तिलहन फसलों को भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़, की हड्डी कहा जाता हैं। तिलहन फसलों के अंतर्गत सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, कुसुम, अलसी इत्यादि फसल सम्मिलित हैं, जिनकी खेती छत्तीसगढ़ राज्य में सभी वर्ग के किसनों द्वारा की जाती हैं। इन सभी फसलों में से सोयाबीन की खेती इस राज्य में अधिक क्षेत्रफल में की जाती हैं। इस फसल का पोषक तत्वों से परिपूर्ण, पोषण की खान एवं चमत्कारीय फसल के रूप में जाना जाता हैं। इसलिए इसे सुनहरे बीन की उपाधि दी गई हैं। इसमें प्रोटीन सबसे अधिक लगभग 40 प्रतिशत् अच्छी गुणवक्ता की प्रोटीन एवं 20 प्रतित् तेल की मात्रा होती हैं प्रोटीन की उपलब्धता को देखते हुए इसे गरीबों का मांस कहा जाता हैं। पिछले कुछ वर्षों से इसे उगाने वाले क्षेत्रफल में निरंतर कमी होती जा रही हैं, जिसका प्रमुख कारण किसानों द्वारा इस फसल को अपने फसल चक्र में समावेष न करना एवं इसमें लगने वाले कीट व्याधि प्रमुख हैं, जिनका समय रहते पहचान एवं निदान आवष्यक हैं। सोयाबीन में लगने वाले कीट व्याधि, उनका पहचान एवं नियंत्रण निम्नलिखित हैं-
सोयाबीन के प्रमुख कीट-

1. गर्डल बीटल, ओबेरियोप्सिस ब्रेविस
2. तनामक्खी, मेलेनोग्रोमाइजा सोजी
3. सफेद लट, होलोट्राकिया कोन्सेगिना
4. बिहार रोमिल इल्ली, स्पाइलोसीमा आब्लीगुआ
5. चने की इल्ली, हेलिकोवर्पा आर्मीजरा
6. पर्ण सुरंगक, एप्रोरिमा मोडिसेला
7. सफेद मक्खी, बेमिसिया टेबेसाई
8. माहों, एफिस गोसिपी

1. गर्डल बीटलः
पहचान- वयस्क भृंग 7 से 10 मि.मी लम्बा तथा मटमैले भूरे रंग का होता हैं। नर में अग्र पंखों का आधा भाग तथा मादा में एक तिहाई भाग गहरे रंग का होता हैं। श्रृंगिकायें रीर की लम्बाई के बराबरया उससे लम्बी होती हैं। ग्रब पीले रंग की 19-22 मि.मी. लम्बी होती हैं। ग्रब का रीर उभरा हुआ होता हैं तथा बगल से चपटा हुआ होता हैं।

क्षति के लक्षण- इस कीट की इल्ली (ग्रब) एवं वयस्क दोनों अवस्था हानिकारक होती हैं। इसका वयस्क पत्तियों की मुख्य शिरा पर पत्तियों के डंठलों को खुरचकर हानि करता हैं। मादा वयस्क द्वारा अण्डे निरोपण हेतु मुख्य तने पर पर समानांतर चक्र या गर्डल बनाये जाने पर उस स्थान से ऊपर का भाग सुखकर मुरझा जाता हैं। इल्ली द्वारा तने के अंदर सुरंग बनाने के कारण अधिकतम क्षति होती हैं। क्षतिग्रस्त पौधा मुरझा जाता हैं। मादा मुख्य तने या पत्तियों के डंठलों या शाखाओं पर दो समानान्तर चक्र अपने मुखांगों द्वारा बनाती हैं। दोनों चक्र के मध्य 1-1.5 से.मी. की दूरी होती हैं। चक्र बनाने के बाद निचले चक्र के पास मादा वयस्क तीन छिद्र बनाकर मध्य छिद्र में अंडा रखती हैं इल्ली पौधे के आंतरिक भाग को खाकर हानि करती हैं। ग्रसित पौधों में फल्ली संख्या, दाना की संख्या तथा दानों के वनज में क्रमषः 78.26 प्रतित्, 84.35 प्रतित् की कमी आंकी गई हैं।
नियंत्रण-

1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें, जिससे भूमि में सुश्रुप्तावस्था में पड़ी इल्ली या भूमि की सतह पर आ जायें और कड़ी धूप के कारण नष्ट हो सकें।
2. सोयाबीन की बुवाई मानसून के पूर्व न करें। मानसून पूर्व बोई गई फसल कीट के आक्रमण के समय नाजुक अवस्था में होती हैं अतः कीट प्रकोप से हानि अधिक होती हैं। इससे बचने के लिए सोयाबीन की बुवाई मानसून आने के बाद करें।
3. पूर्व के वर्षों में इस कीट के अधिक प्रकोप से प्रभावित खेतों में सोयाबीन बुवाई के समय कार्बाफ्युरान 3 प्रतित् दानेदार 1.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. की दर से कतारों के बगल में डालें। इससे नवविकसित इल्लियों का प्रभावी नियंत्रण होता हैं।
4. यथासंभव सोयाबीन-ज्वार अंतरवर्ती फसल न लें क्योंकि ज्वार फसल के कारण सोयाबीन में चक्रक भृंग का प्रकोप शुद्ध सोयाबीन की अपेक्षा अधिक होता हैं।
5. खेतों के आस-पास खरपतवारों की साफ-सफाई करें, जिससे अन्य वैकल्पिक पोषक पौधों पर पल रही इस कीट की विभिन्न् अवस्थायें नष्ट हो सकें।
6. फसल की नियमित निगरानी करते रहें। पौधों में चक्र बनना प्रारंभ होते ही 2-4 दिनों के अंदर ग्रसित पौधों के उन भागों को यथासंभव तोड़कर निकाल दें और नष्ट करें जिन पर चक्र बने हों। तोड़ते समय ग्रसित भाग को चक्र के कुछ नीचे से तोड़े, जिससे अंडा व नवविकसित इल्ली नष्ट हो सकें।
7. रासायनिक नियंत्रण हेतु अंडे दिखाई देना प्रारंभ होते ही क्विनाॅलफास 25 ई.सी. दवा का 0.05 प्रतित् घोल या सायपरमेथ्रिन 20 ई.सी. का 0.006 प्रतित् घोल 500-800 लीटर पानी में बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें अथवा प्रोफेनोफाॅस 40 प्रतिशत् साइपरमेथ्रिन 4 प्रतित् ई.सी. का 1000-1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
2. तना मक्खीः
पहचान- वयस्क मक्खी छोटे आकार (2 मि.मी.) की चमकदार काले रंग की होती हैं। इसके पैर, श्रृंगिकायें तथा पंखों की षिरायें हल्के भूरे रंग की होती हैं। इसकी इल्ली जिसे मेगट कहते हैं, हल्के सफेद पीले रंग की बेलनाकार होती हैं, जिसकी लम्बाई लगभग 2 मि.मी. होती हैं। मेगट का अग्र भाग, जिसमें मुखांग होते हैं, नुकीला तथा पष्च भाग गोल या चपटा होता हैं। शंखी तने के अंदर की बनती हैं, जिसका रंग भूरा तथा लम्बाई 2-3 मि.मी. होती हैं।
क्षति के लक्षण- इस कीट की मगेट अवस्था ही हानिकारक होती हैं। नवविकसित मेगट पत्तियोंके डंठलों से तने के अंदर घुसती हैं और टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाती हैं। ग्रसित पौधों में प्रारंभ में पत्तियों का ऊपरी भाग सूख जाता हैं तथा अत्यधिक प्रकोप होने पर पूरा पौधा मुरझाकर मर जाता हैं। बड़े पौधे ग्रसित होने पर पीले पड़ जाते हैं और उनमें फलियाँ कम लगती हैं। कीट का प्रकोप आंतरिक होने से प्रारंभिक आक्रमण का पता नहीं लगता हैं, परंतु इन पौधों के तनों पर एक छोटा सा छिद्र दिखाई देता हैं, चूंकि इसकी शंखी भी तने के अंदर ही बनती हैं अतः इस छिद्र का उपयोग वयस्क मक्खी पौधे से बाहर निकलने में करती हैं। ग्रसित तनों को चीरने पर तना खोखला दिखाई देता हैं तथा मध्य भाग गहरा लाल या भूरे रंग का होता हैं। सामान्यतः 53 प्रतिशत् पौधों के ग्रसित होने पर यह उपज हानि लगभग 2.33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती हैं।
नियंत्रण-
1. एक ही खेत में लगातार सोयाबीन की फसल न लें। फसल चक्र अपनाने से इस कीट की संख्या में प्रभावी रूप से कमी देखी गई हैं।
2. बोनी के समय कार्बोफ्युरान 3 प्रतित् दानेदार दवा 1.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से कूड़ों ने डाले या बोनी के 20-25 दिनों बाद इस कीटनाक को कतारों के किनारों पर डालकर हल चला दें।
3. रासायनिक नियंत्रण हेतु क्विनालफाॅस 25 ई.सी. 800 मि.ली. दवा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
4. कटाई पश्चात् फसल के शेष डंठलों को जलाकर नष्ट किया जा सकें।
3. सफेद लटः
पहचान- वयस्क भृंग बड़े आकार के ताम्बई रंग के तथा रात्रिचर होते हैं। सामान्यतः मानसून की प्रथम भारी वर्षा के बाद प्रका स्त्रोतों के समीप दिखाई पड़ते हैं इनकी इल्ली या ग्रब सफेद रंग की होती हैं। पूर्ण विकसित इल्ली का षरीर मोटा, मटमैला तथा अंग्रेजी के आकार C में मुड़ा होता हैं इसका सिर गहरे भूरे रंग का तथा मजबूत मुखांगों वाला होता हैं। ग्रब मिट्टी में पाया जाता हैं।
क्षति के लक्षण- इस कीट की इल्ली तथा वयस्क दोनों अवस्थायें हानिकारक होती हैं। यह एक सर्वभक्षी कीट हैं। वयस्क भृंग पौधें की पत्तियाँ खाते हैं जबकि इल्ली पौधों की जड़ों के पास रहकर हानि करती हैं। प्रकोपित पौधा सूखकर नष्ट हो जाता हैं। वयस्क भृंग अधिकतर षाम के समय सक्रिय रहकर पत्तियों को ऊपरी सतह से खाते हैं, जिससे पौधा पत्ती विहीन हो जाता हैं।
नियंत्रण-
1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
2. वयस्क भृंगों को प्रका प्रपंच में आकर्षित कर नष्ट करें।
3. बोनी पूर्व बीजों का क्लोरपायरीफाॅस 20 ई.सी. दवा से 25 मि.ली./कि.ग्रा. की दर से उपचारित करें।
4. ग्रसित खेतों में बोनी के समय कार्बोफ्युरान 3 जी. दानेदार दवा की 15 कि.ग्रा./हे. की दर से हल के पीछे-पीछे प्रयोग करें।
5. खेतों के आस-पास के पेड़ों और झाड़ियों पर वयस्क निकलने के 3-4 दिनों बाद ही क्लोरपायरीफाॅस 20 ई.सी. का 0.05 प्रतित् घोल का छिड़काव कर वयस्क भृंग को नष्ट किया जा सकता हैं।

4. बिहार रोमिल इल्लीः
पहचान- इस कीट की सूंडियाँ प्रारंभ में झुण्ड में तथा बाद में इधर-उधर फैलकर पत्तियों को खाती हैैं। पूर्ण विकसित सूंडी की लम्बाई लगभग 40-50 मि.मी. लम्बी होती हैं, जिसका सम्पूर्ण रीर लम्बे भूरे रंग के बालों से ढ़ँका रहता हैं प्रौढ़ कीट पीताभी रंग के मध्यम आकार वाले होते हैं इनके पंखों तथा षरीर के पिछले खण्डों पर काले रंग के धब्बे होते हैं।
क्षति के लक्षण- इस कीट की सूंडी अवस्था हानि पहुँचाता हैं, यह पौधे के कोमल भागों विषेषकर पत्तियों को खाती हैं। नवजात सूंडियाँ झुण्ड में पत्तियों की सतह को बुरी तरह से खाती हैं, जिससे उनकी हरी पर्त समाप्त हो जाती हैं तथा केवल शिरायें ही दिखाई पड़ती हैं। पूर्ण विकसित सूंडियाँ पूरी की पूरी पत्तियों को खा जाती हैं, जिससे पौधों में केवल डंठल ही शेष रह जाते हैं।
नियंत्रण-
1. प्रका प्रपंच लगाकर बरसात के षरू से ही प्रौढ़ कीटों को आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं।
2. चूंकि ये अपने अण्डे समूह में देते हैं अतः पत्तियों का समय-समय पर निरीक्षण करके उन्हें नष्ट कर सकते हैं।
3. रासायनिक नियंत्रण हेतु क्लोरपायरीफाॅस 20 ई.सी. की 1.25 लीटर मात्रा की आवश्यक पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
4. एन.पी.व्ही. 250 एल.ई. का छिड़काव अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुआ हैं।

5. पर्ण सुरंगकः
पहचान- इसकी इल्ली काफी छोटी और गहरे हरे रंग की होती हैं। वयस्क कीट भूरे रंग की दो पंख वाले होते हैं तथा सिर गोलाकार और बड़ा होता हैं। वयस्क कीट का रीर संकरा होता हैं।
क्षति के लक्षण- इस कीट की इल्ली अवस्था हानिकारक होती हैं। इल्ली पत्तियों में सुरंग बनाकर पत्तियों के उत्तकों को खाता हैं इसलिए इसे पर्ण सुरंगक कहा जाता हैं। प्रकोपित पत्ती आड़ी तिरछी सुरंगे दिखाई देती हैं। प्रकोपित पत्तियों को प्रका स्त्रोत के विपरीत रखने पर सुरंगों में इल्ली स्पष्ट दिखाई देती हैं। सुरंगों की संख्या अधिक होने पर पत्तियों की प्रकाष संश्लेषण क्रिया में बाधा उत्पन्न होती हैं, जिससे पौध वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।
नियंत्रण-
1. ग्रसित पत्तियों को तोड़कर नष्ट करें।
2. नीम बीज निचोड़ 5 प्रतिशत् का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर खड़ी फसल में दो बार करें।
3. खड़ी फसल पर प्रोफेनोफाॅस 40 ई.सी. सायपरमेथ्रिन 4 ई.सी. (प्रोफेक्स) की 1000-1500 मि.ली. मात्रा की आवश्यक पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।