कृषि कार्ययोजना


  • धान की कतार बोनी एवं खुर्रा बोनी करें।
  • धान के नींदा नियंत्रण हेतु बोता धान में आक्साडायर्जिल (रस्ट, टाॅप स्टार 90 ग्राम सक्रिय तत्व) दवा की मात्रा 3 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के 3 दिन के अन्दर डालें। छिड़काव के समय भूमि में नमी अवश्य हो।
  • धान के पुष्ट बीजों का चयन कर 17 प्रतिशत नमक के घोल द्वारा तैयार करें एवं पुष्ट बीजों को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज) कवकनाशी से उपचारित कर बुवाई करें।
  • शीघ्र एवं मध्यम अवधि की धान किस्मों की कतार बोनी करें जिसमें बियासी की आवश्यकता नही होती एवं धान 10-15 दिन पहले पक जाता हैं।
  • खेत की साफ-सफाई एवं मेड़ों की मरम्मत आवश्यक रूप से समय करना चाहिए।
  • खरीफ की लता वाली सब्जी जैसे- लौकी, कुम्हड़ा (कद्दू) को पाॅलीबैग में पौधा तैयार करें व करेला, बरबट्टी लगाने हेतु अच्छी किस्म का चयन कर मेड़ नाली पद्धति से फसल लगाना सुनिष्चित करें, कुंदरू व परवल लगाने हेतु खेत तैयार करें। 
  • गन्ने में मिट्टी चढ़ाने का कार्य सम्पन्न करें।
  • सोयाबीन एवं अरहर के लिये जमीन की तैयारी कर बुवाई करें।
  • ग्रीष्मकालीन जुताई, जल निकास नालियों का सुधार एवं वर्षा हो जाने पर सिंचाई हेतु बने थालों को समतल करें।
  • सब्जियों की पौधशाला हेतु क्यारी निमार्ण, भूमि उपचार एवं क्यारी में बीजों की बुवाई करें।
  • बरसात की फसल हेतु कद्दूवर्गीय सब्जियों के बीजों की बुवाई करें।
  • मौसमी फूलों की पौधशाला हेतु क्यारी निमार्ण एवं बीज की बुवाई करें। शोभायमान उद्यान में जल निकास का प्रबंध करें।
  • आम के विभिन्न उत्पादन जैसे- नेक्टर, आर.टी.एस., स्क्वैश , अचार, चटनी, अमावट आदि तैयार करें।
  • विभिन्न फल जैसे- अनानस , खिरनी, फालसा, खरबूज, तरबूज, लीची, शहतूत, जामुन, बेल आदि का स्क्वैश  तैयार करें।
  • खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। एक सप्ताह तक खुला रहने देने से रोग पैदा करनें वाले सूक्ष्म जीव, कीड़ों के अण्डे, प्यूपा तथा खरपतवारों के बीज नष्ट हो जाते हैं।
  • मेड़ों पर उगे हुए पौधों को जलाकर नष्ट कर दें, जिससे कीडे तथा रोग पैदा करने वाले सूक्ष्म जीव तथा खरपतवार बीज सहित नष्ट हो जाते हैं।
  • पौधशाला में क्यारियों की जुताई कर उसे फार्मलिन से उपचारित करें तथा क्यारियों को 100 गेज की रंगहीन पाॅलीथिन की चादर से ढँक दें। ऐसा करने के 15 दिन के बाद पाॅलीथिन की चादर हटा दें तथा एक सप्ताह बीज की बुवाई करें। ऐसा करने के 15 दिन पश्चात रोग उत्पन्न वाले सूक्ष्म जीव विशेषकर सूत्रकृमि (नेमाटेड) नष्ट हो जाते हैं।
  • मशरूम का नया बीज (स्पान) तैयार करके रख लें। आयस्टर मशरूम एवं पैरा मशरूम दोनों का स्पान बना सकते हैं। इसके लिये गेहूँ या ज्वार के दानों का उपयोग
  • खरीफ फसल में सहारा वाली फसलों हेतु सहारा देने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करें एवं मचान की मरम्मत करें।
  • जो कृषक फलदार पौधे लगाना चाहते हैं वे वर्तमान में खेतों की तैयारी करें तथा साथ ही साथ खेतों में वर्षा ऋतु में पौधे लगाने हेतु गड्डे खोदने का कार्य प्रारंभ करें।
  • अदरक एवं हल्दी की रोपित फसल में पलवार (मल्चिंग) करें और जल निकास को वर्षा पूर्व ठीक करें।
  • फलों जैसे- अमरूद, आम, नीबू व अनार में छंटाई करें साथ ही छंटाई किये हुए शाखा के शीर्ष पर बोर्डो पेस्ट का लेपन करें।
  • गेंदा एवं वर्षाकालीन पौधों के लिये नर्सरी तैयार करें।

पशुपालन कार्ययोजना

  • पालतु पशुओं में गलघोंटू एवं एक टँगिया रोग प्रतिरोधी टीकाकरण करें।
  • पशुओं को कृमिनाशक दवा की खुराक दें।
  • खरीफ फसल के लिये चारा फसलों की बुवाई करें।
  • पशु शालाओं एवं पशु आहार गोदामों की छतों की मरम्मत करें, जिससे भीतर आद्र्रता में वृ़िद्ध न हो
  • पशु शालाओं की गलियों की मरम्मत करें। अच्छा होगा की प्रति 10 फीट लम्बाई पर 1 इंच का ढलान रखा जावे।
  • पशु शाला के आसपास गड्ढों को पाट दे। वर्षा के पानी के बहाव की उचित व्यवस्था करें।
  • मुर्गियों के बिछावन की बदली करें।
  • भेड़ -बकरियों के कोठे की मिट्टी बदल देवें।
स्रोत: इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर