धान उत्पादन को प्रभावित करने हेतु विभिन्न कारक शामिल होते हैं, उनमें कीट एवं रोग व्याधियाँ धान उत्पादन को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट एवं व्याधियाँ तथा निदान के इस प्रकार हैं। 

कीट प्रबंधन- 
गंगई कीट-लक्षण- मेगट पौधों के तनों के आंतरिक भाग को काटकर खाती हैं, जिससे तना खोखला हो जाता हैं। ग्रसित पौधों में दैहिकीय परिवर्तन होने के कारण पौधे की बढ़वार पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं तथा पौधों की मध्य पत्ती के आधारीय भाग में या कंसा में गांठ बन जाती हैं। यह गांठ बाद में खोखली होकर चांदी जैसे सफेद रंग की हो जाती हैं। फलस्वरूप रजत पोई या प्याज पोरी या सिल्वर शूट बनता हैं। पौधों में बोली नहीं बनती हैं। 

प्रबंधन- 
  • गंगई अवरोधक किस्में महामाया, फाल्गुना, सुरेखा का चयन करें। 
  • थरहा अवस्था में ई.टी.एल. स्तर मध्यम से तीव्र होने की स्थिति में कार्बोयूरान 3 दानेदार 30 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग में लाना चाहिए। 
  • कंसा अवस्था में एक पोंगा प्रति वर्ग मीटर होने की स्थिति होने पर फिप्रोनिल 3 जी या कारटाप हाइड्रो क्लोराइड कणिकाएँ दाने 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 10-15 दिनों बाद पानी से भरें खेत में डालें। 
तना छेदक-लक्षण- इल्ली पौधों के कंसों के निचले हिस्सें पर पहुंचकर कंसे को काट देती हैं, जिससे कंसा आसानी से खिंच जाता हैं। इसे डेड हर्ट अवस्था कहते हैं एवं बाली निकलने के समय बालियाँ सफेद हो जाती हैं, जिसे सफेद कान की बाली अवस्था कहते हैं। 

प्रबंधन- 
  • कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड कणिकाएँ दाने 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 10-15 दिनों बाद पानी से भरें खेत में डालें। 
  • थरहा अवस्था में ई.टी.एल. स्तर मध्यम से तीव्र होने की स्थिति में कार्बोयूरान 3 दानेदार 30 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग में लाना चाहिए। यदि कंसा अवस्था में ई.टी.एल. स्तर 5 प्रतिशत् डेड हार्ट हो तो कार्बोयूरान 3 दानेदार 25 किलो एवं गभोट तथा बाली अवस्था में एक मोथ प्रति वर्ग मीटर होने पर क्लोर पायरीफीस 50 प्रतिषत् की दर से 1500 एम.एल. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग में लाना चाहिए। 
  • सफेद बाली अवस्था में कार्टाप हाइड्रोलिक 50 प्रतिशत् डब्लू.पी. 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से घोल तैयार कर छिड़काव करें।
पत्ती मोड़क-लक्ष्ण- इल्ली पत्ते को लपेटकर उसके अंदर रहकर उसके हरित पदार्थ को खा जाती हैं, जिससे पत्ती का वह हिस्सा सफेद हो जाता हैं व पत्ती के उस भाग में केवल नाड़िया ही दिखलाई पड़ती हैं।

प्रबंधन-
  • प्रभावित पत्तियाँ को नष्ट करें।
  • काटार्प हाईड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. कीटनाशक 625 ग्राम प्रति हे. की दर से घोल तैयार कर छिड़काव करें।

सफेद चितरी बंकी-
लक्षण- इल्लियाँ पत्तियों को ऊपर की ओर से छोटे-छोटे भागों में काटती हैं। पत्तियों का ऊपरी सिरा सूख जाता हैं। इल्लियाँ कटी पत्तियों को खोल बनाकर पानी में तैरती हैं तथा एक पौधें एवं एक खेत से दूसरे खेत में सिंचाई जल द्वारा दूसरे पौधों में पहुंचती हैं।

प्रबंधन-
  • प्रभावित खेत में पानी के अन्दर केरोसिन तेल 5 लीटर प्रति हे. फैलाकर रस्सी की सहायता से तेल को हिलाकर पानी निकाल लें।
  • क्विनालफास 1000 मि.ली. व 250 मि.ली. कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत् डब्लू.पी. 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

गंगी बग-प्रबंधन- मिथाईल पैराथियान चूर्ण का 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
बाली अवस्था में 15 से 20 बग प्रति वर्ग मीटर होने की स्थिति में कार्बारिल चूर्ण 30 किलों प्रति हेक्टेयर की दर से भूरकाव करें।

भूरा, हरा एवं सफेद माहू-
लक्षण- धान में तीन तरह के माहू हरा, भूरा, सफेद का आक्रमण पत्तियों के ऊपरी एवं निचली सतह में समूह में होता हैं। प्रभावित खेत के बीच-बीच में हाॅपर बर्न (माहू द्वारा जला लक्षण) दिखाई पड़ता हैं। भूरा एवं सफेद माहू व्यस्क कीट की पहचान रंगों के आधार पर की जा सकती हैं। जब धान के खेत में पुष्पण अवस्था शुरू होती हैं तो ये दोनों माहू का लक्षण दिखाई देने लगता हैं। आक्रमण मुख्यतः पानी का भराव स्तर के बाद तना पर देखने को मिलता हैं। शिशु व व्यस्क पौधों के तने से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं।

प्रबंधन-
  • प्रभावित खेत में जल निकासी के 2-3 दिन बाद पुनः पानी भरें।
  • खेत में प्रकाश प्रपंच का उपयोग करें।
  • थरहा अवस्था में ई.टी.एल. स्तर मध्यम से तीव्र होने की स्थिति में कार्बोयूरान 3 दानेदार 30 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग में लाना चाहिए। कंसा एवं गभोट अवस्था में 10 से 15 कीट प्रति पौधा दिखाई पढ़ने पर कान्फीडोर (इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल.) 100-125 मि.ली. अप्लाॅड (बूप्रोफेजिन 25 एस सी) 750 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

कटुआ कीट इल्ली-
लक्षण- इल्ली पत्तियों व तनों को काटकर हानि पहुंचाती हैं इल्ली पौधों के ऊपरी हिस्सों में पत्तियों की शिराओं को छोड़कर शेष भाग खा जाती हैं।

प्रबंधन- मिथाईल पैराथियान चूर्ण का 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। थरहा एवं बाली अवस्था में एक इल्ली प्रति पौधा दिखाई पड़ने पर क्लोरपायरीफास 50 प्रतिशत् की 2000 एम.एल. प्रति हेक्टेयर दवाई का घोल बनाकर छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन-
जीवाणु जनित पत्ती झुलसा या अंगमारी रोग- पत्ती के ऊपरी सिरे से या पत्तियों के किनारे से पीलापन लिए हुए विक्षत दोनों किनारों से प्रारंभ होकर नीचे की ओर बढ़ते हैं तथा कुछ समय बाद विक्षत का रंग पीला हो जाता हैं। यह विक्षत पूरी पत्ती की लंबाई व चैड़ाई में फैलकर पत्ती तथा पर्णच्छद को लहराते हुये सुखा देता हैं।

प्रबंधन- संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें। रोग की षरूआत में खेत का पानी निकाल दें। रोग प्रतिरोधी किस्में सांमा मासरी एवं बम्लेश्वरी का उपयोग करें। 3-4 दिनों तक पानी न भरें व पोटाश 25 किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। रक्षक या बायोनाल (टू ब्रामो टू नाईट्रों प्रोफेन-1, 3-डिठाल) 95 प्रतिशत् ड्ब्यूल पी की 5 ग्राम प्रति पम्प के दर से उपयोग करें।

झुलसा रोग
लक्षण- पत्तियों पर नाव या आँख के आकार के धब्बे बनते हैं। जिनका केन्द्र राख के रंग (घूसर) तथा किनारा गहरा भूरा होता हैं। बाली की गर्दन पर काले भूरे रंग की सड़न जैसी उत्पन्न होने लगती हैं जो संक्रमित भाग से मुड़कर नीचे की ओर झुक जाती हैं। तने की गांठों पर संक्रमण होने पर गठाने काली भूरी होकर तना गठानों से टूट जाती हैं।

प्रबंधन-
  • नत्रजन का अधिक मात्रा में उपयोग न करें।
  • ट्रायसायक्लाजोल 75 प्रतिशत् डब्लू.पी. 0.6 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से बीजोपचार करें।
  • टिल्ट (1 मि.ली./लीटर) कीटाजिन (2 मि.ली./लीटर), बीम (6 ग्राम/10 लीटर) में से किसी एक दवा का छिड़काव करें।
  • ट्रायसायक्लाजोल 75 प्रतिशत् डब्लू.पी 6 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें।

आभासी कंडवा या फूट कलिका रोग-

प्रबंधन- बाली निकलने की अवस्था में तथा 7-8 प्रतिशत् रोग लक्षण दिखाई होने पर फाइटोलान, ब्लाइटाक्स-50, क्यूप्राभाट, मेंकोजेब (3 ग्राम/ली) कवच (क्लोरोथैलोनील) (2 ग्राम/लीटर) दवाओं में से किसी एक दवा का 15 दिन के अंतराल में दो छिड़काव करना चाहिए।

भूरा धब्बा रोग-

लक्षण- जड़ को छोड़कर रोग के लक्षण प्रायः पौधे के सभी भागों पर पायें जाते हैं। पत्तियों पर अण्डाकर बैंगनी भूरे धब्बे बनते हैं जिनके चारों ओर पीला घेरा दिखाई देता हैं।

प्रबंधन-
  • स्वस्थ बीज का चुनाव एवं 17 प्रतिषत् नमक के घोल में डुबोकर बीजोपचार करें।
  • बीजोपचार-थायरम (5 ग्राम/किलो), बाविस्टीन (1 ग्राम/किलो), या कवच (2 ग्राम/किलो) द्वारा।
  • डायथेन जेड 78/डायथेन एम45 (3 ग्राम ली.)/टिल्ट (1 मि.ली./लीटर) दवा का छिड़काव करें।
  • विलिडामाईसिन 3 प्रतिशत् पाउडर के 300 एम.एल. प्रति एकड़ के हिसाब से घोल तैयार कर छिड़काव करें।

पर्णच्छद अंगमारी- खेत में पानी की सतह के ऊपर तने पर उपस्थित पर्णच्छत पर अनियमित आकार के गहरे भूरे किनारे वाले धब्बे बनते हैं, जिसके बीच का भाग मटमैला होता हैं। यह धब्बा तने के चारों ओर फैल जाता हैं। पौधों की रोपाई उचित दूरी में करें।

प्रबंधन- लक्षण दिखते ही शीथमार विलिडामाईसिन 3 प्रतिशत् पाउडर के 300 एम.एल. प्रति एकड़ या कोन्टाफ (2 मि.ली/लीटर) में से किसी एक दवा का छिड़काव करें।