द्विवेदी प्रसाद, सहायक प्राध्यापक (शस्य विज्ञान) पं. शिवकुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)
संदीप कुमार पैकरा ,सहायक प्राध्यापक (शस्य विज्ञान) कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, रायगढ़ (छ.ग.)

गेहूँ भारतीय के भोजन का एक प्रमुख अवयव हैं, जो चावल के बाद दूसरे दर्जे का खाद्यान्न हैं। सम्पूर्ण खाद्यान्न का लगभग 34 प्रतिशत भाग गेहूँ द्वारा पूरा होता हैं। गेहूँ की उपलब्धता एवं प्रतिदिन की आवश्यकता आंकड़े के आधार (75 कि.ग्रा./व्यक्ति/वर्ष) पर अधिक होने के कारण बढ़ती जनसंख्या के लिये गेहूँ की खेती को बढ़ावा देने की अति आवश्यकता हैं। अतः लक्ष्य की प्राप्ति तभी सम्भव हैं, जबकि उर्वरकों, पानी आदि संसाधनों को वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार अपनाने के साथ-साथ फसल को खरपतवार, कीट-रोग आदि व्याधियों से बचाया जा सकें। 

खरपतवारों से हानियां 
खरपतवार नियंत्रण ठीक से न होने की दशा में गेहूँ को दी गयी पोषक तत्वों की खुराक खरपतवार ले लेते हैं। साथ ही साथ नमी, प्रकाश एवं स्थान आदि के लिये प्रतिस्पर्धा करके फसल की बढ़वार, उपज एवं गुणवत्ता में भारी कमी कर देते हैं। खरपतवारों द्वारा भूमि से पोषक तत्वों एवं नमी, का पलायन इसकी संख्या, जाति एवं अन्य शस्य क्रियाओं पर निर्भर करता हैं। वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार गेहूँ की फसल में खरपतवार प्रति हेक्टेयर लगभग 20 से 90 किलोग्राम नत्रजन, 2 से 13 कि.ग्रा. फाॅस्फोरस एवं 28 से 54 कि.ग्रा. पोटाश को ले लेते हैं। 
अतः खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवधि जो कि बुवाई के बाद 30 दिन से लेकर 45 दिन तक रहता हैं, खरपतवार नियंत्रण न करने से गेहूँ की उपज में लगभग 25 से 40 प्रतिशत तक की कमी आ जाती हैं। 

गेहूँ की फसल के प्रमुख खरपतवार 
गेहूँ की फसल में चैड़ी एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवारों की समस्या पायी जाती हैं। 

सकरी पत्ती वाले खरपतवारः- गेहूँ का मामा (फेलेरिस माइनर), जंगली जई (एवेना लूडोविसियाना)। 

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारः- बथुआ (चिनोपोडियम अल्वम), हिरनखुरी (कानवाल्वुलस), अकरी (विसिया सेटाइवा), वनमटरी (लेथाइरस अफाका), पीली एवं सफेद सैंजी (मिलिलोटस अल्बा या इंडिका), कृष्णनील(एनागैलिस अरवेन्सिस), चिकोरी (चिकोरियम इनटाइवस), बनप्याजी (एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस), तारातेज (कोनोपस डिडमस) आदि। 

खरपतवारों की रोकथाम कब करें 
किसान खरपतवारों से होने वाले हानियों से अनभिज्ञ रहते हैं और इनकी रोकथाम की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं बल्कि कुछ खरपतवारों को काटकर दुधारू पशुओं के लिये हरे चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। नियंत्रण के अभाव में खरपतवार फसलों पर प्रारम्भिक अवस्था में प्रतिकूल प्रभाव डालकर उनकी बढ़वार को प्रभावित कर देते हैं। अतः गेहूँ फसल में खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रान्तिक समय जोकि बुवाई के 30 दिन बाद से लेकर 45 दिन तक हैं, खरपतवारों से मुक्त रखना चाहियें। इससे फसल की उत्पादन क्षमता पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव न के बराबर रह जाते हैं। 

निवारण विधि 
खेतों में खरपतवारों के प्रवेश निषेध के लिये जो भी क्रियायें जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, खरपतवार रहित सिंचाई नालियों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, खेत की तैयारी व बुवाई में प्रयुक्त यंत्रों के प्रयोग से पहले अच्छी तरह से सफाई आदि को अपनाने से खरपतवारों की समस्या में काफी कमी आती हैं। 

यान्त्रिक विधि 
गेहूँ की फसल में चौडी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे- बथुआ, अकरी, वनमटरी, कृष्णनील, सैजी, जंगली गाजर इत्यादि की समस्या होने पर हाथ से निराई करके खरपतवारों को निकाला जा सकता हैं। अतः गेहूं की फसल की क्रान्तिक अवस्था में खरपतवार मुक्त रखने के लिये सामान्यतः एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 20-25 दिन के अन्दर करना चाहियें। बाद में फसल की बढ़वार नये उगे खरपतवारों को आसानी से ढ़क लेती हैं। उचित फसल चक्र अपनाकर ऐसा पाया गया हैं कि गेहूँ का मामा (फेलेरिस माइनर) नामक खरपतवार का प्रकोप ऐसे क्षेत्रों में अधिक होता हैं, जहाँ पर धान-गेहूँ फसल-चक्र कई वर्षाें से अपनाया जा रहा हैं। भूमि एवं परिस्थितियों के अनुकूल इस फसल-चक्र को किसी दूसरे फसल-चक्र जैसे धान-सरसों, धान-मसूर, धान-चना या मक्का-गेहूँ आदि से बदलकर कुछ हद तक इसके प्रकोप से बचा जा सकता हैं। 

शाकनाशी  रसायनों का प्रयोग 
सकरी पत्ती वाले खरपतवारों को पहचान कर हाथ से निराई कर नियंत्रित करना काफी मुश्किल हैं। इसलिये खरपतवारनाशी का प्रयोग करना उपयुक्त रहता हैं। किन्तु शाकनाशी रसायनों के प्रयोग से इन्हें जल्दी मारा जा सकता हैं और इससे प्रति हेक्टेयर लागत भी कम आती हैं तथा समय की भारी बचत होती हैं। 

प्रयोग विधिः- उपरोक्त खरपतवारनाशी को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करना चाहियें। 

शाकनाशी रसायनों के प्रयोग में सावधानियाँ 
  • शाकनाशी रसायनों का प्रयोग उचित मात्रा में एवं उचित ढ़ंग से करना चाहिये, साथ ही साथ संस्तुति मात्रा में पानी लेना चाहिये। 
  • इन रसायनों का प्रयोग फसल की उचित अवस्था पर ही करना चाहिये। 
  • शाकनाशी रसायनों के डिब्बे या पैकेट पर रसायन की सान्द्रता अंकित रहती हैं। इसी के आधार पर रसायन की व्यवसायिक मात्रा का आंकलन करके उचित मात्रा में ही प्रयोग करें। 
  • रसायन का प्रयोग करते समय साफ आसमान का ध्यान रखें, जब वातावरण में हवा शान्त एवं साफ-प्रकाश हो तभी प्रयोग करना चाहियें। 

खरपतवार प्रबंधन 

 शाकनाशी 

 खरपतवार के प्रकार

 उत्पाद मात्रा/एकड़

 मुख्य खरपतवार 

 क्लोडिनाफाॅप*(टोपिक/पाॅइंट/झटका)

 संकरी पत्ती

 160 ग्राम 

   संकरी पत्ती

 फिलोक्साडेन*(एकिसल 5 ई.सी.)

  संकरी पत्ती

 400 मि.ली.

  मंडुसी/कनकी/गुल्ली डंडा जंगली, जई, पोआ घास,लोमड़ घास

 मेटासल्फ्यूरान*(एलग्रीप)

  चौड़ी पत्ती

  8 ग्राम 

 चौड़ी पत्ती 

 कारफेन्ट्राजोन*(एफीनीटि)

 चौड़ी पत्ती

 20 ग्राम

 बथुआ, खरबाथु

 2,4-डी (बीडमार)

 चौड़ी पत्ती

 500 मि.ली.

 जंगली पालक, मैना, मैथा

 आईसोप्रोट्यूराॅन*(आईसोगार्ड 75 डब्लयू पी)

 संकरी व चौड़ी पत्ती

  500 ग्राम

   सोंचल/मालवा 

 सल्फोसल्फ्यूराॅन **(लीडर/एस.एफ.10/सफल)

 संकरी व चौड़ी पत्ती 

 13 ग्राम

 मकोय, हिरनखुरी 

 टोटल**(सल्फोल्फ्युराॅन+मैट्रीब्युजीन)

 संकरी व चौड़ी पत्ती 

  16 ग्राम 

 कंडाई, कृष्णनील, 

 अटलांटिस*(मिसोसल्फ्यूराॅन+आइडोसल्फ्राॅन)

  संकरी व चौड़ी पत्ती

  160 ग्राम 

 प्याजी, चटरी-मटरी 

 एकार्ड प्लस*(फिनोक्साप्राॅप+मेट्रीब्युजीन)

  संकरी व चौड़ी पत्ती

  500-600 मि.ली. 

 

 पेन्डीमैथालीन***(स्टाॅम्प)

 संकरी व चौड़ी पत्ती

 1250-1500 मि.ली 


 


*बुवाई के 30-35 दिन के बाद 120 लीटर/एकड़ पानी में, 

**बुवाई के 20-25 दिन के बाद (पहली सिंचाई से पहले) या बुवाई के 30-35 दिन बाद (सिंचाई के बाद), 

***बुवाई के 3 दिन तक 120-150 लीटर/एकड़ पानी में