अमचूर
आम एक मौसमी फल है और यह ग्रीष्म ऋतु में 3-4 महीने के लिए ही बाजार में उपलब्ध रहता है। आम के कच्चे तथा पके फल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। इसलिए आम का मौसम खत्म होने के बाद भी आम का आनंद लेने के लिए आम के प्रसंस्करित उत्पाद बनाकर रखे जाते हैं। कच्चे आम से सामान्यतः अचार तथा चटनी बनाई जाती है। इसके अलावा कच्चे आम को पाउडर या अमचूर के रूप में भी प्रसंस्करित कर भंडारित कर सकते हैं। एक कि.ग्रा. कच्चे आम से लगभग 200 ग्राम सूखी फांकें अथवा 5 कि.ग्रा. आम से एक कि.ग्रा. सूखी फांकें प्राप्त होती हैं। एक कि.ग्रा. सूखी फांकों का मूल्य 60 रुपये से 150 रुपये तक मिलता है। सूखी फांकों का मूल्य उनके रंग तथा नमी की मात्रा पर निर्भर करता है। यदि सूखी फांकों को पाउडर या अमचूर में परिवर्तित करके बेचा जाए तो एक कि.ग्रा. पाउडर का मूल्य 350 रुपये से 400 रुपये तक मिलता है।

आम उत्पादक क्षेत्रों में फलत के दौरान लगभग 3-4 बार आंधी आती है, जिसके कारण लगभग 15-20 प्रतिशत कच्चे फल गिर जाते हैं। यदि आंधी तीव्र हो तो इससे अधिक फल भी गिर सकते हैं। इसके अलावा तुड़ाई के दौरान भी लगभग 10-12 प्रतिशत फल फट जाते हैं। इन फलों का बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलता। इन फलों से अमचूर उत्पादन कर बिक्री करने से उत्पादकों को अतिरिक्त आय की प्राप्ति हो सकती है।


अमचूर के उपयोग
अमचूर का उपयोग विभिन्न व्यंजन बनाने में होता है। इसका उपयोग दाल, सांभर तथा गोलगप्पे के पानी में भी किया जाता है। इसके अलावा अमचूर, चाट मसाला, करी, बिरयानी, चिकन करी इत्यादि का मुख्य घटक होता है। अमचूर, नीबू एवं इमली के विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। एक चम्मच अमचूर की अम्लता, तीन चम्मच नीबू रस के बराबर होती है।

अच्छे अमचूर की पहचान
अमचूर हल्के भूरे रंग का होना चाहिए। अमचूर में फफूंद का संक्रमण नहीं होना चाहिए। नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अम्लता 12-15 प्रतिशत तक होनी चाहिए। अमचूर उत्पादन की विधि अमचूर दक्षिणी, पश्चिमी तथा समुद्र तटीय क्षेत्रों में अप्रैल-मई में तथा उत्तरी भारत में मई-जून में बनाया जा सकता है।

फांकें बनाना
आंधी से गिरे हुए कच्चे फलों या तुड़ाई के दौरान खराब हुए फलों को एकत्रित कर पानी से साफ करना चाहिए। फिर स्टील के चाकू या पीलर से फल का छिलका निकालकर फांकें बनाते हैं। फांकें पतली बनानी चाहिए, जिससे वे आसानी से एवं जल्दी सूख सकें।


परिरक्षक से उपचार 
फांकों में फफूंद लगने से उनका रंग भूरा या काला हो जाता है। इसके कारण सूखी हुई फांकों का उचित मूल्य नहीं मिलता। यदि इन फांकों को चूर्ण में परिवर्तित किया जाए तो उसका रंग भी भूरा या काला हो जाता है। फफूंद लगने से बचाने के लिए फांकों को सुखाने से पहले पोटेशियम मेटाबाइसल्पफाइट के घोल में 5 मिनट तक डुबोना चाहिए।
फांकों को सुखाना 

फांकों को धूप में या कम लागत के सोलर ड्रायर में सुखाया जा सकता है। सामान्यतः फांकों को धूप में छत पर सुखाया जाता है। इसके कारण धूल या मिट्टी के कण लगने से फांकों का रंग भूरा हो जाता है। धूप में सुखाने में समय भी अधिक (2-3 दिन) लगता है। सोलर ड्रायर में फांकें एक दिन में सूख जाती हैं, क्योंकि सोलर ड्रायर का तापमान बाहरी तापमान से 8-1200 सेल्सियस ज्यादा होता है। उच्च गुणवत्ता का अमचूर बनाने के लिए पफांकों को सोलर ड्रायर में ही सुखाना चाहिए।

अमचूर बनाना
ग्राइंडर या पल्वेराइजर से सूखी हुई फांकों से अमचूर बनाया जा सकता है। यह स्टेनलैस स्टील का बना होता है। इसमें 2 हाॅर्स पाॅवर की मोटर लगी होती है। इसके अलावा एक ब्लोअर भी लगा हुआ होता है, जो फांकों व चूर्ण में बची हुई नमी को भी सुखा देता है।
             
अमचूर बनाते समय सावधानी 

  1. बहुत छोटे पफलों को छीलना, काटना एवं पफांकों से पाउडर बनाना कठिन होता है। उनमें पफीनोल की मात्रा ज्यादा होने से सूखने के बाद पफांकों तथा अमचूर का रंग काला हो जाता है। 
  2. फल को छीलने के लिए स्टील के चाकू या पीलर का उपयोग करना चाहिए। लोहे के चाकू से छीलने से पफांकों का रंग गहरा भूरा या काला हो जाता है।
  3. फांकें पतली काटनी चाहिए। पतली फांकों को सूखने में कम समय लगता है एवं उनका पाउडर बनाने में भी आसानी होती है। 
  4. अमचूर बनाने की प्रक्रिया एवं भंडारण के दौरान पफपफूंदी से बचाने के लिए फांकों को सुखाने से पहले परिरक्षक से उपचारित करना चाहिए। 
  5. फांकों को धूप में सुखाना हो तो सापफ कपड़ा या काली पाॅलीथीन शीट के ऊपर फैलाकर सुखाना चाहिए। यदि सोलर ड्रायर उपलब्ध हो तो पफांकों को उसमें ही सुखाना चाहिए।
  6. ग्रामीण इलाकों में सूखी फांकों (जिसे खटाई कहा जाता है) को ही बेच दिया जाता है, जिससे अधिक लाभ नहीं मिलता। अधिक लाभ कमाने के लिए सूखी फांकों को पाउडर (अमचूर) में परिवर्तित कर एवं आकर्षक पैकेजिंग करके विपणन करना चाहिए।