एस.आर.आई. (SRI) पद्धति की विशेषताएं एवं लाभ



* बहुत कम मात्रा में बीज (6-7 किग्रा. प्रति हेक्टेयर), पानी, उर्वरक एवं कीटनाशी रसायनों की आवश्यकता।

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अधिक मात्रा में कार्बनिक खाद देने से विपुल उत्पादन एवं मृदा उर्वरकता में वृद्धि।

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बालियॉं ज्यादा तथा लंबी व प्रति बाली दानों की संख्या में वृद्धि एवं दाने वनजदार एवं पुष्ट बनने एवं उपज में वृद्धि।

* कन्से ज्यादा आते हैं, पौधों में अत्यधिक जड़ों एवं कंसों का विकास।

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उत्पादन लागत कम लगती है
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फसल 10-12 दिन पहले पककर तैयार हो जाती है|


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कम बीज दर की आवश्यकता


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कम पानी की आवश्यकता


* धान उत्पादन में वृद्धि

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पैरा उत्पादन में वृद्धि


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पौधा मजबूत रहता है, बदरा कम आता है|



परम्परागत रोपण विधि
श्री विधि
बीज दर
35-40 किलो प्रति हेक्टेयर
से 7 किलो प्रति हे.
नर्सरी हेतु क्षेत्रफल
10 %
%
रोपाई के समय नर्सरी की अवधि
21-30 दिन
10-12 दिन
दूरी
20x10, 15x15, 15x10 सें.मी.
25x25 सें.मी
नींदा नियंत्रण
हाथ द्वारारासायनिक दवाओं के द्वारा
कोनोवीडर के द्वारा
जल प्रबंध
हमेशा पानी भरकर रखना
मृदा में नमी (संतृप्त बनाए) रखना





श्री विधि की मुख्य बातें:

* 10-12 दिन की नर्सरी का उपयोग

* बीज दर 6-7 किलो/हे.

* कम दिन की नर्सरी का उपयोग करना

* एक जगह में एक ही पौध लगाना

* ज्यादा दूरी (25 x 25 सें.मी.)

* जल प्रबंध (खेत को संतृप्त बनाए रखना)

* खरपतवार नियंत्रण (वीडर चलाना)

* कार्बनिक खाद का ज्यादा उपयोग

नर्सरी एवं उसमें बीज बुवाई का तरीका

* नर्सरी शैय्या ऊॅंची बनावें ।

* नर्सरी शैय्या बनाने के बाद उनमें गोबर खाद डाले ।

* गोबर खाद/कम्पोंस्ट अच्छी तरह सडी हुई हो ।

* रात भर भिगोये हुए बीज की बुवाई करें ।

* बुवाई के बाद गोबर खाद का छिड़काव करें ।

* बुवाई लगाने के बाद हल्की सिंचाई देवें ।

* नर्सरी को पुआल से ढंक दें ।

* अवश्यकतानुसार पानी देते रहें ।

रोपणी में पौध की तैयारी

एक हेक्टेयर क्षेत्र की रोपाई हेतु 100 वर्गमीटर रोपणी बनाऐं। रोपणी 1 मीटर चौड़ी तथा अवश्यकतानुसार लंबी रखें। एक हेक्टेयर रोपाई हेतु 6-7 किग्रा. उपचारित बीज की अवश्यकता होगी। रोपणी ऊॅंचे स्थान एवं सिंचाई साधन के नजदीक बनाऐं। रोपणी में बुवाई के पूर्व बीज को कार्बोन्डाजिम+मेनकोजेब (1:2) 3 ग्राम दवा एवं थायोमिथॉक्जाम कीटनाशक दवा 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। रोपणी में गोबर की पची खाद 5 किग्रा. प्रति वर्गमीटर की दर से मिलाऐं। दो रोपणी के बीच 30 सेमी. गहरी नाली बनाऐं जो जल निकास एवं सिंचाई में सहायक होगी। रोपणी में बीज को 10 सेमी. कतार में या छिटकवां विधि से बोयें तथा गोबर की खाद तथा मिट्टी बराबर मात्रा में मिलाकर ढंके। उपयुक्त होगा कि बीज को पैरा से 3 दिनों तक ढंक कर रखें।बुवाई उपरांत सिंचाई फुवारे से करें। लगभग 10 - 12 दिनों में पौध रोपाई हेतु तैयार हो जाती है।

श्री पद्धति में धान की खेती का प्रबंधन

* कम उम्र के पौधों की रोपाई ।

* 10- 12 दिनों के उम्र के पौधों की रोपाई जिससे पौधों में जड़ों एवं कंसों की संख्या में वृद्धि होने से उत्पादन         बढ़ता है।

* रोपणी से पौधे सावधानी से उखाड़े ताकि उनके साथ बीज, मिट्टी एवं जड़े बिना धक्का के बाहर आ जाऐं। उखड़ी पौध को मुख्य खेत में शीघ्रता से इस प्रकार सीधी दिशा में रोपित करें। कि उनकी जड़े सीधी जाऐं।

* रोपाई में पौधों की दूरी अधिक रखें। पौधों की रोपार्इ वर्गाकार 25 सेमी. x 25 सेमी. पद्धति से करें। एक स्थान पर सिर्फ एक स्वस्थ पौधा लगाएं।

* फसल की प्रारंभिक अवस्था में खेत में जल भराव की स्थिति न बनने दें परंतु खेत में संतृप्तता बनाए रखें।

* मृदा परीक्षण परिणाम अनुसार खाद एवं उर्वरकों की संतुलित मात्रा लें। कार्बनिक खादों का उपयोग अत्यंत लाभप्रद होता है अत: उपलब्धतानुसार 10-12 टन प्रति हेक्टेयर कार्बनिक खाद खेत में डालें।

* संकर किस्मों एवं मध्यम अवधि की किस्मों में 120 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. स्फुर एवं 40 किग्रा. पोटाश तत्व प्रति हेक्टेयर दें। स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपार्इ के तुरंत पहले खेत में डालें। नत्रजन की मात्रा खड़ी फसल में दें। रोपाई के सात दिन बाद 30 प्रतिशत, कंसे भरते समय 40 प्रतिशत तथा गभोट प्रारंभ होने पर 30 प्रतिशत मात्रा खड़ी फसल में दें।

* खेत में पानी भरा नहीं होने से खरपतवार अधिक बढने की समस्या आ सकती है। रोपाई के 10 - 12 दिन पश्चात अम्बिका वीडर अथवा कोनोवीडर चला कर खरपतवार नष्ट करें। इस यंत्र को प्रत्येक 10 दिन के अंतराल पर 40 दिनों तक चलाऐं।

* श्री पद्धति में कीड़े एवं रोगों का प्रकोप कम होता हैं आवश्यकता होने पर रासायनिक विधि से पौध संरक्षण उपाय अपनाऐं।

* श्री पद्धति में संकर किस्में एवं विपुल उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन कर 25 से 30 प्रतिशत उत्पादन वृद्धि संभव है।
स्रोत: कृषि विज्ञान पोर्टल