यह मुर्गियों में फैलने वाला रोग हैं जो एक विषाणु से फैलता हैं। इस रोग के कारण पक्षी बहुत कमजोर हो जाते हैं। इसमें मृत्यु दर भी बहुत अधिक होती हैं। यह रोग सर्वप्रथम उत्तराखंड के रानीखेत में देखा गया था।

कारक
पैरामाइक्सो विषाणु (टाइप-1) आर.एन.ए. वायरस।

प्रभावित पक्षी
मुर्गी, टर्की, बतख, कोयल, तीतर, कबुतर, कौवे आदि। वैसे यह रोग लगभग दुनिया के सभी देशों में फैला हुआ हैं साथ ही भारत में मुख्य रूप से आन्ध्रप्रदेश, तामिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में इस रोग का संक्रमण देखा गया हैं।

फैलने का कारण
यह संक्रमित पक्षियों के मल, दूषित वायु और उनके दूषित दाने, पानी, उपकरण आदि के स्पर्श से फैलता हैं। इस रोग को न्यूकैसल रोग भी कहते हैं। इस रोग से पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता हैं क्योंकि मुर्गियों की मृत्युदर अत्यन्त तेज होती हैं लगभग 30 से 50 प्रतिशत तक मुर्गियों की मृत्यु हो जाती हैं पर कभी-कभी 100 प्रतिशत तक मृत्यु देखी गई हैं।

रोग के प्रमुख लक्षण
  • सांस लेने में तकलीफ
  • मुंह खोलकर सांस लेना
  • खांसी तथा छींक आना
  • भूख की कमी
  • गर्दन में मरोड़
  • पक्षियों में सुस्ती 
  • नाक से पानी निकलना 
  • पतला और हरे रंग का डायरिया 
  • लीवर/यकृत खराब होना 
  • शरीर का संतुलन खो जाना (एक या दोनों पैर तथा पंख का लकवा पक्षियों में कंपन छींक) 
  • लड़खड़ाता हुआ चलना
  • आकाश की तरफ देखना 
  • गर्दन एक तरफ लुढ़कने लगना 
  • शरीर के वजन में भारी कमी आना 
  • अंडे के उत्पादन में कमी होना। 
निदान
प्रयोगशाला में एलिशा और पी.सी.आर. विधि से रक्त की जांच।

उपचार
  • मुर्गीपालकों को टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • एफ-1 लाइव तथा लसोता लाइव स्ट्रेन वैक्सीन की खुराक 5-7 दिन पर देनी चाहिये और आर-बी स्ट्रेन की बूस्टर खुराक 8-9 सप्ताह तथा 16-20 सप्ताह की आयु पर टीकाकरण करना चाहिये। 
  • रोग उभरने पर तुरंत रानीखेत एफ-1 नामक वैक्सीन दी जाए। 24-80 घंटे में हालत सुधरने लगती हैं। 
  • वैक्सीन की खुराक पक्षियों के आंख और नाक से देनी चाहिए। यदि मुर्गीफार्म बहुत बड़ा हो तो वैक्सीन को पानी में मिलाकर देना चाहिए। 
  • रानीखेत के लिए कोई अति विशेष दवा नहीं हैं फिर भी एंटीबायोटिक के सेवन से बैक्टेरिया के संक्रमण से बचाता हैं। 
  • विटामीनः विमेराल 2 एम.एल. प्रति लीटर पानी में। 
वेक्सीनेशन
  • लसोता वैक्सीन एक बूंद प्रत्येक आँख में या नाक में पहला सप्ताह। आर.टू.बी. मुक्तेश्वर वैक्सीन 0.5 एम.एल. प्रति लीटर या सबक्यूटेनियस 8 तथा 18 वें सप्ताह में।
रोक थाम और नियंत्रण
  • वर्तमान में रोग को पूरी तरह खत्म करने के लिए कोई कारगर दवा नहीं हैं पर वैक्सीन से इस रोग को रोका जा सकता हैं।
  • मुर्गीपालन से पहले वहां के जलवायु आदि का अध्ययन कर लेना चाहिए। 
  • मुर्गीघर के दरवाजे के सामने पैर धोने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 
  • मुर्गी के घर, बर्तनों एवं इन्क्यूवेटर की सफाई। 
  • रोग वाले पक्षियों का उचित टीका करण करना चाहिए। 
  • रोग वाले पक्षियों को अलग करके रखना चाहिए। 
  • बाहरी लोगों का फार्म में प्रवेश वर्जित होना चाहिए। 
  • दो मुर्गीफर्मों के बीच कम से कम 100-150 मी. की दूरी रहनी चाहिए।