पशुओं के बिना मानव जीवन अधूरा समझा जाता है। लेकिन पशु के लक्षण व गुण-दोषों का ज्ञान होना भी अत्यन्त आवश्यक है। इसी जानकारी के आधार पर कम खर्च करके अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता हैं। गाय तथा बैलों की शरीर रचना प्रायः एक ही प्रकार की होती हैं। केवल नर एवं मादा के विभिन्न अंगों का अन्तर होता हैं। इसलिए विभिन्न पशुओं के समुचित विवरणए चयनए क्रय.विक्रय आदि में लाभदायक रहती हैं।


दुधारू पशु प्रायः तीन प्रकार के होते हैं-
  1. अपनी संतति में अपने गुणों की छाप छोड़ने वाले अच्छे प्रजनक पशु
  2. उत्पादन के लिए अच्छेए किन्तु प्रजनन के लिए सामान्य।
  3. उत्पादन तथा प्रजनन दोनों ही दृष्टिकोणों से निम्न।
चुनाव करते समय पहले प्रकार के पशुओं को सर्वप्रथम चुनकर साँड़ों से गर्भित कराना चाहिए। इसके बाद दूसरे समूह के पशुओं को चुनकर उनको केवल दूध तथा मांस उत्पादन हेतु ही रखना चाहिए। इनको भी अच्छे साँड़ों से गर्भित कराकर उत्पन्न हुई  अच्छी बछियों को आगे प्रजनन के लिए चुना जा सकता हैं। तीसरे प्रकार के पशुओं को भुलकर भी नहीं चुनना चाहिए। ऐसे पशु यदि आपके यूथ में मौजुद हों तो उन्हें शीघ्रातिशीघ्र अलग कर देना चाहिए।

पशुओं के उत्पादन में लगभग 10 विभिन्नता, वातावरण और प्रबन्ध के कारण होती हैं। वातावरण का पशु के विकास व उत्पादन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हैं। अतः पशुओं का चुनाव करते समय यूथ में अधिकतम उत्पादन करने वाले पशु अथवा उसकी संतति को ही चुनना चाहिए।

दुधारू गाय के लक्षण-


  • शरीर आगे से पतला और पीछे से भारी होना चाहिए।
  • अयन अच्छा और बड़ा होना चाहिए।
  • उसका स्वभाव सरल एवं सीधा होना चाहिए।
  • मुँह सुन्दर और पतला होना चाहिए।
  • थन अच्छे और बराबर तथा दुग्ध शिरायें उभरी हुई होनी चाहिए।
  • शरीर लम्बा तथा सुगठित होना चाहिए।
  • चमड़ी चमकीली तथा मुलायम होनी चाहिए।
  • एक ब्याँत में उसे 9 माह दूध देना चाहिए।
  • ब्याने का समय नियमित होना चाहिए।
  • गाय का अयन दोनों जाँघों के मध्य ऊपर और पीछे तक फैला हुआ सुविकसित होना चाहिए।
  • वह अधिक मात्रा में दूध देती हो और उसमें चिकनाई का प्रतिशत भी अधिक हो।
  • गाय शीघ्र दूध देने वाली तथा रोग.रहित हों।
दुधारू गाय का चुनाव करते समय नस्ल के अनुसार उसके बाह्य आकारए वंशावली, दूध देने की क्षमता तथा प्रगुणता पर अधिक जोर देना चाहिए। डेयरी गाय की सामान्य दिखावट में रंग.ढ़ंगए स्त्रीत्व और ओजस्विता का समन्वय होना चाहिएए सुन्दर सिरए विशाल ललाटए चमकदार आँखेंए खुले नासारन्ध्र ;दवेजतपसेद्ध औसत लम्बाई के सींगए सीधी पीठए सुदृढ़ जबड़ा तथा लम्बी पूँछ आदि गुण डेयरी गाय में वांछनीय हैं। जो भी गाय चुनी जायेए उसके रोगरहित होने की परीक्षा भली.भाँति कर लेनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो पहले अथवा दूसरे ब्याँत की गाय ही चुननी चाहिएए क्योंकि इसमें दुग्धोत्पादन की क्षमता अधिक होती हैं।

कार्य हेतु बैलों का चुनाव-

बैल भारतीय कृषकों की अर्थव्यवस्था का मूल आधार हैं। कार्य करने के अनुसार बैलों को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता हैं. एक तो भारी कार्य करने वाले और दूसरे हल्के कार्य करने वाले भारी कार्यों में रहटए हलए बोझ भरी गाड़ीए कोल्हू तथा पुरवट खींचना आदि कार्य आते हैं। इसके विपरीतए सवारी के लिए बैलगाड़ी खींचनाए पीठ पर बोझा ढ़ोनाए खेत में सरावन खींचना आदि हल्के कार्य हैं। साधारणतया बैल अपने शरीर भार का 1/12 से 1/15 तक वजन उठा सकता हैं। अतः कार्य के अनुसार ही बैलों का चुनाव किया जाता हैं।


उत्तम बैल के लक्षण

अच्छे बैल में निम्नलिखित गुण होने चाहिए-
  • बैल अपनी नस्ल के अनुसार पूर्णतः शुद्ध होना चाहिए।
  • अधिक समय तक बैल से कार्य लिया जा सकेए अतः वह जवान हो तथा उसकी उम्र 4 या 5 वर्ष हो।
  • बैल अत्यन्त सीधा एवं सरल स्वभाव वाला हो, क्रोधी, अड़ियल, मारने वाला स्वभाव का न हो अन्यथा उससे कार्य लेना कठिन होता हैं।
  • बैल के आगे का हिस्सा पीछे की अपेक्षा भारी होना चाहिए।
  • कार्य करने वाले बैलों की त्वचा चिकनीए मुलायमए चर्बीरहित साथ ही कसी हुई होती हैंद्य। चर्बी युक्त त्वचा वाला बैल कार्य करने से जी चुराता हैं।
  • बैल का मुतान चुस्त एवं खिंचा हुआ होना चाहिए। ढ़ीला या लटके हुए मुतान का बैल चुस्ती.फुर्ती से कार्य नहीं कर सकता।
  • बैल के सीने का घेरा बड़ा एवं छाती चैड़ी होनी चाहिए।
  • छोटी व मोटी गर्दन वाले बैलों की भारवाही क्षमता अधिक होती हैं।
  • छोटे व काले खुरों युक्त सुदृढ़ टाँगेंए पिछले पुट्ठे व विकसित जाँघें तथा ऊँचा कद बैलों में उचित होते हैं।
  • चमकीली आँखेंए ऐंठे कानए बड़े व खुले नथुनेए चैड़ा मस्तकए छोटे गुट्ठल सींगए चैड़ा थूथन सुदृढ़ मांसल कन्धेए सीधी पीठ एवं पतली कमर उत्तम बैल के लक्षण होते हैं।
  • बैल की अगली टाँगें दूर.दूर तथा विकसित हों।
  • बैल को चलाकर देखना चाहिए। उसकी चाल मे कोई दोष न हो। गर्दन व सिर चलते समय ऊपर होने चाहिए।
  • तेज चाल से चलने के लिए बैलों के पुट्ठे ढ़ालू होने चाहिए।
  • उनका रूप आकर्षक हों।
  • जोड़ी के दोनों बैल लगभग एक ही ऊँचाई के होकर समरूप हों।
  • बैलों का मस्तक और मुँह चौड़ा हों।
  • उनके नथुने बड़े तथा आँखें चमकीली हों।
  • ग्रीवा औसत लम्बाई की तथा अगले पुट्ठे मजबूत हों।
  • ककुद अधिक ऊँचा न होकर औसत दर्जे का हो।
  • उनका शरीर सुगठित हों।पैर लम्बवत् तथा खुर सीधे, सुदृढ़ एवं एक समान हों।
  • उनका सीना आगे से चैड़ा हों। जोड़ी के दोनों बैलों का रंग भी लगभग एकसमान हों।
  • बैल रोग रहित होकर पूर्णतया एक समान हों। उनकी त्वचा चमकीली एवं आकर्षक हों।
उक्त गुणों को ध्यान में रखकर अपनी आवश्यकता एवं इच्छानुसार पशु का चुनाव करके पशुपालक मनोवांछित फल पा सकता हैं।