भूमि की तैयारी
ग्लेडियोलस की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मृदा जिसका पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच हो। साथ ही भूमि के जल निकास का उचित प्रबंध हो, सर्वोत्तम मानी जाती है। खुले स्थान जहां पर सूरज की रोशनी सुबह से शाम तक रहती हो, ऐसे स्थान पर ग्लेडियोलस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। जिस खेत में ग्लेडियोलस की खेती करनी हो उसकी दो-तीन बार अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके लिए खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में अधिक गहराई तक नहीं जाती है। ग्लेडियोलस की खेती बल्बों द्वारा की जाती है। बुवाई करने का सही समय मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर तक रहता है। किस्मों को उनके फूल खिलने के समयानुसार अगेती, मध्य और पछेती के हिसाब से अलग-अलग क्यारियों में लगाना चाहिए।

उन्नतशील प्रजातियां 
ग्लेडियोलस की लगभग हज़ारों किस्में हैं लेकिन कुछ मुख्य प्रजातियों की खेती मैदानी क्षेत्रो में होती है जैसे कि 
स्नो क्वीन, सिल्विया, एपिस ब्लासमें , बिग्स ग्लोरी, टेबलर, जैक्सन लिले, गोल्ड बिस्मिल, रोज स्पाइटर, कोशकार, लिंके न डे, पैट्रीसिया, जार्ज मैसूर, पेंटर पियर्स, किंग कीपर्स, किलोमिंगो, क्वीन, अग्नि, रेखा, पूसा सुहागिन, नजराना, आरती, अप्सरा, सोभा, सपना और पूनम आदि है। 

लाल :- अमेरिकन ब्यूटी, ऑस्कर, नजराना, रेड ब्यूटी 

गुलाबी :-पिंक फ्रैंडशिप, समर पर्ल 

नारंगी:- रोज सुप्रीम 

सफेद :- ह्वाइट फ्रैंडशिप, ह्वाइट प्रोस्पेरिटी, स्नो ह्वाइट, मीरां 

पीला:- टोपाल, सपना, टीएस-14 

बैंगनी:- हरमैजस्टी

ग्लेडियोलस की बुवाई
एक हेक्टेयर भूमि कन्दों की रोपाई के लिए लगभग दो लाख के कन्दों की आवश्यकता पड़ती है यह मात्रा कन्दों की रोपाई की दूरी पर घट बढ़ सके ती है। कन्दों का शोधन बैविस्टीन के 0.02 प्रतिशत के घोल में आधा घंटा डुबोकर छाया में सुखाके र बुवाई या रोपाई करनी चाहिए। कन्दों की रोपाई का उत्तम समय उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों सितम्बर से अक्टूबर तक होता है। कन्दों की रोपाई लाइनों में करनी चाहिए। शोधित कन्दों को लाइन से लाइन एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर अर्थात 20 गुने 20 सेंटीमीटर की दूरी पर 5 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपाई केरनी चाहिए। लाइनो में रोपाई से निराई-गुड़ाई में आसानी रहती है और नुकसान भी कम होता है। खेत तैयार करते समय सड़ी गोबर की खाद आख़िरी जुताई में मिला देना चाहिए। इसके साथ ही पोषके तत्वों की अधिक आवश्यकता होने के कारण 200 किलोग्राम नत्रजन, 400 किलोग्राम फास्फोरस तथा 200 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय बेसल ड्रेसिँग के रूप में देना चाहिए शेष नत्रजन की आधी मात्रा कन्दों की रोपाई एक माह बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक
खेती की तैयारी के समय डाली गयी 40-50 टन गोबर की सड़ी खाद के अतिरिक्त अगर मृदा की जांच नहीं हुई है तो और अगर जांच हुई है तो दी गई मृदा सन्तुति के आधार पर देना चाहिए। 100 किलोग्राम नत्रजन, 200 किलोग्राम फास्फोरस तथा 200 किलोग्राम पोटाश प्रति हे० कन्द रोपण से पूर्व प्रयोग करना चाहिए । बाद में 300 किलोग्राम नत्रजन तीन बराबर मात्रा में क्रमशः तीन पत्ती अवस्था , मसले अवस्था (स्पाइक निकलना शुरू हो) तथा स्पाइक काटने के बाद दें। जिससे अच्छी स्पाइक तथा कन्द प्राप्त हो । 5-6 किलोग्राम/हे. एजोटोवैक्टर प्रयोग करके 1/4 से 1/3 भाग नत्रजन की बचत की जा सकती है । 

सिंचाई
पहली सिंचाई घनकंदों के अंकुरण के बाद करनी चाहिए। इसके बाद सर्दियों में 10-12 दिनों के बाद और गर्मियों में पांच-छह दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। सिंचाई रोपाई के 10 से 15 दिन बाद जब कंद अंकुरित होने लगे तब पहली सिंचाई करनी चाहिए। फसल में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए तथा पानी सिंचाई का भरा भी नहीं रहना चाहिए। अन्य सिंचाई मौसमें के अनुसार आवश्यकतानुसार करनी चाहिए जब फसल खुदने से पहले पीली हो जाये तब सिंचाई नहीं करनी चाहिए। मिट्टी व मौसम के अनुसार सप्ताह में एक बार और स्पाइक निकलने पर पानी बदं कर देना चाहिए, जिससे गुणवत्तायुक्त स्पाइक तैयार हो । 

निंदाई -गुड़ाई
कुल चार-पांच निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। दो बार मिट्टी पौधों पर चढ़ानी चाहिये उसी में नाइट्रोजन का प्रयोग टॉप ड्रेसिंग के रूप में करना चाहिए। तीन पत्ती की स्टेज पर पहली बार व छह पत्ती की स्टेज पर दूसरी बार मिट्टी चढ़ानी चाहिए। समय - समय पर निंदाई - गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें । 25-30 से० मी० लम्बी स्पाइक होने पर मिट्टी चढ़ाए तथा सहारा भी देना चाहिए । 

पौध संरक्षण

माहू तथा थ्रिप्स

रोकथाम
इसके हेतु 0.1 प्रतिशत मेलाथियान या मोनोक्रोटोफास का छिड़काव करे । उकठा रोग से बचाव हेतु 0.2 प्रतिशत वैविस्टीन से 30 मिनट कन्दों का उपचारित करे तथा भूमि शोधन भी करें ।

विल्ट या कॉलर रॉट
यह एक रोग है जो फफूंद द्वारा फैलता है । इसमें पत्तियाँ हांसिए के आकार की हो जाती हैं । पत्तियाँ पीली हो जाती हैं एवं लाल भूरे धब्बे किनारे पर दिखने लगते हैं । अत : कॉर्म लगाने के पहले विविस्टीन दवा एक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में बने घोल में 30 मिनट तक उपचारित करें । एक ही खेत में 2-3 बार से ज्यादा ग्लेडियोलस न लगायें ।

रोकथाम

कंदों को संग्रहण करने के पूर्ण विविस्टीन 2 ग्राम / ली . पानी में घोलकर कंद को उपचारित करते हैं ।

कैटर पिलर

यह कीट पत्तियों को खाता है ।

रोकथाम
क्युनालफॉस 25 ई.सी. दवा का 2 मि.ली./ली . पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए ।

माइट
यह कीट पौधे का रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधे पर भूरे रंग का दाग होकर पत्तियाँ झड़ने लगती हैं ।
रोकथाम
इसके लिए डायकोफ़ॉल दवा 2.5 मि.ली./ली. पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।

फूलों की कटाई 
फूलों की कटाई घनकंदों की बुवाई के पश्चात अगेती किस्मों में लगभग 60-65 दिनों में, मध्य किस्मों 80-85 दिनों तथा पछेती किस्मों में 100-110 पुष्प उत्पादन शुरू हो जाता है। पुष्प दंडिकाओं को काटने का समय बाजार की दूरी पर निर्भर करता है।