक नहीं जाते क्योंकि जीवित रहने के लिए इन्हें ऑक्सीजन की अति आवयश्यकता  होती हैं। जब इस कीट का प्रकोप बढ़ता हैं तब यह भण्डार गृहों के दरवाजों तथा भण्डार गृहों में दूर से ही देखने पर दिखाई देते हैं। कीट के व्यस्क नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि ग्रब ही विशेष हानि पहुंचाते हैं। कीटों के अनाज को काटने एवं चबाने वाले मुखांग होते हैं। यह लगभग पूरे वर्ष अनाज को हानि पहुंचाते हैं परंतु अधिक हानि बरसात के दिनों में जुलाई से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक ही पहुंचाते हैं। यह कीट दानों के भ्रूण वाले भाग का अत्यधिक खाते हैं तथा दानों के अंदर प्रवेश नहीं करते हैं, जिससे दाना खोखला नहीं होता हैं तथा अनाज का कुछ हिस्सा कटा नजर आता हैं। अनाज के भार (वजन) में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता हैं परन्तु इस प्रकार से क्षति किया हुआ अनाज बीज बोने लायक नहीं रह जाता हैं तथा इसके पौष्टिक गुण भी समाप्त हो जाते हैं। 

दालों का घुन अन्य नामः धनुर, डोरा, चिरइया 

पोषक पौधे- अरहर, उड़द, मूंग, चाय, मसूर, मटर, मोठ, सेम, लोबिया आदि। 

क्षति अवस्था- ग्रब और प्रौढ़ दोनों ही काटने एवं चबाने वाले मुखांग होने के कारण। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
प्रकोप दालों में, खेत में व भण्डार गृहों दोनों ही स्थानों पर होता हैं। ग्रब तथा प्रौढ़ दोनों ही हानि पहुंचाते हैं क्योंकि दोनों के काटने एवं चबानें वाले मुखांग होते हैं। प्रौढ़ की अपेक्षा ग्रब अधिक हानि पहुंचाते हैं। फरवरी के महीने से खेतों में जिस समय पौधों में हरी फलियां लगनी आरंभ होती हैं इस कीट का आक्रमण उन पर शुरू हो जाता हैं। मादायें पौधों की फलियों व पत्तियों पर अण्डे देती हैं जिससे क इनके ग्रब फली के अंदर प्रवेश करने के उपरांत प्रवेश द्वार बन्द हो जाता हैं तथा बाहर से दाना स्वस्थ दिखाई पड़ता हैं। खेत से दाने के ही अंदर रहकर भण्डार गृह तक यह कीट पहुंच जाता हैं जहां पर प्रौढ़ के रूप में बदल जाता हैं और खाने का कार्य शुरू कर देता हैं। भण्डार गृहों में यह कीट अनाजों व बोरों के अंदर छिपकर रहता हैं। बाद में भण्डारण के उपरान्त उन्हीं बोरों व दाल के ढ़ेरों में मैथुनोपरांत मादायें अण्डा देना शुरू कर देती हैं, जिनकों कि आसानी से देखा जा सकता हैं। अण्डे में अंदर आने पर ग्रब दानों में छिद्र बनाकर प्रवेश कर पाते हैं तथा दाने को भीतर ही भीतर खाकर खोखला कर देते हैं। एक बड़े दाने के कई ग्रब रहते हैं। धीरे-धीरे अंदर रहकर कृषिकोष में बदल जाते हैं। कीट ग्रसित दाने न तो बीज लायक और न ही खाने लायक रहता हैं। बरसात में जुलाई-सितम्बर तक विशेष रूप से सक्रिय रहता हैं एवं 40-50 प्रतिशत हानि पहुंचाता हैं। 

अनाज का पतंगा अन्य नामः आटे व अनाज की सूंडी, सुरेरी 

पोषक अनाज- गेहूं, चावल, ज्वार, मक्का, जौं, आटा, सूजी आदि। 

क्षति अवस्था- सूंडी। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
इस प्रकार के कीट भण्डार गृहों व बोरों के अंदर रखे हुये अनाजों को हानि पहुंचाते हैं परंतु सबसे ज्यादा क्षति इस कीट की सूंडी पहुंचाती हैं। इसके अनाज को काटने एवं चबाने वाले मुखांग अधिक तीव्र एवं मजबूत होते हैं। यह सूंडी दानों में छिद्र बनाकर अंदर प्रवेश कर जाती हैं जो कि साधारणतयाः देखने पर दिखाई नहीं देती हैं। अधिकांशतयाः एक दाने के अंदर एक ही सूंडी पायी जाती हैं जो कि दाने के भीतरी भाग को खाकर खोखला कर देती हैं। इस कीट के प्रौढ़ कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं। यह केवल मैथुन कार्य में सहायक होते हैं, जिसके कारण मादाएँ गोदाम आदि से उड़कर पकी हुई फसलों में जाकर अण्डे देती हैं जिससे कि इस सूंडी का प्रकोप खेत से ही आरंभ हो जाता हैं और खड़ी फसल पर ही इसकी सूंडी दानों में प्रवेश कर गोदामों या अनाज भण्डार गृहों तक पहुंच जाती हैं। विशेष रूप से इस कीट के प्रकोप को तब तक नहीं जाना जा सकता हैं जब तक कि प्रौढ़ कीट उड़ते हुये दिखाई नहीं देते हैं। जब यह कीट दाने के बाहर उड़कर चला जाता हैं तब एक बड़ा सा गोल छिद्र दाने के ऊपर दिखाई देता हैं। इस कीट द्वारा की गई हानि का पता लगाना कठिन हैं परन्तु (वैज्ञानिकों) प्रुथी तथा सिंह (1950) के तहत इस कीट के द्वारा लगभग 10 प्रतिशत से अधिक अनाज की हानि होती हैं। कीट प्रकोप बरसात के दिनों में जुलाई से अक्टूबर तक विशेष रूप से सक्रिय रहता हैं तथा शेष दिनों में इसका प्रभाव कम हो जाता हैं। बरसात के दिनों में ही विशेष रूप से स्टोर की गयी सूजी, मैदा, आटा आदि में सूंडी का प्रकोप बढ़ जाता हैं, जिससे कि उसमें सड़न व एक अजीब प्रकार की गंध पैदा हो जाती हैं। 

आरा भृंग 
पोषक अनाज- चावल, मैदा से टूटे हुये अनाज, बिस्कुट, मुनक्का, सूखा मेवा फल, बीज, शक्कर, तम्बाकू, दूध की बनी हुई सूखी चीजें एवं सूखा मांस। 

क्षति अवस्था- ग्रब एवं प्रौढ़। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
वैसे तो यह कीट कटे हुए दानों को ही खाता हैं। इसलिए यह गोदामों में खपड़ा विटिल व घुनों के साथ पाया जाता हैं परन्तु यह आटा आदि में ज्यादा नुकसान पहुंचाता हैं। यह बरसात के दिनों अधिक हानि पहुंचाता हैं। प्रौढ़ आरा भृंग, लाल सूरी प्रौढ़ से थोड़ी छोटी एवं आगे की ओर से पतली होती हैं। 

चावल की पंखी 

पोषक अनाज- चावल, धानों, दालों, सूखे फल, बिस्कूट, सूजी, तिल एवं अलसी। चावल एवं ज्वार पर ज्यादा आक्रमण होता हैं। 

क्षति अवस्था- सूंडी। 

क्षति की प्रकृति एवं आर्थिक महत्व 
प्रौढ़ शलभ धूसर भूरे रंग का मि.मी. लम्बा होता हैं। पंख शरीर पर छतनुमा रहते हैं। इस कीट द्वारा बाधित अनाज में जालें बने हुये मिलते हैं। गोदामों के हानिकार कीटों की रोकथाम व नियंत्रण के उपाय- कृषकों के समक्ष ज्यादा से ज्यादा परिश्रम करने के उपरांत पैदा किये हुये अनाज को ठीक ढंग से भण्डार करने की प्रमुख समस्या हैं जिससे कि अनाज सही रूप से भण्डारित नहीं हो जाता हैं और कीटों द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया जाता हैं। इनसे होने वाली क्षति लगभग 25 प्रतिशत (बिन्द्रा, 1975) के अनुसार हैं, जिसमें कि लगभग दस करोड़ टन अनाज आता हैं। इससे देश की आर्थिक दशा पर विशेष प्रभाव पड़ता हैं। इन कीटों से होने वाली क्षति को रोकना अति आवश्यक हैं। भण्डार गृह में नुकसान करने वाले कीट जैसे- चूहे, माईट्स, कीटों एवं बरसात के दिनों में होने वाली शीलन द्वारा मुख्य रूप से क्षति होती हैं। भण्डार गृह में कीटों के लगने के कारण कीटों द्वारा होने वाली क्षति वैज्ञानिकों के गहन अध्ययन के उपरांत तीन तथ्यों पर निर्भर होती हैं। 

अनाज में नमी की प्रतिशत मात्रा 
खाद्यान्न को भण्डार गृह में रखने पर कीटों के आक्रमण के लिए अनाज में निर्धारित नमी की मात्रा की आवश्यकता होती हैं। यदि इस समय नमी की मात्रा की आवश्यकता होती हैं। यदि इस समय नमी की मात्रा 8 या 10ः से कम होती हैं तब खपरा बीटिल को छोड़कर अन्य कीट हानि नहीं पहुंचा सकते हैं। अनाज की नमी कम करने के लिये यांत्रिक विधि या गर्मी के दिनों में कड़ी धूप में सुखाया जा सकता हैं। इसकी पहचान अनाज के दानों को दांतों को दांतों के नीचे दबाकर की जा सकती हैं। जब दानें कट्ट से दो टुकड़ों में टूट जायें तो समझ लेना चाहियें कि अनाज ठीक ढ़ंग से सूख चुका हैं और गोदाम में रखने लायक हो गया हैं। इस प्रकार इतनी नमी में अनाज ठीक ढ़ंग से सूख चुका हैं और गोदाम में रखने लायक हो गया हैं। इस प्रकार इतनी नमी में अनाज को नमी विरोधी गोदाम में रखें अन्यथा बरसात के दिनों में अनाज को नमी विरोधी गोदाम में रखें अन्यथा बरसात के दिनों में पुनः नमी की मात्रा बढ़ जाती हैं जिससे की कीटों की संभावना बढ़ जाती हैं। 

ऑक्सीजन की उपस्थिति और प्राप्ति 
कीटों के जीवन हेतु ऑक्सीजन की अति आवश्यकता होती हैं। इसलिये यदि अनाज को हवा-विरोधी गोदामों में भण्डारित किया जायें तो उसमें ऑक्सीजन धीरे-धीरे कम होने लगती हैं क्योंकि कीटों तथा बीजों दोनों के ही लिये इसकी आवश्यकता पड़ती हैं। कीटों के जीवन के लिये ऑक्सीजन की निश्चित न्यूनतम मात्रा निर्धारित होती हैं। अतः इससे कम ऑक्सीजन होने पर कीटों का जीवन समाप्त हो जाता हैं। खपरा बीटिल कीट हेतु 16.8 प्रतिशत ऑक्सीजन का होना अति आवश्यक हैं। इसलिये इन कीटों को ऑक्सीजन की मात्रा कम करके मारा जा सकता हैं। 
तापक्रम 
कीटों के दैनिक क्रियाओं में तापमान की निर्धारित मात्रा का होना अति आवश्यक होता हैं। नमी की भांति इसकी पूर्ति के लिये कुछ कीट गर्म स्थलों का निर्माण करते हैं। यदि गर्म स्थलों को बनते ही नष्ट कर दिया जाय तो इन कीटों का विकास नहीं हो सकता हैं। इसके लिये भण्डार गृहों में रखें अनाज को एक दो बार अलट-पलट कर देना चाहिए या कीटों को मार देना चाहिए, क्योंकि गर्म स्थलों का निर्माण कीट एवं बीज के श्वसन से उत्पन्न गर्मी के कारण होता हैं। 
यदि उपरोक्त बातों को अनाज भण्डारित करते समय ध्यान में रखा जाय तो कीटों से होने वाली हानि से अनाज को बचाया जा सकता हैं। 

भण्डारण के समय अपनाई जाने वाली सावधानियां 

  • अनाज की भराई करते समय खलिहानों को साफ-सुथरा रखना चाहिये जिससे की कीट अनाजों में अण्डे न दे सकें एवं अनाजों से मिलकर कीट भण्डार गृह तक न जा सके। 
  • अनाज भण्डार गृहों में रखते समय ध्यान रखें की जिन बोरों में अनाज भरकर रखा जाय वह पुराने नहीं होने चाहियें क्योंकि पुराने बोरों में कीटों की अनेक अवस्थाएं छिपी रहती हैं। 
  • कुछ कीट ऐसे होते हैं जो फसल के पकते ही उनके दानों पर अण्डे रख देते हैं जो कि अनाज के साथ गोदामों में चले जाते हैं। जैसे चावल का घुन, अन्न का शलभ एवं दाल का भृंग आदि। अतः उन्हें धूप में अच्छी तरह सुखाकर या उपचारित करके गोदामों में रखना चाहिए। 
  • अनाज ढ़ोने वाले वाहनों को जैसे बैलगाड़ी, ट्रक, ट्रैक्टर ट्राली आदि को ठीक ढ़ंग से साफ-सुथरा करके अनाज नहीं ढ़ोया जाता हो इसमें भी कीट अनाज से मिलकर भण्डार गृह तक चले जाते हैं।
  • गोदामों और अनाज भण्डार गृहों में अनाज रखते समय ठीक ढ़ंग से साफकर लेना चाहिए क्योंकि पुराने गोदामों में व उनकी दीवारों में कीट छिपे रहते हैं। 
  • इन कीटों के प्रौढ़ कीट भण्डार गृहों तक उड़कर तथा सूंडी रेंग कर पहुंच जाती हैं। कीटों की रोकथाम के उपाय। 
  • जहां पर गोदामों में अनाज भण्डारित किया जाए उसकी दीवारें व फर्श पक्के होने चाहिए। स्वच्छ वायु के जाने हेतु खिड़कियां होनी चाहिये। लेकिन यह खिड़कियां ऐसी हों जिन्हें बाहर से खोला एवं बन्द किया जा सके ताकि धूम्रण में परेशानी न हों। 
  • पुराने गोदामों को ठीक ढ़ंग से साफ किया जाए जिससे कि पुराना भूसा व कूड़ा करकट न रह सके। 
  • यदि दीवारों की छत व दीवारों तथा फर्श पर कीटों की आशंका हो तो उसे अनाज रखने के पूर्व निम्न दवाओं में से किसी एक से उपचारित करके साफकर लेना अति आवश्यक होता हैं। 
  • ई.डी.सी.टी. मिश्रण (किल्लोपटेरा) से 24 घंटे तक 10 लीटर प्रति 30 घनमीटर स्थान की दूर से धू्रमण करना चाहिए। 
  • एल्यूमीनियम फस्फाईड की 7 गोलियां (21 ग्राम) प्रति 28 घन मीटर की दर से प्रयोग करनी चाहिए। 
  • मैलाथियान का 5 प्रतिषत को घोल बनाकर 3 लीटर प्रति वर्ग के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। 
  • अनाज भण्डाराण में नये बोरे प्रयोग करने चाहिये यदि पुराने बोरों का प्रयोग करना हो तो उन्हें दवाओं से शोधित कर लेना चाहिये। 
  • बोरों को उलटे कर गर्मियों में लगभग पूरे दिन सुखाने से कीट मर जाते हैं। 
  • बोरों को गर्म पानी में लगभग 15 मिनट तक उबाल कर सुखाना चाहिए, इससे छिपे कीट मर जाते हैं। 
अनाज की सफाई तथा सावधानियां 
  • जहां तक हो सके भण्डारण करते समय एक गोदाम में एक ही प्रकार का अनाज रखना चाहिये तथा उसे साफ-सुथरा करके ही भण्डारित करना अति आवश्यक होता हैं। 
  • अनाज ढ़ोने वाली बैलगाड़ी व ट्रैक्टर ट्राली व ट्रक आदि की ठीक ढ़ंग से सफाई अनाज ढ़ोने से पूर्व कर लेनी चाहिए तथा इसे फिनाईल से साफकर लें तो सर्वाधिक लाभप्रद होता हैं। 
  • अनाज को खलिहान से लाकर गोदाम में भण्डारित करने से पूर्व भली-भांति सुखा लेना चाहिये जिससे कि उसमें नमी 8-10 प्रतिशत से ज्यादा न रह सके। नमी की इस मात्रा में कीट नहीं के बराबर लगता हैं। 
  • गोदाम में अनाज यदि बोरों में भरकर भण्डारित किया जाता हैं तो इस परिस्थिति में गोदाम के निचले फर्श पर लगभग 150 मि.मी. भूसा बिछा देना चाहिये तथा दीवारों से लगभग 300 मि.मी. की दूरी पर बोरे लगाना चाहिए। 
  • अनाज को गोदाम में रखने के पूर्व 100ः10 के अनुपात में नीम करलेल पाउडर के मिश्रण करने पर भण्डारण करने से कीट का प्रकोप नहीं होता हैं। 
  • यदि अनाज को भण्डारण करने से पूर्व ही अनाज में कीट लग चुका हो तो ऐसी दशा में अनाज की शोधित करना अति आवश्यक होता हैं। शोधित करने के लिये ई.डी.सी.टी. मिश्रण की लगभग 15 लीटर प्रति 400 क्विंटल अनाज की दर से शोधित या उपचारित की जानी चाहिए। 

नियंत्रण 
उपरोक्त सावधानियां रखने के उपरांत भी यदि गोदाम में रखे हुये अनाज में कीट प्रकोप नजर आता हैं तब हम निम्न दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं- 
  • ई.डी.बी. एम्पूल (3 मि.ली.) प्रति कुन्तल अनाज की दर से। 
  • ई.डी.सी.टी. मिश्रण का 500 ग्राम प्रति मीट्रिक टन अनाज की दर से। 
  • एल्यूमीनियम फास्फाईड की 1 टिकिया (टेबलेट) 1 मीट्रिक टन अनाज की हिसाब से।