कृषि कार्ययोजना

  • धान में बियासी या रोपाई के 15 से 25 दिन के बीच सकरे एवं चैड़े पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिये फिनोक्सीप्राप पी. इथाइल 250 मि.ली. तथा क्लोरिक्यूराॅन + मेटसल्फ्यूराॅन 8 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • करगा प्रभावित धान के खेतों से करगा छटाई का काम अवश्य करें। इन क्षेत्रों में बैंगनी रंग वाली धान की किस्म (श्यामला) की बोनी करना चाहियें।
  • धान के खेत में लगातार पानी भरकर न रखें।
  • हरी काई का प्रकोप दिखे तो पानी को खेत से निकाल देवें। खेत में जिस जगह से पानी अन्दर जाता हैं, वहां काॅपर सल्फेट (नीला थोथा) को पोटली में बांध कर रखें। नील हरित काई उपचार वाले खेतों में 3-4 से.मी. पानी का स्तर रखें।
  • धान में बियासी व चलाई का कार्य प्रारंभ करें।
  • दलहनी एवं तिलहनी फसलों में 30-35 दिन के अंदर निंदाई-गुड़ाई करें।
  • सोयाबीन में खरपतवार जब 2 से 3 चैड़ी पत्ती तथा 2 से 3 इंच की घास रहे तब इमाजेथापिर 10 प्रतिशत् एस.एल. का 300 मि.ली. प्रति एकड़ छिड़काव करें।
  •  देर हो जाने के कारण यदि धान की रोपाई इस माह करनी पड़ रही हैं तो पौधे की दूरी कम रखें व दो-तीन पौधों का उपयोग करें।
  • औषधीय फसल अष्वगंधा की बुवाई करें।
  • धान की विभिन्न अवस्थाओं में अनुषंसित मात्रा में नत्रजन का छिड़काव करें।
  • धान में यूरिया का छिड़काव करने के पूर्व खेत में पानी की मात्रा कम कर देवें।
  •  रोपा लगाने के पूर्व धान के थरहा की जड़ों को क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. दवा का 1 मि.ली./लीटर पानी तथा 2 किलों यूरिया मिलाकर 3-4 घंटे डुबोकर रोपा लगाएँ।
  • धान की रोपणी/प्रथम अवस्था में कीटों से बचाव हेतु थरहा को मोनोक्रोटोफाॅस 36 ई.सी. दवा का 750 मि.ली./हे. की दर से उपचार करें।
  • फल पौध रोपण कार्य जो शेष रह गया हैं उसे पूरा करें।
  • पौधों के पास यदि पानी इकट्ठा हो तो उसे निकालने का प्रबंध करें।
  • नर्सरी में ग्राफ्टिंग तथा बडिंग का कार्य चालू रखें।
  • गन्ना फसल पर पायरिल्ला कीट के प्रकोप होने पर मिथाइल डेमेटोन 25 ई.सी. दवा का 700 मि.ली./हे. की दर से छिड़काव करें।
  •  बैंगन, मिर्च, सब्जियों में 20-25 कि.ग्रा. यूरिया प्रति एकड़ डाले। वर्षा न होने पर हल्की सिंचाई करें। कीड़ों से बचाव हेतु कीटनाशक दवाओं का सिफारिश के अनुसार छिड़काव करें।
  • इस माह के अंत के मध्यम कालीन गोभी की रोपाई करें।
  • कद्दू वर्गीय सब्जी की फसलों में 10-15 किलो ग्राम यूरिया का प्रयोग प्रति एकड़ करें तथा बीटल कीट से बचाव हेतु कार्बोरिल धूल 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ भुरकाव करें।
  • आम एवं बेर उपरोपण, कलिकायन तथा शीर्ष कार्य करें।
  • अमरूद, नींबू एवं अन्य वृक्षों में गूटी बांधे तथा पिछले माह बांधी गई गूटी कलमों को मातृ पौधों से अलग कर क्यारियों में रोपण करें।
  • वर्षा ऋतु की सब्जियों में उर्वरक का प्रबंधन करें।
  • शीतकालीन सब्जियों विशेषकर अगेती गोभीवर्गीय सब्जियों के बीज बोने की तैयारी करें।
  • सब्जियों में पौध संरक्षण कार्य करें।
  • गुलाब में बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें।
  • सामान्य काट-छाँट करें।
  • इस माह अदरक के विभिन्न उत्पाद तैयार करें।
  • सब्जियों में पर्णदाग रोग दिखने पर ताम्रयुक्त दवा (3 ग्राम) या क्लोरोथेलोनिल (2 ग्राम) दवा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • नींबूवर्गीय पौधों पर कैंकर रोग प्रकट होने पर प्रति जैविक स्ट्रेप्टोसायक्लिन (500 मि.ग्रा./लीटर) + ताम्रयुक्त दवा (3 ग्राम/लीटर) का सेण्डोविट आर्द्रक (3 मि.ली./लीटर) के साथ मिलाकर सूखे दिनों में दोपहर के बाद छिड़काव करें। 
  • केले में वाटर सकर्स की पहचान कर निकालने का कार्य करते रहें एवं जिन पौधों में फूल/फल आया हो तुरंत बांस लगाकर सहारा प्रदान करें।
  • शिमला मिर्च की नर्सरी तैयार करें।
  • खरीफ प्याज की खेत में रोपाई करें।
  • मूंग, तिल, मक्का, ज्वार चारे हेतु आदि के बीजों को उपचारित कर कतारों में बुवाई करें।

पशुपालन में इस माह

  • मेड़ की घास आदि को काट कर पशुओं का खिलाया जा सकता हैं।
  • पशु शालाओं के आसपास वृक्षारोपण करें।
  • छोटी उम्र के पशुओं के बच्चों को पेट के कृमि मारने की दवा पिलायें साथ ही पशुओं को जूँ किल्नी मारने की दवा का घोल लगायें।
  • गाय यदि गर्मी में आ रही हो तो उसकी पशु चिकित्सालय जाकर जाँच करायें।
  • बरसात में घाव जल्दी बढ़ जाता हैं। अतः घाव देखते ही दवा लगा दें।
  • पशु घर में फिनाइल के घोल का छिड़काव करें।
  • पशु आहार में फफूँद की रोकथाम करें।
  • फफूँद लगे खाद्य पदार्थ पशुओं को न खिलायें।
  • मादा पशुओं को गर्भाधान पर विशेष ध्यान दें।
  • फफूँद की रोकथाम के लिये पशु आहार को सूखी जगह पर रखें।
  • पशु के आहार में सूखे और हरे चार का उचित सन्तुलन होना चाहिए।
  • मुर्गियों को कृमि रोग से बचाव हेतु हर तीन माह में कृमिनाशक दवा खिलावें।