डॉ. अभय बिसेन, डॉ. स्वाति बिसेन एवं इंजी. अमित नामदेव
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
सब्जी उत्पादन एक बहुत ही लाभकारी व्यवसाय है। परंतु इस व्यवसाय में किसान को तभी अधिक लाभ होगा जब किसान अगेती सब्जियों की खेती आाधुनिक तरीके से करें तथा अपने उत्पादन को बााजार में उस समय पहुँचा दें जब सब्जी मांग अधिक हो व पूर्ति कम। अतः सब्जियों की खेती से अधिक से अधिक लाभ हो इसके लिये आवश्यक है कि सर्वप्रथम पौधशाला में स्वस्थ व रोगमुक्त पौध (बेहन) तैयार हो। यह तभी संभव है जब आधुनिक तकनीक से, बीज की बोवाई करके पौध तैयार की जाये क्योंकि फसल वृद्धि, पौधों का स्वास्थ्य व उत्पादन इसी पर निर्भर करता है।
लो टनेल पाली हाउस तकनीक पौधशाला में सब्जियों की पौध (बेहन) तैयार करने की एक ऐसी नयी आधुनिक तकनीक है जिसमें सीमित स्थान पर कम से कम खर्च द्वारा, अधिकतम संख्या में, उच्च गुणवत्ता वाले स्वस्थ और रोगमुक्त पौधे तैयार किये जाते हैं। लो टनेल पाली हाउस का अर्थ है उच्च गुणवत्ता वाले सब्जियों के पौध तैयार करने के लिये कम से कम खर्च से पारदर्शी पालीथीन से गुफानुमा बनाया गया घर जिसमें हानिकारक कीट एवं रोग के जीवाणुओं के जाने की संभावना बिल्कुल न हो। इस पाली हाउस में ताप तथा गरमी नियंत्रित वातावरण में रहती है जोकि बीज अंकुरण व स्वस्थ पौध तैयार होने के लिये अनुकूल वातावरण उत्पन्न करती हैं।
इस तकनीक से पौधशाला में पौध तैयार करने की विधि निम्नवत् हैंः-
स्थान का चयन
लो टनेल पाली हाउस बनाने के लिये क्यारी ऐसे स्थान पर बनाएं जहाँ पानी का जमाव न हो तथा किसी बड़े पेड़ या दीवार आदि की छाया न पड़ती हो। भूमि लगभग 15 से.मी. ऊँची होनी चाहिए। चुने गए स्थान पर जंगली झाड़ी तथा खरपतवार इत्यादि भी नहीं होने चाहिए क्योंकि ऐसे स्थान पर हानिकारक कीट व रोग के जीवाणु बहुतायत में होते हैं।
भूमि
अच्छी पौधशाला की स्थापना हेतु दोमट, बलुई दोमट एवं हल्की भुरभुरी, उत्तम जल निकास वाली मृदा होनी चाहिए क्योंकि मुलायम नाजुक पौध (बेहन) जल भराव सहन नहीं कर पाते साथ ही अधिक नमी के कारण पौधशाला में आर्द्रगलन रोग अधिक होता हैं।
क्यारी का आकार
अधिकांश शाकभाजी के पौधों को तैयार करने के लिये बीज पहले क्यारी में बोते हैं। तत्पश्चात् लगभग एक माह बाद इन्हें मुख्य खेत में रोपा जाता है। एक एकड़ (डेढ़ बीघा या तीस बिसवा) खेत में सब्जी लगाने के उद्देश्य से पौध तैयार करने के लिए 7 मीटर लम्बी, 0.75 मीटर चैड़ी तथा 0.15 मीटर ऊँची आकार की 6 क्यारियों की आवश्यकता होती हैं। प्रत्येक दो क्यारी के बीच में 1.5 फुट स्थान क्यारियों में कृषि कार्य करने हेतु छोड़ना चाहिए।
क्यारी की तैयारी
निश्चित आकार की क्यारी बनाकर उसकी गहरी गोड़ाई 2-3 बार कर देनी चाहिए। बड़े ढेलों को तोड़कर मृदा अच्छी तरह भुरभुरी कर लें। क्यारी तैयार करते ही कंकड़-पत्थर व खरपतवार इत्यादि अच्छी तरह बीन कर साफ कर लें व इसी समय इसमें प्रति क्यारी की दर से 60 कि.ग्रा. मिश्रण (30 कि.ग्रा सड़ी गोबर की खाद, 15 कि.ग्रा. पत्ती की खाद व 15 कि.ग्रा. रेत मिलाकर बनाया गया) तथा 100 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम डी.ए.पी. व 120 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश अच्छी तरह मिला दिया जाता हैं। ऐसे स्थान पर, जहाँ कीट, विषाणु या सूत्रकृमि आदि का प्रकोप हो वहाँ बीज बोने से 4-5 दिन पहले 80 ग्राम कार्बोफुयूरान या 10 ग्राम फोरेट 10 जी भी क्यारी में भलीभांति मिला देना चाहिए।
बीज की बोवाई
अच्छी पैदावार मिले इसके लिए लोकल (स्थानीय बीज) की बजाय उन्नत व संकर किस्म के बीजों को बोना चाहिए। संकर बीज महंगे तो जरूर होते है परंतु स्थानीय किस्मों की तुलना में इनकी उपज कई गुना अधिक होती है तथा फल की गुणवत्ता भी अधिक होती है। तैयार प्रयोगशाला की क्यारियों में बीज उपचारित करके बोना चाहिए जिससें रोग लगने की संभावना बिल्कुल न हो। बीज उपचारित करने के लिये 1.5 ग्राम थीरम, 2.5 ग्राम कैप्टान अथवा 2 ग्राम बाविस्टीन (कोई एक दवा) 1 लीटर पानी में अच्छी तरह घोल लें और इसमें बीज डाल दें। लगभग 30 मिनट के बाद बीज इस घोल में से निकाल लें और छाया में अच्छी तरह सुखा लें। सूखने के बाद इन्हें तैयार क्यारियों में बो दें। बीज होने के लिये पंक्ति से पंक्ति के बीच 5 से.मी. तथा बीज से बीज के बीच 3-4 से.मी. का अंतर रखते हुए 1/2 से 1 से.मी. की गहराई पर बीज बो दें। बोने के बाद बीज अच्छी तरह मिट्टी या खाद मिश्रण से ढ़क दें और हाथ से हल्का-सा दबा दें ताकि बीज अच्छी तरह मिट्टी से सम्पर्क में आ जाए और पानी देने पर इधर-उधर न वह जाए। बीज बोआई करते समय यह सावधानी रखें कि बीज अधिक घना न हो। इसके बाद फव्वारें से भरपूर सिंचाई कर दें। इस तकनीक से बीज लगभग 4-5 दिन में ही अंकुरित होने लगते हैं।
टनेल लगाना
बीज बोने के बाद सुरक्षित पौध तैयार हों इसके लिये क्यारी के ऊपर टनेल लगाया जाता हैं। इसके अंतर्गत अर्ध चन्द्राकार ढ़ांचा बनाया जाता हैं। यह ढ़ांचा पतले सरियों, बांस अथवा 6 गेज मोटी जस्तायुक्त तार से बनाया जाता हैं। ये अर्ध गोलाकार ढ़ांचे क्यारी के दोनों किनारों पर तथा बीच में 60 सें.मी. के अंतर पर लगाते हैं। इन ढ़ांचों को नाइलान या जूट की रस्सी से (फ्रेम को) एक दूसरे से फंसाते हुए कस देते हैं।
एग्रोनेट बांधना
लगभग 9-10 मीटर लम्बाई तथा 1 मीटर चैड़ाई का 75 प्रतिशत छाया करने वाला एग्रोनेट, ढ़ांचे के ऊपर एक किनारे से दूसरे किनारे तक डालकर ढक दिया जाता है और नीचे किनारे-किनारे इन्हें जमीन में अच्छी तरह दाब दिया जाता है जिससे कि कीटाणु अंदर न प्रवेश कर सकें। तेज हवा चलने पर एग्रोनेट जाल हटे न इसके लिये जाल को ऊपर से नाइलान रस्सी से बांध देना चाहिए। एग्रोनेट जाल से पौधे बरसात, जाड़ा व गर्मी, सभी मौसमों में सुरक्षित रहते हैं।
नर्सरी की सुरक्षा
- क्यारी को पूर्णतः उपचारित करके ही बीज बोएं।
- बीज को बोने से पूर्व अवष्य उपचारित कर लें।
- क्यारी में खरपतवार बिल्कुल न उगने दें।
- क्यारी में अनावष्यक रसायनों का छिड़काव न करें।
- क्यारी एग्रोनेट जाल से अच्छी तरह ढ़क दें।
कठोरीकरण
पौधे जब खेत में रोपाई योग्य हो जाएं तो उन्हें पौधशाला से निकलने के दो दिन पूर्व पानी देना बंद कर देना चाहिए तथा अधिकांष समय पौधों को (एग्रोनेट जाल हटा कर) खुले में रखना चाहिए ताकि पौधे कुछ सख्त हो जाएं तथा जब मुख्य खेत में इन्हें लगाया जाये तो ये बाहरी वातावरण को सहन कर सकें।
पौधे जब भी पौधशाला से निकलने हों, उससे 2-3 घंटे पहले क्यारी को अच्छी तरह भिगों देना चाहिए जिससे पौधे उखाड़ते समय जड़ों को नुकसान न पहूँचे। पौध निकालने के बाद शाम में इन्हें मुख्य खेत में लगा देना चाहिए।
लो टनेल पाली हाउस से लाभ
इस तकनीक से किसान भाइयों को निम्न लाभ होता हैः-
- अगेती फसल तथा बे-मौसमी फसलों के पौधें (बेहन) आसानी से वर्ष के किसी भी मौसम में कभी भी तैयार कर सकते हैं।
- पौधें कम समय व कम खर्च में पूर्ण रूप से स्वस्थ व रोगमुक्त तैयार होते हैं तथा नाजुक पौध (बेहन) को नियंत्रित क्षेत्र में देखरेख करना सुविधाजनक होता हैं।
- इस तकनीक से, सामान्य वातावरण की तुलना में बीज का अंकुरण शीघ्र होता हैं। सामान्य वातावरण में यदि 7-10 दिन का समय लगता है तो इस तकनीक से मात्र 3-4 दिन की अंकुरण में लगते हैं। अतः पौध शीघ्र/समय से तैयार हो जाते है।
- पौधें चारों ओर से ढ़क होने के कारण लू, तेज धूप, पाला या अधिक वर्षा इत्यादि सभी विकारों से पूर्णतः सुरक्षित रहते हैं।
- हानिकारक कीट व रोगकारक जीवाणु आसानी से पौधशाला तक प्रवेश नहीं कर पाते। अतः पौधों को आसानी से कीट व रोगों से बचाया जा सकता हैं।
- लो टनेल पद्धति से बेहन तैयार करने में कम स्थान एवं अपेक्षाकृत कम बीज की जरूरत होती हैं जो कि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी हैं क्योंकि संकर (हाईब्रीड) बीज बहुत महंगे होते हैं।
- पौधों की वृद्धि हेतु अत्याधिक अनुकुल माध्यम उपलब्ध रहता हैं।
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