ग्रामीण मुर्गीपालन कम लागत में अधिक आय प्राप्त करने का एक स्त्रोत हो सकता हैं। ऐसी मुर्गियां आमतौर पर रोगों के लिए प्रतिरोधक होती हैं। विषाणु जनित रोग अत्यधिकि तेजी से फैलते हैं। यदि उचित समय में उपचार नहीं किया गया तो यह विकराल रूप ले सकता हैं। अधिक मुनाफा तथा कम लागत में बेहतर परिणाम प्राप्त करने हेतु होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग उत्तम हैं। क्योंकि ये दवाएं दाम में कम हैं एवं आसानी से खिलाई जा सकती हैं। साथ ही सुरक्षित हैं तथा जल्दी असर करने वाली हैं। 

होम्योपैथिक दवाएं औषधीय पौधों, खनिज तथा जैविक पदार्थों से बनाई जाती हैं। अधिक लाभ के लिए बण्डा उत्पादन बढ़ाने तथा कम समय में अधिक शारीरिक बढ़त प्राप्त करने में भी होम्योपैथिक दवाओं का योगदान हैं। ये दवाएं पीने के पानी अथवा दाने में आसानी से मिलाकर खिलाई जा सकती हैं। मुर्गी के निम्नांकित रोगों पर होम्योपैथिक दवा के उपयोग से नियंत्रण किया जा सकता हैं। 

कौक्सीडियोसिस (खूनी दस्त) 

इस रोग का कारक प्रोटोजोआ नामक सूक्ष्म परजीवी हैं तथा यह मुर्गियों को भारी नुकसान पहुंचाता हैं। कम उम्र में बढ़ते हुए पक्षियों में इस रोग के लक्षण अधिकतर दिखाई पड़ते हैं। इस बीमारी से मुर्गियों में शारीरिक विकास रूक जाता हैं, अण्डा उत्पादन देर से होता हैं तथा मृत्यु भी संभावित हैं। अण्डे देने वाली मुर्गियों में अण्डा उत्पादन निश्चित रूप से गिर जाता हैं। 

लक्षण 

चूजों में खुनी दस्त होना एक प्राथमिक लक्षण हैं। वे सुस्त हो जाते हैं। पंख छितर जाते हैं तथा अत्यधिक रक्ताल्पता देखने को मिलती हैं। 2 से 3 दिन में लगभग 20 प्रतिशत मृत्युदर देखने को मिलती हैं। 

बचाव एवं उपचार 

मर्क साॅल 30 

दिन में चार बार, तब तक दें जब तक लक्षण दिखने बंद न हो जाएं। 

निम्नाकित दवाओं का मिश्रण 

(मर्क काॅर 30), (नक्स वाॅम 30), (सल्फर 30)। प्रत्येक दवा 5 ml मात्रा में पानी में मिलाकर 100 पक्षियों हेतु 3 दिनों तक लगातार देना चाहिए। 

रानीखेत 

यह एक अत्यंत संक्रामक रोग हैं, जिसमें काफी अधिक (80-90%), मृत्युदर देखने को मिलती हैं। 

लक्षण 

छींकना, खांसना, मुंह खोल कर सांस लेना तथा हरा दस्त करना, इसके मुख्य लक्षण हैं। एक या दोनों पैरों तथा पंखों में लकवा मार जाना, पैर तथा पंख घिसटकर चलना, बैठे-बैठे ऊंघना आदि इसके अन्य लक्षण हैं। 

बचाव एवं उपचार 

(कारबो वेज) 30

25 ml

 (वेराट्रम एल्ब) 30

25 ml

 (बेलाडोना) 30

25 ml

 (काली फोस) 30

25 ml


उपरोक्त 100 ml मिश्रण को 80 लीटर ठंडे, ताजे पानी में मिलाएं। यह 400 पक्षियों हेतु पर्याप्त हैं। एक दिन छोड़कर यह मिश्रण पक्षियों को तब तक देना चाहिए जब तक रोग के लक्षण दिखने समाप्त न हो जाएं। उपरोक्त मिश्रण के 2 ml घोल को प्रत्येक 2-4 घंटे पर मास में इंजेक्षन लगाने से भी लाभ होता हैं। 

फाउल पाॅक्स (चेचक) 

यह एक छूतदार, संक्रामक रोग हैं जिससे सभी उम्र के पक्षी प्रभावित होते हैं। चूजों में इससे मृत्युदर अधिक देखने को मिलती हैं। 

लक्षण 

इसमें सिर पर दाने-दाने हो जाते हैं। 

उपचार 
  • वोरियोलिनम 30 उपरोक्त दवा की 10 ml मात्रा 8 लीटर साफ पानी में मिलाकर 100 पक्षियों हेतु रखें। 
  • थूजा 30 की 10 ml मात्रा 8 लीटर साफ पानी में मिलाने पर स्कैब होने की स्थिति में उपचार किया जा सकता हैं। 
नियंत्रण एवं बचाव 

पलसेटिला 

5 ml , थूजा 200 ml, नेट्रम सल्फर 5 ml उपरोक्त मिश्रण को 8 लीटर साफ पानी में मिलाकर 100 पक्षियों हेतु रखें। 

कोराइजा (सर्दी-जुकाम) 

यह स्वास तंत्र का एक तीक्षण लक्षणों वाला रोग हैं। यह ग्रोअर पक्षियों को ठंड के मौसम अथवा त्रुटि पूर्ण प्रबंधन से प्रभावित कमजोर पक्षियों को अधिक प्रभावित करता हैं। 

लक्षण 

नाक से पानीदार स्त्राव, चेहरे पर सूजन, आंखों का लाल होना, मुर्गी में कलगी पर सूजन, सांस लेने में तकलीफ होना तथा घर्र-घर्र की आवाज होना, खाने-पीने से अरूचि होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

उपचार 

साबडिला 200-5 ml, काली बिच 200-5 ml (एलीयम सेपा) 200-5 ml

उपरोक्त मिश्रण के 15 ml को 8 लीटर पीने के पानी में मिलाकर 100 पक्षियों हेतु दें। इस उपचार को कम से कम 3-5 दिनों तक जारी रखें। 

पेट में कृमि 

आहार तथा गंदे पानी के साथ कृमि के अंडे मुर्गियों को कमजोर बनाते हैं तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करते हैं। 

उपचारः (चाइना)-30 

चपटा/फीता कृमि 

ये मुर्गियों को कमजोर बनाते हैं तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करते हैं। 

उपचार 

फीलिक्स मास 30-20 ml मात्रा को 20 लीटर पीने के पानी में मिलाएं। यह मात्रा 100 पक्षियों हेतु पर्याप्त हैं। इसे 3 दिन तक लगातार दें। तीन सप्ताह बाद पुनः दोहराएं। पैरों में काटना, छिलना आदि- 

पैरों में नुकीले, धारदार चाकू आदि से कटने पर उपचार 

(आरनीका) 30-30 ml. को 100 पक्षियों हेतु 8 लीटर गुनगुने पानी में मिलाएं। उसे 4 दिनों के लिए प्रति चार घंटे पर पिलाएं। 

मवाद होने पर उपचार 

हिपार सल्फः घाव पर लगाएं। 

सिलीकाः घाव पर लगाएं। 

केलेन्डूलाः घाव पर लगाएं। 

शारीरिक तनावः मुर्गियों में परिवहन, टीकाकरण, कृमिनाशक दवापान आदि कारणों से तनाव पैदा होता हैं। 

उपचार 

(आरनिका मोन्टाना 200), (फाइव फोस 30) 

उपरोक्त मिश्रण के 15 मि.ली. मात्रा को 5 लीटर साफ पानी में मिलाकर 100 पक्षियों को 3 दिनों तक दें। इसे केवल सुबह ही दें। 

दस्त व पेचिश 

उपचारः (इपीकाक) 30-20 मुर्गियों हेतु 120 गोलियों को पीने के पानी अथवा दाने में दें।