कृषि कार्ययोजना
  • धान की रोपाई कतार में करें। इससे कृषि क्रियाओं को करने में सहायता होती हैं तथा पौध संख्या पर्याप्त रहती हैं।
  • धान में कतार से कतार की दूरी किस्म के अनुसार 15 से 20 से.मी. रखें।
  • धान की नर्सरी वाले खेत में रोपाई के सात दिन पूर्व कार्बोपयूराॅन 3 जी का 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से उपयोग करने से तना छेदक कीट का प्रकोप कम होता हैं।
  • रोपा धान में नींदानाशक दवा अंकुरण पूर्व (ऑक्सीडायर्जिल, ब्यूटाक्लोर, पेन्डीमेथेलिन) तथा अंकुरण के 20-25 दिन पश्चात् इथाॅक्सी सल्फ्यूरान, साइहेलोफाप ब्यूटाइल का छिड़काव करें।
  • सोयाबीन की फसल 20-25 दिन की हो तथा नींदा का प्रकोप ज्यादा दिख रहा हो तो फिनाॅक्सीप्राॅप (व्हिप सुपर) इमाझेकाॅपर (परस्यूट, लगाम) की अनुशंसित मात्रा का छिड़काव करें।
  • धान में खरपतवार (सांवा, चुहका, नरजेवा, चुनचुनिया, मिर्चीबन) के नियंत्रण के लिए ऑक्जाडायर्सिल 80 डब्ल्यू.पी. का 35 ग्राम प्रति एकड़ रोपा के 0 से तीन दिन के बीच छिड़काव करें।
  • धान में नत्रजन की 20 से 30 प्रतिशत् मात्रा बोते समय तथा शेष 30 प्रतिशत् मात्रा कंसे आते समय तथा 40 प्रतिशत् मात्रा गभोट के 20 दिन पहले डालना चाहिए। स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बोवाई या रोपाई के समय कतारों में डालें।
  • सीधा बोये गये धान में बियासी व सघन चलाई करें व नत्रजन की शेष मात्रा डालें।
  • बियासी के समय खेत 5 से 10 से.मी. जल स्तर होना चाहिए।
  • अरहर की बुवाई यदि नहीं हो पाई हो तो 15 जुलाई के पूर्व अवश्य कर लेवें। दलहन फसलों के बीज बोने के पूर्व 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें। साथ ही सभी दलहनी फसलों के बीज राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।
  • मक्का व सोयाबीन में बोवाई के 20-30 दिनों के अंदर निंदाई करें तथा मक्के में मंजरी निकलने से पहले नत्रजन खाद डालें।
  • चारा फसलों में संकर नेपियर, पैरा घास, ज्वार, सूडान घास आदि ऊंची जमीन में या धान की मेड़ों पर लगावें।
  • फल बाग में जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित  करें।
  • मई-जून में तैयार गड्ढ़ों में नवीन बागान लगाने हेतु पौध रोपण करें।
  • गर्मियों में पौधों को धूप से बचाने हेतु लगाई गई छाया आदि को हटा दें। 
  • अधिकांश प्रवर्धन कार्य जैसे- उपरोपण, कलिकायन, मेट कलम तथा शीर्ष कार्य इसी माह किये जाते हैं। 
  • मूलवृन्त तैयार करने के लिये बीजों की क्यारियों में बुवाई करें।
  • सब्जियों की तैयार पौध शाला को खेतों में रोपित करें।
  • फल वृक्षों में खाद एवं उर्वरक देने का कार्य पूरा करें।
  • नए फल वृक्षों को लगाने का कार्य आरंभ करें। पौध लगाने के बाद आस-पास की मिट्टी को पैर से भलीभांति दबा दें।
  • लता वाली सब्जियों हेतु मंडप बनाएं।
  • केले के पौधे की रोपाई का कार्य आरंभ करें। पुराने केले के पौधों में बगल से निकलने वाले सकर्स को लिकालकर अलग करें।
  • नर्सरी में बडिंग, ग्राफ्टिंग का कार्य करें।
  • सब्जियों में लम्बे बैंगन की रोपाई करें।
  • फूल गोभी की अगेती फसल में निंदाई-गुड़ाई तथा कीड़ों से बचाव हेतु 400 मि.ली. प्रति एकड़ क्विनांलफाॅस 25 ई.सी. का छिड़काव प्रति एकड़ करें।
  • फ्रेंचबीन, भिण्डी, बरबटी, ग्वारफली की बुवाई करें।
  • नर्सरी तैयार होने के उपरांत, मिर्च, बैगन एवं फूलगोभी की रोपाई करें। 
  • अदरक, हल्दी की निंदाई गुड़ाई एवं पानी न गिरने पर सिंचाई की समुचित व्यवस्था करें।
  • केले के पौधे की रोपाई का कार्य आरंभ करें। पुराने केले के पौधों में बगल से निकलने वाले सकर्स को लिकालकर अलग करें।
  • मध्यकालीन गोभी व मिर्च की रोपाई करें। जून में डाली गई टमाटर व बैंगन की नर्सरी की रोपाई करें।
  • कद्दू वर्गीय सब्जियों की बुआई करें।
  • वर्षा ऋतु के मौसमी पौधों को क्यारियों में रोपित करें। 
  • बाड़ एवं झाड़ियों की काट-छाँट करें। 
  • शोभायमान तथा लाॅन में जल-निकास का प्रबंध करें। 
  • आयस्टर मशरुम उत्पादन हेतु उपलब्ध होने पर गेहूं भूसे का ही उपयोग करें क्योंकि पैरा कुट्टी वर्षा के मौसम में अधिक नमी ग्रहण करती हैं, जिससे भरे हुये बैग खराब होने का अंदेषा रहता हैं। इसका उत्पादन अप्रेल माह तक कर सकते हैं। 
  • पैरा मशरुम उत्पादन हेतु धान के पैरा की छोटी-छोटी बेंठ बना लें तथा लकड़ी के ढ़ांचे में या सूखी जमीन पर पाॅलीथिन की चादर बिछार बेंठ को परत दर परत स्पान मिश्रित कर रखें व उसे पाॅलीथिन की चादर से ढ़ंक दें। इसका उत्पादन सितम्बर माह तक कर सकते हैं।
  • आम, अनन्नास, नींबू, जामुन आदि के विभिन्न परिरक्षित पदार्थ तैयार करें। 
  • करौंदा से जेली, जैम, मुरब्बा एवं आचार आदि बनायें।
  • नए फल वृक्षों को लगाने का कार्य आरंभ करें। पौध लगाने के बाद आस-पास की मिट्टी को पैर से भलीभांति दबा दें।
  • गन्ने की नई फसल में आवश्यकतानुसार निंदाई-गुड़ाई एवं मिट्टी चढ़ावें। 
पशुपालन कार्ययोजना
  • पशुओं का गलघोंटू तथा एकटँगिया रोग प्रतिरोधी टीकाकरण करें। 
  • बाह्य परजीवियों का प्रकोप होने पर कीटनाशक का छिड़काव डिपिंग करें। 
  • खाद गड्ढ़ों में पानी जाने से रोकें। खाद गड्ढ़ों की पशु शालाओं से दूरी 50 मीटर से कम न हों। 
  • आसपास पानी भरे गड्ढ़ों में मिट्टी तेल डालें। 
  • पशुशालाओं की सफाई एवं नालियों की सफाई पर विषेष ध्यान दें। 
  • पशुओं को बारिश का जमा गंदा पानी नहीं पीने दें। 
  • पालतू पशुओं को गीले पानी भरें स्थान पर विशेष रूप से बकरियों को गीले स्थानों पर चराई न करावें। 
  • मक्खियों की संख्या में नियंत्रण हेतु प्रभावी उपाय करें। 
  • भेड़-बकरियों के कोढ़े एवं मुर्गियों की बिछावन को सूखा रखने के लिये समय-समय पर चूने के चूरे का छिड़काव करें।
  • बरसात शुरू होते ही विषैले जन्तुओं का प्रकोप शुरू हो जाता हैं। अतः उनसे सावधान रहें। पशुओं को भी बचायें।
  • पशुओं में रिंडरपेस्ट बीमार के रोधक टीके लगवायें।

स्रोत: इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर