कृषि वैज्ञानिकों ने लगातार खोज के बाद जिमीकंद (सूरन) की कई उन्नतशील प्रजातियां भी विकसित की हैं। अब इसे बड़े पैमाने पर व्यावसयिक रूप से भी उगाया जाने लगा हैं। देशी प्रजातियों में कड़वापन व चरपरापन ज्यादा पाया जाता है जबकि उन्नत प्रजातियों में चरपरापन व कड़वापन न के बराबर होता है। बाजार में जिमीकंद की भारी मांग को देखते हुए इसकी व्यावसायिक खेती बेहद लाभदायक साबित हो रही है। यह कार्बोहाइड्रेट व खनिजों जैसे कैल्शियम और फाॅस्फोरस से समृद्ध हैं। जिमीकंद का उपयोग अनेक बिमारियों जैसे दमा, फेफड़ो की सूजन, बवासीर, पेट दर्द आदि के रोकथाम हेतु विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता हैं। जिमीकंद को स्थानीय बाजार में बेचने के अलावा दूसरे प्रदेश में भेजा जाता है, इनका बड़े पैमाने पर विदेशों में भी निर्यात किया जाता हैं।

उन्नत किस्मेंः गजेन्द्र-1, संतरागाछी, श्री पदमा (एम-15), कोववयूर

गजेन्द्र-1ः इस किस्म को राष्ट्रीय स्तर पर खेती के लिए अनुशंसित किया हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 80 से 100 टन हैं। इसे खाने से जीभ व गले में तीक्ष्णता नही होती हैं। इस किस्म में सिर्फ एक ही कंद बनता है और स्थानीय किस्मों की तरह इसमें अगल-बगल में छोटे कंद नही बनते है। इसके कंद सुडौल एवं गूदा हल्का नारंगी होता हैं। यह सर्वाधिक लोकप्रिय किस्म हैं।

संतरागाछीः यह जिमीकंद या सूरन की मध्यम उपज देने वाली किस्म है। जिसमें मुख्य कंद से लगे हुए अनेक छोटे-छोटे कंद बनते है एवं यह किस्म गले में हल्की तीक्ष्णता भी पैदा करती हैं। इस प्रजाति के पौधों की बढ़वार तेजी से होती है एवं इसकी औसत उपज 60-70 टन प्रति हेक्टेयर तक होती हैं।

श्री पदमा (एम-15): यह दक्षिण भारत की स्थानीय किस्म हैं। इस किस्म उत्पादन क्षमता 80-90 टन प्रति हेक्टेयर होती हैं। एम श्रेणी अन्य किस्म भी इसी तरह की उत्पादन देती हैं।

कोववयूरः इस किस्म की बुवाई कर के फसल की औसत उपज 100-150 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं।

बुवाई का समयः- अप्रेल-जून

भूमि की तैयारीः- जिमीकंद की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। क्योंकि इस तरह की मिट्टी में कंदो की बढ़ोतरी तेजी से होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि चिकनी व रेतीली जमीन में जिमीकंद की फसल न ली जाये क्योंकि इस तरह की मिट्टी में कंदो का विकास रुक जाता हैं। जिमीकंद की बुवाई से पहले खेत की कल्टीवेटर या रोटावेटर से जुताई करे। अंतिम जुताई के बाद 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर की दर से एवं रासायनिक उर्वरक में नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश 80:60:80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुपात से खेत में डाले।

बुवाई विधिः- जिमीकंद को टुकडों में काट कर बुवाई की जाती हैं। यदि कंद छोटा है तो पूरा रोपण किया जा सकता है। जिमीकंद की बुवाई हेतु 250-500 ग्राम का कंद उपयुक्त होता है। परन्तु कंद को काटते समय इस बात का ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम कलिका (कालर) का कुछ भाग अवष्य रहें। उपरोक्त कंदो को बोने से पूर्व कन्दोपचार करना चाहिए। इसके लिए इमीसान 5 ग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर कंद को 25-30 मिनट तक या ताजा गोबर का गाढ़ा घोल बनाकर उसमें 2 ग्राम बेविस्टीन पाउडर प्रति लीटर घोल में मिलाकर कंद को उपचारित कर छाया में सुखाने के बाद ही लगायें। जिमीकंद की बुवाई 75x75x30 सें.मी. चौड़ा एवं गहरा गड्ढा खोद कर की जाती हैं। बुवाई के पूर्व निर्धारित मात्रा में खाद एवं उर्वरक मिलाकर गड्ढे में ड़ाल दे। कंदो के बुवाई के बाद मिट्टी से पिरामिड के आकार में 15 सें.मी. ऊंचा कर दे एवं बुवाई इस प्रकार करें कि कंद का कलिका युक्त भाग ऊपर की तरफ सीधा रहे।

जल प्रबंधनः- यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो एक या दो हल्की सिंचाई अवश्य कर दें। वर्षा आरंभ होने तक खेत में नमी की मात्रा को बनायें रखें एवं बरसात के समय पौधों के आसपास जल जमाव न होने दें।


खरपतवार प्रबंधनः- जिमीकंद की फसल के साथ खरपतवार आना आम बात है, बुवाई के 25-30 दिनों के बाद पौधे उग जाते है। पूरी फसल के दौरान 2-3 बार निराई-गुड़ाई जरूर करना चाहिए, पहली निराई-गुड़ाई 40-50 दिनों में, दुसरी निराई-गुड़ाई 60-70 दिनों में एवं तीसरी निराई-गुड़ाई 80-90 दिनों में करना चाहिए। प्रत्येक निराई-गुड़ाई के समय पौधों पर मिट्टी भी चढ़ाते जायें।

कीट प्रबंधनः- जिमीकंद की फसल में जुलाई से सितंबर के महीनों में तंबाकू की सूंडी का प्रकोप देखा जाता हैं। यह पत्तियों को खा कर हानि पहुंचाती हैं। इसके रोकथाम के लिए मेथेमिल लिक्विड दवा का छिड़काव करना चाहिए।

रोग प्रबंधनः- झुलसा रोग फाइटोफ्थोरा कोलोकेमी नामक फफूंद के कारण लगता हैं। जिमीकंद की पत्तियां झुलस जाती हैं और तना गलने लगता है। इसके अलावा कंदो की बढ़वार भी रुक जाती है। दुसरा रोग पत्ती कंद विगलन का होता है। रोकथाम के लिए सिक्सर नाम के रसायन की 300-330 ग्राम मात्रा को 200-300 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।

खुदाईः- जिमीकंद की फसल अक्टूबर महीने से खुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसे हर हाल में नवंबर तक खुदाई करवा लेना चाहिए। कंदो की खुदाई के बाद उन्हें साफ पानी से धोकर किसी छायादार स्थान पर सूखाकर रखना चाहिए, उसके बाद उनकी छटाई कर किसी हवादार बोरो में भरकर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए एवं छटनी के बाद बची हुई छोटी कंदो का इस्तेमाल फिर से बुवाई हेतु बीज के रूप में कर सकते हैं।